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Hindi Section ( 24 Jan 2018, NewAgeIslam.Com)

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Fraternity and Brotherhood In Islam- Part 1 इस्लाम में भाईचारगी (भाग-1)

 

कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम

भाईचारा मानवता के लिए इतना आवशयक कार्य है कि इसके बिना घर, समाज, राष्ट्र और विश्व सबका चैन व सुकून ना मुमकिन है l अगर आपस में भाईचारगी ना हो तो सब के सब मतभेद के शिकार हो जाएँगे, और दुनिया से अमन व शांति उठ जाएगा और इस प्रकार घर घर फितना व फसाद बरपा होने लगेगाl दुनिया में अमन व सलामती की स्थापना के लिए ही इस्लाम ने भाईचारगी की शिक्षा पर जोर दिया हैl अल्लाह पाक का फरमान है:

وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۚ يَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَيُطِيعُونَ اللَّـهَ وَرَسُولَهُ ۚ أُولَـٰئِكَ سَيَرْحَمُهُمُ اللَّـهُ ۗ إِنَّ اللَّـهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ﴿٧١﴾

अनुवाद: मोमिन मर्द व मोमिन औरतें आपस में एक दुसरे के (मददगार) दोस्त हैं, वह भलाइयों का हुक्म देते और बुराइयों से रोकते हैं, नमाज़ कायम करते हैं, ज़कात अदा करते हैं, अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करते हैं, यही लोग हैं जिनपर अल्लाह बहुत जल्द रहम फरमाएगा, बेशक अल्लाह गलबे वाला खूब हिकमत वाला हैl (सुरह तौबा आयत नंबर 71)

इस आयते करीमा में अल्लाह पाक ने सब से पहलेبَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍफरमा कर यह शिक्षा दे दिया कि जब तुम आपस में दोस्त रहोगे उसी समय कामयाब रहोगे, जब तुम आपस में एक दुसरे को भाई समझोगे उसी समय बुराई से रुकोगे और अच्छाई कर सकोगे क्योंकि यही हैं जिनहेंيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِका खिताब मिला हैl

सुरह अल हजरात की आयत नंबर 10 में इरशादे बारी तआला हैl

(إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَيْنَ أَخَوَيْكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ )

अनुवाद: “मुसलमान मुसलमान भाई हैं तो अपने दो भाइयों में सुलह करो और अल्लाह से डरो कि तुम पर रहमत हो”l

यह आयत करीमा दुनिया के सभी मुसलमानों को एक आलमगीर बिरादरी कायम करने की शिक्षा देती हैl इस हुक्म की अहमियत और इसके आवश्यकताओं को हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने इरशादात में बयान फरमाया है जिससे इसकी पुरी पुरी वजाहत होती हैl

हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह कहते हैं कि आप ने मुझ से तीन बातों पर बैत ली थीl एक यह कि नमाज़ कायम करूँगा दुसरे यह कि ज़कात देता रहूँगा तीसरा यह कि हर मुसलमान का खैर ख्वाह रहूँगाl (बुखारी किताबुल ईमान)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद रदि अल्लाहु अन्हु की रिवायत है कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “मुसलमान को गाली देना फिस्क है और उससे जंग करना कुफ्र है” (बुखारी)l

एक इंसान को दुसरे के लिए इतना मोहतरम कर दिया कि उससे इख्तेलाफ को नाजायज और गैर मुस्तहसिन करार दिया, इसलिए भाईचारगी की बुनियाद इस अम्र पर कायम होती है कि इंसान ऐसी आला अक़दार पर ईमान रखता हो जो उसे दुसरे इंसान के साथ हुस्ने सुलूक पर आमादा करे ख्वाह वह किसी मज़हब, रंग, नसल और नज़रिए से संबंध रखता होl

इस्लाम मुसलामनों को शिक्षा देता है कि वह गैर मुस्लिमों को भी इंसानियत के हवाले से सभी इंसानी अधिकार का हकदार समझें l जैसा कि अक्सर उनमें ऐसा ही करते हैंl इस्लाम का एक अहम उसूल यह है कि गैर मुस्लिमों के साथ भी हुस्ने सुलूक से काम लिया जाए और हर व्यक्ति से न्याय किया जाएl

हुजुर ने खुतबा जुमअतुल वीदा के मौके पर फरमाया: ऐ लोगों! मेरी बात सुनों- अच्छी तरह जान लो कि हर मुसलमान दुसरे मुसलामन का भाई है वह उससे खयानत नहीं करता, उससे झूठ नहीं बोलता और ना तकलीफ के समय उसे अकेला छोड़ता हैl हर मुसलमान पर दुसरे मुसलमान की आबरू व माल और खून हराम हैl (तिरमिज़ी शरीफ)

इस हदीस पाक में मुसलमानों को भाईचारगी और आपसी उखुवत व मुहब्बत की शिक्षा मिलती हैl

एक मौके पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

)مَثَلُ المؤمنين في تَوَادِّهم وتراحُمهم وتعاطُفهم: مثلُ الجسد، إِذا اشتكى منه عضو: تَدَاعَى له سائرُ الجسد بالسَّهَرِ والحُمِّى([أخرجه البخاري ومسلم عن النعمان بن بشير]

“मोमिनों की मिसाल आपस की मुहब्बत, वाबिस्तगी और एक दुसरे पर रहम व शफकत के मामले में ऐसी है जैसे एक जिस्म की हालत होती है कि इसके किसी भी शरीर के भाग को तकलीफ हो तो सारा जिस्म इसकी वजह से बुखार और बे ख्वाबी में मुब्तिला हो जाता हैl” (सहीह अल बुखारी, हदीस: 6011)

अल्लाह पाक ने इरशाद फरमाया:

وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا ۚ وَاذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ كُنتُمْ أَعْدَاءً فَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِكُمْ فَأَصْبَحْتُم بِنِعْمَتِهِ إِخْوَانًا وَكُنتُمْ عَلَىٰ شَفَا حُفْرَةٍ مِّنَ النَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنْهَا ۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ

अनुवाद: “और अल्लाह कि रस्सी मजबूती से थाम लो सब मिल कर और आपस में फट ना जाना (फिरकों में ना बट जाना) और अल्लाह का एहसान अपने ऊपर याद करो जब तुम में बैर था, उसने तुम्हारे दिलों में मिलाप कर दिया तो उसके फज़ल से तुम आपस में भाई हो गए, और तुम एक गारे दोज़ख के किनारे पर थे, तो उसने तुम्हें इससे बचा दिया, अल्लाह तुम से यूँही अपनी आयतें बयान फरमाता है कि कहीं तुम हिदायत पाओ” (आले इमरान 3:103)

इसी तरह एक हदीस में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि “कसम है उस जान की जिसके कब्ज़े में मेरी जान है, कोई व्यक्ति उस समय तक कामिल मोमिन नहीं होता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है” (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है: “मोमिन एक मोमिन के लिए एक दीवार की तरह है, जिसकी एक ईंट दूसरी ईंट से पेवस्ता है अर्थात मजबूती का जरिया हैl “ (सहीह बुखारी किताबुस्सलात, सहीह मुस्लिम बाब तराहुमुल मोमिनीन)

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है: “मुसलमान मुसलमान का भाई है वह ना उस पर ज़ुल्म करता है ना उसको अकेला छोड़ता है और जो अपने भाई के काम आएगा, अल्लाह उसके काम आएगा और जो कोई किसी मुसलमान की तकलीफ को दूर करेगा, अल्लाह क़यामत के दिन की तकलीफों से उसकी तकलीफ को दूर करेगा और जो कोई किसी मुसलमान की सतर पोशी (ऐब को छुपाएगा) करेगा, अल्लाह क़यामत के दिन उसकी सतरपोशी करेगाl” (सहीह बुखारी)

प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “आपस में एक दुसरे से हसद ना करो, एक दुसरे पर बोली ना बढाओ, एक दुसरे से दुश्मनी ना करो, एक दुसरे से बेरुखी ना बरतो और एक दुसरे के बीच में चढ़ कर खरीद व फरोख्त ना करोl इसके बजाए आपस में अल्लाह के बन्दे और भाई बन कर रहोl मुसलमान मुसलमान का भाई होता हैl वह ना उस पर ज़ुल्म करता है ना उसको गिरी निगाह से देखता हैl ना उसको बे यार व मददगार छोड़ता है, अल्लाह का दर यहाँ (अर्थात दिल में) होता हैl ऐसा कहते हुए आपने तीन बार अपने सीने की तरफ इशारा कियाl आदमी के बुरा होने के लिए काफी है कि वह अपने मुसलमान भाई को गिरी हुई निगाह से देखेl हर मुसलमान के लिए दुसरे मुसलमान की जान व माल, इज्ज़त व आबरू हराम हैl” (सहीह बुखारी, मुस्लिम)

सहीह बुखारी की एक हदीस ऐसी भी है जिसमें सहाबा किराम ने मुवाखात
(भाईचारगी) की इन्तेहा कर दी है, घटना यह है कि साद बिन रबीअ जब अब्दुर्रहमान बिन औफ़ के भाई करार पाए तो वह उनहें वह अपने घर ले गए और हर चीज आधी करके उनके सामने पेश करते हुए फरमाने लगे कि मेरी दो बीवियां भी हैंl उनमें से कोई एक जिसे तुम पसंद करो, मैं उसे तलाक देता हूँ तुम उससे निकाह कर लोl हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने साद रबीअ रादिअल्लाहु अन्हु की इस पेशकश का एहसान मंदी के साथ इनकार कर दियाl (सहीह बुखारी किताबुल मनाकिब)

अल्लाह के नबी का इरशाद है: “तुममें से कोई शख्स ईमान वाला नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने मुसलमान भाई के लिए वही कुछ ना पसंद करे जो कि वह अपने लिए पसंद करता हैl”

आयते करीमा और हदीसों में जा बजा यह शिक्षा दी गई है कि सभी उम्मत दावत हो या इस्तेजाबत आपस में एक दुसरे के साथ उल्फत व भाईचारगी कायम करें, एक दुसरे के हुकुक को पहचान कर उनको अदा करने की कोशिश करें, और हर मुसीबत और ज़रूरत के समय उनका साथ देंl

मुहब्बत करने का बुनियादी मतलब यह है कि एक दुसरे के बारे में सामान्य पसंदीदगी, कुबूलियत और मदद का रवय्या रखा जाएl इस काम की इब्तेदा वालिदैन से होती है, फिर उसमें बीवी बच्चे, भाई बहन, रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त अहबाब और दुसरे सम्बन्धी एक के बाद दुसरे सभी को शामिल होते चले जाते हैंl

अल्लाह पाक हम सभी को भाईचारगी के साथ रह कर अमन व अमान कायम करने की तौफीक अता फरमाएl आमीन बजाह सय्यदुल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

(जारी)

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