काज़ी वदूद नवाज़, न्यु एज इस्लाम
22 अप्रैल, 2014
आस्था के बुनियादी तत्वों पर एक गहरी नज़र डालने पर सच्चे मुसलमान के जीवन के उद्देश्य का पता चलता है। एक मुसलमान के जीवन में पवित्र जवाबदेही होती है। एक मुसलमान का जीवन संतुलित और नैतिक निर्देशों के अनुसार होता है जिसे कुरान ने निर्धारित किया है। इस संतुलन की सीमाओं का ज़रा सा भी अतिक्रमण इस्लाम की दृष्टि में एक दंडनीय अपराध है।
एक मुसलमान की तरफ से इन तत्वों की भावनात्मक मान्यता आस्था के प्रति एक शुरआती कदम है। लेकिन ज्ञान ही आस्था के आधार को मजबूती देता है। कुरान की पहली आयत (सूरे अलक़: आयत 1 - 6) जो हमारे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई, वो ज्ञान हासिल करने के लिए दिव्य निर्देश हैं। कुरान में शुरू से अंत तक और हमारे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपनी पूरी ज़िंदगी में मुसलमानों को ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर ज़ोर दिया।
अल्लामा इकबाल ने अपनी किताब "Reconstruction of Religious Thoughts in Islam" में लिखा है कि इस्लाम में तर्कसंगत आधार के खोज की शुरुआत को खुद नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के समय से शुरु माना जा सकता है। वो निरंतर ये दुआ किया करते थे: "ऐ खुदा! मुझे चीज़ों की परम प्रकृति का ज्ञान अता फरमा।" इन सभी से स्पष्ट रूप से आस्था के मामले में ज्ञान की भूमिका प्रकट होती है।
खुदा के अनंत गुण प्रकृति की विविधता में उजागर होते हैं जिसमें हमारा जटिल जीवन भी शामिल है। जीवन की जटिलताओं और प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ आपसी संपर्क के मद्देनज़र भय की भावना और मानव मन की बेबसी भावनाओं और आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करती है और जो किसी भी मुसलमान की आस्था के आवश्यक तत्व हैं।
अल्लाह के नायब के रूप एक तरफ आत्म शुद्धि और सर्वशक्तिमान अल्लाह के साथ बंदगी के रिश्ते को मज़बूत करने के लिए और दूसरी तरफ दुनिया में न्याय के सार्वभौमिक संतुलन की स्थापना के लिए महान बलिदान के जो दायित्व सौंपें गए हैं उनका प्रदर्शन नमाज़, रोज़े, हज और ज़कात जैसे आध्यात्मिक कामों में देखा जा सकता है।
इसमें कोई शक नहीं कि ग़ैबी (अनदेखा) वास्तविकता की निर्विवाद मान्यता आस्था का आश्यक मानदंड और शुरुआती बिंदु है, लेकिन 'प्रकट' और 'अनदेखे’ की आध्यात्मिक एकता दुनिया की विवविधता में प्रकट होती है और इसे समझने के लिए ज्ञान के आधार की ज़रूरत है। भावनाएं और ज्ञान सामूहिक रूप से एक मुसलमान की आस्था का आधार स्थापित करते हैं। चूंकि वैश्विक संतुलन का नियम वैचारिक क्षेत्रों में भी लागू करने के लायक है, इसलिए आस्था के घटकों में से किसी में भी अपेक्षाकृत अस्थिरता जहां भावनाएं ज्ञान पर हावी हो जाएं, वो ज़रूर कट्टरता की ओर ले जायेंगी और परिणामस्वरूप आस्था के आधार को नुकसान पहुँचेगा।
थोड़ी सी भी अस्पष्टता के बिना कुरान जीवन, संपत्ति और विश्वास की सुरक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए मानव प्रयासों को प्रेरित करता है। कुरान की शिक्षा के अनुसार सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छाई के लिए बेहिचक समर्थन और बुराई और बुरी ताकतों के खिलाफ अटल संघर्ष का नाम जिहाद है। सांसारिक जीवन में बुरी शक्तियों को उनके कुकर्मों को जारी रखने को बिना विरोध औरप्रतिरोध के इजाज़त देना जिहाद के मैदान से भागने के समान है और और ये पाखंडियों का काम है। इस दुनिया को बुरी ताक़तों और मानवता के दुश्मनों के हाथों में देकर जन्नत (स्वर्ग) की सुख सुविधाओं के बारे में सोचते हुए 'घंटों' लार टपकाना इस्लाम की निगाह में बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है।
संक्षेप में 'जिहाद' की कुरानी अवधारणा आत्म-शुद्धि और इंसानियत के लिए परम न्याय, शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दुनिया में परिवर्तन के लिए मानव प्रयास होता है। पूरी मानवता के लिए न्याय को सुनिश्चित करने और इस दुनिया को बदलने के लिए मुसलमानों के पास 'जिहाद' की अवधारणा एक शक्तिशाली सैद्धांतिक उपकरण है। जिहाद कुरान के क्रांतिकारी सारांश का गठन करता है। ये न्याय के अतिक्रणण को रोकने के लिए इस्लाम की एक तर्कसंगत प्रतिक्रिया है।
भौतिक मूल्यों पर आधारित दुनिया की वर्तमान सामाजिक और आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था मुख्य रूप से भौतिक ज़रूरतों को ही पूरा करती है, लेकिन ये मानव जाति की आध्यात्मिक और नैतिक आवश्यकताओं को बहुत कम महत्व देती है। भौतिक हित के आधार पर स्थापित मूल्यों से शांति, एकजुटता और दुनिया में स्थिरता का अस्थायी भ्रम पैदा हो सकता है, लेकिन इंसानियत की आध्यात्मिक स्थिति का अवमुल्यन सुनिश्चित है और लंबे समय में विभिन्न राष्ट्रों के बीच सांसारिक धन, दूरियाँ, एकता का आभाव, हिंसा और रक्तपात के लिए वासना और आपसी प्रतिस्पर्धा के रूप में इसका खात्मा होगा।
कुरान ने स्पष्ट रूप से पूरी मानवता के लिए कानूनों और आचार संहिता को निर्धारित किया है ताकि लोग न्याय के सार्वभौमिक कानून के अनुसार अपने जीवन को व्यवस्थित कर सकें। इस्लाम में कट्टरता की कोई गुंजाइश नहीं है। कट्टरता ज्ञान की कमी की वजह से उपजता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने और आस्था के भावनात्मक पहलुओं को असंतुलित करने के लिए इस्लाम के दुश्मनों की साज़िश का ये परिणाम है।
लेकिन एक मुसलमान के रूप में हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि जो कुछ भी इस दुनिया में हो रहा है वो अल्लाह की संप्रभुता के भीतर ही हो रहा है और दिव्य लक्ष्यों को पूरा करने की उनकी दिव्य रणनीति का एक हिस्सा है। लेकिन धरती पर अल्लाह के प्रतिनिधि के रूप में हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए और एकता स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए और होश में रहते हुए भावनाओं से बचना चाहिए।
काज़ी वदूद नवाज़, खुल्ना, बांग्लादेश में एनजीओ डेवलपमेंट कंसल्टेंट हैं।
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