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Hindi Section ( 11 Oct 2011, NewAgeIslam.Com)

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Imam Ghazali’s Opinion About Nafil Hajj नफ़िल हज के बारे में इमाम ग़ज़ाली (रह.) की राय


हज़रत मौलाना अली मियाँ साहब की किताब से (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

इस्लाम के इतिहास में जिन कुछ किताबों ने मुसलमानों की ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा असर डाला है उनमें इमाम ग़ज़ाली (रह.) की किताब अहयाउल उलूम को खास मकाम हासिल है। इस किताब में बिगड़े हुए इस्लामी समाज का पूरी शक्ति के साथ मूल्यांकन किया गया है। दौलत वालों पर बड़ी सही गिरफ्त करते हुए एक जगह लिखते हैः उन दौलतमंदों में बहुत से लोगों को हज पर रूपया खर्च करने का बड़ा शौक होता है, वो बार बार हज करते हैं, और कभी ऐसा होता है कि अपने पड़ोसियों को भूखा छोड़ देते हैं, और हज करने चले जाते हैं। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) ने सही फरमाया है कि आखरी ज़माने में बेवजह हज करने वालों की काफी संख्या होगी, सफर उनको बहुत आसान मालूम होगा, रूपये की उनके पास कमी न होगी, वो हज से महरूम खाली हाथ वापस आयेगें, वो खुद सफर के मज़े लेंगे और इनके करीब रहने वाला परेशान होगा लेकिन उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे और न ही उनके गम में शरीक होंगे।

अबु नस्र तमार कहते हैं कि एक शख्स बशर बिन हारिस (रह.) के पास आया और कहा कि मेरा उद्देश्य नफिल हज का है, आपका कुछ काम है?”  उन्होंने पूछा कि तुमने खर्च के लिए क्या रखा है?  उसने कहाः दो हज़ार दिरहम। बशर बिन हारिस (रह.) ने पूछा कि तुम्हारा हज से क्या मकसद है, इज़हारे ज़हेद, या शौके काबा या तलबे रज़ा (अल्लाह का राज़ी होना)?  उसने कहा तलबे रज़ा। उन्होंने फरमाया कि, अच्छा अगर मैं तुम्हें ऐसी तदबीर बतला दूँ कि तुम घर बैठे अल्लाह की रज़ा हासिल कर लो, और तुम दो हज़ार दिरहम खर्च कर दो, और तुमको यकीन हो कि अल्लाह की रज़ा हासिल होगी, तो क्या तुम उसके लिए तैय्यार हो? उसने कहाः खुशी से। फरमाया कि, अच्छा फिर जाओ इस माल को ऐसे दस आदमियों को दे आओ जो कर्ज़दार है, वो इससे अपना कर्ज़ अदा करें, भीख माँगने वाले अपनी हालत दुरुस्त करें, बाल बच्चों वाले उनकी परविरश कर सकें, यतीम का खयाल रखने वाला यतीम को कुछ देकर उसका दिल खुश करे और अगर तुम्हारी तबीयत गवारा करे तो एक ही को पूरा माल दे आओ, इसलिए कि किसी की मुसीबत को दूर करना, किसी की मदद करना, कमज़ोर की सहायता करना कई नफिल हजों से बेहतर है। जाओ जैसा मैंने तुमसे कहा है वैसा ही करके आओ, वर्ना अपने दिल की बात हम से कह दो। उसने कहा किः शेख, सच्ची बात तो ये है कि सफर का रुझान हावी है। बशर बिन हारिस (रह.) सुन कर मुस्कुराए और फरमाया कि माल जब गंदा और संदिग्ध होता है तो मन चाहता है कि उससे उसकी ख्वाहिश पूरी की जाये और वो उस वक्त आमाले स्वालेहा को सामने लाता है, हालांकि अल्लाह ताला ने अहद फरमाया है कि सिर्फ तीन धार्मिक लोगों के अमल को कुबूल फरमायेगा। (अहयाउल उलूमः 351-52/3)

स्रोतः हज़रत मौलाना अली मियाँ साहब की किताब से

URL: https://newageislam.com/hindi-section/imam-ghazali’s-opinion-nafil-hajj/d/5664


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