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Hindi Section ( 26 Jun 2019, NewAgeIslam.Com)

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Take Muslims Out of Fear Psychosis मुसलमानों को डर की मानसिकता से निकाला जाए



जावेद जमालुद्दीन

९ जून, २०१९

भारत में लोकसभा चुनाव २०१९ के परिणामों से पैदा होने वाली राजनीतिक स्थिति अत्यंत गंभीर नज़र आ रही हैl देश के पार्टी मतभेद का जो हाल हुआ है और धीरे धीरे उनका शीराज़ा भी बिखेरने लगा है, लेकिन हालिया चनावों में जो परिमाण सामने आए हैं उनकी वजह से सबसे अधिक मुसलमान प्रभावित हुए हैं, वह विभिन्न प्रकार के दावे करें और अपने आपको तसल्ली देने की कोशिश करें, लेकिन इस वास्तविकता से कोई इनकार नहीं कर सकता है की अल्पसंख्यकों और दलित, विशेषतः मुसलमान एक मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं और खौफ व हरास में मुब्तिला हैंl क्योंकि सेकुलर और हम ख्याल पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ वोट मिल भी गया, मगर कड़वी हकीकत यह है कि उनके एकजुट ना होने के कारण वोटों की अहमियत घट कर रह गई और बीजेपी और सहयोगियों को इसका लाभ पहुँच गयाl यह भी सच है कि मुसलमानों के वोटों की अहमियत को सभी जानते भी हैं और उन्हें इसका एहसास भी है, बल्कि बीजेपी का एक वर्ग भी वोट की शक्ति को स्वीकार कर रहा हैl

लोकसभा के परिणामों के बाद मामूली अंतराल के बाद प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने दो बार मुसलमानों के सम्बन्ध से लचकदार रवय्या अपनाया है और उनके रवय्ये में अचानक अद्भुत परिवर्तन घटित हुआl पहले उन्होंने संसद के केन्द्रीय हाल में बीजेपी और एनडीए में शामिल दोसरी पार्टियों के चुनें संसद सदस्यों के सामने जो बयान दिया, इसकी गूंज और इस पर बहस का सिलसिला अभी समाप्त नहीं हुआ था कि उन्होंने ईदुल फितर के मौके पर एक नए अंदाज़ में उर्दू और अंग्रेजी में ईद कार्ड ट्विट कर दिया और मुसलमानों को ईदुल फितर की मुबारकबाद पेश कीl अपने संदेश में कहा कि ‘ईदुल फितर के ख़ुशी से भरे मौके पर मुबारकबादl खुदा करे कि यह विशेष दिन, हमारे समाज में, सहस्तित्व, रहमदिली और अमन के जज़्बात को बढ़ावा देl हर ताकतवर और कमज़ोर की ज़िन्दगी खुशियों से हमकिनार होl “इसी प्रकार का सन्देश मोदी ने पहले भी दिया था और उन्होंने स्पष्ट किया कि “हमें अल्पसंख्यकों के दिल व दिमाग से डर व खौफ निकालना है और इसकी बहोत आवश्यकता है, क्योंकि पिछली सरकारों ने उन्हें एक प्रकार के धोके में रखा है, जिसमें से उन्हें बाहर निकालना होगा, हम सब की जिम्मेदारी होगी कि हम इसे समाप्त करें और अल्पसंख्यकों का भरोसा बहाल किया जाएl पार्टी मतभेद ने वोट बैंक की राजनीति करते हुए, अल्पसंख्यकों को खौफ व हरास में रहने पर मजबूर किया, बेहतर होता कि अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर और उनके सेहत पर ध्यान दिया जाता, लेकिन अब उनके भरोसे को जीतने, उस पिछले धोके को समाप्त करने और सबको विकास के रास्ते पर ले जाने की आवश्यकता हैl ‘इन दोनों बयानों और पिछले पांच सालों के दौर में ‘ मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरआन और दोसरे में कंप्यूटर’ देने के बयान भी रखे जाएं तो पता चले गा कि पहले इतना आगे बढ़ी नहीं थी, लेकिन इस बार प्रधानमन्त्री ने जो अंदाज़ अपनाया है, इससे मुसलमानों ने एक हद तक राहत की सांस ली हैl पहले भी किसी डर व खौफ में नहीं रहे और इस सामयिक संकट के बाद भी इसी डर व खौफ से उभर जाएंगेl ऐसी उम्मीद की जा सकती हैl लेकिन प्रश्न यह है कि कौमी साथ पर बीजेपी ने जो जीत हासिल की है और यह बात निश्चित है कि एनडीए की दोसरी पार्टियों की हिमायत के साथ उसकी सरकार केंद्र में अगले पांच वर्ष पूर्ण करेगी, जबकि विपक्ष कमज़ोर नज़र आने के साथ साथ दस्त व गिरेबां है और मतला अब्र आलूदा है तो इसका हल कैसे तलाश किया जाए और भविष्य में आर्थिक, शिक्षिक और सामाजिक सतह पर अपनी बेहतरी के बारे में सोचा जाए कि क्या हमें एक व्यापक व ठोस हिकमत ए अमली तैयार करने की आवश्यकता नहीं है?

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के बयान पर कुछ लोग नाक मुंह चढ़ा सकते हैं, लेकिन क्या विरोधियों की किसी पहल का सकारात्मक उत्तर नहीं दिया जा सकता हैl केवल यह सोचना कि पिछले पांच वर्ष के अरसे में अल्पसंख्यकों और विशेषतः मुसलमानों के खिलाफ होने वाली इश्तिआल अंगेज़ी के खिलाफ ज़ाहिरी तौर पर कुछ नहीं कहा गया, इसकी वजह बीजेपी के छुट भय्या लीडर ही नहीं बल्कि कई कद्दावर भी बयान बाज़ी से बाज़ नहीं आते हैंl हाल में एक ऐसे ही मंत्री और बिहार के विवादित बयान के लिए प्रसिद्ध गिरिराज सिंह को बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने फटकार लगाई हैl असल में रोज़ा इफ्तार के एक मामले में उन्होंने नितीश कुमार को लपेटने की कोशिश की थी और यही वजह है कि उनके कान मोड़ दिए गए जिसे एक अच्छी पहल समझा जाएl मुसलमानों का एक वर्ग और विशेषतः शिक्षित वर्ग की कोशिश है कि इसे साकारात्मक कदम समझा जाए मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के साथ अब ‘सबका विश्वास’ भी जोड़ दिया है और उन्होंने मुसलमानों के भरोसा जीतने की भी बात कहीl इस सिलसिले में विभिन्न लोग खुल कर इज़हार कर रहे हैं और उनमें अंजुमन ए इस्लाम के अध्यक्ष डॉक्टर ज़हीर क़ाज़ी का ख्याल है कि यह एक सुखद बात है कि मुसलमानों का उल्लेख नहीं किया गया, बल्कि उनकी हालत पर चिंता भी व्यक्त किया गया और उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक बेहतरी और भलाई की भी बातें की गईं हैं, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने तौर पर कायदे से एक रणनीति तैयार करें और अपने बीच एकता की मजबूती स्थापित करेंl डॉक्टर ज़हीर क़ाज़ी ने हाल में मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के नारे की प्रशंसा की है और उनके मुसलमानों की तरफ कदम बढ़ने पर कहा कि इसका साकारात्मक उत्तर दिया जाना चाहिएl

उल्लेखनीय स्थिति की समीक्षा करने के बाद सच भी महसूस होता है कि अगर मौजूदा सरकार इस नारे के तहत मुसलमानों की शैक्षिणिक बेहतरी और सेहत के सिलसिले में महत्वपूर्ण कदम उठाने की सोच रही है, तो क्या इस बात को अनदेखा किया जा सकता हैl जहां तक शैक्षिक बेहतरी की बात है तो सरकार को यह मशवरा दिया जाना चाहिए कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जहां मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत कुछ अधिक है, उन जिलों और शहरों में सेंट्रल स्कुल और नवोदय जैसे रहने वाले स्कुल खोले जाएं, ताकि इससे दोसरों को भी लाभ मिलेl इसके साथ ही अल्पसंख्यक संस्थाओं के माध्यम से स्कुल और कालिज की दरख्वास्तों को मंजूरी देने में देरी ना की जाए, बल्कि अल्पसंख्यकों के संबंधित संस्थाओं को स्वीकृति देने में रिआयत बरती जाएl दीनी मदरसे भी सरकारी सहायता के हकदार हैं, उन्हें आर्थिक सहायता और सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन इसके साथ दुनयावी शिक्षा के संस्थाओं को भी पूर्ण हिमायत और साहायता मिलना चाहिए, क्योंकि इन दीनी मदरसों में केवल चार प्रतिशत छात्र शिक्षारत हैंl असल में हमें दुनयावी शैक्षिक संस्थाओं को सुविधा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है और अगर सरकार ने इस सम्बन्ध से नेकनीयती का इज़हार किया है तो यह एक अच्छी अलामत हैl अगर इस पहल का स्वागत करे हुए हम सरकार की और हाथ बढ़ाते हैंl उन तक अपने समस्या पहुंचाने की कोशिश करते हैं तो बेहतर परिणाम सामने आएँगे और अगर ऐसा नहीं कर पाए तो काफी परेशानी पेश आ सकती हैl हमें दरपेश समस्याओं को हल कराने के लिए खुद आगे आना चाहिए ताकि एक नए दौर का प्रारम्भ हो, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में केंद्र और राज्यों की बीजेपी सरकारों ने शैक्षिक स्तर पर भरपूर मदद दिया और साथ साथ नए संस्थाओं को खोलने की मंजूरी भी दी हैl इस मैदान में रुकावट पैदा करने की कोशिश नहीं हुई हैl अब हमें सोचना है कि ऊंट को किस करवट बैठाएंl इतना अवश्य है कि हमें अपने बीच एकता का प्रदर्शन करना होगा और किसी का इंतज़ार किये बिना आगे बढ़ कर जाम को थाम लेना है, यही सुर्खरुई की अलामत हैl

९ जून, २०१९, सौजन्य से: इंकलाब, नई दिल्ली

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