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Hindi Section ( 28 Jul 2017, NewAgeIslam.Com)

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Come out of the Closet, Times have Changed! हुजरे से बाहर आइए हज़रत, जमाना बदल गया है

 

 

 

डॉक्टर क़मर तबरेज़

17 अप्रैल, 2017

कुछ साल पहले एक हज़रत मुसलमानों के जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। थोड़ी थोड़ी देर में भीड़ में कोई 'नारा ए तकबीर' की आवाज़ बुलंद करता और फिर सभी लोग' अल्लाहो अकबर 'के गगनभेदी नारे लगाते। उनके प्रत्येक शब्द पर लोग झूम उठते। उनके वहां पहुंचने से कई दिन पहले ही आसपास के सभी क्षेत्रों में पोस्टर लगा दिये गए थे कि अमुक दिन वह हज़रत यहां आने लाने वाले हैं। इसीलिए वे हज़रत जब वहां पहुंचे तो एक विशाल क्षेत्र में अपने सामने इतना बड़ा भीड़ देखकर भी हैरान हो गए। उनके भाषण सुनने के बाद जब लोग अपने घर जाने लगे,तो सबकी जुबान पर इन महाशय की प्रशंसा के अलावा कुछ भी नहीं था। लोग उन्हें कौम का मसीहा समझने लगे थे। उनकी शोला बयां भाषणों और लेखों से मुसलमान इतने प्रभावित थे कि हर किसी को उनसे मिलने और उनकी बातें सुनने का मानो जुनून सा तारी हो गया था।

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि जब वह हज़रत भाषण देने के बाद होटल वापस जाने के लिए अपनी कार में सवार हुए, तो उन्होंने अपने साथियों से क्या कहा ? '' देखा, सालों को कैसा मूर्ख बनाया! '' ... जी हाँ, आपको यह सुनकर हैरानी हो रही होगी,लेकिन इस बात का गवाह हूं। इसीलिए बार-बार कहता हूँ कि समकालीन में जितने भी लोग मुस्लिम समुदाय के 'मसीहा' और 'नेता' होने का दावा कर रहे हैं, उन्हें देश से कोई मतलब नहीं है। वह केवल अपनी दुकान चलाने के चक्कर में हैं। अगर उनका बस चले, तो लोगों को बेचकर ऐश करें।

मुझे,और हो सकता है कि आप में से भी किसी का कोई गैर मुस्लिम दोस्त यह सवाल करता है कि जब कुरआन की पहली आयत ही 'इक़रा' से शुरू हुई, जिसका अर्थ है 'पढ़' तो मुसलमान पढ़ता क्यों नहीं है? शिक्षा से ही दूरी ने मुस्लिम समुदाय को पूरी दुनिया में अपमानित करके रख दिया, फिर भी उनकी बात समझ में नहीं आ रही है। भारतीय मुसलमान अक्सर यह शिकायत करते हैं कि देश में भेदभाव है लेकिन आपको पढ़ने से कौन रोक रहा है? क्या अगर आप अपना कोई शैक्षणिक संस्था बनाएंगे तो कोई आपको स्कूल और कॉलेज खोलने से भला कैसे रोक सकता है? कुरआन में सैकड़ों बार कहा गया है कि 'ऐ ईमान वालों' क्या तुम विचार नहीं करते। लेकिन, यह कौम है कि कुछ भी समझने को तैयार नहीं है। बचपन में कहीं पढ़ा था,भारत और पाक विभाजन के समय बंगाल में दंगे हो रहे थे। हिंदू और मुसलमान बड़ी संख्या में एक दुसरे की खुलेआम हत्या कर रहे थे। इस समय पश्चिम बंगाल में एक सूफी संत थे,जो हर समय अपने हुजरे में बंद पूजा और साधना में व्यस्त रहा करते थे। पास में ही मुसलमानों की एक बस्ती में जब आग लगा दी गई और हजारों लोग हत्या कर दिए गए, तो एक मुसलमान इन सूफी संत के पास गया और उनसे कहा कि हुजरे से बाहर मुसलमानों का नरसंहार हो रहा है और आप पूजा में व्यस्त हैं?उनके लिए कुछ कीजिये।

सूफी संत ने कहा, '' कोई इंसान भी मारा गया है क्या? '' उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ कि हजारों लोग मार दिए गए और सूफी साहब कह रहे हैं कि कोई इंसान नहीं मरा। इसलिए,उसने गुस्से में उन सूफी हजरत से कहा कमाल है,इंसानों की मौत पर भी आप मजाक करने पर तुले हुए हैं। तब इन सूफी संत ने उस मुस्लिम के ऊपर एक चादर डाल दी और कहा कि आंखें बंद करो और देखो कोई दिख रहा है?उस आदमी ने कहा कि अंधेरे में क्या दिखेगा। सूफी संत ने कहा,देखो देखो दिखेगा। थोड़ी देर में उस आदमी को वास्तव में दिखाई देने लगा आग लगी हुई है। और लोग परेशानी के आलम में जान बचाकर इधर-उधर भाग रहे हैं। लेकिन आग में मरने वाले सभी जानवर हैं,इंसान कोई नहीं। उस आदमी ने बड़ी कोशिश यह देखने की कि कोई इंसान भी आग की चपेट में आया हो,लेकिन इसे जितने भी शव दिखे वे सभी पशुओं के थे,आदमी एक भी नहीं था। तब उसने चादर हटाकर सूफी बुजुर्ग से सही घटना जानना चाहा,तो उन बुजुर्ग ने बताया कि दंगों में जितने भी मुसलमान मारे जा चुके हैं,ईमान के आधार पर इन सबकी स्थिति जानवरों जैसी थी। यदि वह वास्तव में ईमान वाले होते,तो उनके ऊपर ऐसा अज़ाब कभी नाजिल नहीं होता, इसलिए इबादत में व्यस्त हूँ।

कहने का मतलब यह है कि आज का मुसलमान न तो सांसारिक दृष्टि से मजबूत है और न ही दीन के अनुसार। हालांकि इस भूमि पर पैदा होने वाले हर इंसान को खुदा ने यह मौका दिया है कि वह चाहे तो अपनी दुनिया भी संवार सकता है और दीन भी। और यह सारी बातें कुरआन और हदीस में मौजूद है। लेकिन, जिस खुदा ने इंसानों को अशरफुल मख्लुकात बनाया,वही आज अपना अपमान करवा रहा है और आरोप दूसरों को दे रहा है। सुबह से शाम तक दर्जनों मुसलमानों से मुलाकात होती है। कोई सब्जी बेच रहा है, तो कोई फल। कोई पान की दुकान चला रहा है, तो कोई चाय की। किसी ने भोजन की दुकान खोल रखी है, तो कोई वाहन की मरम्मत कर रहा है। यानी मेहनत में मुसलमान किसी भी कौम से पीछे नहीं है। लेकिन,जब उनसे पूछता हूँ कि क्या तुमनें बच्चों का प्रवेश स्कूल में करवाया,तो जवाब मिलता है,''सर, आधार कार्ड नहीं है इसलिए स्कूल वाले एडमिशन नहीं ले रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि आधार कार्ड बनवाने में तुम्हें क्या दिक्कत है, तो जवाब मिलता है '' सर, बनेगा ही नहीं, मुसलमान जो ठहरा। ' दो चार अपने साथ लेकर गया और आसानी से आधार कार्ड बनवा दिया,तब जाकर इन महाशय की गलतफहमी दूर हुई मुसलमानों की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वह कोशिश नहीं करता और बड़ी आसानी से हार मान लेता है और फिर कहता है कि इस देश में मुसलमान होने की वजह से उनके साथ भेदभाव हो रहा है। हालांकि,तथ्य यह है कि आप अपने ही अधिकार से अनजान हैं। यह कहावत तो शायद सबको पता होगा कि 'प्यासा कुएं के पास जाता है,कुआं प्यासे के पास नहीं आता'। मुसलमान कोशिश ही नहीं करते और अपनी किस्मत का रोना रोते रहते हैं।

सरकारें भी मुसलमानों के लिए कुछ करना चाहती हैं, लेकिन कोई उनके पास जाने को तैयार ही नहीं है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही कहा था कि मुसलमान अपने मुद्दों को लेकर उनके पास आएंगे, तो रात के बारह बजे भी उनका दरवाजा खुला रहेगा। कितने मुसलमान अपनी समस्याओं को लेकर आज तक उनके पास गए? इस देश में हिंदुओं की बहुमत मुसलमानों से हमदर्दी रखती है। कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, जो मुसलमानों से घृणा करते हैं जिसकी वजह से कई बार खूनखराबा हो जाता है। लेकिन हिन्दुओं के बहुमत धर्मनिरपेक्ष मानसिकता वाली है। यही कारण है कि जब भी मुसलमानों पर अत्याचार होता है,उसके विरोध में पुरजोर आवाज हिंदुओं से ही उठती है। लेकिन, म समुदाय को ही समय की गति के साथ चलना पसंद नहीं है, तो उसका क्या किया जा सकता है।

ज्ञान ऐसी चीज है, जिसे कोई चुरा नहीं सकता, कोई छीन नहीं सकता, कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। ज्ञान के बिना विकास की कल्पना असंभव है। इसका कोई शॉर्टकट तरीका नहीं है। मेहनत मजदूरी करके आप पैसे तो कमा सकते हैं,लेकिन इस पैसे को सही जगह में तब तक नहीं लगा सकते, जब तक कि आपको अच्छे बुरे का भेद न हो। और इस्लाम कहता है कि हर वयस्क पुरुष और महिला को इतना ज्ञान सीखना अनिवार्य है,जिससे इसे हराम और हलाल का भेद पता चले। अब आप खुद ही अपने गिरेबान में झांक कर देख लीजिए कि आप अपने धर्म पर कितना पालन कर रहे हैं। यदि आपके ज़िल्लत व रुसवाई खुद अपने कार्यों की वजह से हो रही है, तो इसमें दूसरों को दोषी ठहराना कहाँ तक सही है? इसलिए अपना आत्मनिरीक्षण कीजिये। जिस दिन आप ऐसा कर लेंगे तो दुनिया में कोई भी शक्ति आपको उड़ान भरने से नहीं रोक सकती। यही हमारा विश्वास सही है।

17 अप्रैल, 2017 स्रोत: रोज़नामा मेरा वतन, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/come-closet-times-changed-/d/110935

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/come-closet-times-changed-/d/112004

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