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Hindi Section ( 29 Sept 2011, NewAgeIslam.Com)

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Are Poverty And Injustice Not The Root Cause Of Terrorism? क्या ग़रीबी और अन्याय आतंकवाद की असल वजह नहीं है?


एम.ए.खालिद (अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद-समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

करामत अली जो पाकिस्तान के मशहूर सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं, उन्होंने अपने मुम्बई दौरे में प्रेस कांफ्रेंस में बातचीत के दौरान ये खुलासा किया कि पाकिस्तान में तथाकथित जिहादी गरीब जनता की गरीबी का शोषण करते हुए उन्हें आत्मघाती बम बनने की ओर आकर्षित कर रहे हैं, और माँ-बाप भी अपनी ग़रीबी की वजह से अपने जिगर के टुकड़ों को आत्मघाती बम बनने देने पर मजबूर हैं। उन्होंने पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 15लाख रूपयों में आसानी से एक आत्मघाती हमलावर मिल जाता है, और वक्त गुज़रने के साथ आत्मघाती हमलावर की कीमत में कमी होती है, क्योंकि एक बड़ी आबादी अपनी (खासतौर से माँ-बाप) गरीबी को दूर करने के लिए अपने बच्चे को इस मकसद के लिए तैयार कर लेते हैं। इस तरह पाकिस्तान में आत्मघाती हमलावर के उपलब्ध होने का मामला समय गुज़रने के साथ आसान होता गया है। इसका साफ मतलब ये है कि आत्मघाती दस्ता बनाकर आतंक फैलाना आसान हो गया है। पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है और वो अपने ही लोगों की दहशतगर्दी का शिकार हो चुका है।  अब न वहाँ पर मस्जिदें सुरक्षित हैं और न ही इमाम बाड़े और क़ब्रिस्तान। यानि पाकिस्तान का आत्मघाती हमलावर आर्थिक बदहाली की पैदावार है।

ज़रूरत इंसान से क्या नहीं करवाती है, इसलिए हम हिंदुस्तानियों को और भी चौकन्ना रहने की आवश्यकता है, क्योंकि हमें पाकिस्तान से आने वाली दहशतगर्दी का भी मुकाबला करना है और हिंदुस्तान में जारी कथित जंगलराज (जंगलराज हमारे देश के कई इलाकों में जारी है या प्रचलित है) का भी। हिंदुस्तान में भी गरीबी का फायदा उठा कर कोई भी जंगलराज और असंतोष को बढ़ावा दे सकता है। हमें इस बात का खयाल रखना होगा कि कोई हमारे यहाँ की गरीबी का फायदा उठा कर तोड़-फोड़ की कारवाई में इज़ाफा न कर दे, क्योंकि कई बार गरीबी और अन्याय तोड़-फोड़ की कारवाई की वजह बन सकती है। गरीबी, अन्याय और अत्याचार की पैदावार हमारे यहाँ नक्सली हैं। नक्सली जो आज आतंक का दूसरा नाम बन चुके हैं और ये आज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

हमारे यहाँ का प्रशासन अत्याचार को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है और यही नक्सलियों के कामयाब होने की वजह है। हमारे यहाँ गरीब और भी गरीब होते जा रहे हैं। किसान गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। ये सभी हालात नकारात्मक प्रभाव छोड़ रहे हैं, जिससे खतरा और भी ज़्यादा बढ़ गया है। कहीं ऐसा न हो कि इनकी गरीबी का फायदा उठा कर कोई उन्हें आतंकवादी कारवाईयों में शामिल होने के लिए तैयार कर दे। इसलिए हमें सभी समूहों और समुदायों के साथ इंसाफ से काम लेना होगा। ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि न्याय को सम्भव बनाए और बराबरी को आम करे और आर्थिक संसाधन सब के लिए उपलब्ध हों। आज़ादी हासिल किये 60 साल से ज़्यादा का समय गुज़र चुका है और आज भी किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। ये हमारे प्रशासन के नाकाम हो जाने का जीता जागता सुबूत है। इसका साफ मतलब है कि हमारी सरकार की पालिसी में कहीं न कहीं कमी है, जिसका नुक्सान किसानों को भुगतना पड़ रहा है। ज़ाहिर सी बात है सरकार जब गरीबों के साथ इंसाफ नहीं कर पाती, दया और हमदर्दी का बर्ताव नहीं कर पाती तो यही लोग नक्सलियों की पनाह में जाते हैं, जिससे नक्सलियों का आन्दोलन और मज़बूत होता है। आज नक्सली सिर उठाये देश के एक बड़े हिस्से में सक्रिय हैं। कुछ क्षेत्रों में वो सरकार की तरह टैक्स वसूल कर रहे हैं। अब नक्सली कानून हाथ में लेकर कोई न कोई वारदात आए दिन अंजाम दे रहे हैं, जो देश की सुरक्षा पर एक बड़ा सवालिया निशान है। 62 साल की आज़ादी के बाद और देश के एटमी पावर बनने के बाद भी देश के कुछ हिस्सों पर नक्सलियों की हुकूमत क्यों?

विदेशी खतरे से तो हम निपट सकते हैं, लेकिन ज्वालामुखी हमारे देश के अंदर ही है और किसी भी वक्त फट सकता है और इस पर क़ाबू पाना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है। देश की जनता अगर अपने देश के प्रशासन से नाखुश हो तो हमारा एटमी पावर वाले देश होने या सुपर पावर होना क्या मतलब रखता है। हमारे यहाँ आज भी जनता की बड़ी आबादी गरीबी से संघर्ष कर रही है। देहातों की बात तो जाने दीजिए, मुम्बई जैसे शहर, जो आर्थिक राजधानी है, वहाँ के लोगों को पानी से वंचित रखना या आधे से एक घण्टे पानी मिलना क्या हमारे खुशहाल होने का संकेत है? मुम्बई शहर की बड़ी तादाद आज भी अपनी बुनियादी आवश्यकता को पूरा करने के लिए रेल की पटरियों की तरफ जाती है। क्या ये हमारे खुशहाल होने की दलील है? आज़ादी के 62 साल बाद भी आर्थिक खुशहाली के दावे के बावजूद देश की 24 फीसद आबादी का बहुत ज़्यादा गरीब होना क्या हमारी खुशहाली का संकेत है? यही हमारे देश का असली चेहरा है।

अब वक्त की अहम ज़रूरत ये है कि हम आज़ादी का असल मकसद समझें और ये अच्छी तरह जान लें कि देश की खुशहाली का मतलब सिर्फ कुछ लोगों की खुशहाली या एक समूह की खुशहाली नहीं है, बल्कि सही अर्थों में बहुसंख्यक जनता की खुशहाली है। जिस दिन बहुसंख्यक जनता खुशहाल होगी तब ही हम सही अर्थों में खुशहाल होंगे और कोई नक्सली बनने की ज़रूरत को महसूस नहीं करेगा।

अब कुछ बातें सांप्रदायिकता के बारे में भी हो जाये। हमारे देश में सांप्रदायिकता और नफरत का नाग अपना फन फैलाए खड़ा है और हमारी सरकार और प्रशासन उसे और ताकतवर बना रही है। आरएसएस जो एक हिंदुत्वादी और ब्राह्मणवादी संगठन है, वो सरकार के हर विभाग पर काबिज़ है। आबादी के अनुपात के लिहाज़ से कम होने के बावजूद सभी अहम पद उनके क़ब्ज़े में है। ये नफरत फैलाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते, जिससे देश के दूसरे समुदायों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है। आरएसएस ने पूरे देश में स्कूलों का जाल बिछा रखा है, जहाँ नफरत और दुश्मनी की तालीम आम है। ज़ाहिर सी बात है जब तक बच्चे ऐसे स्कूलों से पढ़कर आला ओहदों पर पहुँचेंगे तो क्या वो सेकुलर मूल्यों की रक्षा कर पायेंगे? क्या इस तरह हिंदू और मुसलमानों के बीच बढ़ रही खाई को पाटा जा सकेगा? क्या इस तरह हमारे देश में कभी वास्तविक शांति कायम हो सकेगी? इन सारी बातो पर ग़ौर करके हम अमन पसंद लोगों को शांति के लिए आगे आना चाहिए, तभी हमारा देश गांधी जी के सपनों का शांतिपूर्ण और खुशहाल हिंदुस्तान बन सकता है। तो आइए हम अपने देश को शांतिपूर्ण और खुशहाल बनाने के लिए सोचना शुरु कर दें, ताकि देश से गरीबी, अन्याय, अत्याचार और सांप्रदायिकता का खात्मा हो और प्यार, मोहब्बत, बराबरी, शांति व भाईचारा का माहौल बन सके।

स्रोतः हमारा समाज, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/are-poverty-injustice-root-cause/d/2314

URL: https://newageislam.com/hindi-section/are-poverty-injustice-root-cause/d/5586


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