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Hindi Section ( 9 March 2013, NewAgeIslam.Com)

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The Mischief Of Friendship With Infidels-Part 1 कुफ़्फ़ार से दोस्ती का फ़ित्ना- पहली क़िस्त

 

तालिबान के मुखपत्र (पत्रिका) नवाये अफगान जिहाद के इस लेख में तालिबानी मुफ्ती गैर मुस्लिमों से किसी भी तरह के सम्बंध रखने को गैर इस्लामी और कुफ़्र बताते हैं और इस तरह दुनिया के आधे हिस्से में बसने वाले मुसलमानों के लिए जो अल्पसंख्यक हैं और उनका दिन रात गैर मुस्लिमों से वास्ता पड़ता है, गैर मुस्लिमों से सम्बंध तोड़कर ज़िंदा रहना कठिन नहीं नामुमकिन है। ये पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल देश में रहने वाले तालिबानी क्या जानें। फिर इस बात के जवाब में वो कहते हैं कि अगर गैर मुस्लिम बहुसंख्यक वाले देश में रहना मुसलमानों के लिए मुमकिन नहीं तो ख़ुदा की ज़मीन बहुत बड़ी है वहां से हिजरत (पलायन) क्यों नहीं कर जाते, ऐसे देश में जहां मुसलमान बहुमत में हों। लेकिन शायद वो ये भूल जाते हैं कि आज के आधुनिक दौर में एक देश की सीमा से निकलना कितना मुश्किल है और अगर किसी तरह से मज़लूम मुसलमान मुस्लिम बहुल देश में दाख़िल हो जाते हैं तो वहां की इस्लामी सरकार उन्हें अपनाने से इनकार कर देती है। मिसाल के लिए जब बर्मा में मुसलमानों का नरसंहार हुआ और वहां के मुस्लिम बांग्लादेश में शरण के लिए दाखिल हुए  तो वहां की सरकार जो मुस्लिमों की सरकार है उन्हें अपने यहां शरण देने से इनकार कर दिया। ये लोग आज दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। इसी तरह पाकिस्तान के विभाजन के बाद बांग्लादेश के उर्दू दां तब्क़े ने बांग्लादेश को अपना देश मानने से इनकार कर दिया और पाकिस्तान वापस आना चाहते हैं लेकिन पाकिस्तान उन्हें अपनाने को तैयार नहीं है। इसलिए वो पिछले 40 बरसों से बांग्लादेश के रिफ्यूजी शिविरों में बड़ी बुरी हालत में ज़िंदगी बिता रहे हैं। तालिबान अगर धर्म के इतने ही बड़े मानने वाले हैं, तो पाकिस्तान सरकार से कह कर बर्मा और बांग्लादेश के उजड़े और बर्बाद मुसलमानों को पाकिस्तान में बसाने की व्यवस्था करे।

इस्लाम पड़ोसियों और देशवासियों और क़रीबी लोगों से हुस्ने सुलूक (अच्छे व्यवहार) की हिदायत करता है और इसमें किसी धर्म के आधार पर भेदभाव की इजाज़त नहीं देता है। इस्लाम सिर्फ उन गैर मुस्लिमों से दूर रहने की सलाह देता है जो मुसलमानों के खिलाफ आक्रामक रवैय्या अपनाते हैं, उनके खिलाफ साज़िशें करते हैं या साज़िशों में मदद करते हैं या उनकी जासूसी करते हैं। कुरान का हुक्म इस मामले में बहुत स्पष्ट है। नीचे हम इस लेख को प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि पाठक तालिबान के घातक विचारों से अवगत हो सकें और इसे खत्म करने का कोई सामूहिक समाधान ढूंढ सकें- न्यु एज इस्लाम एडिट डेस्क

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मौलाना अब्दुल सत्तार मदज़िल्लहूल आली

दिसम्बर, 2012

आज के दौर में एक बड़ा फ़ित्ना जिसका शिकार मौजूदा दौर के मुसलमान हो चुके हैं, वो फित्ना मवालातुल कुफ्फार है यानी काफिरों से दोस्ती और संपर्क रखने का फ़ित्ना

इंसानों की ख़ुदाई तक़्सीम (बँटवारा):

अल्लाह पाक ने दो क़ौमें बनाई हैं:

होवल्लज़ी ख़लाक़कुम फ़मिनकुम काफ़िरुन व मिनकुम मोमिनुन (अलतग़ाबुन: 2)

'वही है जिसने तुमको बनाया फिर तुम में से कोई इन्कार करने वाला बना और कोई ईमान लाने वाला।''

अल्लाह पाक की तक़्सीम (बंटवारे) के अनुसार इंसानों में दो प्रकार के लोग हैं, एक ईमान वाले और दूसरे काफ़िर हैं। दुनिया भर के मुसलमान आपस में एक बिरादरी की तरह हैं, एक परिवार की तरह हैं, एक शरीर की तरह हैं।

इंसानों की सिर्फ यही दो क़िस्में हैं, मोमिन और काफ़िर ....... बँटवारा तो दो क़िस्मों पर था लेकिन बदक़िस्मती से ईमान वालों ने आपस में न जाने कितनी किस्में बनाई हैं। पंजाबी, पठान, बलोच, मोहाजिर (शरणार्थी) और न जाने क्या क्या। फिर बिरादरियों में मतभेद, मेमन बिरादरी, सौदागर बिरादरी आदि। सब टुकड़े में बँट गए और जो असल विभाजन था उसे भुला दिया गया है। अब मुसलमानों का ये हाल है कि आग़ा ख़ानी भी उसका दोस्त बन रहा है, हिन्दू भी उसका दोस्त बन रहा है, ईसाई भी इसका यार बन रहा है, फलाँ भी उसका दोस्त बन रहा है, और ये ईमान वाला चूँकि दूसरी बिरादरी का है, दूसरी क़ौम का है, पंजाबी है, पठान है, मेमन है इसलिए दोस्ती के लिए तैयार नहीं है। (अलअयाज़ बिल्लाह)

तो मेरे अज़ीज़! असल में इंसान की दो क़िस्मे ही हैं। मोमिन इंसान और काफ़िर इंसान ....... क़ौमें, खानदान और बिरादरियां ये सिर्फ परिचय के लिए हैं, पहचान के लिए हैं ताकि ईमान वालों में आपस में पहचान हो सके वरना असल बँटवारा दो क़िस्मों पर है। दुनिया भर के मुसलमान और ईमान वाले एक दूसरे के भाई हैं, बिरादरी का हिस्सा हैं। अब तो बदक़िस्मती ये है कि मुसलमान कोई कल्याणकारी काम करते हैं तो वो भी अपनी बिरादरी के लिए ...... अरे! तेरी बिरादरी में तो सभी मुसलमान शामिल हैं। तेरी खिदमत तो सारे मुसलमानों के लिए होनी चाहिए न कि सिर्फ अपनी बिरादरी के लिए। अगर हर कोई अपनी बिरादरी के लिए काम करेगा तो धीरे धीरे यही चीज़ अशांति और मतभेद का कारण बन जाएगी।

यहीं से दुश्मनी पैदा होती है जिससे क़ौमें बँट जाती हैं तो ऐसा बँटवारा बस ईमान और कुफ्र की बुनियाद पर है। क़ुरान ने बस यही दो क़िस्में बयान की हैं।

इसलिए अल्लाह ने फ़रमाया है कि अपनी बिरादरी से तो दिली मोहब्बत हो, मुसलमानों से तो दिली मोहब्बत हो इसलिए कि वो तुम्हारे दीनी भाई हैं, उनके साथ तुम्हारा इस्लामी रिश्ता है। तुम्हारे भीतर इस्लामी भाईचारे का रिश्ता मज़बूत से और मज़बूत होना चाहिए, क़ुरान ने ईमान वालों की ये निशानी बताई है कि आपस में नरमी का व्यवहार करते हैं।

अंसार की क़ुर्बानी (त्याग):

जब मोहाजिरीन मक्का से हिजरत करके मदीना आए तो बिना संसाधनों के थे, उनके पास ज़िंदगी के लिए ज़रूरीचीज़ें भी न के बराबर थीं और ये मोहाजिरीन मदीना वालों (अंसार) के कोई खानदानी रिश्तेदार नहीं थे। उनके बीच कोई ख़ूनी रिश्ता भी नहीं था, सम्बंध का भी रिश्ता नहीं था, क़ौमी रिश्ता नहीं था बल्कि सिर्फ और सिर्फ मज़हब की बुनियादा पर इस्लामी रिश्ता था। अब चूंकि इस्लामी रिश्ता वहाँ मज़बूत था तो अंसार ने मोहाजिरीन से कहा कि हमारी दो तीन बीवियां हैं। आप लोग यहां अजनबी हैं, बीवी बच्चे छोड़कर आए हैं, इसलिए हम एक बीवी को तलाक़ देते हैं, आप लोग उनसे निकाह कर लें (अल्लाहो अकबर)। अगर किसी अंसारी के पास दो दुकानें थीं तो उसने एक दुकान अपने मोहाजिर (शरणार्थी) भाई को दे दी कि ये तुम ले लो अगर किसी के पास दो तीन ज़मीनें थीं तो उसने अपने मोहाजिर भाई से कहा कि मेरी तीन जगह खेतियाँ हैं, एक तुम ले लो।

मेरे अज़ीज़ो! इस भाईचारे की तो आज मुसलमान कल्पना भी नहीं कर सकते। सिर्फ दीनी और मज़हबी रिश्ते की बुनियाद पर भाईचारगी का ऐसा शानदार प्रदर्शन किसी क़ौम ने आज तक पेश नहीं किया इसलिए कि प्यारे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने दीनी और मज़हबी रिश्ता ही ऐसा मज़बूत करा दिया था कि उसके सामने अन्य रिश्ते छोटे थे।

मोमिन की शान:

तो मोमिनों की शान है कि आपस में नरम हों और काफिरों के मुक़ाबले में सख्त हों, कुफ़्फ़ार के साथ उनका रवैय्या दोस्ती वाला न हो, दिली मोहब्बत वाला न हो, भरोसे और विश्वास वाला न हो। इसलिए क़ुरान में मुसलमानों के लिए एक नमूने के तौर पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का जीवन वर्णन बताकर कहा गया कि देखो इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी में तुम्हारे लिए सबसे अच्छा नमूना मौजूद है।

क़द कानत लकुम उस्वतुन हुस्ना फी इब्राहीमा वल्लज़ीना मआहो इज़ क़ालू लेक़ौमेहिम आओमिन्कुम वमिम्मा ताबोदूना मिन दूनिल्लाहे कफरना बिकुम वबदा बैनना वबैनकुमुल अदावते वलबुग़दाओ अब्दम हत्ता तूमेनू बिल्लाहे वहदहू इल्ला क़ौला इब्राहीमा लेआबिहे लसतग़फ़ेरन्ना लका वमा अमलेको मेनल्लाहे मिन शैइन रब्बना अलैका तवक्कलना वएलैका अनबना वएलैकल मसीर (मुमतहन्ना : 4)

'तुम्हारे लिए इब्राहीम और उसके साथियों (की ज़िंदगी) में बेहतरीन नमूना है। जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि हम तुम से अलग हैं और (उनसे भी) जिनकी तुम अल्लाह के सिवा इबादत करते हो। हमने तुम्हारा इन्कार किया और तुम्हारे बीच हमेशा के लिए उस वक्त तक दुश्मनी ज़ाहिर हो गई जब तक कि तुम एक अल्लाह पर ईमान न ले आओ।'

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कुफ़्र से सम्बंधित सारी बिरादरी से कह दिया कि तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बंध नहीं, तुम्हारे और मेरे बीच ईर्ष्या और दुश्मनी है। जब तक आप एक अल्लाह को नहीं मानोगे उस वक्त तक मेरे और तुम्हारे बीच कोई रिश्ता नहीं है। उनके पिता भी उन्हीं में थे, सारा खानदाना भी उनमें था। इसके बावजूद साफ तौर पर उन्होंने कह दिया कि तुम तो अल्लाह के दुश्मन हो इसलिए कि अल्लाह ने ईमान वालों को हुक्म दिया है कि

या-अय्योहल लज़ीना आमनू ला तत्तखेज़ू अदुव्वी वअदुव्वकुम औलिया (मुमतहन्ना : 1)

'जो मेरे और तुम्हारे दुश्मन हैं उन्हें अपना दोस्त मत बनाना।'

एक और जगह पर अल्लाह का फरमान है:

या अय्योहल लज़ीना आमनू लातत्तखेज़ू बेतानतम् मिन दूनेकुम ला-यालूनकुम खबाअला वद्दू मा-अनित्तुम क़द बदते  अलबग़दाओ मन अफवाहेहिम वमा तुख्फ़ी सोदूरहुम अकबरो (आल इमरान: 118)

'ऐ ईमान वालों! तुम काफिरों को हरग़िज़ अपना राज़दार न बनाओ (उन्हें मौका मिला तो) ये तुम्हारा नुकसान करने में किसी क़िस्म की कमी नहीं करेंगे और तुम्हें जिस क़दर ज़्यादा तकलीफ़ों का सामना होता है, उसकी खुशी भी (बढ़ती जाती है) कभी कभी उनका बुग़्ज़ (नफरत) उनकी ज़बानों पर भी ज़ाहिर हो जाता है और ये अपने दिलों में तुम्हारे बारे में जो बुग़्ज़ रखते हैं वो (ज़ाहिरी बुग़्ज़ (ईर्ष्या) से) बहुत ज़्यादा है।' (जारी)

स्रोतः नवाये अफगान जिहाद, दिसम्बर 2012

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