डॉक्टर आरिफ महमूद कसाना
17 मार्च 2017
तोहमत, प्रत्यारोप, बोहतान (झूठे आरोप),और बदगुमानी हमारे सामाजिक शांति के लिए जहर क़ातिल हैं। यह रवैये हमारे सुखों को बर्बाद कर देते हैं और हर घर और हर एक व्यक्ति उनसे प्रभावित होता है। नकारात्मक विचारों और दूसरों के बारे में गलत सोच और अकारण जिज्ञासा हमें एक दूसरे से दूर ले जाता है। निराधार विचार, गलतफहमी, संदेह और दूसरों के बारे में स्वतः कोई राय कायम कर लेना या दूसरों की गलत जानकारी और आरोप लगाने को सत्यापित किए बगैर सच जान लेना बदगुमानी और घृणा का कारण बन जाता है जो एक दूसरे के साथ संबंधों में बिगाड़ आ जता हैl कभी कभी किसी पर ऐसा आरोप लगा दिया जाता है कि उसे सुनने वाला हैरान रह जाता है। प्रत्यारोप और बदगुमानियाँ फैलाने वाला अक्सर यह कहता है कि मैंनें आपको बता दिया है लेकिन इस बात में मेरा नाम न आए। जो व्यक्ति किसी के खिलाफ झूठा आरोप लगाता है वह खुद को दूसरे का हमदर्द साबित करता है और अपने आप को विश्वसनीय गरदानता है लेकिन विरोधी पक्ष को बिना किसी अपराध और पाप के अपराधियों के कठघरे में खड़ा कर दिया है वास्तव में ऐसा व्यक्ति खुद ही यह सब बातें फैला रहा है कोई इस बयान को सही मान लेता है और बिना वजह संदेह और बदगुमानी अपने दिल में डाल लेता है हालांकि कोई भी फैसला करने से पहले पुष्टि कर लेनी चाहिए और दूसरे पक्ष से भी स्पष्टीकरण मांग लेनी चाहिए। कुरान हकीम ने इसी लिए आदेश दिया है कि जब भी कोई फ़ासिक इस प्रकार की खबर तुम्हारे पास लाए तो उसकी तहकीक कर लिया करो। यह आदेश व्यक्तिगत बातों के बारे में भी है और सामूहिक मामलों भी है। तोहमत, बदनामी और झूठे आरोप लगाने को अल्लाह ने सबसे खराब अपराध करार दिया है। ऐसा करने वाला बहुत कमीना खसलत, बदतरीन किरादर और नीच मानसिकता का हामिल होता है। प्रभावित व्यक्ति और उससे जुड़े हुए अन्य लोगों के आराम नष्ट हो जाता है और वह इस नाकरदा पाप की वजह से मुक्त में बदनाम हो जाता है। कुरआन हकीम ने इसी लिए इसको बहुत गंभीर अपराध करार दिया है। किसी के सम्मान और भूमिका को पूरे समाज में बदनाम करने के बाद अगर माफी मांग भी ले तो जो नुकसान हो चुका होता है उसकी भरपाई संभव नहीं होतीl उन्ही सामाजिक व्यवहार के कारण दिल में दूरियां और नफरतें परवान चढ़ती हैं और इस्लाम की शिक्षाओं के सरासर खिलाफ है जो कि दिल को जोड़ने आया था लेकिन हमारी स्थिति बकौल हाली।
जिस दीन ने गैरों थे दिल थे आ के मिलाए
उस दीन में अब भाई खुद भाई से अलग है
मनोवैज्ञानिक उनके नकारात्मक व्यवहार सामाजिक समस्याओं और विकृतियों का कारण मानते हैं। कुरआने हकीम ने उन मामलों के बारे में स्पष्ट शिक्षाएं दी हैं। कहा कि दूसरों के मामलों की टोह में न लगे रहो। किसी के खिलाफ तोहमत ना लगाओ। पाकबाज़ महिलाओं के खिलाफ अनायास तोहमत लगाना कानून अपराध है और सबूत पेश न करने वाले की सजा अस्सी कोड़े हैं। कुरआने हकीम में यह भी है कि खुद अपराध का दोषी होना और उसका बदनामी दूसरों पर लगा देना अपराध है। एक दूसरे की चुगली मत करो, यह बहुत अवांछित बात है। एक दूसरे का उपहास न उड़ाया करो, एक दुसरे का अपमान न करो.एक दूसरे के बुरे नाम न रखें। अल्लाह तआला ने यह भी आदेश दिया कि एक दूसरे के खिलाफ आरोप प्रत्यारोप मत करो। किसी से ईर्ष्या न करो। ख्वामख्वाह अफवाहें न फैलाओ और गलत बातों की चर्चा न करो। कुरआने हकीम नें जो शिक्षाएं दी हैं उनका उद्देश्य है कि अगर किसी के खिलाफ कोई आरोप लगाया तो मोमेनीन की पहली प्रतिक्रिया नेक होनी चाहिए,आपस में हमेशा हुसने ज़न नेक रखना चाहिए और कहना चाहिए कि यह बात गलत है। कुरआने हकीम यह भी सिखाता है कि लोगों को चाहिए कि जब किसी के बारे में कोई ऐसी बात सुने जो अनुचित हो तो उसे आगे ना फैलाएं बल्कि कह दें कि यह झूठा आरोप है। कुरआने हकीम ने कड़ी चेतावनी दी है कि इस तरह की बातों की चर्चा करने वाले भी दोषी हैं। कुरआने हकीम ने सूरए निसा, नूर, अहज़ाब और हुजरात में इस बारे में विस्तृत आदेश दिए हैं और यह कॉलम उन्हीं के प्रकाश में लिखा गया है।
इन आदेशों का पालन करके जहां हम अल्लाह तआला की रज़ा प्राप्त कर सकते हैं वहाँ हम अपने रिश्तों और संबंधों में आने वाली रनजिशों और दूरियों को खत्म कर सकते हैं। उन पर पालन होने की स्थिति में हमारा समाज प्रेम और दोस्ती का गहवारा बन सकता है। हमें व्यक्तिगत,सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर इन निर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए। मीडिया और जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों को तो और भी सख्ती से उन पर अमल करने की जरूरत है। बुखारी और मुस्लिम में हज़रत अबु हुरैरा से एक रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि बदगुमानी से खबरदार क्योंकि बदगुमानी सबसे झूठी बात है। मुस्नद अहमद में हज़रत अब्दुर्रहमान बिन गनम और हज़रत आस्मा बिन्ते यज़ीद से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह के सर्वश्रेष्ठ बंदे वे हैं जिन्हें देख कर अल्लाह याद आ जाए और बरतरीन बंदे वे हैं जो चुगलियाँ खाने वाले हैं,दोस्तों में जुदाई डालने वाले हैं और जो इच्छा और कोशिश में लगे रहते हैं कि अल्लाह के पाक दामन बन्दों को बदनाम और परेशान करें। कुरआन और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इन आदेशों को हमें अपने जीवन का लक्ष्य बना लेना चाहिए और अगर कोई बदगुमानी फैलाने की कोशिश करे तो उसे वहीं रोक दें या फिर दूसरे पक्ष इस बात की पुष्टि कर लें। अगर ऐसा नहीं होगा तो दिलों में दूरियां और रिश्तों में दरारें बढ़ जाएँगी। हफीज होशियारी पुरी ने क्या खूब कहा है
दिल की उलझनें बढ़ती रहेंगी
अगर कुछ मशवरे बाहम ना होंगे
17 मार्च, 2017 स्रोत: रोज़नामा अवसाफ, पाकिस्तान
URL:https://www.newageislam.com/urdu-section/accusations-mistrust-poisonous-peace-community/d/110493
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