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Hindi Section ( 5 Feb 2018, NewAgeIslam.Com)

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What is the Ruling on Women Going to The Masjid Part – 1 क्या मस्जिद में महिलाएं जा सकती हैं (भाग-1)

 

पहली किस्त

कनीज़ फातिमा, न्यु एज इस्लाम

इस्लामी इतिहास के अदना छात्र पर भी यह बात अच्छी तरह साफ़ है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी में बैठ कर सभी पेश आने वाले समस्याओं का समाधान फरमाया करते थेl इसी मस्जिद में आप नमाज़ भी पढ़ाया करते थे और दर्स भी दिया करते थेl इसी मस्जिद में अख़लाक़ (व्यवहारिकता) व तसव्वुफ़ (सूफीवाद) का पाठ भी पढ़ाया करते थे और इसी महफ़िल में नात व मीलाद भी आयोजित करते थेl इसी मस्जिद में बाहर से आने वाले प्रतिनिधिमंडलों का स्वागत भी करते थे और इसी में इस्लाम की दावत व ईशाअत के लिए जाने वाले काफिले की तैयारी भी होती थी, संक्षिप्त यह कि यह मस्जिद इबादतगाह भी थी और प्रशिक्षण केंद्र भी, दर्सगाह भी थी और खानकाह भीl दूसरी ओर एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी विशेष आकर्षण का हकदार है कि उस समय नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही लोगों को दीनी अहकाम व मसाइल से वाकिफ कराया करते थे, और आप ही लोगों की दीनी व मजहबी रहनुमाई फरमाया करते थेl इसलिए दीनी व शरई मसाइल सीखने के लिए मर्दों के साथ साथ औरतों को भी मस्जिद में आने की अनुमति थी ताकि वह भी मस्जिदे नबवी में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इकतेदा में नमाज़ अदा करने का शरफ हासिल करके अधिक से अधिक सवाब की हकदार बन सकें साथ ही खुद अपने कानों से दीनी मसाइल सुन कर अपने हाफ़िज़े में सुरक्षित रख सकें, और दीन में नई दाखिल होने वाली महिलाओं की तरबियत कर सकेंl

महिलाओं को मस्जिदों में आने की अनुमति:

۱۔ عن ابن عمر قال قال رسول اللہ : ‘‘اذا استاذنت امراۃ ا حدکم الیٰ المسجد فلا یمنعھا ’’ (رواہ البخاری :ج۱ ص۲۱۱،ومسلم :ج۱ص۳۲۶)

अनुवाद: इब्ने उमर ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जब तुम में से किसी की महिला मस्जिद जाने की अनुमति मांगे तो वह उसे मना ना करेl

۲۔ عن  ابن عمر قال قال رسول اللہ : ‘‘لا تمنعوا نسائکم المساجد ’’ (ابو داود :ج۱ ص ۳۸۲)

अनुवाद: हज़रत इब्ने उमर से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तुम अपनी महिलाओं को मस्जिद से ना रोकोl

۳۔ عن ابن عباس ان النبی کان یخرج بناتہ و نسائہ فی العیدین (ابن ماجہ :ج۱ ص ۴۱۵،مسند احمد :ج۱ ص۲۳۱،کتاب احکام النسا)

अनुवाद: हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी बीवियों और बेटियों को इदैन में ले जाया करते थेl

इन हदीसों से पता चलता है कि महिलाओं को मस्जिदों में जा कर नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ने में कोई हर्ज नहीं इसलिए कि आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनहें मस्जिद में आने का हुक्म दिया है, लेकिन वर्तमान काल में औरतों को ऐसा करना बिलकुल जायज और सहीह नहीं, क्योंकि जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा फरमाया था तो उस समय उसमें कुछ मसलहतें थीं जिनकी बिना पर महिलाओं को मस्जिदों में नमाज़ बा जमाअत पढ़ने की अनुमति थी, जैसे नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इकतेदा बहुत बड़ी बात थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम समय समय पर लोगों को शरियत के मसाइल बताया करते थे जिनसे महिलाऐं भी परिचित हो जाया करती थींl

हदीसों में निषिद्धता के इशारे

हज़रत आयशा रादिअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ फरमा थे कि कबीला मजीना की एक बनी संवरी औरत बड़े नाज़ व अदा के साथ मस्जिद में आई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

1-    लोगों! अपनी औरतों को ज़ीनत व खुशबु के साथ मस्जिद में आने से रोको, इसलिए की बनी इस्राइल पर उस समय लानत भेजी गई जब उनकी औरतों ने ज़ीनत इख़्तियार की और मस्जिदों में जेब व ज़ीनत के साथ आने लगींl (सुनन इब्ने माजा:2 पृष्ठ 1326)

हज़रत उम्मुल मोमिनीन का समर्थन: सहीह मुस्लिम शरीफ, किताबुस्सलात में हज़रत उमरह बिन्ते अब्दुर्रहमान रादिअल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि:

۲۔ عن عائشۃ رضی اللہ تعا لیٰ عنھا قالت لو ادرک النبی ما احدث النساء لمنعھن المسجد کما منعت نساء بنی اسرائیل ۔ (بخاری ص ۱۱۹ ج۱۔ مسلم ،باب خروج النساء الی المساجد،ص ۱۸۳ ج۱(

अनुवाद: उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आयशा सिद्दीका रादिअल्लाहु अन्हा बयान फरमाती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम औरतों की मौजूदा जिद्दत (बनाव सिंघार) को मुलाहेज़ा फरमा लेते तो उनको मस्जिद में आने से अवश्य रोक देते जैसे बनी इस्राइल की औरतों को रोक दिया गया थाl

इन हदीसों के पेशे नज़र जिसमें सरवरे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़माना इबरत निशाँ की औरतों की मामूली जेब व जीनत पर इस तरह का हतमी फैसला फरमा दिया तो कुछ अजीब नहीं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आयशा सिद्दीका रादिअल्लाहु अन्हा के इस ख़याल के इज़हार का समर्थन फरमा कर औरतों को इससे मना फरमातेl

औरतों को मस्जिदों में आने की अनुमति क्यों:

औरतों को मस्जिदों में जाने की अनुमति उस समय थी जब कि मुअल्लिम इंसानियत के सिवा कोई मुअल्लिम ना था इस्लाम के शुरुआत का ज़माना था और हर नौ मुस्लिम की शिक्षा दीक्षा बहुत ज़रुरी थी इस लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी में बैठ कर ही सभी पेश आने वाले मसाइल का हल फरमाया करते थेl लेकिन उस समय जब यह दुश्वारियां ख़तम हो गई और जा बजा औरतों की शिक्षा के लिए अंबिया के वारिस ने विशेष इंतज़ाम किया और जगह जगह दर्सगाहें और तरबियतगाहें फराहम हो गई तो इन हालात में अब उनहें मस्जिदों में जाने की कोई हाजत नहीं रही क्योंकि उनके लिए असल हुक्म तो यह हैl

وقرن فی بیوتکن لا تبرجن تبرج الجاھلیۃ الاولیٰ۔(جمل النور)

अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है

अनुवाद: “और (साफ-साफ) उनवाने शाइस्ता से बात किया करो और अपने घरों में निचली बैठी रहो और अगले ज़माने जाहिलियत की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और (बराबर) ज़कात दिया करो और खुदा और उसके रसूल की इताअत करो ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा दिखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे” (सुरह अहज़ाब ३३)

और हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रादिअल्लाहु अन्हु रसूल अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं:

المراۃ عورۃ فاذا خرجت استشرفھا الشیطان( رواہ الترمذی و قال حسن صحیح ص۱۴۰ ج۱)

और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह फरमाना “لا تمنعوا اماء اللہ مساجد اللہ” यह “ الضروریات تبیح المحظورات” के अनुसार था लेकिन अब इसकी कोई हाजत ना रहीl इस वजह से अनुमति भी ना रहीl

हज़रत फारुक आज़म का मना करना:

उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आयशा सिद्दीका ने फरमाया अगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम देख लेते जो औरतों ने अब ( बनाव सिंघार के साठ मस्जिद में जाना) शुरू किया है तो उनहें मस्जिद में जाने से उसी तरह रोक देते जैसे बनी इस्राइल की औरतें रोकी गईंl

इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिस बरेलवी कुद्दसिर्रुहू फरमाते हैं: ताबईन ही के ज़माने से इमामों ने मुमानियत शुरू फरमा दी थीl पहले जवान औरतों को फिर बुढ़ियों को भीl पहले दिन में फिर रात में भी, मगरिब इशा और फजर में फासिक लोग खाने और सोने में मशगुल होते थेl बाहर घूमना फिरना उन समय में रिवाज नहीं थाl अब जबकि जमाने में फसाद आ गयाl फह्हाशी उरूज पर आ गई तो मुमानियत का हुक्म आम हो गयाl

क्या उस ज़माने की औरतें गरबे वालियों की तरह, गाने नाचने वालियां, या फाहिशा दलाला थीं अब नेक हैं? या जब बुरी अधिक थीं अब नेक अधिक हैं? जब फैज़ और बरकत नहीं थे अब हैं? या जब कम थे अब अधिक हैं? हरगिज़ नहीं! बल्कि मामला बिलअक्स हैl अब अगर एक नेक है तो जब हज़ार थींl जब अगर एक बुरी थी अब हज़ार हैंl अब अगर एक भाग फैज़ है जब हज़ार भाग थेl रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं: “لایاتی عام الا و الذی بعدہٗ شرمنہ “ हर आने वाला साल बीते हुए से बदतर होगाl बल्कि इनायह अकमलुल दीन बाबरती में हैl अमीरुल मोमिनीन फारुक आज़म रादिअल्लाहु अन्हु ‘ ने औरतों से मना फरमा दियाl वह उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रादिअल्लाहु अन्हा की खिदमत में शिकायत ले कर पहुंचीl फरमाया: अगर पाक ज़माने में यह हालत होती तो हुजुर औरतों को मस्जिद में आने की दावत ना देतेl

ऐनी जिल्द सोम में है-

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रादिअल्लाहु अन्हु ने फरमाया: औरत सरापा शर्म की चीज़ हैl सबसे अधिक अल्लाह पाक से करीब अपने घर की तह में होती है और जब बाहर निकले शैतान उसपर निगाह डालता हैl हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रादिअल्लाहु अन्हु का यह तरीका था कि जुमा के दिन खड़े हो कर कंकरियां मारते और औरतों को मस्जिद से बाहर निकालते थेl इमाम इब्राहीम नखइ ताबइ इमाम आज़म अबू हनीफा के उस्ताद अपनी मस्तुरात को जुमा और जमाअत में नहीं जाने देते थेl

तो जब उन खैर के ज़मानों में, उन फैज़ और बरकतों के वक्तों में, औरतें मना कर दी गई और कहाँ से? हुजुर मस्जिदों और जमाअत में शरीक होने से, हालांकि दीन मतीन में इन दोनों की ताकीद थीl तो इन बुराई वाले ज़माने में उन कलील या मौहूम फैज़ के हीले से औरत को इजाज़त दी जाए गी और वह भी काहे को? कब्रों की जियारत को जाने की जो शरअन मोकद नहीं, और विशेषतः उन मेलों ठेलों में जो खुदा ना तरसों ने माज़ारात किराम पर लगा रखी हैl यह किस कदर शरीयत मुताह्हेरा से मनाकिज़त है शरअ मुताह्हेरा का काएदा है कि जलब मसलिहत पर सलब मुफसिदा को मुकद्दम रखती हैl (फतवा रिजविया 4, 170)

(जारी)

URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/ruling-women-going-masjid-part-1/d/113882

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/ruling-women-going-masjid-part-1/d/114161

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