कनीज़ फ़ातिमा,न्यू एज इस्लाम
आइएसआइएस, अल कायदा और तालिबान जैसे वर्तमान काल के आतंकवादी और अतिवादी कुरआन व हदीस के कुछ शब्दों का गलत प्रयोग कर रहे हैंl यह बात किसी न्याय प्रिय शोधकर्ता से छुपी नहीं कि आतंकवादी संगठन कुरआन करीम की कुछ आयतों और कुछ हदीसों का इस्तेमाल उनके शाने नुज़ूल और एतहासिक संदर्भ से अलग करके कर रहे हैंl जिन आयतों व हदीसों का संबंध जंगी घटनाओं से है उनका इतलाक यह लोग ऐसे माहौल में कर रहे हैं जहाँ मुस्लिम और गैर मुस्लिम पर आधारित लोग अमन व शांति से गुज़र बसर कर रहे हैंl आतंकवादियों का समूह अपने गैर इस्लामी लक्षों के मद्देनजर जिहाद, शहादत, खिलाफत, दारुल हरब और दारुल इस्लाम जैसे शब्दों का गलत इस्तेमाल करके आम मुसलामानों और विशेषतः युवाओं को गुमराह करते हैं और वह यह दावा करते हैं कि यह सब कुछ कुरआन व हदीस में हैl जबकि आतंकवादियों की ओर से यह इस्लाम पर बहुत बड़ा इलज़ाम और शरीअत पर केवल झूठ बाँधना हैl उनके इस खतरनाक सिद्धांत का कुरआन व हदीस और इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं के साथ कोई संबंध ही नहीं हैl किसी जमाने में इस्लाम की उन शब्दों का प्रयोग केवल दीन, जान व माल की सुरक्षा और हर वर्ग के नागरिकों की सुरक्षा के लिए होता था लेकिन आज लोग अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन शब्दों का अंधाधुंध प्रयोग करके सीधे सादे मुसलामानों के धार्मिक भावनाओं से खेल रहे हैंl ऐसे लोगों के पास जनता को प्रभावित करने के लिए कोई संगठित प्रोग्राम नहीं होता इसलिए वह कुरआन व हदीस के शब्दों का प्रयोग करके जनता को भड़काने और फिर अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों के पूर्ती का प्रयास करते हैंl आतंकवादियों के माद्ध्यम से सबसे अधिक गलत प्रयोग जिस शब्द का होता है वह शब्द जिहाद हैl और शब्द जिहाद के गलत प्रयोग के कारण ही कुछ लोग यह समझने लगे हैं कि जिहाद का अर्थ किताल हैl निम्नलिखित में हम इसी बदगुमानी को दूर करने का प्रयास करेंगेl
गौरतलब बात है कि जिहाद का हुक्म सबसे पहले मक्का में उस समय नाज़िल हुआ जब कि अभी तलवार से जिहाद या सुरक्षात्मक युद्ध की अनुमति भी नहीं मिली थीl मक्का के प्रारम्भिक दौर में सहाबा पर अत्याचार के पहाड़ तोड़े जाते मगर उनहें अपनी सुरक्षा में लड़ने की अनुमति नहीं थीl सुरक्षात्मक युद्ध की मनाही के लिए भी मक्का शरीफ में लगभग सत्तर आयतों का नुज़ूल हुआ मगर जिहाद से संबंधित पांच आयतें नाज़िल हुईंl अब सवाल पैदा होता है अगर मक्की दौर में सत्तर आयतों के नुज़ूल ने जंग को निषेध कर दिया तो फिर जिहाद के संबंध में पांच आयतें क्यों नाजिल हुईं? क्या जिहाद का अर्थ किताल नहीं? आइए हम निम्नलिखित में ठीक से समझेंl
इमाम राज़ी अपनी तफसीर कबीर में सुरह हज की आयत 30 की तफसीर में लिखते हैं:
अनुवाद: “किताल की मनाही में सत्तर से अधिक आयतों का नुज़ूल हुआ फिर इसके बाद यह (सुरह हज आयत 39) पहली आयत थी जिसमें किताल की अनुमति दी गईl”
दुनिया के सारे मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों को इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि अगर जिहाद का अर्थ किताल और सशस्त्र मुठभेड़ ही होता तो मक्का में नाजिल होने वाली निम्नलिखित पांच आयतों की क्या वजह हो गी जिनमें स्पष्ट तौर पर जिहाद का हुक्म दिया गया है? यह पाँचों आयतें हिजरत से पहले मक्का में नाजिल हुईं जब अपनी सुरक्षा में भी हथियार उठाने की सख्ती से मनाही थी और इतिहास इस बात पर गवाह है मुसलामानों ने उस मक्की दौर में अमलन कोई जंग नहीं लड़ीl अगर जिहाद का अर्थ लड़ना होता या किताल होता तो मक्की दौर में सहाबा रदिअल्लाहु अन्हु हथियार उठाते और अपनी सुरक्षा में जंग लड़ते, लेकिन उनमें से किसी को भी उस समय जंग की अनुमति नहीं हालांकि संबंधित पांच आयतों का नुज़ूल हो चुका थाl इससे यह पता चलता है कि शब्द जिहाद का प्रयोग सशस्त्र लड़ाई के अलावा कई और अर्थ में होता हैl एक दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है कि आज अगर कोई देश किसी देश पर हमला करे तो दोसरा देश तुरंत रक्षात्मक युद्ध शुरू कर देगा लेकिन मक्की दौर के मुसलामानों की सब्र का अंदाजा लगाइए कि लगभग 13 साल तकलीफों और अत्याचारियों के अत्याचार का सामना करने के बावजूद भी रक्षात्मक युद्ध के लिए हथियार नहीं उठाएl यह वह दृष्टिकोण है जिस पर हर बुद्धिमान को गौर करना चाहिएl आइए मक्की दौर में जिहाद के संबंध में नाजिल होने वाली निम्नलिखित पांच आयतों पर गौर करेंl
۱۔ (فلا تطع الکافرین وجاھدھم بہ جھادا کبیرا ) (۲۵: ۵۲
अनुवाद: तो (ऐ मोमिन!) काफिरों का कहना ना मान और इस कुरआन (की दावत व दलाइल) से उन पर जिहाद कर बड़ा जिहादl
इस आयत में बड़े जिहाद से मुराद इल्म व फ़िक्र और बेदारी पैदा करने की जिद्दो जुहद मुराद हैl तो पता चला कि इस आयत में जिहाद से मुराद किताल या तलवार से जिहाद हरगिज़ नहींl
۲۔( ومن جاھد فانما یجاھد لنفسہ ان اللہ لغنی عن العالمین) (۲۹: ۶)
अनुवाद: और जो अल्लाह की राह में कोशिश करे तो अपने ही भले को कोशिश करता है बेशक अल्लाह सारे जहानों से बेनियाज़ हैl
इस आयत में जिहाद से अखलाकी और रूहानी तरक्की के लिए कोशिश करना मुराद हैl तो पता चला कि इस आयत में जिहाद से मुराद किताल या तलवार से जिहाद हरगिज़ नहींl
۳۔ (وان جاھدک لتشرک بی مالیس لک بہ علم فلا تطعھما) (۲۹: ۸)
अनुवाद: और अगर वह तुझसे कोशिश करें कि तू मेरा शरीक ठहराए जिसका तुझे ज्ञान नहीं तो तू उनका कहना ना मांl
उलेमा ने इस आयत में जिहाद से मुराद हर तरह की वैज्ञानिक, बौद्धिक, सैद्धांतिक या विश्वासिय संघर्ष लिया हैl तो पता चला कि इस आयत में जिहाद से मुराद किताल या तलवार से जिहाद हरगिज़ नहींl
۴۔ (والذین جاھدوا فینا لنھدینھم سبلنا و ان اللہ لمع المحسنین )(۲۹: ۶۹)
अनुवाद: और जिन्होंने हमारी राह में कोशिश की जरुर हम उनहें अपने रास्ते दिखा देंगे और बेशक अल्लाह नेक लोगों के साथ हैl
इस आयत में नैतिक, आध्यात्मिक और मानवीय मूल्यों का ख़याल करने और उनहें तरक्की देने की कोशिश को जिहाद का नाम दिया गया हैl तो पता चला कि इस आयत में जिहाद से मुराद किताल या तलवार से जिहाद हरगिज़ नहींl
۵۔ وان جاھدک علی ان تشرک بی ما لیس لک بہ علم فلا تطعھما (۳۱: ۱۵)
अनुवाद और अगर वह दोनों तुझसे कोशिश करें कि मेरा शरीक ठहराए ऐसी चीज को जिसका तुझे इल्म नहीं तो उनका कहना ना मानl
मक्की दौर में नाजिल होने वाली इस आयत में भी अल्लाह पाक ने वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, विश्वास और नैतिक स्तर पर की जाने वाली कोशिश को जिहाद का नाम दिया हैl तो पता चला कि इस आयत में जिहाद से मुराद किताल या तलवार से जिहाद हरगिज़ नहींl
जैसा कि हमने पहले ज़िक्र किया कि उपर्युक्त पाँचों आयतें जो हिजरत से पहले मक्का शरीफ में नाजिल हुईं उनमें स्पष्ट रूप से जिहाद का उल्लेख हुआ लेकिन फिर भी सहाबा रदिअल्लाहु अन्हुम अजमईन ने कोई जंग मक्की दौर में नहीं लड़ी बल्कि उनहें सुरक्षात्मक युद्ध की अनुमति मदीना हिजरत के बाद दी गई थीl अगर जिहाद का अर्थ किताल होता तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्की दौर में ही तलवार से जिहाद की अनुमति दे देतेl लेकिन इस बात पर सबकी सहमति है कि तलवार से जिहाद की अनुमति मदीना हिजरत के बाद मिलीl लेकिन आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका उचित उत्तर है कि जिहाद का अर्थ किताल, युद्ध या लड़ाई है ही नहींl जो लोग जिहाद का अर्थ जंग या लड़ाई लेते हैं वह गलती पर हैंl
अगर आप मक्की दौर में नाजिल होने वाली उपर्युक्त पांच आयतों पर गौर करें जिनमें जिहाद की हिदायत दी गई है तो आप को मालूम होगा जिहाद का अर्थ केवल यह नहीं है कि बन्दुक ले कर जंग या लड़ाई शुरू कर दी जाए बल्कि जिहाद का अर्थ इल्म व मारफ़त की तरवीज व इशाअत, अखलाकी व रूहानी तरक्की, फिकरी व फलाही कोशिश, और समाजी तौर पर माली मदद व खैरात हैl हाँ जब आक्रामकता की जंग राष्ट्र स्तर पर आप पर थोप दी जाए तब आपको अनुमति है कि आप अपनी जान व माल और इज्ज़त व आबरू की हिफाज़त और बचाव की जंग लड़ेंl सुरक्षात्मक युद्ध वह लड़ाई है जिसकी अनुमति यू एन (UN) और अंतर्राष्ट्रीय कानून भी देता हैl और इस तरह की सुरक्षात्मक जंग की अनुमति दुनिया की हर कौम और देश को प्राप्त हैl लेकिन आज काल सुरक्षात्मक जंग के नाम पर नाहक खून बहाने और मज़लूमों और बेसहारों पर ज़ुल्म करने का रिवाज आम हो गया है जिसकी अनुमति ना तो दुनिया का कोई मज़हब देता है और ना तो दुनिया का कोई कानूनl
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