पहली किस्त
गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यु एज इस्लाम
इमाम ज़ैनुल आबेदीन रदिअल्लाहु अन्हु की सहनशक्ति
सय्यदना इमाम ज़ैनुल आबेदीन रदिअल्लाहु अन्हु एक मस्जिद से बाहर निकले तो एक व्यक्ति ने आप को गाली दीl यह सुन कर आपके जां निसारों और गुलामों ने इस व्यक्ति को घेर लिया ताकि उसकी सरज़निश करेंl आपने मना फरमाया और कहा: उसे मेरे पास ले आओl जब वह व्यक्ति हाज़िर हुआ आपने फरमाया: तूने मुझे जितने दोष सुनाए हैं वह उन गलतियों की तुलना में बहुत कम हैं जो मेरे अल्लाह ने छिपाए हैंl अगर तू चाहे तो मैं तुम्हें वह भी बता दूँ ताकि तू मेरी निंदा और अधिक कर सकेl वह व्यक्ति कहने लगा: गवाही देता हूँ आप बेशक रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की औलाद हैंl (तफसीर रुहुल बयान: ज़ेरे सुरह हज 22, आयत 87)
किसी ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन रदिअल्लाहु अन्हु पर झुटा इल्जाज़ लगायाl आपने फरमाया जैसे तू कहता है अगर मैं वैसा हूँ तो अल्लाह पाक से तौबा करता हूँl और अगर मैं वैसा नहीं हूँ तो मैं तेरे लिए इस्तिग्फार करता हूँl वह व्यक्ति नादिम हुआ और उठ कर आपके सर मुबारक को चूमा और कहा: जैसे मैंने कहा आप वैसे नहीं, मेरे लिए इस्तिग्फार फरमाएंl
हज़रत अबू ज़र गफ्फारी रदिअल्लाहु अन्हु का गुस्से की हालत में एक गुलाम आज़ाद कर देना
रिवायत है कि हज़रत अबू ज़र गफ्फारी रदिअल्लाहु अन्हु के गुलाम ने (जो उनकी बकरियां चराता था) उनकी एक बकरी की टांग तोड़ दी, जब बकरियां अबू ज़र गफ्फारी रदिअल्लाहु अन्हु के पास आईं तो उन्होंने पूछा कि इस बकरी की टांग किसने तोड़ दी गुलाम ने कहा, मैंने तोड़ी है! उसने फिर कहा मैनें इसलिए ऐसा किया है ताकि आपको मेरे इस काम से गुस्सा आए और आप मुझे गुस्से में मारें और गुनहगार होंl हज़रत अबू ज़र गफ्फारी रदिअल्लाहु अन्हु ने फरमाया, बेशक जब तू मुझे गुस्से पर उभारेगा तो मैं अवश्य गुस्सा करूंगा! जा तू आज़ाद हैl (औफुल मआरिफ, शैख़ सहाबुद्दीन सोहर्वर्दी, पृष्ठ 444)
मौलाए रूम की मसनवी में हुस्ने जन (यानी दुसरे लोगों के बारे में अच्छी सोच रखने) की शिक्षा
हज़रत मौला जलालुद्दीन रूमी रहमतुल्लाही अलैहि अपनी मसनवी शरीफ में फरमाते हैं:
ظن نیکو بر برا خوان صفا
گرچہ آید ظاہر از ایشاں جفا
अनुवाद: नेक गुमान रखो, अल्लाह के ख़ास बन्दों के साथ हालांकि ज़ाहिरी तौर पर उनकी कोई बात तुम्हारे समझ में जफा मालूम हो क्योंकि हुस्ने जन नुसुस से मामूर बिही है और बिना दलील लोकप्रिय प्रक्रिया है और बदगुमानी पर दलील का मवाखज़ह और मांग होगा, इसलिए क्यों महशर में ज़हमते दलाइल का सामना करो और शरई दलील पेश ना कर सकने पर अज़ाब में मुबतला होl
مشفقے گر کرد جو راز امتحان
عقل باید کو نباشد بد گماں
अगर कोई मुश्फिक मुरब्बी अखलास व मुहब्बत के इम्तेहान के लिए कुछ सख्ती करे तो अकल वाले को चाहिए कि बदगुमान ना हो कि बड़े बुरे आचरण के या उग्र हैंl
हज़रत ख्वाजा साहब रहमतुल्लाही अलैहि का शेर है-
मैं हूँ नाज़ुक तबा और तुन्द खु,,,,खैर यह गुज़री मुहब्बत हो गई
लाख झिड़को अब कहाँ फिरता है दिल,,,,,हो गई अब तो मुहब्बत हो गई
ہیں زبد ناماں نباید ننگ واشت ،،،،،،،گوشت بر اسرار شاں باید گماشت
अनुवाद: हाँ खबरदार गुमनामों को तुच्छ मत समझना कि इनहीं बे नाम व निशाँ बन्दों में रहस्य वाले भी हैं, बस उनके रहस्य से लाभ उठाने में शर्म ना करो और उनकी बातों को गौर से सुनों, शर्त यह है कि यह व्यक्ति किसी बुज़ुर्ग सुन्नत पर अमल करने वाले का प्रशिक्षित होl
मौलाए रूम की मसनवी में किसी काफिर को ज़िल्लत व हिकारत से ना देखने की शिक्षा
हज़रत मौलाए रूम जलालुद्दीन रूमी रहमतुल्लाही अलैहि फरमाते हैं:
ہیچ کافر رانجوری منگرید ،،،،،،،، کہ مسلماں رفتنش باشد امید
अनुवाद व व्याख्या:
किसी काफिर को ज़िल्लत और हिकारत की निगाह से मत देख कि संभव है कि अंत उसका इस्लाम और ईमान पर मुकद्दर हो चुका होl अलबत्ता दिल में अल्लाह के लिए दुश्मनी मामूर बिही हैl मुहब्बत अल्लाह के लिए और दुश्मनी अल्लाह के लिएl इसलिए कुफ्र के कामों से नफरत होना तो जरुरी है लेकिन ज़ात को तुच्छ ना समझा जावे जिस तरह कोई हसीन चेहरे पर कालिख मल ले तो कालिख को काला कहेंगे हसीन को ना कहेंगे क्योंकि वह हसीन अगर कालिख धो डाले चेहरे फिर चाँद की तरह रौशन हो जाएगाl इसी तरह हर काफिर व फासिक के लिए संभावना मौजूद है कि वह कुफ्र व फिस्क की स्याही को तौबा के पानी से धो कर अल्लाह पाक का महबूब व मकबूल बन जावेl (मआरिफ मसनवी मौलाना रूमी, मा शरह मसनवी शरीफ, क़ुतुब खाना मजहरी, 476 से 478)
हुजुर दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाही अलैहि और रूहानी रोगों का इलाज
हुजुर दाता गंज बख्श अली हजवेरी ने अपनी किताब कश्फुल महजूब में इरशाद फरमाया:
कोई व्यक्ति जब पता कर ले कि उसमें कौन सी रोग पाई जाती है तो फिर उसकी तौबा का तरीका अलग होता हैl अगर किसी के अंदर ऐसे गुनाह और रोग पाए जाते हैं जो नज़र आते हैं, जिना, शराब पीना, चोरी और ऐसे सभी गुनाह जो अपनी दिखने वाली हालत रखते हैं, उनकी तौबा और उन गुनाहों से निजात अल्लाह पाक की बारगाह में रातों का रोना,रात का कयाम, लम्बे सजदा और तौबा में हैl अर्थात दिखाई देने वाले गुनाहों का इलाज नज़र आने वाले कामों से किया जाएl
अगर अपने अंदर नज़र ना आने वाले गुनाहों को पाओ जैसे लालच, मक्र, फरेब, झूट, घमंड, रऊनत, घृणा यहाँ तक कि वह सारे रोग जो दिल से संबंधित हैं और दिखाई नहीं देते, अपनी दिखने वाली शकल भी नहीं रखतीं तो उनका इलाज ऐसे कामों से किया जाए जो देखने वाले को इबादत नज़र ना आएंl अर्थात अब उन रोगों के इलाज के लिए औलिया अल्लाह की संगत इख्तियार किया करो और खुदा की मखलूक की सेवा करोl अर्थात दिखाई ना देने वाले गुनाह सेवा व संगत से दूर होंगेl
अगर हसद, गुस्सा, कीना, बुग्ज़ और इस प्रकार के दुसरे रोग मौजूद हों तो लाख सजदे भी कर लिए जाएं मगर इन रोगों का इलाज नसीब नहीं होगाl इसलिए कि इन रोगों का इलाज ज़ाहिरी इबादत में है ही नहींl इसलिए जब तक अल्लाहु की मखलूक की सेवा पर खड़ा ना हुआ जाए और शारीरिक पीड़ा और परेशानी बर्दाश्त ना की जाएं, उस समय तक इन रोगों से छुटकारा नहीं मिलेगा और नहीं ही तौबा का सफ़र तै होगाl
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