एरिक श्मिट
30 दिसंबर 2014
अमेरिका के विशेष अभियान दस्ते के कमांडर मेजर जनरल माइकल के. नगाटा को पश्चिमी एशिया में अमेरिकी सेना के सामने आई एक चुनौती से निपटने के लिए मदद की जरूरत महसूस हुई। आखिर इस्लामिक स्टेट की चुनौती के इतना खतरनाक रूप अख्तियार कर लेने के पीछे क्या वजह हो सकती है?
तमाम आतंकवादियों का एक मिलाजुला संगठन, जो परंपरागत सेना भी रखता है, ऐसे अबूझ दुश्मन के तौर पर उभरा है, जिससे निपटने के लिए नगाटा ने पेंटागन, विदेश विभाग और खुफिया एजेंसियों के भीतर विशेषज्ञता के परंपरागत दायरे से बाहर जाते हुए एक गैर-अधिकारिक, मगर भरोसेमंद तंत्र बनाने की कोशिश की है, ताकि नए विचारों और प्रेरणाओं की खोज की जा सके। मसलन, व्यापार विषय से जुड़े तमाम प्रोफेसर इस्लामिक स्टेट की मार्केटिंग और ब्रैंडिंग रणनीतियों की पड़ताल कर रहे हैं। वह कहते हैं, 'जब तक इस आतंकी मूवमेंट को हम समझ नहीं पाते, हम इसे हरा नहीं सकते।' वह स्वीकारते हैं, 'अब तक इस मूवमेंट के पीछे के विचार को हम समझ तक नहीं पाए हैं।'
बात केवल नगाटा की ही नहीं, दूसरे अमेरिकी अधिकारियों ने भी ऐसी ही हताशा जताई है। अमेरिकी सेना का उभरता हुआ चेहरा बने नगाटा की नियुक्ति खुद राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की है, ताकि वह सीरियाई विद्रोहियों की पेंटागन समर्थित उस सेना को प्रशिक्षित कर सकें, जो इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए तैयार की गई है। मगर चार महीने बीत जाने के बाद भी नगाटा इस्लामिक स्टेट की चुनौती का समाधान नहीं ढूंढ पाए हैं।
हालांकि अगस्त और अक्तूबर महीने में नगाटा और तीन दर्जन से ज्यादा विशेषज्ञों के बीच हुई तमाम बैठकों के नतीजों से एक मूवमेंट के तौर पर इस्लामिक स्टेट को समझने में कुछ मदद जरूर मिली है। जिस बात से नगाटा को सबसे ज्यादा हैरत हुई है, वह है, इस्लामिक स्टेट की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करने की क्षमता। विशेषज्ञों के मुताबिक, आतंकवादियों की विशाल सेना या उनके हथियारों को देखकर उतनी हैरत नहीं होती, जितनी उन अदृश्य तंत्रों के बारे में सोच कर होती है, जिनके जरिये इस्लामिक स्टेट (आईएस) पूरे क्षेत्र और वहां के लोगों पर नियंत्रण साधे हुए है। विशेषज्ञों की मानें, तो आईएस की इस क्षमता के पीछे उनकी मनोवैज्ञानिक रणनीतियां छिपी हुई हैं, मसलन, लोगों को डराकर रखना, धार्मिक या संप्रदायवादी व्याख्याएं करना और आर्थिक नियंत्रण को बढ़ाना। खुफिया रिपोर्टों से विशेषज्ञों के बीच इस्लामिक स्टेट के उद्देश्यों को लेकर भी मतभेद हैं। कुछ इन्हें विचारधारा से जुड़ा बताते हैं, वहीं कुछ विशेषज्ञ इन्हें क्षेत्रीय करार देते हैं। अपने समूह के बीच नगाटा ऐसे मतभेदों को ज्यादा से ज्यादा प्रेरित करते हैं, ताकि तमाम अबूझ सवालों की जड़ तक पहुंचा जा सके।
हालांकि इस बात को लेकर संदेह भी जताया जा रहा है कि क्या इस्लामिक स्टेट के पास शासन के लिए जरूरी नौकरशाही तंत्र मौजूद है। सेना के रिटायर्ड थ्री-स्टार जनरल और डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के पूर्व निदेशक माइकल टी. फ्लिन कहते हैं, 'आतंकवाद से निपटने के मामले में माइक नगाटा जैसा अनुभवी शख्स अगर ये सवाल उठा रहा है, तो इससे समस्या की गंभीरता समझी जा सकती है।' गौरतलब है कि फ्लिन पहले भी सार्वजनिक तौर पर यह सवाल उठा चुके हैं। उद्योग, शिक्षा और नीति अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े तमाम विशेषज्ञों के समूह की अंतिम रिपोर्ट अगले महीने आएगी। मगर चिंता केवल यहीं तक नहीं सिमटी है। आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा पर ओबामा की सलाहकार लिसा मोनाको कहती हैं, 'इस्लामिक स्टेट के सऊदी अरब, जॉर्डन, लेबनान और लीबिया जैसे देशों में अपने पांव पसारने की कोशिशें चिंता पैदा करने वाली हैं।' अमेरिका के खुफिया सूत्रों की मानें, तो हर महीने एक हजार से ज्यादा विदेशी लड़ाके इराक और सीरिया पहुंच रहे हैं, और इनकी मंशा इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की है। सीआईए के निदेशक जॉन ओ. ब्रेनन कहते हैं, 'अंतरराष्ट्रीय समुदाय के तौर पर हमें सोचना होगा कि तमाम देशों की कमजोरियों का फायदा उठाने वाली इन विचारधाराओं और आंदोलनों से हम कैसे निपटेंगे? साथ ही हमें उन हालात पर गौर करना होगा, जिनमें ऐसे आंदोलनों को पनपने का मौका मिलता है।'
नगाटा सवाल उठाते हैं, 'वे कौन-सी प्रेरणाएं हैं, जो लोगों को आईएस की ओर खींचती हैं?' जिस तरह से यह आतंकी संगठन इस्लामी आबादी के एक विशेष वर्ग, खासकर युवाओं को आकर्षित कर रहा है, उस पर नगाटा चिंता जताते हैं। वह कहते हैं, 'आईएस का चुंबकीय आकर्षण संसाधनों, प्रतिभाओं, हथियारों इत्यादि को जिस तरह से अपनी ओर खींच रहा है, वह वाकई चिंताजनक है।' अपने प्रोपेगेंडा को फैलाने के लिए आईएस ने जिस शातिर ढंग से सोशल मीडिया का उपयोग किया, उसका जिक्र करते हुए नगाटा कहते हैं, 'जिन लोगों पर आईएस का प्रभाव पड़ रहा है, उनकी विविधता को देखते हुए मैं एक लंबी चर्चा छेड़ना चाहता हूं, ताकि आईएस के मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक असर को समझा जा सके। वे लोगों को समूह में अपने संगठन में शामिल होने के लिए उकसा रहे हैं। आईएस की टी-शर्टें और मग आम हो गए हैं।' नगाटा के मुताबिक, जब अमेरिकी आईएस के लिए बुजदिल, असभ्य, हत्यारे, घृणित इत्यादि शब्दों का उपयोग करते हैं, तो वे आईएस के मंसूबों को ही पूरा कर रहे होते हैं। आईएस यही चाहता है कि उनके लिए 'हत्यारा' शब्द उसके मुंह से निकले, जिसके (अमेरिका) अपने हाथ खून से रंगे हैं। नगाटा बताते हैं, 'हम उनके लक्ष्य नहीं हैं। हमारे गुस्से से उन्हें खुशी होती है। हम उनके विज्ञापन का हिस्सा बन रहे हैं। और वे बेहद कुशलता से लोगों को अपने नजदीक कर रहे हैं।'
Source: http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/unsolved-mystery-of-is-hindi/
URL: https://newageislam.com/hindi-section/unsolved-mystery-/d/100883