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Hindi Section ( 29 Aug 2014, NewAgeIslam.Com)

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Islam is Religion of Compassion and Forgiveness – Part (2) इस्लाम कृपा एंव दया का धर्म – भाग (2)

 

ख़ालिद अबू सालेह

बच्चों के ऊपर दया

इस्लाम के अन्दर कृपा की एक शक्ल छोटे बच्चों के ऊपर दया करना तथा उन के लाड और प्यार करना और उन को दुःख न पहुँचाना है।

अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हसन बिन अली रज़ियलल्लाहु अन्हुमा को चूमा और आप के पास आक़रा बिन हाबिस बैठे हुये थे, तो अक़रा ने कहा कि मेरे दस बच्चे हैं, परन्तु मैं ने उन में से किसी को नहीं  चूमा, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन की ओर देखा और फरमाया किः

जो दया नहीं करता उस के ऊपर दया नहीं की जाती। (बुखारी व मुस्लिम)

तथा हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, वह फरमाती हैं कि कुछ देहाती लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये और उन्हों ने आप से प्रश्न किया कि क्या आप लोग अपने बच्चों को बोसा देते है? तो आप ने उत्तर दिया कि हाँ, उन्हों कहा कि अल्लाह की सौगन्ध है हम उन को बोसा नहीं देते हैं। तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

अगर अल्लाह ने तुम्हारे दिलों से दया को उठा लिया तो मैं इस का मालिक नहीं। (बुखारी व मुस्लिम)

पस यह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, यही वह व्यक्ति है, जिस के विषय में लोग मिथ्या से काम लेते हैं, तथा कहते है कि वह एक युद्ध कर्ता और गँवार व्यक्ति था और जो खून बहाने का अभिलाषी था, तथा वह दया करना नहीं जानता था।

यदि यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  पर इस प्रकार के असत्य झूठ, मिथ्यारोप तथा मनगढ़त आरोप लगाते हैं, तो यह असफल तथा नाकाम रहें।

हज़रत अबू मसऊद बदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं कि मैं अपने नौकर को कोड़े लगा रहा था कि मुझे मेरे पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी कि ऐ अबू मसऊद। याद रखो, वह कहते हैं कि क्रोध के कारण आवाज़ को पहचान न सका, पस जब वह मेरे निकट आये तो वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम थे, और आप फरमा रहे थे किः

अबू मसऊद याद रखो कि तुम जितनी शक्ति इस नौकर के ऊपर रखते हो, उस से अधिक शक्ति अल्लाह तुम्हारे ऊपर रखता है।

तो मैं ने कहा कि इस के बाद मैं कभी भी किसी नौकर को नहीं मारुँगा।

तथा एक दूसरे कथन में है कि मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल। यह अल्लाह की इच्छा के लिए मुक्त (आज़ाद)है, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया किः

यदि तुम ऐसा न करते तो नरक की आग तुम को धर पकड़ती। (मुस्लिम)

जिन संगठनों की स्थापना बच्चों के ऊपर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिये की गयी है, उनका उत्तरदायित्व बनता है कि वह बच्चों के अधिकार को सिद्ध करने तथा उन को दुःख न देने के विषय में नबी  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रधानता को स्वीकार करें, तथा बच्चों पर दया करने तथा उन से प्यार और भलाई पर उत्तेजित करने वाली इन महत्वपूर्ण आहादीस नबवी को अपने दरवाज़े पर लटका दें।

बच्चों के ऊपर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया यह थी कि आप उनके देहान्त हो जाने पर आँसू बहाते। उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने नवासे को अपने हाथों में लिया जिस समय वह मरने के निकट थे, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू निकल पड़े, तो सअद ने आप से प्रश्न किया कि ऐ अल्लाह के रसूल क्या कारण है? तो आप  ने उत्तर दिया किः

यह दया का आँसू है जिसे अल्लाह ने अपने बन्दों के दिलों में डाल रखा है, तथा अल्लाह तआला अपने दया करने वाले बन्दों के ऊपर दया करता है। (बुखारी व मुस्लिम)

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने पुत्र उब्राहीम के पास गये जब उनकी मृत्यु का समय था, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू बहने लगे, तो अब्दुर्रहमान बिन औफ ने आप से प्रश्न किया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप की आँखों से आँसू निकल रहे हैं? तो आप ने उत्तर दिया कि ऐ औफ के पुत्र। यह दया के आँसू हैं , फिर आप ने फरमाया किः

निःसंदेह आँखों से आँसू निकलते है, तथा हृदय दुखित है, परन्तु हम वही बात कहते हैं जिस से हमारा प्रभु प्रसन्न होता है, और ऐ इब्राहीम। हम तेरी जुदाई (देहान्त) से दुखित हैं। (बुखारी एंव मुस्लिम)

स्त्रियों के ऊपर दया

जहाँ तक इस्लाम में स्त्रियों के साथ दया करने की बात है, तो यह ऐसी चीज़ है कि जिस के ऊपर मुसलमान प्रतिकाल (हर समय) में गर्व करते रहे हैं, इसी से संबंधित यह वर्णन है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक जंग में एक औरत को वधित पाया, तो आप ने इस चीज़ को ना पसंद किया तथा बच्चों और औरतों को क़त्ल करने से मना कर दिया। (मुस्लिम)

तथा एक दूसरे वर्णन के अन्दर है कि आप ने फरमाया कि इस को क़त्ल नहीं करना चाहिए था फिर आप ने अपने सहाबा की ओर देखा और उन में से एक को आदेश दिया कि खालित बिन वलिद से जा मिलो तथा उन से कहो कि वह छोटे बच्चों, कर्मकर तथा स्त्री को क़त्ल न करें। (अहमद व अबू दाऊद)

और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

ऐ अल्लाह। मैं दो प्रकार के कमज़ोरों से अर्थात अनाथ तथा स्त्री के अधिकारों के बारे में लोगों पर तंगी करता हूँ। (इसे इमाम नसाई ने रिवायत किया है और अलबानी ने इसे हसन कहा है)

इस जगह स्त्री को कमज़ोरी से विशिष्ट करने का अर्थ है कि उस पर दया की जाये, उसके साथ सदव्यवहार किया जाये तथा उसे दुःख न पहुँचाया जाये।

कहाँ हैं वह लोग जो इस्लाम धर्म के ऊपर हिंसा तथा स्त्री के विपरीत तमीज़ करने का आरोप लगाते हैं।

जानवरों के ऊपर दया

इस्लाम धर्म के अन्दर दया इंसानों (मानवता) से आगे जानवरों चौपायों को भी सम्मिलित है, इस्लाम ने मेहरबानी तथा दया के अन्दर जानवर का भाग सुनिश्चित किया है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया किः

एक औरत एक बिल्ली के कारण नरक में दाखिल हुई, उस ने उसे बांध दिया, न तो उसे खिलाया और न ही उसे छोड़ा कि ज़मीन के कीड़े-मकोड़े खा सके।

तथा एक अन्य वर्णन में है किः

उस ने उस को क़ैद कर दिया यहाँ तक कि वह मर गई, और जब से उसे क़ैद किया तो उसे खिलाया पिलाया नहीं, और न ही ज़मीन से कीड़े मकोड़े खाने के लिए छोड़ा। (बुखारी व मुस्लिम)

हज़रत अबू हूरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णन करते है कि आप ने फरमायाः

एक व्यक्ति एक कुँए के निकट आया और उतर कर पानी पिया, तथा कुँए के पास एक कुत्ता प्यास के कारण हाँप रहा था, तो उस व्यक्ति को दया आ गई, उस ने अपना एक मोज़ा निकाल कर उसे पानी पिलाया, तो अल्लाह ने उसके बदले उसे स्वर्ग में प्रवेश कर दिया। (बुखारी व मुस्लिम)

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

जो कोई व्यक्ति बग़ैर किसी अपराध के किसी गौरैये या उस से बड़े जानवर को मारता है, तो अल्लाह तआला महा प्रलय (क़यामत) में उस से इस के विषय में प्रश्न करेगा।

प्रश्न किया गया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस का अधिकार क्या है? आप ने उत्तर दिया किः

उस का हक़ यह है कि जब उसे ज़बह करे तो उसे खाये तथा उस के सर को काट कर उसे फेंक न दे। (इमाम नसाई ने इस हदीस को वर्णन किया है तथा अलबानी ने इस को हसन गरदाना है।)

यह तो उस व्यक्ति का विषय है जो बिना किसी अपराध के एक गोरैये को मार डाले, तो उस व्यक्ति की हालत तथा बदला और यातना क्या होगी जो नाहक़ किसी व्यक्ति का क़त्ल करें?

जानवरों के विषय में इस्लाम की दया यह भी है कि उस ने उसके साथ एहसान करने तथा ज़बह करते उस ने उसके साथ एहसान करने तथा ज़बह करते समय उस को घबराहट में न डालने का आदेश दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

अल्लाह ने हर वस्तु पर एहसान को अनिवार्य कर दिया है, पस जब तुम क़त्ल करो, तो ठीक तरीक़े से कत्ल करो, तथा जब ज़बह करो तो ठीक तरीक़े से ज़बह करो, तथा तुम में से एक व्यक्ति को चाहिए कि अपनी छुरी तेज़ कर ले और अपने जानवर को आराम पहुँचाए। (मुस्लिम)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लहु अन्हुमा से वर्णित है कि एक व्यक्ति ने एक बकरी को लिटाया तथा उस के सामने अपनी छुरी तेज़ करने लगा, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया किः

क्या तुम इस को दो बार ज़बह करना चाहते हो, क्यों नहीं इस को लिटाने से पहले तुम ने अपनी छुरी तेज़ कर ली। (तबरानी और हाकिम ने इस का वर्णन किया तथा अलबानी ने इसे सहीह कहा है)

तो जानवरों के साथ दया की याचना करने वाले संगठन इन उत्तम नबवी आदर्श को क्यों नहीं अपनाते? तथा कैसे यह लोग इस्लाम की श्रेष्ठता को नकारते हैं जब कि यह धर्म इन के सामने चौदह शताब्दी से मौजूद है।तथा निरंतर यह लोग सत्य तथा असत्य के बीच अंतर नहीं करते, क्योंकि इस्लामी तरीक़े से ज़बह करने को यह लोग एक प्रकार का अत्याचार समझते हैं, तथा इस्लामी तरीक़े से ज़बह करने के ढेर सारे लाभ को नहीं जानते, जबकि इन का हाल यह है कि यह बिजली द्वारा अपने ज़बीहे (जानवर) को शाट कर देते है, या फिर इन के सरों पर मारते हैं, तथा उस के मरने के पश्चात उसे ज़बह करते हैं। और इस तरिक़े को जानवर के साथ दया करना समझते हैं। व्यक्ति के पास यदि कोई ईश्वरीय संदेश न हो, तो वह बिना जाने बूझे मामलात को हल करता है तथा अपने मन से निर्णय करता है, और हर सफेद वस्तु को चरबी का एक टुकड़ा तथा काली वस्तु को खजूर समझता है, तथा अन्य लोगों पर गर्व करने लगता है, जो स्वयं एक प्रकार की कुत्सा तथा निन्दा है, परन्तु इच्छा की आँख अन्धी होती है। (अपनी इच्छा से निर्णय करने वाला अन्धा होता है)

जिस को कड़वे पन का रोग होता है, तो उसे साफ तथा मीठा पानी भी कड़वा लगता है।

तथा जानवर पर दया करने के संबंध में यह अजीब वर्णन भी बयान किया जाता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अंसारी के बाग़ में दाखिल हुये तथा उस के अन्दर एक ऊँट था जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देख कर आवाज़ करने लगा तथा उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस के पास आये और उसकी गर्दन पर अपना हाथ फेरा तो वह  ऊँट चुप हो गया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने प्रश्न किया किः

इस ऊँट का मालिक कौन है? यह ऊँट किस का है? ”

तो एक अंसारी लड़के ने उत्तर दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल। यह ऊँट मेरा है।

तो आप ने फरमायाः

क्या इस जानवर के बारे में तुम को अल्लाह का डर नहीं कि जिस का मालिक अल्लाह ने तुम को बनाया है? क्योंकि इस ने मुझ से शिकायत की है कि तुम इस को भूखा रखते हो तथा निरंतर उस के ऊपर भारी भरकम बोझ लादते हो। (अहमद तथा अबू दाऊद ने इस का वर्णन किया है और अलबानी ने सहीह कहा है)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यह दया खनिज पदार्थ के साथ भी थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खजूर के एक तने पर खड़े हो कर खुतबा (भाषण) देते थे, तो जब आप के लिए मिंबर बनाया गया और उस पर खड़े हो कर भषण देने लगे, तो वह तना रो पड़ा, तथा सहाबा ने उस की आवाज़ सुनी, ते आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस के ऊपर अपना हाथ रखा, यहाँ तक कि वह चुपचाप हो गया (बुखारी)

यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया और मेहरबानी है, यह आप की भावनाएं हैं तथा आप का यह कृतज्ञ है और यह आप के बुनियादी उसूल हैं जिस की ओर आप ने लोगों को बुलाया, तथा इस अनुपम बुजुर्ग हस्ती के अन्दर मानवी उच्चता को क्यों नहीं देखते?

कभी कभी आँख आने के कारण आँख सूर्य के प्रकाश का इनकार कर देती है, तथा कभी कभी बीमारी के कारण पानी का मज़ा अच्छा नहीं लगता।

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