ग़ुलाम नबी मदनी, न्यु एज इस्लाम
7 जुलाई, 2014
''ये कैसा इम्तेहान है? सवाल वो पूछे जो हमने कभी देखे, न पढ़े। ये सरासर गलत और बददयानती है? अगर यूँ ही हम जैसे गरीबों को लूटना है तो कम से कम शिक्षा जैसे पवित्र पेशे को तो बदनाम न करें। अगर फ़ैक्ट्रियाँ चलाने और व्यापार करने का ज़्यादा ही शौक है तो बेवजह सीधी सादी जनता के खून पसीने की कमाई पर तो डाका न डाला जाए। क्या हमारे देश में ''एजुकेशनल थिंक टैंक'' को लूट मार के लिए यही विभाग मिला था।'' मोहम्मद अली एम.फिल एडमिशन टेस्ट में सफल न होने पर रोते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा था।
मोहम्मद अली कराची की एक मशहूर युनिवर्सिटी के छात्र हैं। वो बहुत बुद्धिमान है। इसका सम्बंध एक गरीब परिवार से है। वो पांच भाई बहनों में सबसे बड़ा है। उसके पिता एक दुकान पर नौकरी करते हैं। मोहम्मद अली ने बहुत ही गरीबी की हालत में अपना सोलह वर्षीय शैक्षिक कैरियर पूरा करके एमए की डिग्री हासिल की। मास्टर्स के बाद वो और पढ़ाई करना चाहता था लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली और परीक्षा प्रणाली ने उसके पैर जकड़ दिए। वो इस तरह कि जब मोहम्मद अली ने एम. फिल में एडमिशन के लिए आवेदन करने का इरादा किया तो उसे विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से कहा गया कि पहले NTS (नेशनल टेस्टिंग सर्विस) इम्तेहान पास करके आओ।
मोहम्मद अली ने बड़ी मुश्किल से ये इम्तेहान पास किया। फिर जब वो कराची विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने गया तो उसे ये कह कर रुला दिया गया कि ''विश्वविद्यालय की पॉलिसी बदल गई है, नई नीति के अनुसार एम. फिल के हर नए उम्मीदवार को युनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा पास करनी होगी। इस इम्तेहान में 20 नंबर का एक अंग्रेजी का पेपर और 80 नंबर का चयनित विषय का पेपर होगा। कामयाबी के लिए हर पेपर में क्रमशः 8 और चालीस नंबर लाने होंगे।'' मोहम्मद अली ने कड़वा घूंट भर कर 2500 रुपए प्रवेश के मद में जमा करवा दिए। इम्तेहान के दिन जब मोहम्मद अली को अंग्रेजी का प्रश्नपत्र दिया गया तो उसे देखते ही मोहम्मद अली के होश उड़ गए। क्योंकि उसे बताया ये गया था कि बीस नंबर वाले प्रश्न पत्र में एफए स्तर के प्रश्न पूछे जाएंगे, लेकिन जो प्रश्न दिए गए वो एमए इंग्लिश स्तर से भी ऊपर के थे। नतीजतन मोहम्मद अली प्रवेश परीक्षा में फेल हो गया और गरीब माता पिता का सहारा बनने जैसे उसके सभी अरमान मिट्टी में मिल गए।
ध्यान दिया जाए तो मोहम्मद अली के इम्तेहान में फेल होने का कारण केवल अंग्रेज़ी में कमज़ोरी नहीं थी, बल्कि मूल कारण हमारे पूरी शिक्षा प्रणाली विशेषकर परीक्षा प्रणाली की खराब स्थिति थी। हमें ये मानना होगा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था छह दशक बीतने के बावजूद भी सही नहीं हो सकी, लेकिन आए दिन बिगड़ती ही जा रही है। इम्तेहान लेना शिक्षा प्रणाली का हिस्सा होता है। इसके माध्यम से छात्रों की क्षमता का पता लगाया जाता है। लेकिन अफसोस की बात ये है कि हमारे यहां इम्तेहान के नाम पर इम्तेहान नहीं लिया जाता, बल्कि इम्तेहान के नाम पर छात्रों को बेवकूफ बना कर लौटाया जाता है। कहीं NTS के नाम पर तो कहीं विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा के नाम पर। हमारी परीक्षा प्रणाली की दोषपूर्ण स्थिति का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि एक छात्र अगर इस्लिमयात में पीएचडी या एम.फिल करना चाहता है, तो उसे सफलता के लिए अनिवार्य रूप से इंग्लिश विषय को पास करना होगा, जबकि इस छात्र को एम.फिल से लेकर पीएचडी तक कोई थीसिस (thesis) अंग्रेजी में लिखना होता है, न कोई रिसर्च वर्क इंग्लिश में करना होता है और न ही इस अवधि में उसे कोई इंग्लिश का विषय पढ़ना होता है। इसी तरह अगर कोई छात्र एमए, एम.फिल या पीएचडी के बाद कहीं नौकरी करना चाहे तो आजकल हमारे यहां लगभग हर सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों में नीति बनाई गई है कि वो NTS के तहत संस्थान का इम्तेहान पास करे।
NTS (नेशनल टेस्टिंग सर्विस) एक गैर सरकारी संस्था है। जिसका काम देश में केवल इम्तेहान लेना है। आमतौर पर नौकरी देने वाली संस्थाएं और युनिवर्सिटियों द्वारा ये कहा जाता है कि योग्यता, पारदर्शिता और टैलेन्टेड लोगों को आगे लाने की खातिर हम NTS के तहत इम्तेहान दिलवाते हैं। लेकिन सच्चाई इन दावों के विपरीत है। कई बार ऐसा हुआ कि NTS पास करने वाले उम्मीदवार को नौकरी मिल सकी, न दाखिला मिला, इसका एक मिसाल मोहम्मद अली है जिसे NTS पास करने के बावजूद प्रवेश नहीं मिल सका। इसी तरह कई बार अयोग्य उम्मीदवार केवल तुक्के लगाकर NTS क्लियर करके आगे पहुंच जाते हैं। फिर NTS की परीक्षा प्रणाली में कई खामियां हैं। एक तो इस वजह से कि इसके इम्तेहान के पर्चे में आम तौर पर अंग्रेजी, गणित और विश्लेषणात्मक क्षमता को जाँचने के लिए प्रश्न दिए जाते हैं। ये सब प्रश्न मानक अंग्रेजी में होते हैं। अब अगर एक छात्र जो सोलह साल तक आर्ट्स के विषय पढ़े हों, जो इंग्लिश को सिर्फ एक हद तक पढ़ा हो भला कैसे अंग्रेजी के मानक सवाल हल कर सकता है। यही नहीं कई अंग्रेजी माध्यम स्कूल्स में पढ़ने वाले छात्र भी इसी कारण इम्तेहान में फेल हो जाते हैं। दूसरा कारण ये है कि अक्सर इसमें विषय से सम्बंधित प्रश्न बहुत कम पूछे जाते हैं। NTS परीक्षा प्रणाली में पाई जाने वाली इस जैसी कई खामियां हमारे शिक्षा व्यवस्था को कमज़ोर करने में मुख्य भूमिका अदा कर रही हैं।
परीक्षा प्रणाली शिक्षा व्यवस्था में रीढ़ की हड्डी के समान होता है और शिक्षा प्रणाली किसी भी देश में शिक्षा की दर को बेहतर बनाने और खराब करने में मुख्य भूमिका अदा करती है। इसलिए शिक्षा प्रणाली के एक क्षेत्र की बेहतरी और खराबी के प्रभाव जहां शिक्षा प्रणाली पर पड़ते हैं, वहीं पूरे देश पर भी पड़ते हैं। हमारे यहाँ शिक्षा प्रणाली की खराब स्थिति की जिम्मेदार एक तरफ जहाँ उपरोक्त शैली की परीक्षा प्रणाली है तो दूसरी ओर शिक्षा के नाम पर जगह जगह खुलने वाले ऐसे ट्युशन केंद्र, अकेडमीज़ और स्कूल्स हैं, जहां भारी फीसों की मद में शिक्षा से अधिक माल कमाया जाता है। छात्रों की मानसिक, वैचारिक और नैतिक प्रशिक्षण के बजाय संगीत, डांस, अनावश्यक वाद विवाद और लड़कियों के साथ फ्रेंडशिप के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
शिक्षा व्यवस्था की इस खराबी के कारण देश में बेरोज़गारी, काम चोरी, रिश्वतखोरी, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, लूट, खून खराबा और गरीबी जैसे सैकड़ों प्रकार की समस्याओं जन्म ले रही हैं। सबसे बढ़कर मोहम्मद अली जैसे प्रतिभाशाली युवा बर्बाद हो रहे हैं। अगर इन टैलेन्टेड युवाओं की उचित देखभाल न की गई और उन्हें यूं ही आए दिन बदलती शैक्षणिक नीतियों और NTS जैसे अनुचित इम्तेहान की भेंट चढ़ाया जाता रहा तो देश बहुत जल्दी विनाश के कगार पर पहुंच जाएगा। इस तबाही से बचने के लिए तत्काल शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना अपरिहार्य है।
इस सम्बंध में उचित और कारगर स्थिति सरकारी स्तर पर शिक्षाविदों की एक स्वतंत्र कमेटी बनाना है, जो कम से कम तीन महीने में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले सभी शिक्षण संस्थानों की जांच करके रिपोर्ट तैयार करे। फिर सरकार इस रिपोर्ट की रौशनी में शिक्षा प्रणाली विशेषकर परीक्षा प्रणाली में सुधार करे। हालांकि देश में पहले से ही कई ऐसे संस्थान हैं जो वार्षिक रूप से शैक्षिक संस्थानों के प्रदर्शन की समीक्षा करते हैं, लेकिन ये संगठन आम तौर पर भ्रष्टाचार और दगाबाज़ी से काम लेते हैं। इसलिए सरकारी स्तर पर ईमानदार और योग्य लोगों पर आधारित इस तरह की स्वतंत्र कमेटी न केवल शिक्षा व्यवस्था में सुधार और तब्दीली की भूमिका साबित होगी, बल्कि मोहम्मद अली जैसे प्रतिभाशाली गरीब लोगों की ज्ञान की प्यास को दूर करने के लिए भी दूरगामी प्रभाव डालेगी।
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