खालिद ज़हीर
22 नवम्बर 2013
शब्द ‘शहीद’ उपमहाद्वीप के विभिन्न जुबानों में आमतौर पर प्रचलित है, खास तौर पर पाकिस्तानी ज़ुबान में, यह उन मरहुमिन (मरने वाले लोग) के नामों के साथ जोड़ा जाता है जिन्हें किसी महान उद्देश्य में संघर्ष करते हुए मारा गया हो या जिसकी मौत किसी दुर्घटना में हुई हो।
हाल ही में इसे बड़ा महत्व मिला है और यहां तक कि इसके संबंध में कई लोगों के मन में बड़ी उलझनें भी पाई जा रही हैं, क्योंकि इसका इस्तेमाल तहरीक तालिबान पाकिस्तान के कमांडर हकीमुल्ला महसूद के लिए किया जा रहा है जिसकी मौत अमेरिकी ड्रोन हमले में हुई थी।
कुछ धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने उसे शहीद करार दिया है। पाकिस्तान और उससे बाहर मुस्लिम और गैर मुस्लिम शहीद के सही अर्थ की खोज कर रहे हैं। बेशक इस बात पर विचार करने के लिए एक उचित समय है कि हम सार्वजनिक तौर पर क्या बयान देते हैं और हमारे बयानों के क्या परिणाम हो सकते हैं, विशेष रूप से धार्मिक अर्थ में। कुरान की आयतों में इसे और इसके समान शब्दो को कई बार इस्तेमाल किया गया है। सुरे फतह में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का परिचय इस तरह पेश किया गया है। '' बेशक हमने आपको (रोज़ क्यामत गवाही देने के लिए अमाल व अहवाल उम्मत का) निरीक्षण फरमाने वाला और खुशखबरी सुनाने वाला और डर सुनाने वाला बना कर भेजा है।'' (48:8)
सुरह बक़रह की इसी तरह की एक आयत में अल्लाह ने इस शब्द का इस्तेमाल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबी की पूरी नस्ल के लिए किया है, और ‘’ऐ मुसलमानों! इस तरह हमने तुम्हें (एतेदान वाली) बेहतर उम्मत बनाया ताकि तुम लोगों पर गवाह बनो और (हमारे चुने हुए) रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के तुम गवाह हो'' (2:143 )
इस शब्द का इस्तेमाल कुरान में तमाम उम्मत मुस्लिमा के लिए विभिन्न स्थानो पर हुआ है। सुरह निसा में है कि '' ऐ इमान वालों! तुम इंसाफ पर मज़बूती के साथ कायम रहने वाले (केवल) अल्लाह के लिए गवाही देने वाले हो जाव ख्वाह (गवाही) खुद तुम्हारे अपने या (तुम्हारी) माँ या (तुमहारे) रिश्तेदारों के ही खिलाफ क्यों न हो'' (4:135)
इस शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया गया है जो खुदा के धर्म में उसके गवाह हों। इस शब्द का इस्तेमाल कुरान में जिस तरह किया गया है उससे यह अर्थ निकाला जाता है कि जिसे शहीद किया जाता है वह खुदा को और उसके धर्म को पूरी तरह से जानता, समझता और इस पर अमल करता है और अपने वयव्हार और अमल में इस कदर साफ व शफ्फाफ (स्वच्छ और साफ़-सुथरा) है कि अन्य दूसरे लोग उसे खुदा की शहादत (गवाही) देने वाला मानते है।
वह अपना पूरा जीवन खुदा की शिक्षाओं का एक गवाह बन कर गुज़ारता है और वह अपने उसी उद्देश्य को हासिल करने में अपना पूरा जीवन गुज़ार देगा। वह सच्चाई के रास्ते पर इतना गंभीर है कि अपने ईमान और यक़ीन का गवाह बनने के लिए अपनी जान की कुरबानी पेश करने से भी नहीं कतराएगा।
इसलिए कि इंसान जब आध्यात्मिक पवित्रता और प्रगति की मंज़िल तय करता है तो उसे रूहानी उन्नति के विभिन्न दर्जात (पद) हासिल होते है। अल्लाह उनका ज़िक्र अंबिया, सिद्दीक़ीन और शहीदों के तौर पर करता है। उन लोगों की जमात को अल्लाह की जानिब से पुरस्कार माना जाता है।
मौत के बात शहादत का दर्जा एक महान सम्मान है जोकि सदीक़त और सालिहत के बराबर है। इंसान को अपना जीवन इस्लाम के उच्चतम उसूलो के मुताबिक गुज़ारना चाहिए और अपने जीवन को इस तरह से कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए जिससे उन उसूलो की पाबन्दी हो।
अगर मामला ऐसा हो तब हो सकता है कि खुदा उन्हें शहीद की पंक्ति में शामिल करने का फैसला कर ले। कुरान में इस बात का सबूत मौजूद है कि शहादत एक ऐसा दर्जा है जिसे प्रदान करना सिर्फ खुदा की शान है किसी बन्दे के अन्दर यह मजाल नहीं कि वह शहादत का मर्तबा प्रदान करे।
एक ऐसे शब्द के रूप में जिसका उपयोग एक भावुक भावना के साथ किया जाने लगा है इस समस्या ने एक अलग रुख इख्तियार कर लिया है। ऊर्दू (हिन्दी और बंगाली) में इस शब्द का इस्तेमाल उस मरने वाले को सम्मानित करने के लिए किया जाता है जो किसी युद्ध या घटना में मारा गया हो। इसके इस्तेमाल का मक़सद मरने वाले के रिश्तेदारों को तसल्ली और सहानुभूति देना और अल्लाह से दुआ करना है।
हकीमुल्लाह महसूद को शहीद करार दिए जाने का शहादत के वास्तविक धार्मिक अर्थ से कोई संबंध नहीं है जिसका उल्लेख कुरान करता है। जब हम इस शब्द को किसी मरे हुए व्यक्ति के नाम के साथ जोड़ते है तो हम उससे ज्यादा से ज्यादा इस बात की उम्मीद कर सकते है कि हम अल्लाह से उस पर रहम करने और उसे शहादत का दर्जा प्रदान करने की दुआ कर रहें है।
हमें यह बात भी अच्छी तरह जान लेनी चाहिए कि इस शब्द का अविष्कार समकालीन में हुआ है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में उसका कोई वजूद नहीं था। मुसलमानों की पहली कुछ नस्लों की ज्ञान और फ़िक़्ही किताबों में ऐसे लोगों के नामों के बाद शहीद का शब्द नहीं मिलता जिनका जीवन आदर्श था और जिन्होंने शहादत भी हासिल की थी।
एक बार हम इस शब्द के सही संदर्भ से परिचित हो जाएं कि इस शब्द का इस्तेमाल उस हकीमुल्लाह महसूद पर होता है जोकि एक ऐसा मशहूर गुंडा है जिसने ऐसे आतंकवादी हमलों की जिम्मेदारी कबूल की है जिसमे बेशुमार बेगुनाह और गैर मुस्लिमों की जाने गई है? एक मशहूर गुनहगार और मुजरिम को एक इतने बड़े मर्तबे से सम्मानित करना जोकि सिद्दीकीन और सालेहीन के मर्तबे के बराबर हो खुद विरोधाभासी और बड़ी ही दुर्भाग्य की बात है।
लोगों और विशेष रूप से धार्मिक व्यक्ति को कोई भी बयान जारी करने से पहले बहुत सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि अक्सर उनके बयान को उनके धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला मान लिया जाता है।
इस घोषणा के बाद हालात बद से बदतर हो गए हैं कि ऐसा अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोध में क्या किया गया है।
हम ईश्वर के संदेश को एक बार फिर याद करते हैं जिसने हमें सतर्क रहने का आदेश दिया है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारी इच्छाएं और नफरतें इंसाफ के रास्ते में बाधा बन जाएं। सुरह माएदा में इसका फरमान है ‘’और तुम्हें किसी कौम की (यह) दुश्मनी .......... इस बात पर कभी न उभारे कि तुम (उन के साथ) ज़्यादती करो।'' (5:2) और 'किसी कौम की कड़ी दुश्मनी (भी) आप इस बात पर उत्तेजित न करे कि तुम (उससे) न्याय न करो'' (5:8)।
संक्षेप में किसी को भी शहीद नहीं कहना चाहिए। इसलिए कि इस बात का फैसला क़यामत के दिन अल्लाह करने वाला है।
खालिद ज़हीर एक धार्मिक विद्वान हैं।
स्रोत: http://www.dawn.com/news/1057801/definition-of-a-shaheed
URL for English article: https://newageislam.com/islamic-ideology/definition-martyr-(shaheed)/d/34542
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/definition-martyr-(shaheed)-/d/34761
URL for this article: https://newageislam.com/hindi-section/definition-martyr-(shaheed)-/d/35180