एम आमिर सरफराज़
७ दिसम्बर, २०१८
अल्लामा इकबाल अहमदिया जमात की तफरका बाज़ प्रकृति और साम्राज्यवादी परियोजना के कारण इस पर अपना भरोसा एक दशक पहले ही खो चुके थे, और अलीगढ़ के छात्र इस्लाम के कुरआनी मॉडल के प्रचार प्रसार के लिए काफी “दुनियादार” ज़ाहिर हुएl अल्लामा इकबाल को खुद अपने संसाधनों के अभाव और इस परियोजना को समापन तक पहुंचाने में धनी और पूंजीपति मुसलामानों की उदासीनता पर काफी अफ़सोस हुआl यह सिलसिला इसी प्रकार जारी रहा यहाँ तक कि एक रीटायर सरकारी नौकर और जमीनदार चौधरी नियाज़ अली उनकी मदद को आगे बढ़ेl
नियाज़ अली ने इकबाल के विचार के अनुसार एक दारुल इस्लाम का निर्माण करने और उसे चलाने के लिए पठान कोट (भारत) में एक सौ एकड़ जमीन और वित्तीय सहायता भी पहुंचाईl अल्लामा इकबाल ने इस संस्था के लिए एक विद्वान-सह-व्यवस्थापक की आपूर्ति के लिए त्वरित तौर पर जामिया अज़हर को ख़त लिखाl उनकी ओर से खेद व्यक्त किये जाने के बाद उन्होंने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए जहां कई दोसरे लोगों से सम्पर्क किया वहीँ सैयद सुलेमान नदवी से भी सम्पर्क कियाl उन्होंने वृद्धावस्था के कारण इससे मना कर दिया लेकिन इसके एक विभाग का हिस्सा बनने के लिए राज़ी हो गएl उन्होंने और अल्लामा जय राजपुरी ने चौधरी से इस काम के लिए इकबाल के रक्षक और एक सरकारी नौकर गुलाम अहमद परवेज़ की सिफारिश कीl जब परवेज़ से इसके लिए पूछा गया तो उन्होंने मोहम्मद अली जिनाह से राय माँगा लेकिन उन्होंने मुस्लिम लीग के लिए उनकी जिम्मेदारियों से उन्हें निष्कासित करने से इनकार कर दियाl बदले में परवेज़ ने एक ऐसे व्यक्ति की प्रमाणीकरण की जो उनके पास हैदराबाद (दकन) से मुलाक़ात करने आए थे और इस्लाम के बारे में प्रसिद्ध अखबारों में प्रभावित करने वाले लेख लिख चुके थेl
अल्लामा इकबाल ने उस नौजवान को इस परियोजना पर बहस करने के लिए लाहौर आने के लिए लिखाl इकबाल ने १९३८ में जावेद मंज़िल में उस युवक के साथ दो मुलाकातें कीं ताकि वह अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर सकें और उस युवक की क्षमताओं का अंदाजा लगा सकेंl इकबाल उससे प्रभावित नहीं हुए.......उन्हें यह लगा कि यह दाढ़ी मुंडा इंसान रुढ़िवादी है जिसे ना तो धार्मिक ज्ञान में कोई गहराई है और ना ही उसे प्रबंधन कार्यों का कोई अनुभव हैl यह कहा गया कि वह ‘मुल्ला’ है और किसी बादशाही मस्जिद में केवल खिताबत के लायक हैl तथापि, नियाज़ अली और दोसरे सफल हो गए क्योंकि इस परियोजना को प्रारम्भ करने में पहले ही काफी देर हो चुकी थी और एक विभाग स्थापित करना अतिआवश्यक हो चुका थाl इकबाल की ना चाहते हुए भी सहमति के बाद एक बाक़ायदा एलान किया गया कि.....अबुल आला मौदूदी आ चुके हैंl
मौदूदी ने दारुल इस्लाम में एक शानदार शुरुआत की, जैसा कि उन्होंने एक पाठ्यक्रम तैयार किया, एक पत्रिका प्रकाशित की और एक काबिल विभाग स्थापित कियाl मौदूदी का काम एक ऐसा शैक्षिणक और तहक़ीक़ी सेंटर स्थापित करना था जिसमें ऐसे काबिल उलेमा की एक टीम तैयार की जाए जो इस्लाम पर शानदार काम कर सकेंl लेकिन ऐसा करने के बजाए वह दारुल इस्लाम को रहनुमाई प्रदान करके और धार्मिक आंदोलन की बुनियाद रख कर एक मिसाली मज़हबी समुदाय के जरिये भारत में राजनीतिक ‘इस्लामी अहया’ का केंद्र बनाने में लग गएl उन्होंने विभिन्न मुस्लिम उलेमा को लिखा और उन्हें अपने साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित कियाl उनकी आवाज़ पर नदवी, इस्लाही, फराही, असद सहित और दोसरे बड़े उलेमा उनके साथ हो गएl यह समुदाय कुछ सदस्यों, एक मजलिसे शुरा और एक सदर पर आधारित थाl
इसी बीच लगातार बीमारी के बाद अल्लामा इकबाल चल बसेl मौदूदी कथित तौर पर लाहौर में ही थे लेकिन उनके जनाज़े में शरीक होने के लिए समय नहीं निकाल सकेl नियाज़ अली और उनके साथियों पर फ़ौरन ही यह बात खुल गई कि मौदूदी शैक्षणिक गतिविधियों से अधिक राजनीति में अधिक रूचि रखते हैं; और जिनाह और मुस्लिम लीग को आलोचना का निशाना बना रहे हैंl मौदूदी जल्द ही लीग को पाकिस्तान के नाम पर एक सेकुलर देश बनाने का इरादा रखने वाली “काफिरों की जमात” और ‘बराए नाम मुसलमान’ करार देने वाले थेl यही बात एक वजह बन गई कि सब ने अपना अपना रास्ता अलग चुन लिया और मौदूदी अपने अधिकतर विभाग अपने साथ लाहौर ले गए और वहाँ १९४१ में जमात ए इस्लामी की बुनियाद रखीl पाकिस्तान पर मौदूदी का तेज़ व तुंद हमला इस सार्वजनिक रुझान को शिकस्त नहीं दे सका जो १९४६ तक लीग कायम कर चुकी थीl और इस प्रकार एक आज़ाद मुस्लिम राज्य का जन्म हुआl
मौदूदी ने पाकिस्तान का चुनाव किया और पहले दिन से ही उसे “इस्लाम परस्त” बनाने के अपने मिशन का प्रारम्भ कर दियाl उनके काफी अनुयायी हैं और उनका इस्लामी दृष्टिकोण या उनकी पत्रकारिता एक अलग विषय हैl तथापि, वह इकबाल और जिनाह के बारे में अपनी पूरी ज़िन्दगी शर्मिंदा रहेl अमीन इस्लाही, डॉक्टर असरार अहमद और इरशाद हक्कानी सहित उनकी तहरीक के महत्वपूर्ण प्रतिनिधियों ने १९६० के मध्य में माहि गोत मीटिंग के बाद उनका साथ छोड़ दियाl वह यह चाहते थे कि मौदूदी परिवर्तन के इस्लामी एजेंट की हैसियत से लोगों पर ध्यान केन्द्रित करें जबकि मौदूदी का दृष्टिकोण था कि सत्ता में आने के बाद इस्लाम को सबके उपर लागू किया जाएl उन्होंने अपने राजनीतिक लेखों में लेनिनिज्म, हेगल की दोईयत (dualism) और अफगानी के वहदत ए इस्लामी (Pan-Islamism) के सिद्धांतों को भी शामिल किया जिसके कारण इख्वानुल मुस्लेमीन और इस्लामी जमीअत तलबा जैसी नौजवानों की तंजीमों की दिलचस्पी उनकी तहरीक में बढ़ीl अफगानिस्तान में सोवियत सेना से जंग करने वाले मुजाहेदीन और अलकायदा भी उन्हीं के सिद्धांत से प्रभावित थाl उनकी बनाई हुई तंजीम जमात ए इस्लामी आज बिखरी हुई है जबकि उनके विरोधी गिरोह से संबंध रखने वाले जावेद गामदी आज ऊँची उड़ान भर रहे हैंl
मोहम्मद असद (Leopold Weiss) ने कभी भी मौदूदी की तहरीक से जुड़ाव विकल्प नहीं किया क्योंकि वह भारत में ही एक अलग मुस्लिम राज्य का सिद्धांत रखते थेl पाकिस्तान की आज़ादी के बाद असद को पाकिस्तान की नागरिकता मिल गई और वह पासपोर्ट रखने वाले सबसे पहले व्यक्ति बन गएl जब पाकिस्तान बन रहा था उन्हीं दिनों में जिनाह ने असद को लाहौर में डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक री कंस्ट्रक्शन (Department of Islamic Reconstruction) स्थापित करने के लिए कहा जिसका उद्देश्य “इस्लामी खुतूत पर अपनी जिंदगियों को नए सिरे से उस्तुवार करने में हमारी कम्युनिटी की मदद करना” थाl डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक री कंस्ट्रक्शन को पाकिस्तान के पहले संविधान का मसौदा तैयार करने में भी मदद करने के लिए कहा गया थाl डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक री कंस्ट्रक्शन में असद की कुछ चीजों को विस्तृत अनुबंध में भी शामिल किया गयाl जिनाह की मौत के बाद फौरन ज़फरुल्लाह खान ने असद का ट्रांसफर विदेश मंत्रालय में कर दियाl इसके बाद असद ने जल्द ही संदिग्ध हालात में पाकिस्तान छोड़ दिया और इसके बाद फ़ौरन ही डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक री कंस्ट्रक्शन भी प्रतिबंधित करार देदी गईl दिसम्बर १९४८ में जिनाह की मौत के केवल एक महीने बाद ही डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक री कंस्ट्रक्शन के अधिकतर दस्तावेज़ रहस्यमय तौर पर लगी एक आग में तबाह हो गएl
स्रोत:
dailytimes.com.pk/330688/early-history-of-islam-needs-fresh-appraisal-ix/
URL for English article: http://www.newageislam.com/islamic-history/m-aamer-sarfraz/maududi-was-more-interested-in-politics-than-academics--early-history-of-islam-needs-fresh-appraisal-—-ix/d/117147
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/early-history-islam-needs-fresh-ix/d/117402
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/early-history-islam-needs-fresh-ix/d/117432