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Hindi Section ( 12 Jun 2017, NewAgeIslam.Com)

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Divorce with Mutual Understanding तलाक आपसी समझ से (तलाक तफवीज़)

 

डॉक्टर नफ़ीस अहमद सिद्दीकी और शाहिद परवेज

30 मई, 2017

लेखक को भारत के कई बुद्धिजीवीयों ने जोर दिया कि आप अपनी राय तीन तलाक के बारे में नहीं दे रहे हैं इसकी वजह क्या है? अव्वल तो यह मैने इस मामले की ब्रीफ स्वीकार नहीं की और विभिन्न मस्लकों के फतवों में इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता था। फिर भी दूरदर्शन उर्दू और ANPचैनल नें लेखक का साक्षात्कार किया जो सारे भारत में देखा गया। मेरी राय जिगर के इस शेर से परिवर्तन के साथ शुरू होती है।

उनका जो काम हो अहले शरीअत जानें

मेरा पैगाम कानूनी है जहां तक पहुंचे

'' मुस्लिम लॉ कुछ आधार में कुरआन, हदीस, इज्माअ और इज्तेहाद नमाज़ के संबंधि में कुरआन और हदीस दोनों का सहारा लेना पड़ता है तब यह विषय साफ होता है। जहां तक कानूनी दृष्टिकोण का सवाल है इस विषय पर 1937 में मोहम्मद अहमद काजमी सदस्य सेंट्रल विधानसभा की कोशिश Application Act Muslim Law पास हुआ जिसमें विरासत और तलाक दोनों का उल्लेख है लेकिन इस विवरण से परहेज किया गया है शायद उन्हें साम्प्रदायिक मतभेद के करण। यह कानूनी दर्जा हो गया और  भारतीय संविधान में प्रावधानों 25/26 आदि में सुरक्षा प्रदान किया गया है। इसलिए दफा 14 भारतीय संविधान उसे दयानत के करण सही बात को नकार नहीं सकता। इसके अलावा बरैलवी काउन्सिल में जस्टिस अमीर अली ने भी कई मामलों में उल्लेख किया है यह बहुत ही खतरनाक होगा अगर गैर प्रामाणिक तावीलात का पालन किया गया केवल प्रामाणिक प्राधिकरण को लागू करने के लिए कहा गया है। यह बात जस्टिस सर सलमान ने भी कही है फेडरल कोर्ट सवाल का ख्याल रखते हुए भारत के विभिन्न उच्च कोर्टों ने फैसले दिए हैं।

लेखक चूंकि इस मामले में बतौर वकील अदालत में उपस्थित नहीं हुआ था इसलिए मैं इन मामलों में दोनों पक्षों के तर्क या वैधता आदि पर कोई राय नहीं दूंगा। लेकिन अपने नजरिए से अपनी राय जनता के सामने लाता हूँ जो बिल्कुल व्यक्तिगत है। इससे पक्ष सहमत हों या नहीं। लेखक की राय जो बतौर एक मामूली छात्र बराए मुस्लिम पर्सनल ला के प्रदान करता है

फिल्म निकाह में भी तीन तलाक का जिक्र था जिसमें लेखक ने हसरत मोहानी की ग़ज़ल बिना अनुमति जोड़ने का मुकदमा कृपया Copyrightअपराध के लिए प्रवेश किया था लेकिन तलाक विषय नहीं अलबत्ता कॉपीराइट के अपराध का मुकदमा चला था 1985 की बात है।

दूसरा मुकदमा शाहबानो का था उसमें तीन तलाक शाहबानो के पति ने अदालत में दी थी लेकिन इस मामले में भी केवल नान नुफ़्क़ा का मसला विचाराधीन था लेकिन पांच सदस्यीय शीर्ष अदालत ने एक वाक्य और वृद्धि बराए यूनिफॉर्म सिविल कोड दिया जो सुप्रीम कोर्ट के 40-50वकीलों ने राजीव गांधी प्रधानमंत्री से मिलकर बताया यह यूनिफार्म का तो मुद्दा लंबित नहीं था जिस पर कई मुस्लिम नेताओं ने भी संसद और बाहर विरोध किया जब 1986 एक अधिनियम पास हुआ।

मेरी अपनी राय में मुस्लिम पर्सनल लॉ में "तलाक तफवीज़"जो बीवी और शौहर द्वारा निकाह के वक्त इतना बाद में आधिकारिक तौर पर अनुबंध हो सकता है जिसमें पत्नी भी किसी समय इस समझौते के तहत तलाक का उपयोग करके वैवाहिक रिश्ते खत्म कर सकती है। लेकिन इसमें भी शर्तें हैं कि पति परिपक्व और Saneहो और यह भी एक हदीस के लिये या मुस्तकिल जीवन भर के लिए यह और इस्लामिक लॉ के खिलाफ न हो और न सार्वजनिक नीति के विरुध हो।

तलाक तफवीज़ के निम्न प्रकार हैं :

(1) विकल्प (By option of choice)

(2) अम्र बी। याद (The affair is in your hands or your are all like stop)

(3) मशीअत (Musheeat) के अर्थ आपके फर्जी या इच्छा पर यह अनुबंध शादी के समय, बाद में भी निकाला जा सकता है। इसमें अगर शादी के समय किया जाएगा तो दुल्हन खामी होगी इसलिए निकाहनामा में ही प्रकाशित हो तो अच्छा होगा क्योंकि इसमें दोनों के हस्ताक्षर होते हैं।

इस अनुबंध शर्तों या बिना शर्तों के ही हो सकता है। यह आवधिक या स्थायी हो सकता है लेकिन समझौता लिखित होना बेहतर और दोनों पति-पत्नी की सहमति आवश्यक है। यह भी परिभाषित करना होगा कि अगर तलाक तफवीज़ का उपयोग हो तो भारतीय दंड संहिता की धारा 494में मुकदमा नहीं चल सकता है। कि इस तरह तलाक असाइनमेंट को अदालत को रुजूअ होने की जरूरत नहीं है। Dissolation of Muslim Marriage 1939 की धारा (ix) 2 पिछला इस्लामिक अधिकारों की रक्षा प्रदान करता तो है लेकिन बकौल Mr. Bruble ने Otiver Twist कानूनी गधा और IDIOT कहा है जो सही नहीं है और मेरा इससे मतभेद है क्योंकि Berstrand Rused ने तलाक को Law & Custom का मध्य वजूद बताया है। महोदय ने भी किया है शादी केवल सेक्स भागीदारी नहीं बल्कि यह एक तरह की बच्चों की परवरिश की गारंटी होती है। (लेखक यह वृद्धि करना चाहता है कि यह समाज की स्थिरता के लिए आवश्यक है)।

इस समझौते के कार्यान्वयन से न कोई कानून बनाने की जरूरत है बस दोनों पक्ष की सहमति शादी के समय या बाद में लिखा जा सकता है KAZI ACT 1880 सर सैय्यद अहमद खान का मसौदा है जो केवल प्रावधानों होते इसमें यदि इस तलाक तफवीज़ को बढ़ता तो यह समस्या उत्पन्न नहीं होता लेकिन सर सैय्यद अहमद खां इसे कैसे नजरअंदाज कर गए जबकि वे सभी सामाजिक बुराइयों से जूझते रहे हैं यहाँ यह भी बताना चाहिए कि इस समझौते के बावजूद PRE ISLAMIC कानून और रस्मो रिवाज खत्म होते पति को अपने विकल्प तलाक की पुस्तकों में प्राप्त हैं। यह तलाक तफवीज़ व्यावहारिक तौर से प्रचलित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कृष्णा अय्यर ने अपने एक फैसले में कहा है :

'' जिसमें यह कहा जाता है कि संतोष यह धर्मनिरपेक्ष और Pragramatic जो मुस्लिम लॉ में तलाक के बारे में दर्ज है कि '' Happily Hormonises with concept of advanced countries '' जर्मन डीव क्रटिक गणराज्य हाल ही में अपने फैमिली कोड में उन्हें इस्लामिक लागू अपनाया है और Family Code में दर्ज कराया है।

डॉक्टर नफीस अहमद सिद्दीकी (एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)

शाहिद परवेज (सामाजिक एक्टिविस्ट)

Reference.

1-- 1953 crl.L.J. 1504 (TRI) Suraj milan ahmad major for excefction u / s 4942 pc

2- AIR 1955 H.P.32 Aziz u / s MST NARO

3-AIR 1955 Assam.153-Saifuddin soweka

4-AIR 33 Cal. 22-Ahmad Karim Khatun

5-AIR 1962 (Ks) 341 F.B-CANNORE Disstt Motor Trusted Explorer coop.soc. U.o vs malator public for using edit

6- AIR 1971 Karda 2017 A. Yusuf Raw for us sowramma (for apperception Muslim Law)

30 मई, 2017 स्रोत: रोज़नामा अखबार मशरिक, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/divorce-with-mutual-understanding-/d/111361

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/divorce-with-mutual-understanding-/d/111498

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