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Hindi Section ( 24 Jan 2013, NewAgeIslam.Com)

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Importance of 12th Rabiul Awwal and its Obligations 12 रबीउल अव्वल का महत्व

 

मौलाना असरारुल हक़ कासमी

22 जनवरी, 2013

(उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

12 रबीउल अव्वल के मौक़े पर देश और विदेश के करोड़ों मुसलमान पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से अपने ताल्लुक़ का इज़हार करते हैं। बहुत सी जगहों पर छुट्टियाँ मनाई जाती हैं, चप्पे चप्पे से जुलूसे मोहम्मदी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम निकाले जाते हैं। इस मौक़े पर जलसों और प्रोग्रामों का आयोजन भी किया जाता है, जिनमें वक्ता लोग पूरे जोश के साथ तकरीर करते नज़र आते हैं। इस मौक़े पर आम तौर पर वक्ता लोग इतना भावुक अंदाज़ अपनाते हैं, लगता है जैसा कि जंग का बिगुल बज गया हो और सैनिकों की भावनाओं को उभारा जा रहा हो। सीरते तैय्यबा (जीवनी) सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के हर पहलू को इतने भावुक अंदाज़ में पेश करना ज़्यादा उचित नहीं लगता, क्योंकि इस तरह वो सुनने वाले जो बड़े शौक़ के साथ तक़रीर सुनने के लिए जमा होते हैं, वो अंदाज़ के घन गरज में या अंदाज़ के उतार चढ़ाव में गुम होकर रह जाते हैं। क्या बयान किया गया? तकरीर के बाद उन्हें इसका कुछ पता नहीं होता। जैसे कि कानों को एक तरह से लज़्ज़त (स्वाद) हासिल होती है, लेकिन बात दिमाग में नहीं उतरती और कुछ याद नहीं रहता, जब कुछ याद नहीं रहता तो इन बातों पर जो सीरत से संबंधित तक़रीर में बतायी जाती हैं, उनसे वो कैसे फायदा हासिल कर सकते हैं और उन्हें कैसे अपनी ज़िंदगी में ला सकते हैं? क्या ही अच्छा हो कि वक्ता लोग इस मौक़े को गनीमत जानते हुए सुनने वालों को सीरत (पवित्र जीवनी) के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराएँ और उन्हें ऐसी बातें बताएं जो न सिर्फ जलसे के खत्म होने के बाद भी याद रहें, बल्कि लंबे वक्त तक याद आएं, ताकि वो इन बातों को दूसरों तक पहुंचा सकें और खुद भी उन पर अमल कर सकें, इसलिए अगर इस मौक़े पर समझाने वाला अंदाज़ अख्तियार किया जाए तो बेहतर होगा। भावनात्मक या शोर वाले लहजे में तक़रीर कर फायदेमंद बातों को सुनने वाले लोगों के दिल और दिमाग़ में उतारना मुश्किल काम है।

12 रबीउल अव्वल के मौक़े पर लोग सीरते तैय्यबा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को जानना चाहते हैं, इसलिए अगर इस अंदाज़ से उनके सामने सीरत बयान की जाए कि उनके सामने सीरते तैय्यबा के विभिन्न पहलू सामने आ जायें, तो ये अहम बात है। इन जलसों में सुनने वालों को बताया जाए कि जिस रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के वो उम्मती हैं वो कितने महान थे, उनके जन्म से पहले दुनिया के क्या हालात थे और उन्होंने किस तरह उन हालात को बदला, कैसे जेहालत के अंधेरे में इल्म का चिराग़ रौशन किया, आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का बचपन कैसे बीता? ताकि लोग अपने बच्चों को उस राह पर लाने की कोशिश करें कि उनका बचपन भी आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बचपन की तरह गुज़रे। रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बचपन के हालात बताना इसलिए भी ज़रूरी है कि मजलिसों और प्रोग्रामों में बहुत बच्चे भी शामिल होते हैं। कुछ बच्चे हालांकि कम उम्र होते हैं लेकिन वो अच्छी बातों को समझते हैं, याद करते हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी में लाने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है कि बच्चे का मन कोरे कागज़ की तरह होता है यानी जिस तरह खाली कागज़ पर कुछ भी लिखा जा सकता है, उसी तरह बच्चे को अलग अलग बातें ज़हन नशीन कराई जा सकती हैं। अगर बच्चे के सामने अच्छी बातें पेश की जाएंगी तो वो न सिर्फ उसके दिमाग़ में घर कर जाएंगी, बल्कि उसके ज़िंदगी में भी नज़र आएंगी। अगर बच्चे के सामने बुरी बातें बयान की जाएगा या उसको ग़लत ढंग से तर्बियत (प्रशिक्षण) दिया जाएगा या फिर उसे नामुनासिब माहौल प्रदान किया जाएगा तो उसके जीवन में उसी के प्रभाव दिखाई देंगे। इसलिए 12 रबीउल अव्वल के मौक़े पर आयोजित होने वाले जलसों में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बचपन के हालात को बयान किया जाना अहम और फायदे से खाली नहीं है।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जवानी के हालात और घटनाओं को भी इस मौक़े पर आयोजित होने वाले प्रोग्रामों में बयान किया जाए, ताकि नौजवान तब्क़ा आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जवानी की ज़िंदगी के बारे में जानकर सबक़ हासिल कर सकें, लेकिन आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के हालात ऐसे पैराए में बयान किए जाएं कि उनके ज़हन नशीन हो जाये और उन्हें बार बार याद आए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम जब जवान थे तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम बहुत विवेक वाले, ईमानदारी, दयानतदार थे। आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का चरित्र बहुत व्यापक था। आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम अमानतदार थे। जिससे वादा करते उसे हर हाल में पूरा करते, कभी झूठ नहीं बोलते, किसी के साथ सख्ती से पेश न आते थे। मौजूदा दौर में नौजवानों के सामने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जवानी की ज़िंदगी लाना इसलिए भी ज़रूरी है कि इस वक्त नौजवानों की हालत बहुत खराब नज़र आ रहे हैं, नौजवानों में गंभीरता भी दिखाई नहीं दे रही है। आज बहुत से नौजवान आवारगी में आगे दिखाई देते हैं, कितने मुस्लिम नौजवान ऐसे हैं जो ग्रुप बनाकर सीधे और शरीफ लोगों को सताते हैं, कितने चोरी भी करते हैं, कितने अपराध की घटनाएं भी अंजाम देते हैं, कितने ऐसे हैं जो अपने माँ बाप की खुली नाफरमानी करते हैं, बल्कि उन्हें डाँटते डपटते हैं। बहुत से नौजवान अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए अवैध रास्तों को अपना रहे हैं, वादा तोड़ना, वादों को न निभाना, अपने फायदे के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन करना और अपनी ताक़त के नशे में दूसरों को मामूली समझना एक आम सी बात बनकर रह गई है।

आज बहुत से नौजवान दूसरी क़ौमों की नकल भी कर रहे हैं और आधुनिक सभ्यता से अधिक प्रभावित भी दिखाई दे रहे हैं। जिससे उनके कपड़े के अंदर तब्दीली आ रही है। उनके खाने पीने और रहने के तरीकों में बदलाव आ रहा है। उनके अंदाज़ और उनके तौर तरीके में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इस तरह धीरे धीरे इस्लामी समाज को वो छोड़ते जा रहे हैं। इस स्थिति ने उनके भविष्य को और उनकी शांतिपूर्ण ज़िंदगी को निष्क्रिय बना दिया है। चारों ओर से नृत्य, अश्लीलता, शराब पीने, झूठ बोलना, जुआ, सट्टेबाज़ी जैसी लतें उनको घेर रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि नौजवानों के सामने पश्चिमी संस्कृति अपनी पूरी चमक के साथ मौजूद है। अय्याशी और मौज मस्ती के सारे सामान हर जगह उपलब्ध हैं। माहौल भी पश्चिमी है। स्कूलों में, कॉलेजों और युनिवर्सिटियों में जहां जाइए वहां नोजवानों का गलत रास्ते पर चलना साफ तौर पर दिखता है। जाहिर सी बात है कि ऐसे हालात में नौजवानों का गलत राह की तरफ चल पड़ना कोई अजीब बात नहीं। ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि नौजवानों को इस्लामी साहित्य से जोड़ा जाए। उनके सामने आध्यात्मिक और इस्लामी समाज की बातें बताई जाएं। उनके सामने रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी को पेश किया जाए। ये गंभीर बात है कि नौजवान तब्के में जिस बड़े पैमाने पर काम किया जाना चाहिए, उसका अंशमात्र भी नहीं हो रहा है। 12 रबीउल अव्वल के मौक़े पर मुस्लिम नौजवानों की बड़ी संख्या जलसों वगैरह में शिरकत करती है, अगर इस मौक़े को गनीमत जानते हुए सीरते रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और इस्लामी समाज से संबंधित कुछ बातें उन्हें समझा दी जाएं तो इसमें शक नहीं कि बहुत सी ज़िंदगियों में इंक़लाब आ जाये।

इसके अलावा इस मौक़े पर सीरते तैय्यबा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के वो वाक़ेआत, जो समाज के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, उन्हें भी बयान किया जाये। क्योंकि हमारा मुस्लिम समाज बहुत खराब हालात गुज़र रहा है। आए दिन बुराईयां फैलती जा रही हैं। रस्मों (संस्कारों) की लंबी फेहरिस्त है। फिज़ूल ख़र्ची, नैतिक अराजकता, हत्या, मारधाड़, लड़ाई झगड़े, वादा खिलाफी और झूठ जैसी बुराईयां तो हमारे समाज में पाई ही जाती हैं। लेकिन आधुनिक सभ्यता की भी बहुत सी चीजें हमारे समाज में देखने को मिल रही है। बर्थ डे, नया साल, वैलेनटाईन्स डे, अप्रैल फ़ूल, क्रिसमस और इस तरह की कई चीजें अब हमारे समाज में दबे पांव तेज़ी से दाखिल हो रही हैं। इसलिए ज़रूरी है कि समाज के सुधार के लिए प्रभावी उपाय उठाए जाएं, जिनमें एक अहम कदम सीरत (पवित्र जीवनी) के अनुसार जीना है। अगर मुस्लिम समाज के लोग सीरते नब्वी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मुताबिक़ ज़िंदगी जीने लगें तो बहुत जल्द समाज से बुराईयां खत्म हो जाएंगी। 12 रबीउल अव्वल के मौक़े पर लोगों को बताया जाए कि 12 रबीउल अव्वल का तकाज़ा है कि सभी मुसलमान सुन्नत के तकाज़ों को पूरा करें। जिन चीजों के करने के लिए रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कहा है, उन्हें करें और जिन चीजों को करने से मना किया है, उनके क़रीब भी न जाएं। यही रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत है। वो व्यक्ति जो जलसों में आगे रहे, जुलूस निकालने के लिए बड़ी रक़म भी खर्च करे, झंडे भी उठाए, लेकिन अगर उसके अमल सुन्नते नब्वी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मुताबिक़ नहीं होंगे तो वो रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत करने वाला कैसे हो सकता है। रसूल से मोहब्बत तो उसी वक्त मानी जाएगी, जबकि रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के मुताबिक़ ज़िंदगी भी गुज़ारी जाए।

मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी लोकसभा के एमपी और ऑल इंडिया तालीमी व मिल्ली फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं।

22 जनवरी, 2013 स्रोतछ: रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली

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