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Hindi Section ( 12 Apr 2014, NewAgeIslam.Com)

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Respecting Muslim Caliphs मुस्लिम ख़लीफ़ाओं का सम्मान

 

 

 

 

 

माइक ग़ौस

12 दिसम्बर, 2012

आज मुसलमानों के बीच सुन्नी मुसलमानों के द्वारा शिया मुसलमानों के बाद सबसे ज़्यादा सताए जाने वालों में से अहमदिया मुसलमान हैं। हम जानते हैं कि दूसरों के प्रति चाहे वो मुसलमान हों या कोई दूसरे उनके साथ अन्याय, दमन, और अत्याचार करना इस्लामी काम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद ये पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और यहाँ तक कि हिंदुस्तान में भी जारी है। एक मुसलमान होने के नाते इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करना मेरी ज़िम्मेदारी है, और अगर हम में से सभी अपनी इस ज़िम्मदारी को पूरा करते हैं, तो हम कम से कम अच्छाई का हुक्म देने और बुराई से मना करने वालों के अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं।

क्या यहूदियों ने यीशु को सताया था? नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता, इसका ज़िम्मदार वो नेतृत्व था जो यीशू के संदेश को नहीं जान सका और समाज से नियंत्रण खो देने की असुरक्षा ने इन असुरक्षित शक्तिशाली पुरुषों को यीशु के साथ दुर्व्यवहार कराया। यीशु मसीह की विरासत पैदा करने के लिए ये खुदा की मर्ज़ी थी।

मुझे नहीं लगता है कि अहमदिया मुसलमानों के उत्पीड़न के लिए सुन्नी मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, या क्या इसकी वजह ज़िया- भुट्टो गठबंधन था जिसने बहुत से लोगों को ऐसा सोचने के लिए प्रभावित किया। अगर ये ज़िया-भुट्टो गठबंधन की वजह से था तो इसे उनके सत्ता से जाते ही खत्म हो जाना चाहिए था, क्यों ये वायरस हमारे अंदर फैल गये हैं और पाकिस्तानी सीमा से भी बाहर चले गए हैं?

हमें खुद को समझने के लिए शोध की ज़रूरत है। हालांकि सभी धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समूहों में अधिकांश लोगों का व्यवहार एक समान ही है। अमेरिका में मुख्यधारा के ईसाई मोरमोनिज़्म को अपने बराबर नहीं मानते हैं, लेकिन रोमनी ने प्रभावी परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक का काम किया जिससे मोरमोनिज़्म के प्रति दक्षिणपंथी ईसाइयों की दुश्मनी में कमी आई। हिंदू जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर दलित हैं, इन्हें भारत में परेशान और अपमानित किया गया था, लेकिन जगजीवन राम का शुक्रिया जो दशकों पहले देश के रक्षा मंत्री हुए, जिससे ऐसी घटनाएं बहुत कम हो गईं। मुझे यकीन है कि दुनिया भर में ऐसे उत्प्रेरक परिवर्तनों की और भी बहुत सी मिसालें हैं।

हो सकता है कि अमेरिका में अहमदिया मुस्लिम राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बन जाए और ये एक उत्प्रेरक बन कर मुसलमानों के बीच समीकरणों को बदल डाले। वास्तव में ये एक महत्वपूर्ण पल होगा। जब पहली पीढ़ी के प्रवासी हम लोग खत्म हो जाएंगे तब तक मुसलमानों के बीच सकारात्मक बदलाव लाने के लिए युवाओं के लिए बाधाएं दूर हो चुकी होंगी, ऐसा केवल अमेरिका में ही नहीं होगा बल्कि उन देशों में भी होगा जहाँ इनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

नफरत का एक अजीब रुझान है जो काम करता है और स्वयंभू धार्मिक ढोंगी लालच और असुरक्षा से प्रेरित हैं और ऐसे लोगों के लिए धर्म का मतलब कुछ भी नहीं है।

दक्षिणपंथी ईसाई अमेरिकियों के लिए नफरत के वास्ते कोई न कोई होना चाहिए,  .... वो चीनी से लेकर रूसी, अरब और मुसलमान हो सकते हैं। यीशु की शिक्षाओं को क्या हो गया है? ऐसा ही हाल दक्षिणपंथी यहूदियों, हिन्दुओं, बौद्धों, और दूसरों का भी है। दक्षिणंपथी सुन्नी मुसलमानों को भी नफरत के लिए कोई न कोई चाहिए, और इसमें मूर्तिपूजा करने वालों से लेकर यहूदी, अहमदी और अब शिया मुसलमान शामिल हैं। क्या उन्हें अपनी बुरी प्रवृत्तियों को पूरा करने के लिए अहमदिया मुसलमानों को अस्वीकार करने की ज़रूरत है? हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं को क्या हो गया? आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि सबसे बड़ा जिहाद अपनी बुरी प्रवृत्तियों पर जीत हासिल करना है।

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की परम्परा में दूसरों से सहमत हुए बिना मैं दूसरों की भिन्नता का सम्मान करता हूँ। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कई मिसालें कायम की हैं और उनमें से एक हुदैबिया का समझौता है, जिसके समझौते के दस्तावेज पर आपने अपना नाम शांति स्थापित करने के लिए मोहम्मद रसूलुल्लाह से मोहम्मद बिन अब्दुल्ला लिखा। आपको याद होगा कि कुछ सहाबी इस फैसले से खुश नहीं थे, लेकिन पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को शांति की खातिर ऐसा करना था। इसलिए अहमदिया मुसलमान जिस चीज़ में विश्वास करते हैं उन्हें करने दें, वो भी मुसलमान हैं क्योंकि वो भी इस पर विश्वास करते हैं कि मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम आखिरी नबी हैं, क़ुरान मार्गदर्शन, अल्लाह क़यामत के दिन का मालिक और हम सभी व्यक्तिगत रूप से अपने कार्यों के लिए जवाबदेह हैं।

मैं हज़रत मिर्ज़ा गुलाम अहमद को एक महान इस्लामी विद्वान के रूप में स्वीकार करता हूँ, और हज़रत मंसूर अहमद को इस्लाम का खलीफा मानता हूँ जिनके समकालीन ख़लीफ़ाओं (नेता / फैसला करने वाले) में आगा खान, सैयद बुरहानुद्दीन, इमाम खुमैनी, वारिस दीन मोहम्मद और वो दूसरे जो अपने समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले थे। हमें ऐसे किसी व्यक्ति की  सख्त जरूरत रही है, जो सबको समझदार बनाये। ये समकालीन ख़लीफ़ा प्रभावी ढंग से किसी से भी नफरत न करने की शिक्षा अपने समुदायों को देते रहे हैं। बेशक, हम सुन्नियों के बीच मार्गदर्शन के लिए कोई एक नहीं है, जब तक हम दूसरों से अपेक्षित व्यहार को दूसरों के साथ करते हैं तब तक ये ठीक भी है।

लेकिन मुझे और ज़्यादातर सुन्नी मुसलमानों के लिए ये विश्वास करना मुश्किल है कि हज़रत मिर्जा गुलाम अहमद मसीह मौऊद हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होना चाहिए कि हम उनके विश्वास से इंकार करें। सूरे काफ़ेरून की आखिरी आयत में इसे सबसे आदर्श तरीके से बयान किया गया है, तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए और मेरा धर्म मेरे लिए, और एक नतीजे के तौर पर जैसे "सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है, वैसे ही ईमान मोमिन के दिल में होता है।"

हम वहाबियों से मतभेद रखते हैं, जो पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के घर और उनसे सम्बंधित वस्तुओं और अन्य कई चीजों को नष्ट करने की इंतेहा को पहुँच गये हैं। देवबंदी और बरेलवी एक दूसरे की मस्जिदों में नमाज़ नहीं पढ़ते हैं... हमें सम्मान के साथ मतभेदों को स्वीकार करना सीखना होगा। रसूल, नबी और नबूवत का सिलसिला पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के साथ खत्म हो गया है। ये मानकर सुन्नी अपने विश्वास को मज़बूत कर सकते हैं। और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम शब्द के हर मायने में अंतिम संदेश देने वाले थे।

मुझे आशा है कि मेरे साथी मुसलमान चाहे वो अहमदी, बोहरा, इस्माइली, शिया, सुन्नी, वारिस दीन मोहम्मद या वहाबी हों, वो दूसरे मुसलमानों से सहमत हुए बिना और दूसरों को हमारी तरह व्यवहार करने की मांग का प्रलोभन और बहुसंख्यक अहंकार के आधार पर उन्हें अपना विश्वास त्याद देने की धमकी दिये बिना ही उनका सम्मान करने सीख सकते है। हमें खाकसार होना चाहिए न कि तानाशाह।

जज़ाक-अल्लाह खैर

माइक ग़ौस

मुसलमान एक साथ मिल कर संगठित समाज का गठन कर सकते हैं, जहां अल्लाह की प्रत्येक रचना सुरक्षित तरीके और  सद्भाव के साथ रहे। www.WorldMuslimCongress.com

माइक ग़ौस ने संगठित अमेरिका के निर्माण के लिए अपने आपको समर्पित कर रखा है, और रोजमर्रा की समस्याओं पर बहुलवादी समाधान पेश करते हैं और वो एक पेशेवर वक्ता, विचारक और बहुलवादी, राजनीति, नागरिक मामलों, इस्लाम, भारत, इसराइल, शांति और न्याय के विषय पर लिखतें हैं। माइक फॉक्स टीवी पर सीन हनीटी शो पर अक्सर मेहमान के तौर पर आते हैं, और नेशनल रेडियो नेटवर्क पर एक कमेंटेटर हैं। माइक डलास मॉर्निग न्यूज़ में साप्ताहिक टेक्सास फेथ कालम लिखते हैं और हफिंगटन पोस्ट और दुनिया के दूसरे अखबारों में अक्सर लिखतें हैं। उनका ब्लॉग www.theghousediary.com रोज़ाना अपडेट किया जाता है।

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