गुलाम गौस सिद्दीकी
क्या वास्तव में आईएसआईएस, तालिबान और अलकायदा के अंदर खवारिज के गुण हैं?
खवारिज इस्लामी समुदाय पर एक खतरनाक और फितना फ़ैलाने वाला समूह है, यही कारण है कि पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की अहादीस के अंदर स्पष्ट रूप से उनकी पूरी निशानियों का वर्णन किया गया है, ताकि यह लोगों में अपने मामले पर भ्रम न कर सकें। बहुत सारे अहादीस, सहाबा रदी अल्लाहु अन्हुम के बातों और असलाफ (पुर्वजों) की पुस्तकों में खवारिज की उक्त गुणों का अध्ययन करने के बाद यह बात साबित होती है कि आईएसआईएस, तालिबान, अलकायदा और उनके जैसे अन्य आतंकवादी संगठन खवारिज हैं जो अपने बुरे कार्यों और गलत अकाइद के कारण दीन से बाहर हैं। यहां पाठकों के लिए खवारिज की 43 विशेष लक्षण संदर्भ के साथ नकल कर रहा हूँ ताकि वे आतंकवादी समूहों को खवारिज करार देने में किसी तरह का कोई संदेह महसूस न करें।
1- हद्दासुल अस्नान / हुदसाउल अस्नान / अह्दासुल अस्नान यानी ''वह (ख्वारिज) किशोर होंगे।''
हज़रत अली रदिअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंनें अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमाते थे कि आखिर ज़माने में कुछ ऐसे लोग पैदा होंगे जो कम आयु के, कम बुद्धि और मूर्ख होंगे। बातें वे कहेंगे जो (जाहिर में) दुनिया की अच्छी बात होगी। लेकिन इस्लाम से इस तरह साफ निकल चुके होंगे जैसे तीर पशु के पार निकल जाता है। उनका ईमान उनके गले से नीचे नहीं उतरेगा, तुम उन्हें जहां भी पाओ क़त्ल कर दो, क्योंकि उनकी हत्या से कातिल को आखिरत (न्याय) के दिन सवाब (पुरस्कार) प्राप्त होगा। (सहीह बुखारी: किताबुल मनाकीब, अध्याय: अलामतुन नुबुववत फिल इस्लाम, हदीस नo: 118, किताब- इस्तेताबतुल मुर्तददीन वल मुआनेदीन व कितालुहुम, बाब- क्त्लुल खवारिज वल मुल्हेदीन...हदीस नo:82, सहीह मुस्लिम: किताबुज्जकात, बाब-तहरीज़ अला क़त्लील ख्वारिज, हदीस नo: 199, जामेअ तिरमिज़ी: किताबुल फितन, बाब- फी सिफतुल मारेका, हदीस नo: 31, सुनन अबी दाउद: किताबुस्सुन्नत, बाब- फी कितालील ख्वारिज, हदीस नo 172, सुनन इब्ने माजा: किताबुल मुक़द्देमह, हदीस नo: 168)
कुछ रिवायतों में “हुदसाउल अस्नान” और कुछ में “अह्दासुल अस्नान” और कुछ में “हद्दासुल अस्नान” के शब्दों का उल्लेख हैं। इन सब का एक ही अर्थ “कमसिन” या “किशोर” है। खवारिज की इस निशानी की दृष्टि से हम देखते हैं कि आइएस की भारी बहुमत उन कमसिन लोगों की है जिन पर बेक़रारी, जल्दबाजी और जोश हावी है।
हाफिज शहाबुद्दीन अहमद अली बिन हजर असकलानी शाफ़ई सहीह बुखारी की हदीस नo 163 जिसमें “हुदसाउल अस्नान” और “सुफहाउल अहलाम” के शब्द सूचीबद्ध हैं, इस हदीस की शरह में लिखते हैं: ''हज़रत अली रदि अल्लाहु अन्हु की यह हदीस खवारिज से संबंधित हैl''
अल्लामा गुलाम रसूल सईदी अलैहिर रहमा इस हदीस के बारे में लिखते हैं: ''मैं कहता हूँ: इस हदीस में कम उम्र और कम बुद्धी वाले लोगों का अर्थ तालिबान हैं जो इस युग में प्रकट हुए, यह पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी पुलिस पर हमला करते हैं और जो सैन्य या पुलिस को गिरफ्तार कर लेते हैं तो उसका गला दबा कर बेरहमी से काटते हैं ..... ये लोग मुसलमानों पर काफिरों की आयत को चिस्पा करते हैं, स्कूलों, थानों, अहले सुन्नत की मस्जिदों, मदरसों, औलिया ए किराम के मजारों और राष्ट्रीय संस्थाओं को नष्ट करते हैं, और आत्मघाती विस्फोट में अंधाधुंध मुसलमानों (मुफ्ती सरफराज नईम शहीद और 11 अप्रैल 2006 को नश्तर पार्क में होने वाले ईद मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कराची में आयोजित जनसभा के प्रतिभागियों) को शहीद करते हैं, ये लोग मुसलमानों को तबाह करने पर आमादा हैं। अल्लाह हमें और सभी मुसलमानों को उनसे अपनी शरण में रखे। आमीन'' (नेअमतुल बारी फी शरहे सहीह बुखारी: जिल्द 9, पेज 313)
2- सुफहाउल अहलाम : अर्थात “वह मुर्ख होंगे” (उनके मस्तिष्क में फितूर होगा)l
आईएसआईएस और इस जैसे दुसरे संगठनों के अंदर ये विशेषता भी मौजूद है क्यों कि वह सूझ बुझ से भी खाली हैं, संकीर्ण हैं और अंतर्दृष्टि से वंचित हैं। इन संगठनों की मूर्खता का सबसे बड़ा तर्क यह है कि ये लोग मुसलमानों को बेरहमी से हत्या करके स्वर्ग में प्रवेश और सत्तर हूरों से मुलाकात करने की बातें करते हैं। यह आधुनिक खवारिज इस बात से भी खाली हैं कि शांति के अनुबंध के तहत रहने वाले गैर मुस्लिमों के साथ अमन व शान्ति का जो अहद किया गया है उसकी वफ़ा करना इस्लाम की अनिवार्य शिक्षा है। केवल इतना ही नहीं बल्कि अनुबंध के दौरान किसी गैर मुस्लिम की हत्या करना गैर शरई और गैर इस्लामी है बल्कि उनकी मूर्खता इस हद तक गुजर गई कि उनके इस तरह के गैर शरई कार्यों के बदले में न जाने कितने निर्दोष मुसलमान आतंकवाद के आरोप में दंड भोगनें पर मजबूर हैं, एक खून के बदले न जाने कितने मुसलमानों के खून बहा दिए गए। (सहीह बुखारी: किताबुल मनाकिब, बाब- अलामतुन्नबुवत फिल इस्लाम, हदीस नo: 118, किताब इस्तेताबतुल मुर्तददीन वल मुआनेदीन व किताली हीम, बाब- क्त्लुल खवारिज वाल मुल्हेदीन बाद इकामतुल हुज्जह अलैहिम, हदीस नo: 12, किताब फ़ज़ाईलुल कुरआन, बाब- हदीस नo: 82, सहीह मुस्लिम: किताबुज्जकात, बाबुत तहरीज़ अला क़तलील ख्वारिज, हदीस नo: 199, जामेअ तिरमिज़ी: किताबुल फितन, बाब- फि सिफतुल मारेका, हदीस नo: 31, सुनन अबी दाउद: किताबुस्सुन्नह, बाब- फि केतालुल ख्वारिज, हदीस नo 172, सुनन इब्ने माजा: किताबुल मुक़द्दमा, हदीस न०: 168)
3- मुशम्मेरुल अज़ार : ''वह (ख्वारिज) बहुत उंचा तह बंद या पायजामा बांधने वाले होंगे।''
(देखिये: सहीह बुखारी: किताबुल मगाज़ी, हदीस नo: 378, सहीह मुस्लिम: किताबुज्जकात, बाब- ज़िक्रुल खवारिज व सिफातेहीम, हदीस नo: 189)
४. ख़वारिज की चौथी निशानी यह है की वे मशरिक/पूरब की जानिब से निकलेंगे l
”(देखिये: सहीह बुखारी: किताबुत्तौहिद, बाब- कीराअतुल फाजिर ...हदीस नo 187)
वर्तमान युग में आईएसआईएस की उपस्थिति और उनका मध्य पूर्व में उभरना, फिर मुसलमानों के साथ जूझना और एक ऐसे क्षेत्र में जोर पकड़ना जहां पहाड़ी क्षेत्र मौजूद हैं और जो लेबनान से करीब है, पैगम्बार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की भविष्यवाणी में शामिल नजर आता है। हज़रत सहल बिन हनीफ़ रदि अल्लाहु अन्हु की रिवायत में है कि उनसे पूछा गया: क्या पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खवारिज के बारे में कोई बात फरमाई है? तो आपने एक हाथ से इराक की ओर और दूसरे हाथ से शाम (जिसे आज हम सीरिया के नाम से जानते है) की ओर इशारा किया और फिर इराक की ओर इशारा करते हुए फरमाया कि यहां से ऐसे लोग निकलेंगे, जो अपने सर मुंडाएंगे, उनकी भाषाओं में कुरआन होगा, लेकिन वह इनके गले से नीचे नहीं जाएगा (यानी कुरान की तालीमात को समझ नहीं पाएंगे), वे इस्लाम से ऐसे निकले हुए होंगे जैसे तीर अपने धनुष से निकल जाता है,
(देखिये हदीस की किताब: बुखारी शरीफ: किताब इस्तेताबतुल मुर्तदीन....हदीस नo: 6535 –)
इस हदीस में इस बात का साफ़ इशारा मौजूद है कि ईराक और सीरिया खवारिज के फ़ितनों का विशेष केंद्र बनेंगा और यह फितना ईराक की ओर से उभरेगाl.
गुलाम गौस सिद्दीकी देहलवी इस्लामी लेखक, अंग्रेजी, अरबी, उर्दू भाषाओं के अनुवादक और न्यु एज इस्लाम के नियमित स्तंभकार हैं।
(शेष अगले)
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