मौलाना इसरारुल हक़ क़ास्मी (उर्दू से अनुवाद-समीउर रहमान,न्यु एज इस्लाम डाट काम)
वर्तमान सदी में मुसलमानों की हालत इस कदर खराब हो चुकी है कि चारों ओर से समस्याओं ने उनको घेर रखा है औऱ दूर दूर तक आने वाले समय में इस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता नज़र नहीं आता है। वैश्विक स्तर पर उन्हें असभ्य, अनैतिक, लड़ाके और आतंकवादी माना जा रहा है। मुसलमानों को नकारात्मक सोच वाला और रुढ़िवादी कहना आम बात हो गयी है। मुसलमानों को आतंकवादी, नकारात्मक सोच वाला और रुढ़िवादी जैसे नामों से मशहूर करने के लिए पश्चिमी मीडिया दिन रात एक किये हुए है। अफसोसनाक बात ये है कि मुसलमानों को बदनाम करने के लिए मुस्लिम दुश्मन तत्व जो हथकण्डे इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें इसमें सफलता भी मिल रही है। कौन नहीं जानता कि बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा कर हर जगह मुस्लिम समुदाय का जीना दुश्वार किया जा रहा है। ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि मुसलमान अपनी छवि को साफ रखने और दूसरे समुदायों की गलतफहमियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठायें।
सबसे पहले और बुनियादी बात ये है कि वर्तमान समय में अपनी इस दुर्गति के कारणों को जानें और ये देखें कि उनकी ये हालत कैसे हुई औऱ वो इस कदर पिछड़ेपन का शिकार कैसे हो गये? कैसे दूसरे समुदाय उनको नुक्सान पहुँचाने में सफल हो गये? मुसलमान शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर कैसे पिछड़ गये? और वो समुदाय जो सदियों से शोषण का शिकार थे, कैसे तरक्की करके आला मुकाम पर पहुँच गयीं? मुसलमानों के पिछड़ेपन के कई कारणों में से एक कारण ये है कि वो स्थिरता के शिकार हो गये। शिक्षा, रिसर्च और तकनीक से उनका रिश्ता कमज़ोर पड़ गया और वो चिंतन मनन के काम को छोड़ बैठे हैं, जबकि दूसरी तरफ दूसरे समुदाय खासकर पश्चिमी देशों के लोगों ने तरक्की के मैदान में अपनी कोशिशों को जारी रखा। इसलिए आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, रक्षा औऱ रिसर्च के क्षेत्र में इन लोगों को सफलता हासिल होती चली गयी। पश्चिमी देशों के आर्थिक वर्चस्व की स्थिति ये है कि वर्तमान समय में अमेरिका के डालर और यूरोप के यूरो पूरी दुनिया में स्वीकार्य हैं। इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उन्हीं का वर्चस्व है और इन बाज़ारों में उनके ही बनाये उत्पाद बिक रहे हैं। नतीजे के तौर पर उनके देश की करेन्सी का मूल्य अन्य देशों की तुलना में ज़्यादा है। सरकारों के खज़ाने भरे होने के साथ ही वहाँ के आम लोग भी धनी हैं, और आर्थिक बदहाली से आज़ाद होकर आम बुनियादी सहूलतों का मज़ा उठा रहे हैं। ये अलग बात है कि हाल ही में वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी के सबब कुछ कम्पनियाँ, बैंक और संस्थान प्रभावित हुए हैं, आर्थिक मंदी ने उन्हें अपनी ज़द में ले लिया है। अगर बात मुस्लिम देशों की की जाये तो संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया और एक दो देशों को छोड़कर ज़्यादातर मुस्लिम देश की करेन्सी चिंताजनक स्तर तक गिरी हुई है। मुस्लिम देशों के तैय्यार किये गये उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में नजर नहीं आते हैं।
मुस्लिम दुनिया की रक्षा के क्षेत्र में इससे भी ज़्याद गयी गुज़री स्थित नजर आती है। न इनके पास रक्षा के उपकरण हैं और न ही इनके पास आधुनिक टेक्नालोजी है। इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात ये है कि मुसलमान शिक्षा के मामले में भी बहुत ज़्यादा पिछड़े हुए हैं, हालांकि शिक्षा सभी इंसानों के लिए बहुत ज़रूरी है और दीने इस्लाम ने भी पढ़ाई पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया है।
इन सभी हालात को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सदी में दो बातों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। एक ये कि मुसलमान पतन के घेरे से कैसे बाहर आयें? दूसरे ये कि वो तरक्की और कामयाबी कैसे हासिल करें? इन दोनों चीज़ों को हासिल करने के लिए हालांकि बहुत से काम करने की ज़रूरत है फिर भी प्राथमिकता के तौर शिक्षा की ओर ध्यान केन्द्रित करना ज़्यादा ज़रूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता के लिए शिक्षा को पहले दो हिस्सों में बाँटा जा सकता है।(1) प्राथमिक शिक्षा और (2) उच्च शिक्षा। प्राथमिक शिक्षा में उन विषयों को शामिल किया जाये, जिसकी हर व्यक्ति को ज़रूरत पड़ती है। मिसाल के तौर पर धार्मिक शिक्षा और रोज़ाना के जीवन में काम आने वाली शिक्षा। धार्मिक शिक्षा इसलिए कि हर मुसलमान को पूरे जीवन में धार्मिक शिक्षा से वास्ता पड़ता है। इसका कोई भी दिन बग़ैर दीन के पूरा नहीं होता है। इसलिए इतनी धार्मिक शिक्षा ज़रूरी है, जिसके आधार पर हर मुसलमान अपनी धार्मिक ज़रूरतों को पूरा कर सके और इस्लाम के मुताबिक आसानी से अपनी ज़िंदगी गुज़ार सके। प्राथमिक शिक्षा में आधुनिक विषयों को भी शामिल किया जाये जो वर्तमान समय में ज़िंदगी गुज़ारने के लिए ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर मातृ भाषा औऱ राष्ट्र भाषा से परिचय औऱ साथ ही वो भाषा जो बाज़ार या कारोबार की दुनिया की है, आनी चाहिए, जिससे सरकारी और राष्ट्र स्तर के कामों को बखूबी अंजाम दिया जा सके। दस्तावेज़ो को पढ़ सके, समझ सकें और ज़रूरत पड़ने पर लिख सकें। चूंकि ये दौर ग्लोबलाइजेशन का है, इसलिए अगर एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा आये तो ज़्यादा बेहतर है। व्यापारियों को आमतौर से आयात- निर्यात की ज़रूरत पड़ती है, इसके लिए सम्पर्क करने के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय भाषा भी होना चाहिए।
उच्च शिक्षा में ऐसे सभी विषय शामिल होने चाहिए, जो वर्तमान समय की ज़रूरत हों और जिनके आधार पर बड़े पैमाने पर आम लोगों की खिदमत की जा सके। दीनी लिहाज़ से फिक़ह, तफ्सीर ,हदीस और इस्लामी स्टड़ीज़ के ऐसे केन्द्र हो जहाँ से बड़ी संख्या में मुसलमान, फुक़हा, उलमा, मुफस्सिर, मुहद्दिसीन और इस्लामी स्कालर निकलें ताकि वो दीनी मैदान में अपनी आला तालीम की बुनियाद पर बड़े पैमाने पर दीनी खिदमात को अंजाम दे सकें।
आधुनिक विषयों में इंफारमेशन टेक्नालोजी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, जर्नलिज़्म और दूसरे प्रोफेशनल एजुकेशन पर खास धायन देने की ज़रूरत है। इंफारमेशन टेक्नालोजी इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि वर्तमान समय में हर तरफ आई.टी. छाया हुआ है। इंजीनियरिंग में भी बहुत से विभाग हैं, मेडिकल में में एमबीबीएस और एमडी व दूसरी खास डिग्रियों को हासिल करने केलिए भी कोशिश की जानी चाहिए। इसके अलावा राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिकी व अन्य विज्ञान के साथ ही इतिहास में भी उच्च शिक्षा ज़रूरी है, ताकि इन विषयों के ज्ञान प्राप्ति के बाद जीवन में जैसे ही स्थायित्व आये, वहीं अन्य पहलुओं से भी तरक्की सम्भव हो। 21 वी सदी में शिक्षा के स्तर पर काम करने के लिए वर्तमान शिक्षा के खाके को ही अगर सफलता के साथ लागू कर दिया जाये तो अगले कुछ दशकों में बड़ी कामयाबी की आशा की जा सकती है।
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