डॉ मोहम्मद नजीब कासमी संभली
5 जून, 2017
हज़रत अबु हुरैरह रदी अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि हुजुर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि कई रोज़ा रखने वाले ऐसे हैं कि उन्हें रोज़े के समरात में सिवाय भूखा रहने के कुछ भी हासिल नहीं, और कई रात में जागने वाले ऐसे हैं कि उन्हें रात में जागने (के श्रम)के सिवा कुछ भी नहीं मिलता। (इब्ने माजा, निसाई) पता चला कि केवल भूखा प्यासा रहना रोज़े के बुनियादी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आइए कुरआन व हदीस की रोशनी में रोज़े के कुछ बुनियादी लक्ष्यों को समझें ताकि इन लक्ष्यों को सामने रखकर रमज़ान के रोज़े रखे जाएं।
तक़वा: अल्लाह पाक कुरआन में इरशाद फ़रमाता है: ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा फर्ज़ किया गया जिस तरह से तुम से पहली उम्मतों पर फ़र्ज़ किया गया था ताकि तुम मुत्तकी बन जाओ। (सूरः अलबकरः 183) कुरान की इस घोषणा के अनुसार रोज़े की फ़र्ज़ियत का मुख्य उद्देश्य लोगों के जीवन में तक़वा पैदा करना है। तक़वा वास्तव में अल्लाह से डर और उम्मीद के साथ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके के अनुसार वर्ज्य से बचने और आदेशों का पालन करने का नाम है। रोज़े से इच्छाओं को काबू में रखने की कुदरत पैदा होती है और यही तक़वा अर्थात अल्लाह के भय का आधार है। रोज़े के द्वारा हम इबादत,मामलों,नैतिकता और समाजिकता बहरहाल जीवन के हर क्षेत्र में अपने निर्माता,मालिक व राजिके कायनात के आदेश के अनुसार जीवन जीने वाले हो सकते हैं। अगर हम रोज़े के इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को समझें और जो शक्ति और ताकत रोज़ा देता है उसे लेने के लिए तैयार हों और रोज़े की मदद से अपने अंदर अल्लाह का डर और आज्ञाकारिता की विशेषण को नशो नुमा देने की कोशिश करें तो रमज़ान का महीना हम में इतना डर पैदा कर सकता है कि केवल रमज़ान ही नहीं बल्कि उसके बाद भी ग्यारह महीनों में जीवन के राजमार्ग पर कंटीले झाड़ियों से अपने दामन को बचाते हुए चल सकें। अल्लाह हम सबको रोज़े के इस महत्वपूर्ण उद्देश्य को अपने जीवन में लाने वाला बनाए। आमीन।
पापों से माफी
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:जिसने ईमान के साथ सवाब के इरादे से यानी केवल अल्लाह को खुश करने के लिए रोज़ा रखा इसके पिछले सभी (छोटे)गुनाह माफ फरमा दिए जाते हैं। (बुखारी व मुस्लिम) इसी तरह हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जो ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी रिया, प्रतिष्ठा और दिखावे के लिए नहीं बल्कि केवल अल्लाह की खुशी के लिए रात में अल्लाह की इबादत के लिए खड़ा हुआ यानी नमाज़ तरावीह और तहज्जुद पढ़ी तो उसके पिछले सभी (छोटे)गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। (बुखारी व मुस्लिम) इसी तरह हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:जो शख्स शबे कदर में ईमान के साथ और इनाम के इरादे से पूजा के लिए खड़ा हुआ यानी नमाज़ तरावीह व तहज्जुद पढ़ी,कुरान की तिलावत फ़रमाई और अल्लाह का ज़िक्र किया तो उसके पिछले सभी (छोटे) गुनाह को माफ कर दिए जाते हैं। (बुखारी व मुस्लिम)
एक बार हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम से फरमाया कि मेम्बर के पास हो जाओ, सहाबा किराम पास आ गए। जब हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेम्बर के पहले स्तर पर कदम मुबारक रखा तो कहा आमीन। जब दूसरे स्तर पर कदम मुबारक रखा तो कहा आमीन। जब तीसरे स्तर पर कदम मुबारक रखा तो कहा आमीन। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुतबा समाप्त करके नीचे उतरे तो सहाबा किराम ने अर्ज़ किया कि हमनें आज आपसे मेम्बर पर चढ़ते हुए ऐसी बात सुनी जो पहले कभी नहीं सुनी थी। आप ने फरमाया: उस समय हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम मेरे सामने आए थे। जब पहले स्तर पर मैं कदम रखा तो उन्होंने कहा हलाक हो वह व्यक्ति जिसने रमज़ान का मुबारक महीना पाया फिर भी माफी न सकी,मैंने कहा आमीन। फिर जब दूसरे स्तर पर चढ़ा तो उन्होंने कहा हलाक हो वह व्यक्ति जिसके सामने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र मुबारक हो और वह दरूद न भेजे, मैं नें कहा आमीन। जब तीसरे स्तर पर चढ़ा तो उन्होंने कहा हलाक हो वह व्यक्ति जिसके सामने उसके माता पिता या उनमें से कोई एक बुढ़ापे को पहुँचे और वह उसे स्वर्ग में प्रवेश न करा सकें, मैं नें कहा आमीन। (बुखारी, सहीह इब्ने हिब्बान, मुसनद हाकिम, तिर्मिज़ी, बेहकी) वास्तव में कितने चिंता और अफसोस की बात है कि मुबारक महीने के कीमती समय भी लापरवाही और गुनाहों में गुज़ार दिए जाएं जिससे पिछले पापों की माफी भी न हो सकी। इसलिए हमें रमजान के एक एक पल की रक्षा करनी चाहिए ताकि ऐसा न हो कि हम हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम और हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस दुआ के तहत प्रवेश हो जाएं।
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि कई रोज़ा रखने वाले ऐसे हैं कि उन्हें रोज़े के बदले में सिवाय भूखा रहने के कुछ भी प्राप्त नहीं होता और कई रात को जागने वाले ऐसे हैं कि उन्हें रात जागने के सिवा कुछ भी नहीं मिलता। (सुनन इब्ने माजा) यानी रोज़े के बावजूद दूसरों की चुगली करते रहते हैं या गुनाहों से नहीं बचते या हराम मालसे इफ्तार करते हैं। इसलिए हमें हर हर अच्छे कार्य की स्वीकृति की चिंता करनी चाहिए। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि रमजान के आखिरी रात में रोज़ेदारों की मगफिरत कर दी जाती है। सहाबा किराम ने अर्ज़ किया कि क्या यह मगफिरत की रात शबे कदर ही तो नहीं है?सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया नहीं बल्कि दस्तूर यह है कि मजदूर काम खत्म होते ही उसे मजदूरी दे दी जाती है। मालूम हुआ कि हमें ईद की रात में भी अच्छे कर्मों का सिलसिला जारी रखना चाहिए ताकि रमज़ान में की गई इबादतों का भरपूर इनाम मिल सके।
अल्लाह का कुर्ब
रोज़ा रखने वाले को अल्लाह का विशेष निकटता प्राप्त होता है। रोज़े के सम्बन्ध में हदीसे कुदसी में अल्लाह का इरशाद है कि मैं खुद ही रोज़े का बदला हूँ।(सहीह बुखारी)इससे अधिक अल्लाह की निकटता क्या होगी कि अल्लाह पाक खुद ही रोज़े का बदला है। तथा हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि तीन व्यक्ति की प्रार्थना अस्वीकार नहीं होती है,इन तीन व्यक्तियों में से एक रोज़ेदार की इफ्तार के समय की दुआ है। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि खुद अल्लाह और उसके फ़रिश्ते सहरी खाने वालों पर रहमत नाज़िल फ़रमाते हैं। (सहीह इब्ने हिब्बान)
अल्लाह के यहाँ बड़े इनाम की प्राप्ति
इस बरकतों के महीने में हर नेक अमल का इनाम बढ़ा दिया जाता है। अल्लाह नें हर कर्म का दुनिया में ही इनाम बताया कि किस प्रक्रिया पर क्या मिलेगा लेकिन रोज़ा के संबंध में हदीसे कुदसी में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है: रोज़ा मेरे लिए है और मैं खुद उसका बदला दूंगा। बल्कि एक रिवायत के शब्द ये हैं कि मैं खुद ही रोज़े का बदला हूँ। अल्लाह अल्लाह कैसी भव्य प्रक्रिया है कि उसका बदला सातों आकाश व ज़मीनों को बनाने वाला खुद प्रदान करेगा या वे खुद उसका बदला है। रोज़ा में आमतौर पर रिया का पहलू अन्य कार्यों की तुलना में कम होता है इसलिए अल्लाह ने रोज़ा को तरफ मनसूब करके फरमाया रोज़ा मेरे लिए है।
इसलिए हमें रमज़ान क़द्र करनी चाहिए कि दिन में रोज़ा रखें,पांच वक्त के नमाज़ की पाबन्दी करें क्योंकि ईमान के बाद सबसे अधिक ताकीद कुरान व हदीस में नमाज़ के बारे में वारिद हुई है। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अंतिम वसीयत भी नामाज़ के एह्तेमामा की ही है। कल कयामत के दिन सबसे पहला सवाल नमाज़ ही के संबंध में होगा। नमाज़े तरावीह पढ़ें और अगर मौका मिल जाए तो कुछ रकात, रात के अंतिम भाग में भी अदा कर लें। फ़र्ज़ नमाज़ों के अलावा नमाज़े तहज्जुद का उल्लेख अल्लाह पाक नें अपने कुरआन में कई बार फरमाया है।
रमजान के अंतिम दस दिनों में तहज्जुद पढ़ने का एहतेमाम करें क्योंकि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बातों और कर्मों के प्रकाश में मुसलमानों की सहमती है कि लैलतुल क़द्र रमजान के आखरी दस दिनों में पाई जाती है जिसमें इबादत करने को अल्लाह ने हज़ार महीनों यानी पूरे जीवन की पूजा से ज्यादा बेहतर करार दिया है। इसी महत्वपूर्ण रात की इबादत को पाने के लिए 2हिजरी में रमज़ान के रोज़े की फर्ज़ियत के बाद से हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा अंतिम दस दिनों का एतेकाफ़ फरमाया करते थे। अल्लाह हम सबको इस मुबारक महीने की कद्र करने वाला बनाए और शबे कदर में इबादत करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।
जिस तरह से हम रोज़े में खाने-पीने और जिंसी शहवत के कार्यों से अल्लाह के आदेश के कारण रुके रहते हैं उसी तरह हमारे पूरे जीवन अल्लाह के आदेशों के अनुसार होनी चाहिए,हमारी आजीविका और हमारा वस्त्र हलाल हो, हमारे जीवन का तरीका हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा ए किराम वाला हो ताकि हमारी आत्मा हमारे शरीर से इस हाल में अलग हो कि हमें,हमारे माता पिता और सारे इन्सान व जिन्नात को पैदा करने वाला हमसे राज़ी व प्रसन्न है तो इंशा अल्लाह हमेशा हमेशा की सफलता हमारे लिए भाग्य होगी कि उसके बाद कभी भी असफलता नहीं है।
अल्लाह से दुआ है कि मुबारक महीने में अधिकतम अपनी इबादत करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और रमजान के सयाम व कयाम और सभी अच्छे कर्मों को स्वीकार करे। रमजान के बाद भी मुन्किरात से बचकर खुदा के आदेशों के अनुसार यह नश्वर सामयिक जीवन बिताने वाला बनाए। आमीन,सुम्मा आमीन।
5 जून, 2017 स्रोत: रोज़नामा मेरा वतन, नई दिल्ली
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/fasting-name-just-being-hungry/d/111481
URL: