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Hindi Section ( 2 May 2012, NewAgeIslam.Com)

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Girls are Mercy of God Do not Take Them Otherwise लड़कियां रहमत हैं उन्हें ज़हमत न समझें


मौलाना मोहम्मद मुजाहिद हुसैन हबीबी

(उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

इस्लाम की शुरुआत और पैगम्बर सरकारे दोआलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के दुनिया में तशरीफ़ लाने से पहले अरब और गैर अरब देशों में औरत की कोई हैसियत नहीं थी। यहाँ तक कि बेजान चीजों की तरह उन्हें खरीदा और बेचा जाता था। उन्हें कल्त कर देना उनकी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करना कोई गुनाह और ज़्यादती नहीं मानी जाती थी। विरासत में न तो उनका कोई हिस्सा हुआ करता था और न उनकी कोई इज्जत होती थी। शौहर के मरने के बाद बीवी शौहर के बेटे की संपत्ति समझी जाती थी। अगर औरत खूबसूरत हो तो वह उसे अपने पास रखता वरना उसे दूसरे के हाथों बेच दिया करता था। औरत को यौन आग बुझाने का सिर्फ ज़रिया और गुनाह की पैदावार समझा जाता था। औरत पर जुल्म और ज़्यादती का सिलसिला उस समय शुरू हो जाता था जब वो पैदा होती और बिल्कुल छोटी बच्ची होती थी। अरब के कई कबीलों में ये बुरी प्रथा आम थी कि बच्ची के जन्म के बाद उसे गाड़  दिया जाता था। कुरान में अहले अरब के इस बदबख्ताना अमल का अल्लाह ने खुद ज़िक्र किया है। इरशाद होता है  '' जब इनमें से किसी को बेटी होने की खबर दी जाती है तो उसके चेहरे सियाही छा जाती है और गुस्से के कारण खून के घूंट पी कर रह जाताहै। लोगों से छिपता फिरता कि इस बुरी खबर के बाद लोगों को क्या मुँह दिखाये। सोचता है कि अपमान के साथ बेटी को रहने दे या मिट्टी में दबा दे'' (सूरे नहल- आयत संख्या:58, 59) एक दूसरी जगह इरशाद होता है। अपने बच्चों को मुफलिसी और मोहताज्गी के सबब कत्ल न करो हम उन्हें भी रिज़्क देते हैं और तुम्हें भी। उनका कत्ल बहुत बड़ी गलती और गुनाह है (सूरे- बनी इसराइल- आयत: 31)।

इन आयतों से पता चला कि अहले अरब बच्चों को बहुत तिरस्कार और घृणा की नज़र से देखते थे। बदबख्ती की हद ये थी कि उन्हें ज़िदा रखने के भी हक़ में नहीं थे बल्कि गर्व ये कि अपनी बेटियों को ज़िंदा कब्र में दफना दिया करते थे। लेकिन जब इस्लाम आया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को जहां अल्लाह की वहदानियत की तालीम दी अपनी रिसालत का इक़रार करवाया वहीं कत्मा पढ़ने वाले मुसलमानों को कत्ले नाहक से बचने की हिदायत फ़रमाई और औरत और बच्चों के साथ बेहतर व्यवहार करने पर खासा ज़ोर दिया। इस बारे में कुछ हदीसें मुलाहिज़ा फरमाएं। बेटी की परवरिश पर जन्नत की बशारतः हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिस आदमी के यहां बेटी पैदा हुई तो न तो वह उसे जिंदा दफन करे और न उसे अपमानित समझे और न अपने बेटो को उस पर तरजीह दे तो अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल फरमाएगा। (अबु दाऊद)

हज़रत उक़्बा बिन आमिर बयान करते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना कि जिस व्यक्ति की तीन बेटियाँ हों और उनके मामले में सब्र से काम ले और अपनी कमाई से उन्हें खिलाए, पिलाए और पहनाए तो वो बेटियों क़यामत के दिन उसके लिए आग से बचाव का ज़रिया हो जाएंगी। (इब्ने माजा) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिस आदमी ने दो लड़कियों की परवरिश की यहां तक कि वो बालिग़ हो जायें, तो वो (परवरिश करने वाला) क़यामत के दिन उस हाल में आएगा कि मैं और वो ऐसे होंगे फिर आपने हाथ की उंगलियों को आपस में एक दूसरे से मिला दिया (यानी ऐसे करीब होंगे)। (मिशक़ात)

हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि मेरे पास एक औरत आई उसके साथ उसकी दो बेटियाँ थीं। उसने कुछ मांगा और मेरे पास खजूर के सिवा कुछ नहीं था। मैंने उसे वही दे दिया। उसने उस खजूर को अपनी दोनों बेटियों के बीच बांट दिया और खुद कुछ न खाया। फिर उठकर खड़ी हुई और चली गई। जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हमारे पास आए मैंने आपको ये बताया तो आपने कहा जो कोई इन लड़कियों के बारे में किसी आज़माइश में मुब्तेला हो जाये, फिर वो उनसे अच्छा व्यवहार करे तो ये लड़कियाँ उसके लिए जहन्नम की आग से पर्दा बन जाएंगी। (बुखारी व मुस्लिम)

पैगम्बर की इन पाकीज़ा बातों का ये असर हुआ कि कुछ दिनों में अरब राष्ट्र की काया पलट गई। जो महिलाओं की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करते थे उनके नामूस के मुहाफिज़ बन गए। जो बच्चों को जिंदा दफन कर दिया करते थे, वो बच्चों की परवरिश में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे और उनकी देखरेख और बेहतर तालीम व तर्बियत  को अपनी निजात और मग़फ़िरत समझने लगे। ये सिलसिला माज़ी करीब तक जारी रहा। लेकिन अब कुछ सालों से मुसलमानों में भी बच्चों के संबंध में गलत मानसिकता विकास पा रही है। उनकी विलादत को बोझ समझा जाने लगा है। और उनके साथ बुरा सुलूक भी आम होता जा रहा है। हम मुसलमानों के लिए ये बहुत दुखद बात है कि जो काम कुफ़्फ़ार व मुशरिकीन इस्लाम से पहले करते थे आज मुसलमान कहलाने वाले वही काम कर रहे हैं। इस्लामी शिक्षाओं से दूरी का नतीजा: पिछले दो महीनों के अख़बारों को देखें तो मालूम होगा कि कितनी तेजी के साथ बच्चों की हत्या करने और उनके साथ बुरा सुलूक का स्वभाव मुस्लिम समाज में आम होता जा रहा है। कहीं बच्ची पैदा होने के कारण माँ को जलाया जा रहा है, कहीं बच्ची और माँ को ज़हर खिलाया जा रहा है। कहीं बच्ची पैदा होने के कारण पत्नी को तलाक दिया जा रहा है। बच्चों की जन्म के बाद जो हालात उत्पन्न हो रहे हैं समाचार पत्रों द्वारा वो बातें हम और आप तक पहुंच जाती हैं। लेकिन शिकमे मादर (माँ के पेट) में जिन बच्चियों की हत्या हो रही है उनसे कौन आगाह है? उनकी संख्या क्या है? मुसलमानों को ये क्या हो गया है? ये क्यों हो रहा है? उसके बचने की नीति क्या है? कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं। जिनके उत्तर भी कई हैं पहली बातः ये कौन दीन मज़हबे आदमियत और इंसानियत से ग़ाफ़िल और अल्लाह की ज़ात पर भरोसा न होने के कारण लोग इस प्रकार का घिनौना काम कर रहे हैं। दूसरी बात! ये है कि अशिक्षा के कारण कुछ लोग बच्चियों को पराया माल समझते हैं। फिर दहेज के भय के कारण और किसी को दामाद बनाना अपने लिए अपमान का ज़रिया समझते हैं। इसलिए वो इस तरह का कदम उठा बैठते हैं। तीसरी बात गरीबी से तंग आकर या संसाधनों की कमी के कारण इस तरह की हरकत करने पर मजबूर होते हैं।

उपरोक्त दो असबाब में से पहले दो का समाधान ये है कि उलेमा दानिशवर औऱ पढ़े लिखे हज़रात लोगों को कुरान व हदीस की रोशनी में बच्चिंयों के मान सम्मान, उनके मकाम और उनकी परवरिश से संबंधित जो बशारतें हदीसों में बयान हुई हैं उनसे लोगों को आगाह करें। अल्लाह की ज़ात से उम्मीद दिलाएँ कि जिस तरह वे आपको रोजी दे रहा है उसी तरह वह आपके बच्चों को भी रोजी देगा और उनके रोज़ाना की ज़िंदगी का इंतेज़ाम फरमायेगा। साथ ही दहेज की निंदा, उसकी खराबियों से मुसलमानों को आगाह करें ताकि ये बुरी प्रथा समाज से खत्म हो और लोगों के लिए लड़कियों की परवरिश करना और शादी करना वगैरह आसान हो सके। इस तरह कई बच्चों की जान बचाई जा सकती है। तीसरी बात का समाधान ये है कि अहले सरवत हज़रात इस सिलसिले में अपनी जिम्मेदारी समझें। मस्जिदों में संगमरमर और टाइल्ज़ लगाने, एयर कंडीशन लगाने, मीनार व गुम्बद बनवाने, इमाम को हज कवारने, पीर साहब को मोटी रकम भेंट करने से सौ गुना ज़्यादा अहम ये है कि गरीब मुसलमान भाई की आर्थिक मदद की जाये ताकि बच्चिंयों के जीवन बच सके। देखिए गरीब मुसलमान भाई की मदद पर अल्लाह और उसके रसूल ने क्या खुशखबरी दी है।

गरीब मुसलमानों की मदद पर बशारतः हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जो अपने भाई की हाजत पूरी करने में लगा रहता है अल्लाह उसकी जरूरत पूरी करने में लगा रहता है। और जो कोई किसी मुसलमान की किसी तकलीफ को दूर कर दे तो अल्लाह उसके बदले क़यामत के दिन की तकलीफ़ों में से किसी तकलीफ़ को दूर कर देगा। (अबु दाऊद- हदीस संख्या: 3539) हज़रत अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह के कुछ बन्दे हैं जिन्हें अल्लाह ने लोगों की जरूरत पूरी करने के लिए पैदा फ़रमाया। लोग अपनी जरूरतें उनके पास लेकर आते हैं ये वो लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने अज़ाब से मामून फरमाया है। (अल-तरगीब व अल-तरहीब: हदीस संख्या: 3862)

गरीब मुसलमानों की मदद पर बशारतः हज़रत अब्दुल्ला बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो लोगों पर दया नहीं करता अल्लाह उस पर रहम नहीं करता। (बुखारी, मुस्लिम, तिर्मीज़ी) एक दूसरी रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो ज़मीन वालों पर रहम नहीं करता तो जो आसमानों पर है वो उस पर रहम नहीं करता। (तिबरानी फिल-कबीर, हदीस नंबर: 2/355)

गरीब और अनाथों बच्चों की परवरिश के सिलसिले में हदीसेः हज़रत सहल बिन साद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, मैं और यतीमों की परवरिश  करने वाले जन्नत में इस तरह होंगे। और आपने अंगूठे के बगल वाली और बीच उंगली से इशारा फरमाया और उनदोनों के बीच थोड़ा फासला रखा। (तिरमीज़ी: हदीस संख्या: 1918) यानी यतीम बच्चों की परवरिश करने वाला जन्नत में पैगम्बर के बहुत करीब है। इस सिलसिले में हदीस मुलाहिज़ा फरमायें कि यतीमों की परवरिश करने का सिला  व सवाब क्या है। हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया मुसलमानों के घरों में सबसे अच्छा घर वो है जहां कोई यतीम हो और घरवाले उसके साथ अच्छा व्यवहार करें और मुसलमानों के घरों में सबसे बुरा घर वो है जिसमें कोई यतीम हो उसके साथ बुरी सुलूक किया जाता हो (इब्ने माजा- हदीस: 3679) हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो रवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि बेवा और मिस्कीन के लिए कोशिश करने वाला अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले की तरह है। रावी कहते हैं कि मुझे लगता है कि पैगम्बर ने ये भी फरमाया वो लगातार कयाम करने वाले और रोज़ा रखने वाले की तरह है। (बुखारी- हदीस संख्या: 6007। मुस्लिम- हदीस संख्याः 2982)

हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो फरमाते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया क़सम है उस ज़ात की जिसने मुझे हक़ के साथ भेजा है। अल्लाह क़यामत के दिन उस आदमी को अज़ाब नहीं देगा जिसने यतीम पर रहम की हो और बातचीत में नरमी बरती हो। और उसकी यतीमी और बेबसी पर रहम किया हो। (अल-तरगीब व अल-तरहीब- हदीस संख्या: 756) कत्ले नाहक की निंदाः हज़रत अबु दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो फरमाते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को ये फरमाते हुए सुना कि हर गुनाह माफ कर दिया जाएगा सिवाय इसके कि कोई आदमी कुफ़्र पर मरा हो। या जान बूझकर किसी आदमी ने मोमिन का कत्ल किया हो। (नेसाई- हदीस संख्या: 3984)

हज़रत बर इब्ने आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया दुनिया को खत्म किया जाना अल्लाह के नज़दीक इस बात से बहुत आसान है कि नाहक किसी मुसलमान को कत्ल किया जाये। (अल-तरगीब व अल-तरहीब हदीस संख्या : 3588) इस हदीस से यह बात मालूम हुई कि किसी भी मुसलमान को कत्ल करना अल्लाह को सख्त नापसंद है। जानवर पर ज़ुल्म की सजाः हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया एक औरत को सिर्फ एक बिल्ली की वजह से अज़ाब में दाखिल किया गया। बिल्ली को उसने कैद कर दिया था, यहाँ तक कि वो मर गई। जब से उसे बांधा था न उसे खाना खिलाया था और न ही पानी पिलाया था और न ही उसे खुला छोड़ा कि वो खुद से ज़मीन के कीड़े मकोड़े खा लेती। (बुखारी- हदीस संख्या: 5632) जब बिल्ली पर ज़ुल्म करने और उसे भूखा मारने की यो सज़ा है तो आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बच्चियों को कत्ल करने वाला कैसे निजात पा सकता है।

जानवर पर रहम करने का सिला: हसरत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया (पिछली अम्मत का ये वाकेआ है, एक आदमी को सख्त प्यास लगी वह पानी की तलाश करता है) एक कुएं के पास पहुंचा। कुएं में डोल न होने के सबब वो खुद कुएँ में उतरा पानी पी कर प्यास बुझाई। कुँए के पास एक कुत्ता था जो प्यास की शिद्दत की वजह से कीचड़ चाट रहा था। कुत्ते की इस हालत को देख इस आदमी को रहम आ गया। वो फिर से कुएं में उतरा। अपने चमड़े के मोज़े में पानी भर कर कुएं के ऊपर आया और कुत्ते को पानी पिलाया और अल्लाह का शुक्र अदा किया। इस अमल की वजह से अल्लाह ने उसे जन्नत में दाखिल फरमा दिया। (बुखारी- हदीस संख्याः 3632)

ग़ौर करे कि जब जानवर पर रहम का ये सिला व सवाब है तो इंसान खासकर औरत और बे-सहारा लड़कियों और बच्चियों पर रहम का सिला क्या होगा?

उम्मीद है कि उपरोक्त लाइनों को पढ़कर बच्चों पर हो रहे ज़ुल्मों सितम को रोकने के लिए आप ज़रूर कदम उठाएंगे औऱ समाज में बढ़ते हुए बदबख्ताना काम को रोकने की कोशिश करेंगें। याद रखें गफलत बरतने पर अल्लाह के हुज़ूर में हमें जवाबदेह होना पड़ेगा। अल्लाह हम सबका हामी व नासिर हो।

स्रोतः हमारा समाज, नई दिल्ली

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