मुफ्ती सलीम नूरी
6 जुलाई, 2022
जनता में से जो शख्स इस्लामिक देश अथवा गैर इस्लामिक देश में
कानुन अपने हाथ में लेकर किसी को क़त्ल करे वो शरियत की रौशनी में मुजरिम और सजा का
हक दार है।
कानून को हाथ में लेने वाला गूनेहगार
आलाहज़रत इमाम अहमद रजा खान फाजिल बरेलवी जो पुरी दुनिया में रहने वाले सुन्नी सुफी खानकाही विचार धारा रखने वाले मुसलमानों के भारत मे इस समय सब से बडे धर्मगुरु हैं और जिनकी दरगाहे आलाहजरत भारत के उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में है उनहोने अपने धार्मिक विचारों से पुरी दुनिया खास कर भारत मे अमन-चैन और शान्ति की स्थापना में बहुत अहम किरदार अदा किया है।
आज कुछ लोग बाहरी नारों और खूंखार विचारों से प्रभावित होकर यह समझ बैठे हैं कि हमारे पैगंबर की शान में गुस्ताखी करने वाले को मारना, उसका सर तन से जुदा करना या उसकी हत्या करना यह एक इस्लामिक, धार्मिक और सवाब का कार्य है तथा इस से जन्नत मिलेगी.
तो आप को हम बता दें कि आलाहज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी साहब के फतवे के हिसाब से किसी मूजरिम का भी कत्ल करना और कानुन हाथ मे लेकर किसी आम नागरिक दुआरा किसी की हत्या करना खद जुर्म है और ऐसा व्यक्ति इस्लाम धर्म की रौशनी में मुजरिम और गुनाहगार है जिसे न्याय पालिका सजा देगी।
आलाहज़रत इमाम अहमद रजा खान फाजिल ए बरेलवी साहब ने यह भी स्पष्ट किया कि हमारे पैगंबर की शान मे गुसताखी की सजा उन देशो मे कि जहाँ इस्लामिक कानुन हैं ' वहां मौत की सजा है और सजा देने का इख़्तियार किसी आम नागरिक को नहीं है बल्कि हाकिम या सुल्तान या इस्लामी अदालत ही सजा दे सकती है. जिस तरह हमारे देश भारत में बहुत से जुरमों में मौत की सजा का प्रावधान है परंतु यह सजा कोई आम आदमी या नागरिक नहीं दे सकता बलकि न्याय पालिका, कोर्ट कचहरी को ही इख़्तियार है वो की वो सजा देंगी।
यदि किसी इस्लामिक देश कि जहां ईशनिंदा की सजा मौत है वहां भी कोई आम व्यक्ति किसी को मौत के घाट उतार दे तो वह व्यक्ति कातिल और गुनाहगार माना जाएगा और उसे हुकुमत व वहां का कोर्ट सजा देगा।
आलाहज़रत ने यह भी बताया कि हमारा काम और जिम्मेदारी लोकतान्त्रिक देशों मे केवल इतना है कि हम मुजरिम के जुर्म से घृणा करें, उस के साथ रहने से आम लोगो को बचाएं, कुख्यात मुजरिम के जुर्म से लोग-बाग को दुर रखने का प्रयास करें और न्यायपालिका और न्याय प्रणाली दुआरा उसे सजा दिलाने का प्रयास करें।
आलाहज़रत का यह स्पष्ट फतवा उनकी पुस्तक "हुसामुल हरामैन " के पृष्ठ संख्या 137 पर अरबी भाषा में है जिसे वर्तमान की प्रस्थिति मे मुफ्ती मुहम्मद सलीम साहब, वरिष्ठ शिक्षक मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम दरगाहेआलाहजरत बरेली ने उर्दु, हिन्दी, नेपाली और अन्य भाषाओं मे प्रकाशित किया है।
इस्लाम के रहनूमाओ को आगे आकर शरियत की बताई हुई शिक्षा जिसकी आलाहज़रत ने व्याख्या की है उसको सही अंदाज में जनता के सामने पेश करने की जरूरत है। उलमा और ईमाम लोग जुमे की तकरीरों के माध्यम से आम जनता को बतायें कि कि आला हजरत ने अपनी किताब "हूस्सामुल हरमैन" में इस तरह की घटनाओं के बारे मे फतवा दिया है
कि इस्लामी हुकूमत में भी अगर कोई व्यक्ति बादशाह की इजाजत के बगैर किसी गुस्ताखे नबी को क़त्ल करता है तो उसका गाज़ी होना दर किनार बल्कि ऐसा व्यक्ति शरियत की नजर में मूजरिम होगा और बादशहे इस्लाम उसे सख़्त सजा देगा.
फिर आला हजरत आगे फतवे में लिखते है कि
जब इस्लामी हुकूमत में ये आदेश है तो जहां इस्लामी हुकूमत नहीं है वहां तो और जियादा नाजाइज होगा।
और गुस्ताखे नबी को क़त्ल करने की वजह से अपनी जान को हलाकत (खतरे) और मूसीबत में डालना होगा।
कूरान शरीफ में खुदा ने फ़रमाया है कि "अपने हाथों अपने आपको हलाकत में मत डालो।"*
आला हजरत ने आम मुसलमानों को आदेश देते हुए फतवे में कहा कि “शरियत की रौशनी मे सिर्फ ऐसे गुस्ताख़ की जुबान से निंदा करना और आम लोगों को उससे मेल जोल रखने से रोकना और हुकूमत के जिम्मेदारान तक शिकायत पहुंचाना और कोर्ट में मुकदमा करना काफी है ताकि उस व्यक्ति पर मुकदमा कायम हो सके”
अपने आप से खूद कानून को हाथ मे लेकर किसी आम व्यक्ति दुआरा उस मुजरिम व गुस्ताख को सज़ा देना जाइज नहीं है।
किसी गुस्ताखे नबी को हुकूमत की इजाजत के बगैर किसी आम आदमी के दुआरा सजा देना, या क़त्ल करना, या सर तन से जुदा करना आला हजरत के फतवे की रौशनी मे गुनाह और जुर्म है ऐसा शख्स सजा के लाईक और मुजरिम है।
*(मुफ्ती सलीम साहब का यह लेख माहनामा आलाहज़रत दरगाहेआलाहजरत बरेली
नामी मासिक उर्दु पत्रिका के जुलाई 2022 के अंक में आज प्रकाशित हुआ है।)*
New Age Islam, Islam Online, Islamic Website, African Muslim News, Arab World News, South Asia News, Indian Muslim News, World Muslim News, Women in Islam, Islamic Feminism, Arab Women, Women In Arab, Islamophobia in America, Muslim Women in West, Islam Women and Feminism