लईक अहमद आतिफ
२ जनवरी,
२०१५
दुनिया भर में आलमी अमन और विवाद के बारे
में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। इस हालते ज़ार ने खौफ और तशवीश को जन्म दिया
है। अतिवाद के बढ़ते हुए खतरों और दहशतगर्दी के काले बादल ने दुनिया के कई हिस्सों
को अपनी चपेट में ले लिया है।
बदकिस्मती से बहुत सारे लोग इस्लाम को
इसका आरोपी ठहराते हैं और यह दावा करते हैं कि यह दीन अतिवाद को बढ़ावा देता है
इसलिए कि अक्सर ऐसी सरगर्मियां वह लोग अंजाम देते हैं जो खुद को मुसलमान कहते हैं।
इसीलिए मैं ख़ास तौर पर मुस्लिम बहुल देशों
में पेश आने वाली अस्करियत पसंदी के पीछे कार फरमा कुछ तथ्यों व कारकों पर कुछ
रौशनी डालना चाहूँगा।
असल में बदनीयती पर आधारित इस तरह के
वाकियात व हादसों के जिम्मेदार वह तथाकथित इस्लामी उलेमा और अतिवादी संगठन हैं जो
जिहाद के ताल्लुक से बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं। वह “तलवार
से” इंसानों के ज़ुलमन क़त्ल
को एक मज़हबी फरीज़ा समझते हैं।
इन उलेमा ने जान बुझ कर कुरआन मजीद की बाज़
आयतों की गलत तशरीह व ताबीर की है और उन्होंने हकीकी इस्लामी जिहाद का मवाज़ना अपने
जाती इगराज़ व मकासिद के लिए बगावत करने वाले बागियों से किया है।
वह अपने पैरुकारों को काफिरों से उस समय
लड़ने की तालीम देते हैं कि या तो वह इस्लाम कुबूल कर लें या हलाक हो जाएं। उनका यह
भी मानना है कि इर्तेदाद की सज़ा मौत है।
पिछले सदी में इस दुनिया में सुधार को
बढ़ावा देने, फलाही रियासतों की तामीर
करने और मुंसिफाना मुआशरों के कयाम के मकसद से कुछ संगठन कायम की गई थीं। लेकिन वह
“भेद की लिबास में
भेड़िये” साबित हुईं इसलिए कि
उन्होंने दूसरों पर अपने अतिवादी सिद्धांतों को मुसल्लत करने के लिए धर्म का
इस्तेमाल किया।
पिछले एक साल से एक ख़ास गिरोह इस कदर सफ्फाकी
के साथ दहशतगर्दी के अपने नेटवर्क को बढ़ावा दे रहा है जो पुरी दुनिया के लिए बड़ी
तशवीश का कारण है। यह आम तौर पर आइएसआइएस के तौर पर जाना जाता है।
इस दहशतगर्द जमात की सरगर्मियां ना केवल
मुस्लिम देशों पर असरंदाज़ हैं बल्कि यूरोप और दूर दराज़ के देश भी इसके मुजालिम से
मुतास्सिर हैं। इस किस्म की संगठने दुनिया के विभिन्न भागों में भी पाई जाती हैं।
कुछ दिन पहले,
पाकिस्तान में एक राजीतिक व धार्मिक संगठन
जमाते इस्लामी के पूर्व सदर सैयद मुनव्वर हसन ने जम्हूरियत के जरिये इन समस्याओं
के हल के इमकान को मुस्तरद किया और मौजूदा चैलेंजों पर काबू पाने के लिए ‘जिहाद’
के कल्चर को बढ़ावा देने की बात कही है।
उन्होंने दुनिया से ज़ुल्म व नाइंसाफी के
खात्मे के लिए जिहाद फी सबीलिल्लाह (खुदा के नाम पर मुसल्लेह क़िताल) छेड़ने की
तजवीज़ पेश की है। उन्होंने कहा कि उनका पैगाम तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिए है।
कुछ रहनुमाओं और इस्लाम के तथाकथित उएल्मा
ने उम्मते मुस्लिमा की मासूमियत और अज्ञानता से ;लाभ
उठाया है। उन्होंने मोमिनों को गुमराह किया है कि जाबिरना ज़ालिमाना और मुकम्मल तौर
पर गैर अखलाकी सरगर्मियों में ही जन्नत की कुंजी पोशीदा है।
ज़मीर की आज़ादी इस्लाम का एक बुनियादी उसूल
है
किसी को भी इस्लाम या कोई दूसरा मजहब
कुबूल करने के लिए मजबूर करना किसी भी सूरत में जायज नहीं है। तमाम इनसानों को इस
बात की आज़ादी है कि वह ईमान लाएं या ना लाएं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को केवल
पैगाम इस्लाम की तबलीग व इशाअत करने की इजाजत दी गई थी इससे अधिक कुछ भी नहीं।
इसलिए किस तरह आज के तथाकथित मुस्लिम रहनुमा इससे आगे बढ़ कर यह सोच सकते हैं कि
उनके पास पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अधिक ताकत और इख्तियार है?
एक सदी पहले ही अहमदिया मुस्लिम कम्युनिटी
के बानी ने वाज़ेह तौर पर हकीकी जिहाद के मुआनी की वजाहत कर दी थी और इस बात से
आगाह कर दिया था कि कोई भी अतिवादी सिद्धांत केवल विवाद और जंगों का ही करण बनेगा।
उन्होंने स्पष्ट तौर पर इस बात की वजाहत
कर दी थी कि इस्लाम मुसलमानों को आक्रामक जंगें छेड़ने की अनुमति नहीं देता है
लेकिन अगर उन पर हमला किया गया तो केवल उन्हें अपना बचाव करने का हक़ हासिल है।
उन्होंने दो टुक अंदाज़ में जंगों और
बेगुनाह लोगों के कत्ल की निंदा की है
उन्होंने कहा: “क्या
यह शर्म की बात नहीं है कि दैनिक जीवन के दिनचर्या में व्यस्त किसी अजनबी इंसान का
नाहक कत्ल कर दिया कर दिया जाए जिसकी वजह से उसके बच्चे यतीम हो जाएं,
उसकी बीवी बेवा हो जाए और उसका घर एक मातम
कदा बन जाए?
“कुरआन करीम की कौन सी
आयत या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कौन सी हदीस इस काम की इजाज़त देती है?
क्या कोई मौलवी है जो इसका जवाब दे सके?
“नादान लोग शब्द जिहाद
सुनते हैं और इसे अपनी ज़ाती ख्वाहिशात की तकमील का उज्र बनाते हैं। या शायद,
यह उनका सरासर पागल पण है जो उन्हें इस
कत्ल व गारत गरी की तरफ माएल करता है।“
उन्होंने कहा कि हकीकी जिहाद खुद की
इस्लाह करने, बनी नौए इंसान की
खिदमात करने, ग़ुरबत और मसाएब के
खात्मे, मखलूक को उसके ख़ालिक के
करीब तर लाने, मोहब्बत और हमदर्दी के
साथ खुदा के पैगाम की तबलीग करने और दूसरों को अमन व सलामती अता करने के लिए
संघर्ष का नाम है।
उन्होंने कहा कि “खुदा
की खातिर सबके साथ मोहब्बत और रहमदिली के साथ पेश आओ ताकि आसमानों में तुम्हारे
उपर रहम व इनायत की बारिश की जाए। मेरी तरफ आओ और मैं तुम्हें एक ऐसे रास्ते की
रहनुमाई करूंगा जो तुम्हारे अन्दर ऐसी रौशनी पैदा कर देगा जो तमाम रौशनियों पर
ग़ालिब हो जाएगी। कीना परवरी और हर तरह के बुग्ज़ व हसद से बाज़ आ जाओ;
लोगों के साथ शफकत व मुहब्बत का मामला करो
और खुदा के अनवार व तजल्लियात में खुद को गम कर दो।“
जब हम इस तरह के जिहाद में मसरूफ हो
जाएंगे तो इससे तमाम इंसानों को मज़हब की आज़ादी,
इंसानी हुकुक,
इंसाफ व मसावात यकीनी तौर पर हासिल होगा।
यह जिहाद हर तरह की इन्तेहा पसंदी को खत्म कर देगा और नफरत और बुग्ज़ की तमाम
दीवारों को गिरा देगा। यह दुनिया भर में मोहब्बत और प्यार की खुशबु फैला देगा।
लईक अहमद आतिफ,
अहमदिया मुस्लिम जमात माल्टा के सदर हैं
स्रोत:
http://www.timesofmalta.com/articles/view/20150102/opinion/Wrong-meaning-of-Jihad.550308
URL for English article: https://www.newageislam.com/islamic-ideology/laiq-ahmed-atif/wrong-meaning-of-jihad/d/100879
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/laiq-ahmed-atif,-tr-new-age-islam/wrong-meaning-of-jihad--جہاد-کا-غلط-مطلب/d/100938
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/wrong-meaning-jihad-/d/124321
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