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Hindi Section ( 20 Feb 2018, NewAgeIslam.Com)

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What is the Ruling on Women Going to The Masjid Part-2 क्या मस्जिद में महिलाएं जा सकती हैं (भाग-2)

 

कनीज़ फातिमा, न्यु एज इस्लाम

हज़रत जुबैर बिन अवाम रादिअल्लाहु अन्हु ने अपनी पाक और परहेजगार बीवी हज़रत आतिका रादिअल्लाहु अन्हा को मदीना पाक की मस्जिद की हाजरी से बाज़ रखाl उन पाक बीबी को मस्जिद से इश्क थाl पहले अमीरुल मोमिनीन उमर फारुक आज़म रादिअल्लाहु अन्हु के निकाह में आईंl निकाह से पहले शर्त करा ली कि मुझे मस्जिद से ना रोकेंl उस ज़माने में केवल महिलाओं का निषेध किसी निश्चित भाग में नहीं था जिसके कारण पत्नियों से मस्जिद, ज्यारतगाह और कुछ मज़ार की हाजरी भी नक़ल किये गए हैंl

عن ام عطیۃرضی اللہ تعالیٰ عنھا قالت ‘‘نھیناعن اتباع الجنائز ولم یعزم علین अनुवाद: हज़रत उम्मे अतिया रादिअल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि हमें जनाजों के पीछे जाने से मना किया गया लेकिन इसमें शिद्दत नहीं बरती गईl

इस अनुच्छेद में फरमाया: यह उस समय था जब मस्जिद की हाजरी उनहें जायज थीl अब हराम और बिलकुल निषेध हैl ग़रज़ इस वजह से अमीरुल मोमिनीन ने उनकी शर्त कुबूल कर लीl फिर भी चाहते यह थे कि यह मस्जिद ना जाएँl यह कहती आप मना कर दें मैं ना जाउंगीl अमीरुल मोमिनीन शर्त के अनुसार मना ना करतेl अमीरुल मोमिनीन के बाद हज़रत जुबैर से निकाह हुआl मना करते वह ना मानतींl एक रोज़ यह तदबीर की कि इशा से बाद अंधेरी रात में उनके जाने से पहले रास्ते में किसी दरवाज़े में छिप गएl जब यह आईं और उस दरवाज़े से आगे बढ़ीं थीं कि उन्होंने निकल कर पीछे से उनके सर मुबारक पर हाथ मारा और छिपे रहेl

हज़रत आतिका ने फरमाया {हम अल्लाह के लिए हैं लोगों में फसाद आ गया हैl} यह फरमा कर घर वापस आईं और फिर जनाज़ा ही निकला तो हज़रत जुबैर ने उनहें यह तंबीह फरमाई कि औरत कैसी ही नेक हो उसकी तरफ से अंदेशा न सही, फासिक मर्दों की तरफ से उस पर खौफ का क्या इलाजl (जमल अल नूर-25)

तथा एक दुसरे स्थान पर जुमलून नूर के मुसन्निफ़ रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं-

“पहले यह कि हमारी शरीअत पाक उच्च स्तर हिकमत व मतानत व मुराआत व दकाइक मसलिहत में है, और जो हुक्म उर्फ़ व मसालेह पर आधारित होता है उनहीं चीजों के साथ दायर रहता है, और एअसार व अमसार में उनके तब्दील से मुतबद्दल हो जाता है, और वह सब अहकाम, अहकाम शरई करार पाते हैं, जैसे ज़मानए बरकत निशाने हुजुर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अत्यधिक खैर की कसरत के कारण, शिद्दत और फितना के नहीं होने और तकवा व खौफे खुदा के कारण औरतों पर सतर वाजिब था ना हिजाब, और मुसलमान औरतें पाँचों वक्त की नमाज के लिए मस्जिद में हाज़िर होती, हुजुर के बाद ज़माने का रंग बहुत बदल गया, हज़रत उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रादिअल्लाहु अन्हाने फरमाया “لو ان رسول اللہ رای من النساء ماراینا لمنعھن من المسجد کمامنعت بنو اسرائیل نساءھا’’ (अर्थात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे समय की औरतों को मुलाहेज़ा फरमाते, तो उनहें मस्जिदों में जाने से मना करते, जैसे बनी इस्राइल ने अपनी औरतों को मना कर दिया थाl (अहमद व बुखारी व मुस्लिमl)

जब रिसालत का ज़माना दूर हुआ, दीन के इमामों नें जवान औरतों को मना कर दिया, जब और फसाद फैला, तो उलेमा ने जवान और गैर जवान किसी के लिए इजाज़त न रखी, दुर्रे मुख्तार में है कि یکرہ حضورھن الجماعۃ ,इन हदीसों को अगर देखा जाए तो वर्तमान समय की औरतों का जो हाल है, उसको देख कर आम इंसान भी यही हुक्म लगाएगा, क्योंकि उस खैर के ज़माने का माहौल आज के माहौल से हजारों गुना अच्छा था, जिसकी बेहतरी की एक झलक इस हिकायत से ज़ाहिर हैl

हिकायत:

हज़रत फारुक आज़म रदिअल्लाहु अन्हु की खिलाफत के दौर में मुसलामानों का लश्कर बैतूल मक़द्स के फतह के लिए प्रयासरत था कि वहाँ के उलेमा व अह्बार की ख्वाहिश के अनुसार हज़रत फारुक आज़म रदिअल्लाहु अन्हु खुद ही मदीना मुनव्वरा से जंग के मोर्चे पर तशरीफ लाएl बैतूल मक़द्दस के उलेमा व अह्बार ने जो खुद तो हालांकि हज़रत फारुक आज़म रदिअल्लाहु अन्हु पर नूरे इलाही और हकीकत के आसार नुमाया देख कर दिल से उनको मान चुके थेl मगर अपनी कौम को मुसलमानों के बुलंद अख़लाक़ को मनवाने के लिए यह बात पेश की कि हम बैतूल मक़द्दस का बड़ा बाज़ार बहुत सजाते और संवारते हैंl इस बाज़ार से इस्लामी फ़ौज एक बार गुज़र जाएl इस तरफ से दाखिल हो कर उस तरफ निकल जाएl इसलिए यह बात तै हो गई, और उन लोगों ने शहर का बाज़ार खूब सजाया, और उसमें हर प्रकार की चीजें उपलब्ध कराई, और हर एक स्थान पर एक एक खुबसूरत हसीन और सुन्दर औरत को बैठा दिया और बाज़ार को मर्दों से बिलकुल खाली करा दिया और औरतों को हुक्म दिया कि इस्लामी फ़ौज बाज़ार में दाखिल हो तो वह जिस चीज़ की ख्वाहिश करें, उनको बिना मूल्य और बिना सोचे समझे दे दें और बे पर्दा नाज़ व अदा से पेश करें और उनको अपनी तरफ आकर्षित करें और यह सब इंतज़ाम मुकम्मल हो जाने के बाद फिर मुसलामानों से कहा गया कि इस्लामी फ़ौज को उस बाज़ार से गुजरने का हुक्म दिया जाएl

इधर इस्लामी फ़ौज बाज़ार से गुजरने के लिए तैयार हुई तो सेनापति ने कुरआन पाक की यह आयत पढ़ी قل للمومنین یغضوا من ابصارھم “मोमिनों से फरमा दीजिए कि वह अपनी नज़रें नीची रखें”

इस एक ही आयत के सुनाने ने यह असर दिखाया कि इस्लामी फ़ौज बाज़ार में नज़र नीची किए हुए दाखिल हुई और किसी एक सिपाही ने भी आँख उठा कर ना देखा कि यहाँ क्या है? और कौन है? और वह खुदा से डरने वाले बन्दे इस्लामी शान के साथ एक ओर से दूसरी ओर निकल गएl इस्लामी फ़ौज की इस ऊँचे किरदार का यह असर हुआ कि दुश्मन ने सहमत हो कर बिना जंग किए बैतूल मुक़द्दस मुसलमानों के हवाले कर दियाl (अल फुतुहात, पृष्ठ 134)

मोहतरम! गौर करें कि जिस दौर की नौजवान नस्लें अल्लाह के दर के उस ऊँचे स्थान पर फायज़ थीं उन दिनों हज़रत उमर फारुक रदिअल्लाहु अन्हु ने औरतों को मस्जिद में नमाज़ जमाअत के साथ अदा करने से रोक दिया तो अब भला उनको मस्जिदों में जाकर नमाज़ जमाअत के साठ पढ़ने की इजाज़त कहाँ से हो सकती है जो कि कबीला मुजनिया की औरत की तरह हैंl

औरतों के लिए घर के कोने में नमाज़ पढ़ना उचित है

۱۔ عن ام سلمۃ قال رسول اللہ خیر مساجد النساء قعر بیوتھن (مجمع الزوائد ص ۳۳ج۲)

उम्मुल मोमिनीन सय्यदा उम्मे सलमा फरमाती हैं कि जनाब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया औरतों के लिए अपने घरों की गहराई में नमाज़ पढ़ना ही मस्जिद से बेहतर हैl

۲۔ عن ام سلمۃ قالت قال رسول اللہ صلوٰۃ المراۃ فی بیتھا خیر من صلاتھا فی حجرتھا و صلوٰتھا فی حجرتھا خیر من صلوٰ تھا فی دارھا و صلوٰتھا فی دارھا خیر من صلوٰتھا خارجا ۔ (مجمع الزوائد ،ص ۳۴، ج۲)

हज़रत उम्मे सलमा से रिवायत है कि फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कि औरत की नमाज़ अपने रहने वाले कमरे में बेहतर है बैठक में नमाज़ पढ़ने से और बैठक में नमाज़ पढ़ना बेहतर है हवेली में नमाज़ पढ़ने से और हवेली में नमाज़ पढ़ना बेहतर है बाहर नमाज़ पढ़ने सेl

3- हज़रत उम्मे हमीद अंसारिया सहाबिया को भी कितना शौक था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने का कि एक बार आप हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होती हैं और कितने शौक और मुहब्बत से दरख्वास्त पेश करती हैं कि ऐ अल्लाह के पैगम्बर! मैं आपके साथ बा जमाअत नमाज़ को पसंद करती हूँl

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मुझे पता है कि तुम मेरे साथ (बा जमाअत) नमाज़ को पसंद करती होl “लेकिन तेरी नमाज़ तेरे रिहाइशी कमरे में बेहतर हैl बैठक की जगह और तेरी नमाज़ बैठक में तेरे लिए बेहतर है हवेली की जगह और तेरी नमाज़ अपनी हवेली में बेहतर है कबीले की मस्जिद के मुकाबलेl और अपने कबीले की मस्जिद में नमाज़ पढ़ना तेरे लिए अधिक बेहतर है मेरी मस्जिद (मस्जिदे नबवी) में नमाज़ पढ़ने से “तो इस पर उन्होंने हुक्म दिया कि उनके लिए उनके रिहाइशी कमरे के आखरी कोने के तारीक हिस्से में मस्जिद बना दी जाए (अर्थात नमाज़ के लिए जगह विशेष कर दी जाए) इसलिए ऐसा ही किया गया तो वह इसी में नमाज़ अदा करतीं रहीं यहाँ तक कि अल्लाह पाक से जा मिलींl (मुसनद अहमद पृष्ठ 371 जिल्द 6)

देखिये उनके किरदार व अमल ने, क़यामत तक आने वाली औरतों के लिए नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान पर अपनी ख्वाहिश को कुर्बान करने का कैसा नमूना कायम कियाl अल्लाह पाक इस ज़माने की औरतों को नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फरमाबरदारी का यही जज्बा अता फरमाए ताकि अपने घर में अकेले नमाज़ पढ़ने को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से अधिक बेहतर जानेl

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