इफ्फत मिर्ज़ा
21 नवंबर 2017
वर्तमान में बदकिस्मती से इस्लाम को असहिष्णुता और हिंसा का दाई समझा जाता हैl इस अन्याय पूर्ण और भ्रष्ट आरोप से बड़ा झूट कुछ नहीं हो सकताl अरबी भाषा में शब्द इस्लाम का शाब्दिक अर्थ अमन और तस्लीम हैl केवल इसी एक बिंदु से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस्लाम एक शांतिपूर्ण जीवनशैली से अधिक किसी भी बात को महत्व नहीं देता है, एक ऐसा जीवन जिसमें इंसान खुदा का वफादार होl
मुसलामानों की पवित्र पुस्तक कुरआन मजीद मुसलामानों को यह शिक्षा देती है कि ‘मज़हब में कोई जबर नहीं है’ (2:257)-[1] इसलिए, इस्लाम के अंदर ऐसे किसी भी अत्याचार व हिंसा का बिलकुल ही कोई जवाज़ नहीं है जिसमें किसी को ऐसे तरीके पर जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर किया जा रहा हो जो उसकी मर्ज़ी के खिलाफ हैl इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो विकल्पों की आज़ादी पर विश्वास रखता है और इस अवधारणा को बढ़ावा भी देता हैl इसलिए, इस्लाम का बुनियादी उद्देश्य अपने अनुयायियों को शिक्षा देना, और दुसरे धर्म व अकीदे के अनुयायियों को सच्चाई, सहीह और गलत पर सूचित करना हैl इसके बाद सहीह रास्ता अपनाने का निर्णय उस व्यक्ति के उपर हैl यही इस्लामी शिक्षाओं का निचोड़ हैl इस्लाम के अंदर असहिष्णुता की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि यह उन आधारों को खोखले कर रही है जिन पर इस्लाम का महल कायम हैl
अफ़सोस की बात है कि आज पुरी दुनिया में अनगिनत आतंकवादी संगठन इस्लाम के नाम पर गंभीर अपराध का प्रतिबद्ध कर रही हैंl उनका यह काम इस्लाम की सुंदर और शांतिपूर्ण शिक्षाओं से बिलकुल उलट हैl मुसलामानों के लिए शिक्षा का सबसे बड़ा स्रोत हुजुर नबी अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के आमाल अर्थात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्न्तें हैं जो मुसलामानों को धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा देती हैंl पैगम्बर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का आचरण इंसानों के लिए मुहब्बत, अफ़ो दरगुज़र और राफ़त व रहमत पर आधारित थाl आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयायियों को मक्का वालों ने जो कष्ट और तकलीफें दीन वह अपमानजनक हिंसा से कम नहीं थीं, लेकिन इन सब के बावजूद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी उनकी बुराई नहीं चाहिl बल्कि, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके दिलों का परिवर्तन चाहाl
अपने जुमे के खुतबे में, 10 मार्च, 2006 को अहमदिया मुस्लिम समाज के रूहानी रहनुमा हज़रत खालिफतुल मसीह पांचवे ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के इस घटना को बयान किया जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नजरान से मुलाक़ात के लिए आए हुए ईसाईयों को अपनी मस्जिद के अंदर उनहें उनकी इबादत अदा करने की अनुमति दे दीl नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में गिरजा घरों और ईसाईयों के कयाम गाहों और इबादत गाहों की सुरक्षा मुसलामानों की जिम्मेदारी थीl [2] हालते जंग या अमन के दौर में किसी भी हालत में किसी भी धर्म की इबादतगाहों पर हमला करना निषिद्ध था, जैसा कि यह आज भी हैl
इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि केवल आतंकवादी गिरोह ही अपने अमानवीय अपराधों का औचित्य पेश करने के लिए इस्लाम का लबादा इस्तेमाल नहीं कर रहे हैंl बल्कि इस अपराध में भ्रष्ट राजनीतिज्ञ और सरकारें भी शामिल हैंl बहुत सारे ‘इस्लामी’ देशों की सरकारें बेशक सत्ता और वर्चस्व प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने जनता पर अत्याचार की दास्तानें रकम करने के लिए शरीअत की अपनी ताबीर तशरीह का इस्तेमाल कर रही हैंl आतंकवादी संगठनों और भ्रष्ट सरकारों ने इस्लाम और शरीअत जैसी इस्तेलाहों का गलत इस्तेमाल किया है, और उन्होंने अपने इस काम के माध्यम से पुरी दुनिया और वास्तव में सुंदर इस्लामी शिक्षाओं के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी हैl
और इन दोनों के बीच या खाई इस्लामोफोब से प्रभावित धार्मिक घृणा और दुश्मनी पर आधारित अपराधों में बढ़ावे का कारण बन रही है और दुनिया भर में आम तौर पर, राजनीतिक तनाव बढ़ रही है। आवश्यक है कि इस्लाम को एक ऐसे धर्म के तौर पर देखा जाए जो खुले दिल के साथ हर किसी को गले लगाता है, मतभेदों को सहन करता है और खुदा की बनाई हुई चीजों में बदलाव को रवा रखता हैl ‘नफरत से पाक सबके लिए मुहब्बत’ , का अहमदिया मुस्लिम बिरादरी का नारा हर शकल के अंदर इस्लामी श्क्षाओं में मौजूद है, चाहे वह कुरआन की शिक्षाएं हो, नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबारक सुन्नत हो और चाहे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक मामुलात हों, मुसलामानों के लिए आफाकी सिक्षा यही है कि मुहब्बत, रवादारी और रहमत व राफत इन्सानियत की रूह है और हर हाल में इन मूल्यों को मजबूती के साथ थामे रहना चहिएl
स्रोत:
huffingtonpost.co.uk/entry/islam-and-tolerance_uk_5a1320b8e4b05ec0ae84444a
URL for English article: http://www.newageislam.com/islam-and-tolerance/iffat-mirza/islam-tolerates-differences-and-allows-diversity-in-god’s-creations/d/113379
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/islam-tolerates-differences-allows-diversity/d/114927
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