इस्हाक़ याक़ूब
20 नवम्बर, 2013
ये ब्रह्मांड सभी जीवों का है और इस ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला खुदा एक ही है। अल्लाह ने अपने कलात्मक हाथ से अपनी श्रेष्ठ कृति के रूप में मानवों को पैदा किया है और वही सभी मनुष्यों का रचनाकार है और जिसकी सभी इंसान अपने निर्माता के रूप में पूजा करते हैं। इस दुनिया में कोई भी ये दावा नही कर सकता कि वो ही केवल खुदा की रचना है और दूसरे लोग उसकी रचना नहीं हैं। हर व्यक्ति ये दावा कर सकता है कि वो अल्लाह की रचना है और अपने विश्वास और तरीके के अनुसार उसकी पूजा करने और उसकी आज्ञा का पालन करने का उसे अधिकार है। इसलिए ये बात अब सभी को स्पष्ट है कि खुदा सबका है और खुदा उसी तरह इंसानों से प्यार करता है जिस तरह इंसान अपने बच्चों से करता है। यहूदी धर्म के अलावा दुनिया के सभी धर्मों के दरवाज़े सभी लोगों के लिए खुले हुए हैं और पूरी दुनिया में कोई भी किसी भी धर्म का पालन कर सकता है।
आज पूरी दुनिया एक वैश्विक गांव (global village) बन गयी है और सभी लोग एकदूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। और ये सब मीडिया और लोगों की ज़रूरत की वजह से हुआ है। मीडिया की वजह से ही अब कुछ भी पर्दे के पीछे नहीं रहा। सब कुछ बहुत ही खुला है और संस्कृतियाँ आपस में घुल मिल गयी हैं। यहां तक कि इन्हें मिश्रित संस्कृतियों का देश भी कहा जाता है। लोगों एक दूसरे के बारे में काफी जानकारी रखते हैं। इन वैश्विक घटनाओं के बारे में कोई भी तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता। भाषा भी एक बहुत बड़ा कारक है, क्योंकि ये सबसे अहम हक़ीक़त है। भाषा की वजह से ही लोग दूसरी संस्कृतियों को समझ रहे हैं, और उन्हें अपना रहे हैं। लोग हर भाषा को जानते हैं यहां तक कि दूसरे देशों की भाषाओं को भी जानते हैं, इसलिए इस हक़ीकत की वजह से लोग एक दूसरे के करीब पहुँच रहे हैं, और लोग दूसरों की संस्कृतियों का पर्याप्त ज्ञान रखते हैं।
मलेशिया में 14 अक्टूबर, 2013 को एक अदालत ने फैसला दिया है कि ईसाई ''अल्लाह'' शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल पूरी तरह से मुसलमान ही कर सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद अपांडी ने अपने फैसले में कहा ''अल्लाह'' शब्द ईसाई धर्म का अभिन्न अंग नहीं रहा है। ईसाई अखबार के संपादक फादर लॉरेंस एंड्रयू ने कहा कि ये अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। क्योंकि ईसाई मलेशिया के एक देश बनने से पहले से ही अल्लाह शब्द का इस्तेमाल करते रहे हैं। दूसरी तरफ 100 से अधिक मुसलमान बैनर और प्लाकॉर्ड आदि के साथ अपनी अपील के पक्ष में वहाँ मौजूद थे। इनकी तख्तियों पर लिखा था कि अल्लाह सिर्फ इस्लाम के लिए आरक्षित है।
इस फैसले के बाद पूरी दुनिया में बहुत सारे लोग दुनिया की एकता के बारे में सोच रहे हैं और ये सोच रहे हैं कि इस फैसले का दुनिया पर क्या असर होगा। क्या ये फैसला दूसरे धर्मों के मानने वाले लोगों के लिए सही है? ऐसा लगता है कि दुनिया ने इस फैसले को पसंद नहीं किया क्योंकि दुनिया भर में लोग हर एक धर्म के प्रति बहुत दिलचस्पी रखते हैं। उन्हें इस फैसले में कोई दलील नज़र नहीं आती।
इसलिए कि अल्लाह सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं है बल्कि दुनिया के सभी प्राणियों के लिए है। अगर वो लोग दावा करते हैं कि अल्लाह शब्द केवल मुसलमानों के लिए ही आरक्षित है तो उस क्षेत्र के दूसरे लोगों का क्या जिनका सम्बंध वहीं से है और जिनकी भाषा भी वही है और जिनकी जड़ें भी उसी क्षेत्र में हैं? मलय भाषा उनकी भी मातृभाषा है।
अगर मुसलमान लोग ये दावा करते हैं कि अल्लाह शब्द केवल मुसलमानों के लिए ही है तो उन्हें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि ये शब्द पूरी दुनिया में फैल रहा है।
ये बात भी बहुत स्पष्ट है कि इस्लाम से पहले ही अल्लाह शब्द का अस्तित्व था और इस क्षेत्र के लोग खुदा के लिए अल्लाह शब्द का इस्तेमाल किया करते थे। दूसरी तरफ ईसाई लोग अंग्रेजी में 'अल्लाह' के लिए 'गॉड' शब्द का इस्तेमाल करते हैं। जिसका मतलब ब्रह्मांड का निर्माता है। ये हिब्रू भाषा के शब्द Elohim का अनुवाद है, Elohim का मतलब खुदा यानि ब्रह्मांड का निर्माता होता है। उसी तरह 'अल्लाह' शब्द का अर्थ है, निर्माता । अरबी भाषा का शब्द अल्लाह अंग्रेजी के शब्द 'गॉड' के समतुल्य है, इसलिए अल्लाह शब्द को बहुवचन या लैंगिक रूप में पेश नहीं किया जा सकता है।
अगर अदालत ईसाइयों को ''अल्लाह'' शब्द के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं देती है तो मुझे लगता है कि अदालत को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस फैसले की वजह से एक समस्या पैदा हो सकती है और वो ये है कि बातचीत के दौरान खुदा को बताने के लिए किस शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। हर संस्कृति में खुदा का नाम वहां की स्थानीय भाषा के मुताबिक होता है। ''गॉड'' या ''अल्लाह'' मानवों के इस ब्रह्मांड के उसी निर्माता का नाम है। और ईसाई और मुसलमान एक ही खुदा पर विश्वास रखते हैं। इसलिए इसमें कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए।
ईसाइयों को अल्लाह शब्द के इस्तेमाल से रोकने की बात उचित नहीं लगती है। ऐसी कहा जाता है कि अगर ईसाई अल्लाह शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो देश में मुश्किल हालात पैदा हो सकते हैं और कुछ दोस्त तो ये कहते हैं कि अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर ईसाई लोग मुसलमानों को ईसाई बनाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन मेरे प्यारों ये सच नहीं है, अब हालात बदल चुके हैं। अब लोग धर्मों के प्रदर्शन या उसके निजी आंतरिक नज़रिए के आधार पर धर्म से लगाव पैदा करते हैं। वो बीते समय की बात थी, अब लोग बिना किसी भेदभाव के इस दुनिया की सेवा करते हैं। और पूरी दुनिया ये जान गई है कि इंसान सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि अल्लाह शब्द अरबी भाषा का शब्द है, लेकिन इस क्षेत्र में केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि कई ईसाई और दूसरे धर्मों के लोग भी जन्म से और अपने जातीय आधार पर रहते आये हैं। मलेशियाई सरकार को हालात को देखना चाहिए, जैसा कि फादर लॉरेंस एंड्रयू का कहना है कि अगर इस शब्द का इस्तेमाल बाइबल में किया जा रहा है तो वो इस शब्द का इस्तेमाल अपने प्रकाशनों में क्यों नहीं कर सकते हैं।
स्रोत: http://www.pakistanchristianpost.com/viewarticles.php?editorialid=1812
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URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/illogical-claim-using-word-allah/d/34984
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