एम आमिर सरफराज़
प्रारम्भिक मुस्लिम इतिहास की तीसरी रिवायत मूसवी, खादिम जादा, फ़ातमी, कुरात्मी, इमदादी, हमीदुद्दीन, मोंटगमरी और दुसरों की तसनीफ़ात पर आधारित डाक्टर अहमद के रिव्यु (review) से लिया गया हैl उनके मक़ाले और मेरे इस लेख का उद्देश्य केवल शैक्षिक [academic] है, धार्मिक अकीदों की तौहीन या इस्लामिक इतिहास के योग्य व्यक्तियों का अपमान करना कदापि नहींl
अहमद का यह मानना है कि स्टैंडर्ड प्रारम्भिक मुस्लिम इतिहास ६३६ ईसवी में कादसिया में हारने के बाद मजुसियों की साज़िश का हिस्सा हैंl वह कभी यह नहीं भूल सके कि कुछ बद्दुओं ने किस प्रकार उनकी सल्तनत को ताख्त व ताराज कर दियाl इसलिए, उन्होंने मुसलामानों के बीच जिस्मानी तौर पर और बौद्धिक स्तर पर एक अंतहीन विवादों की बुनियाद डाल दीl एक ओर तो उन्होंने एक अजीब इतिहास गढ़ने के लिए अपनी बुद्धि व समझ और शाही असर व रसूख का प्रयोग किया और दुसरी ओर उन्होंने बनी उमय्या को समाप्त करने के लिए अब्बासियों को उकसाया और इसके बाद अब्बासी सल्तनत को तबाह करने के लिए १२५८ ईसवी में हलाकू खान को दावत दीl इस प्रकार मजुसियों ने अरबों के हाथों अपनी हार का बदला लियाl
फारस की फतह के बाद, कुछ मजुसियों ने ‘इस्लाम कुबूल’ कर लिया लेकिन उनमें से अक्सर देश छोड़ कर चले गएl मुग़ल बादशाह अकबर के प्रसिद्ध ‘नौ रत्नों’ की तरह सासानी बादशाहों के भी बीस रत्न हुआ करते थे जिन्हें उशावरा कहा जाता थाl उनमें से १५ लोग जीवित रहे और समरकंद में चीनी शहंशाह की अमान में आ गएl इसके बाद वह मुस्लिम खुलेफा को तहे तेग करने और मुसलामानों को कुरआन पाक से दुसर करने की योजना करने के लिए अपने सर जोड़ कर बैठ गएl
फ़ारसी सेना का हारा हुआ कमांडर हरमुजान हमेशा उशावरा से सम्पर्क में रहाl वह हज़रत उमर को उसकी ज़िन्दगी बख्शने पर राज़ी करने में सफल होने के बाद मदीना में आकर आबाद हो गया थाl उसने मदीने में यहूदियों और नासरियों के साथ मिल कर साज़िश की और एक फ़ारसी गुलाम, फ़िरोज़ अबू लूलू को हज़रत उमर पर एक ख़ास किस्म के चाक़ू से हमला करके क़त्ल करने के लिए तैयार कियाl फ़िरोज़ ने इस योजना को गुप्त रखने के लिए आत्महत्या कर लीl हज़रत उमर के बेटे उबैदुल्लाह ने हरमुजान और दुसरे साज़िश करने वालों को हालाक कर दियाl
यहूदियत से इस्लाम कुबूल करने वाले अब्दुल्लाह बिन सबा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खानदान के लिए खिलाफत के वारिस के मुकद्दस हक का प्रचार करके ईराक के अन्दर पद प्राप्त करने में सफल हो चुका थाl उसने हैरा के एक ईसाई जुफैना के साथ साज़ बाज़ की जो रोम में शाही सुरक्षा का इंचार्ज होने के बाद इस्लाम ‘कुबूल’ कर चुका थाl इतिहास की इस रिवायत में हज़रत उस्मान के दौर में अमन और खुशहाली थी इसलिए हज़रत अली ईराक के गवर्नर, हज़रत अमीर मुआविया शाम के गवर्नर और इब्नुल आस मिस्र के गवर्नर थेl खलीफा बिना सुरक्षात्मक दस्ते के आम लोगों की तरह रहते थेl सबा बिन शमउन और उसके बेटे अब्दुल्लाह बिन सबा ने इसका लाभ उठाया और हज़रत उस्मान को कुरआन की तिलावत के बीच क़त्ल कर दियाl
४० हिजरी में जब हज़रत कूफ़ा में नमाज़ पढ़ा रहे थे तब उशावरह ने एक बार फिर हमला कियाl एक मजूसी जमशेद खुरासान उर्फ़ इब्ने मुल्जम ने एक दोधारी खंजर से हज़रत अली पर हमला कियाl इसके तीन रोज़ बाद हज़रत अली वफात पा गएl फिर इसके बाद हज़रत उमर के क़त्ल के मास्टर माइंड के बेटे जुब्न बिन हरमुजन ने ४६ हिजरी में हज़रत हसन के क़त्ल की एक नाकाम कोशिश की, हज़रत हसन को ज़हर दिया गया था लेकिन एक दूसरी रिवायत यह है कि आपकी वफात दिक की वजह से ४९ हिजरी में हुई थीl
६० हिजरी में अमीर मुआविया का विसाल हो चुका थाl नए खलीफा के चुनाव के लिए मजलिस जारी ही थी कि जुब्न बिन हरमुजान उर्फ़ बिलाल बिन युसूफ और इसके साथ अँधेरे का लाभ उठा कर कूफ़ा के गवर्नर हाउस में दाखिल हो गए और गवर्नर हज़रत हुसैन को क़त्ल किया और रात के अँधेरे में ग़ायब हो गएl अल्लामा मसूद के अनुसार जुब्न बिन हरमुजान बाद के सालों में भी हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर के खिलाफ सक्रिय रहाl अंततः वह ७० हिजरी में अब्दुल्लाह बिन जुबैर पर जानलेवा हमले के बीच मारा गयाl
अहमद लिखते हैं कि कर्बला का अलमनाक सानेहा कथित तौर पर ६८० ईसवी में पेश आयाl तथापि, उन दो किताबों में इसका कोई उल्लेख नहीं है जिन्हें हज़रत हुसैन के बेटे इमाम जैनुल आबेदीन ने ७०० ईसवी में लिखाl इमाम मालिक ने भी ७५८ ईसवी में लिखी गई अपनी मौता में कर्बला का कोई उल्लेख नहीं किया हैl हर प्रकार के विवादास्पद मवाद से भरी हदीस की पुस्तकें ८६० ईसवी से सामने आना प्रारम्भ हुईं लेकिन इनमें भी कर्बला त्रासदी का कोई उल्लेख नहीं होता था? ९०० ईसवी में इमाम तबरी ने सबसे पहले बिना किसी हवाले के संदेह के साथ कर्बला घटना की पूरी रूदाद बयान कीl वह अपनी इस कर्बला की रुदाद में अबू मख्नाफ नामक एक ऐसे व्यक्ति का हवाला देते हैं जो इस विषय पर पहले ही लिख चुका हैl लेकिन अबू मख्नाफ एक पौराणिक चरित्र है और यह बात तय है कि तबरी ने असल में यह पूरी रुदाद स्वयं से ही लिखी हैl
अब्बासी हुकूमत के अक्सर दौर में फारस के मजूसी काफी प्रभावी थेl असल में सल्तनते अब्बासिया का शरीक बानी अबू मुस्लिम खुरासानी भी एक खुफिया मजूसी ही थाl वह इतने अधिक शक्तिशाली थे कि हारून रशीद अक्सर स्वयं को कमज़ोर और बेइख़्तियार पाता था (बावजूद इसके कि खुद उसकी मां एक मजूसी थी)l मजुसियों के बारामिका खानदान को हारून रशीद की मंत्रालय पर कब्ज़ा होने के कारण असाधारण विकल्प प्राप्त थे और उन्होंने अदालत की भाषा अरबी से बदल कर फ़ारसी कर दीl अल्लामा क़न्धावी के अनुसार अब्बासी अदालत के सभी महत्वपूर्ण पद मजुसियों के ही कब्जे में थे और अब्बासी हरम सरायों में उनकी औरतों का राज थाl इन्हीं स्थितियों में वास्तविक इतिहास और अकीदे से गंभीर विचलन अमल में आयाl
जिस प्रकार इमाम अबू युसूफ बनी उमय्या के शाही जज नियुक्त हुए उसी प्रकार इमाम तबरी ने २७० हिजरी में खलीफा मोअतमद की अदालत में एक मजबूत स्थान प्राप्त कर लिया और बाद में खलीफा अल मुक्तदिर बिल्लाह की इताअत गुज़ारी में उसके पसंदीदा आलिम ए दीन बन गएl शाही प्रतिनिधिमंडल मक्का, मदीना, दमिश्क, काद्सिया, कूफा और दुसरे प्रांतीय केंद्र को भेजे गएl उनके पुस्तकालयों के मवाद तबाह कर दिए गए और उनकी जगह शाही मंजूरी की मुहर वाली सरकारी किताबें रख दी गईंl
स्रोत:
dailytimes.com.pk/320977/early-muslim-history-needs-fresh-appraisal-iv/
URL for English article: http://www.newageislam.com/islamic-history/m-aamer-sarfraz/an-elaborate-conspiracy-steered-by-the-magian-nobility--early-muslim-history-needs-fresh-appraisal-—-iv/d/116915
URL for Urdu article: http://www.newageislam.com/urdu-section/m-aamer-sarfraz,-tr-new-age-islam/early-muslim-history-needs-fresh-appraisal-—-iv--وہ-سازش-جس-کی-بیج-مجوسیوں-نے-بوئی/d/117274