क्या दुनिया में रूस का लक्ष्य अमेरिकी विश्व व्यवस्था को बदलना
है?
प्रमुख बिंदु :
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने संयुक्त राज्य अमेरिका
की महाशक्ति के रूप में धारणा को बदल दिया हो।
रूस ने यूक्रेन को एक पड़ोसी के रूप में स्वीकार कर लिया है
लेकिन नाटो को बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्यों?
क्या रूस चीन के समर्थन से दुनिया को यह संदेश देना चाहता है
कि नाटो और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए दुनिया पर अपना वर्चस्व खत्म करने का समय
आ गया है?
...
गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
2 मार्च 2022
कुछ हफ़्तों पहले तक जब कभी नाटो और अमेरिका का नाम लिया जाता था तो देशों और लोगों के सामने सुपर पावर का तसव्वुर सामने आता था, मगर रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग ने मानों कि इस तस्वीर को बिलकुल बदल दिया हो। जिस चैनल को देखिये, जिस आदमी को सुनिए हर कोई यही कहता नज़र आ रहा है कि रूस के सामने अमेरिका बेबस और लाचार हो चुका है। देखिये जंग अच्छी चीज नहीं है, पहले जंगें तलवारों और घोड़ों पर लड़ी जाती थीं जिनमें आम शहरियों की जान का खतरा कम होता था लेकिन आज की जंगें बम और मीज़ाइल जैसी खतरनाक हथियारों से लड़ी जाती हैं जिनसे आम शहरियों का नुक्सान अधिक होता है। अगर बमबारी दो देशों की तरफ से हो तो दोनों देशों के शहरी मारे जाते हैं। जंग की पालिसी और जंग की शुरुआत करने वाले कुछ सरकार के लोग होते हैं लेकिन जंग का भुगतान अवाम को भुगतना पड़ता है।
युद्ध लड़ने के उद्देश्य व गर्ज़ भिन्न होते हैं। किसी के युद्ध लड़ने का उद्देश्य ज़ालिम ताकतों के खिलाफ ज़ुल्म का खात्मा और न्याय व इंसाफ का कयाम होता है। किसी के जंग लड़ने का मकसद जान व माल और इज्ज़त व आबरू की हिफाज़त के साथ साथ दीनी और मज़हबी आज़ादी का इख्तियार हासिल करना होता है। किसी के जंग लड़ने का मकसद दुनिया में अपने सुपर पावर होने का सुबूत पेश करना होता है। किसी के जंग लड़ने का मकसद पहले से मौजूद किसी सुपर पावर की पावर को शिकस्त दे कर अपने सुपर पावर होने की दलील पेश करनी होती है ताकि दुनिया के लोग यह विश्वास कर लें अब पुराने सुपर पावर की जगह नया सुपर पावर आ चुका है। जब कोई नई सुपर पावर दुनिया के सामने उभर कर सामने आती है तो दुनिया भर में शक्ति की भक्ति वाले बयानिये पर अम्ल शुरू हो जाता है। अर्थव्यवस्था हो या व्यापार, लें दें के मामले हों, नियम व शर्तों की बात हो, हर मसले में उस नए सुपर पावर की सुनी और मानी जाती है। एक वाक्य में कहें तो इस नए सुपर पावर को दुनिया भर के देशों पर एक तरह का वर्चस्व हासिल हो जाता है।
रूस और यूक्रेन के बीच जारी मौजूदा जंग का जायज़ा लेने से मालुम होता है कि इस जंग का मकसद असल में सुपर पावर होने का टैग हासिल करना है। रूस ने यूक्रेन पर हमला कर के नाटो और अमेरिका को यह सन्देश दिया कि बद अब बहुत हो चुका है, अब हम तुम्हारी पावर को मज़ीद बढ़ने नहीं देंगे, क्योंकि तुम्हारी ताकत बढ़ जाने से हमारी ताकत और हमारा वजूद खतरे में पड़ जाएगा। जब यूक्रेन रूस से अलग हुआ तो रूस ने यूक्रेन को एक पड़ोसी देश की हैसियत से कुबूल कर लिया लेकिन जब यूक्रेन ने नाटो से मेल जोल बढाने की कोशिश की तो रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। मतलब साफ़ है कि रूस यूक्रेन को एक पड़ोसी देश की हैसियत से तो कुबूल कर सकता है लेकिन नाटो को अपने पड़ोसी की हैसियत से कुबूल नहीं कर सकता।
दूसरी तरफ नाटो का यूक्रेन को अपने साथ मिलाने का मकसद भी बिलकुल ज़ाहिर है कि नाटो और उसका सरदार ए आली अमेरिका की देरीना तमन्ना है कि यूक्रेन को अपने साथ मिला कर यूक्रेन और रूस के बार्डर पर अपनी फ़ौज को तैनात कर के रूस को अपने कंट्रोल में लाए, लेकिन रूस इस बात को किसी सूरत पसंद नहीं करता क्योंकि नाटो और अमेरिका की सरदारी और उसकी ताकत के सामने अपना सर झुकाने को तैयार नहीं। पिछली कुछ दहाइयों पर नज़र करें तो आपको मालुम होगा कि अमेरिका ने कमज़ोर देशों के अमन व शान्ति और आम शहरियों को बड़ी संख्या में मौत के घाट उतार कर दुनिया भर में अपने सुपर पावर होने का सुबूत पेश किया। कमजोरों पर हमला करने में उसने ज़रा भी देर नहीं लगाई। हर कोई यह बात कहता है कि तालिबान को अमेरिका ने रूस के खिलाफ पैदा किया और फिर जब बाद में उसी तालिबान और अमेरिका में दुश्मनी पैदा हुई और फिर यह एक लम्बी मुद्दत तक कायम रही।
यूक्रेन के सामने शक्ति की भक्ति पर अमल करने के लिए दो बड़ी ताकतें थीं। एक तरफ था उसका पड़ोसी देश रूस जो किसी भी सूरत में यूक्रेन के नाटो से मिल जाने को बर्दाश्त नहीं कर सकता था, और दूसरी तरफ था नाटो और अमेरिका। यूक्रेन को लगा कि नाटो और अमेरिका का साथ देना उसके लिए बेहतर विकल्प होगा और वह यकीन कर बैठा था कि अगर नाटो और अमेरिका से मेल जोल बढ़ाने की सूरत में रूस ने अगर उस पर हमला किया था उसका मुंह बोला दोस्त अमेरिका और नाटो अपनी सुपर पावर मीज़ाइल और हथियार के साथ हाज़िरे खिदमत हो जाएगा। लेकिन वह भूल गया था कि जब रूस उस पर हमला करेगा तो अमेरिका और नाटो टीवी और न्यूज़ पर केवल तमाशाई बने रहेंगे।
रूस का यूक्रेन पर हमला करना, चीन का रूस के सपोर्ट में आना और अमेरिका और नाटो की धमकियों का रूस पर कोई असर न होना, यहसब इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि रूस यूक्रेन पर हमला कर के न केवल यह यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनने से रोकना चाहता है बल्कि चीन के समर्थन के साथ एक खुला संदेशभी देना चाहता है कि अब नाटो और अमेरिका की दुनिया पर सरदारी के खात्मे का वक्त आ चुका है। कुछ देश जिनमें रूस और चीन सबसे उपर हैं वह दुनिया में अमेरिकी वर्ल्ड आर्डर को बदलना चाहते हैं और उन सबके बीच रूस की नज़र में यूक्रेन की अहमियत बहुत अधिक है। नाटो और अमेरिका को यह बात अच्छी तरह मालूम हो चुकी है कि रूस और चीन कभी न कभी उसके मुकाबले में आएँगे और इसी लिए यूक्रेन उनके लिए भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यूक्रेन बहुत ज़रखेज़ देश है और रूस पर नकेल कसने के लिए यूक्रेन ही बेहतर जगह है लेकिन मौजूदा स्थिति में नाटो और अमेरिका असफलता की राह पर जा रहा है।
कुछ दशक पहले अमेरिका ने रूस के खिलाफ मुस्लिम देशों को इस्तेमाल किया था और जब अमेरिका की बालादस्ती कायम हुई तो मुस्लिम देशों पर ही अपनी ताकत आजमाने में कोई कसार न छोड़ा। विश्लेषकों का कहना है कि कहीं मुसलमान फिर से अमेरिका और नाटो के हाथों का खिलौना न बन जाएं और फिर वही गलती दोहराएँ जो मुसलमानों ने माज़ी में की हैं। इसलिए रूस और यूक्रेन की जंग में दुनिया के बाकी देशों को चाहिए कि किसी एक का साथ देने की बजाए वह अमन व शांति की राह निकालने की तजवीज़ पेश करते रहें वरना बेहतर है वह खामोश रहें।
यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग की वजह से दुनिया में आर्थिक व व्यापारिक और आयात निर्यात के मुश्किल पैदा हो सकते हैं। अगर यह जंग तूल पकड़ गई या दुसरे देशों को भी इसमें शामिल होना पड़ा, तो दुनिया में तबाही और तवानाई का संकट पैदा हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि दुनिया भर के देश किसी एक का साथ दे कर जंग को मज़ीद भड़काने की बजाए, वह दोनों से जंग को रोकने की तजवीज़ पेश करते रहें, ताकि आम नागरिकों, बच्चों, बूढ़ों, औरतों और कमजोरों की जान, माल और इज्जत व आबरू की हिफाजत हो सके।
English Article: Is Russia's Attack On Ukraine A War against the US
and NATO?
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