डॉक्टर अली खान महमूदआबाद
27 मई, 2017
हम चुप क्यों हैं?हम चुप हैं जब एक ऐसे व्यक्ति को नवलखा हार पहनाया जिसने खुलकर कहा कि इस्लाम हमारा दुश्मन है? क्या हम यह भूल गए? क्या हम को परवाह नहीं है? क्या हम भी बिक गए?हम चुप क्यों हैं जब सांसारिक हित के लिए एक ऐसी सरकार अमेरिका से हथियार खरीद रही है जिसने हज और उमरह की जिम्मेदारी पर अपना अधिकार समझा है?जो अपने आप को खादिमुल हरमैन (हरम शरीफ का सेवक)कहते हैं?हम क्यों चुप हैं जब इन्हीं हथियारों का उपयोग मुसलमानों ही के खिलाफ होगा?क्या यह मुनाफेकत नहीं है?पल भर में इजरायल और अमेरिका के खिलाफ हम सड़कों पर उतर कर विरोध करने लगते हैं लेकिन क्या हमें इन आवश्यकताओं के खिलाफ आवाज नहीं उठाना चाहिए जिनकी सरपरस्ती अमेरिका करेगा?हाँ यह ज़रूर कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त लेकिन फिर यह बताइए कि दुश्मन का दोस्त हमारा क्या होता है?
आज हमको शर्म से सिर झुकाना चाहिए कि पाक सरज़मीन पर एक ऐसे व्यक्ति का जिसका केवल आगमन हुआ बल्कि उसका इतने वैभव से स्वागत हुआ जिसने मुसलमानों और इस्लाम को बुरा कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हम किस मुंह से पश्चिमी देशों की मुनाफेकत का उल्लेख कर सकते हैं जब इस्लाम के सभी प्रमुख और सत्ताधारी लोग एक ऐसे व्यक्ति का भाषण सुनने के लिए एकत्र होते हैं जिसने कहा कि मैं सोचता हूँ कि इस्लाम हमसे नफरत करता हैlयह तो बात रहने दीजिए ट्रम्प को मुसलमानों और इस्लाम में अंतर पता ही नहीं है,ट्रम्प ने गुस्सा दिलाने वाली बातें एक बार नहीं बारी-बारी विभिन्न अवसरों पर कि हैं, देखें।
मार्च 2011 में ओबामा की नागरिकता को संदिग्ध साबित करने के लिए कहा कि शायद ओबामा के पास बर्थ सर्टिफिकेट नहीं है और अगर है भी तो शायद उनके लिए इसे सार्वजनिक करना खतरनाक होगा, शायद धर्म की जगह मुसलमान लिखा हो।
सितंबर 2015 में चुनाव के दौरान न्यू हमशायर में एक व्यक्ति ने खड़े होके कहा कि हमारे देश के असली दुश्मन मुसलमान हैं। उनके प्रशिक्षण शिविर हैं। उन्हें हम कब निकालें गे? ट्रम्प ने कहा हाँ बहुत लोग यह कह रहे हैं कि बहुत खराब खराब चीजें हो रही हैं लेकिन हमारी प्रतिक्रिया अलग होगी,और हम उसे बारीकी से देखेंगे।
सितंबर 2015 ट्रम्प से पूछा गया कि वह अमेरिका में एक मुस्लिम राष्ट्रपति लोकतंत्र के चुने जाने से संतुष्ट होंगे। उत्तर न देते हुए कहा कि हां यह हो सकता है कि एक मुसलमान भविष्य में चयन हो लेकिन अब इस संबंध में बात करने से कोई लाभ नहीं।
सितंबर 2015 एक रैली में ट्रम्प ने कहा कि अगर वे जीत गए तो सभी सीरिया के शरणार्थियों को निकाल दिया जाएगा क्योंकि वह शायद आइएस के सिपाही हों।
दिसंबर 2015में फॉक्स न्यूज पर कहा कि वह इस पर विचार करेंगे कि अमेरिका की सभी मस्जिदें बंद कर दी जाएं।
दिसंबर 2015 ट्रम्प ने कहा मस्जिदों से लोग जब निकलते हैं तो उनके दिलों में अमेरिका के लिए नफरत है तो अमेरिका में मुसलमानों के आगमन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
फ़रवरी 2016 टेलीविजन की एक इंटरव्यू के दौरान ट्रम्प ने पूछा 9/11 किसने करवाया? इराकियों ने तो नहीं करवाया, सऊदियों ने आप कागजों का अध्यन कीजिये।
मार्च 2016 ट्रम्प ने सीएनएन चैनल पर कहा शायद इस्लाम हमसे नफरत करता है।
मई 2016ट्रम्प ने कहा कि उन लोगों (मुसलमानों)को हमारे हवाले करना पड़ेगा जो विमानों पर बम दागते हैं।
2015-2016-2017 में आवधिक बार ट्रम्प ने इस्लामी आतंकवाद का उल्लेख किया कि ओबामा यहाँ तक कि बुश जिसने अफगानिस्तान और इराक पर हमला किया ऐसी शब्द का उपयोग नहीं करते थे बल्कि हिंसक आतंकवाद कहते थे। इसके अलावा उन्होंने कई बार इन तीन वर्षों में एक अमेरिकी जनरल का उदाहरण दिया। जेनरल ब्लैक जैक पारशिंग के बारे में कहा जाता है कि 1899-1902तक जब अमेरिका फिलीपींस में अपना सिक्का जमा रहा था तो उन्होंने मुस्लिम विद्रोहियों को नेस्तनाबूद करने के लिए अपनी सेना के बंदूक के कारतुस को सुअर के रक्त में डुबो कर फिर उपयोग करवाया,इतिहासकारों का कहना है कि यह किस्सा एक फ़साना है लेकिन ट्रम्प ने उसे एक ऐतिहासिक घटना के रूप में पेश किया कि आज जेनरल के उस कदम की नकल करना चाहिए।
मई 2017ट्रम्प सऊदी अरब गए जहां उनके साथियों ने सलाह दी कि वे इस्लामी चरमपंथ न कहकर इस्लामी उग्रवाद कहें। सचमुच दोनों शब्दों में अधिक अंतर नहीं है लेकिन इस्लामिक यानी इस्लाम से संबंधित और इस्लामिस्ट यानी राजनीतिक इस्लाम से संबंधित l ट्रम्प ने आखिरकार इस्लामिक ही कहा। इसके अलावा ट्रम्प ने कहा कि इस्लाम दुनिया के महान धर्म में से एक धर्म है।
अव्वल तो अजीबो गरीब बात यह है कि एक साल के अंदर ट्रम्प ने सऊदी अरब के बारे में अपनी राय बदल दी। जब मुसलमानों के अमेरिका में आगमन पर प्रतिबंध लगा तो सऊदी अरब के निवासियों पर बेन लगा कि 9/11 में 19 में से 15 लोग सऊदी अरब की नागरिकता रखते थे। बेन किस पर लगा? सीरियाई, इराक,यमन और अन्य गरीब और जंग के मारे लोग अरब देशों के लोगों पर। यह सब मक्र व फरेब तो सामने की बात है लेकिन आप खुद पूछें कि कोई इसके बारे में टिप्पणी क्यों नहीं कर रहा है? आज यमन में हैजा और भूक के कारण दसियो हजार लोग मर रहे हैं। सऊदी अरब ने अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल किया और एक पूरे देश को नष्ट कर दिया lलेकिन हम खामोश हैं। हमें केवल गैर मुस्लिम के बातों की परवाह होती है। मुसलमान चाहे जो भी इस्लाम के नाम पर करे हमसे क्या मतलब? याद रहे एक अल्लाह तआला और सर्वशक्तिमान ने कुरआन में सख्त ताकीद की है कि मुनाफिक काफिर से भी बदतर होता है।
आज भारत के मुसलमान दुख और कठिनाइयों से पीड़ित हैं लेकिन हमारे लिए गर्व की बात है कि हम अपनी बेबसी और बेचारगी के बावजूद दुनिया में अपने भाइयों ओ रबहनों को नहीं भूलते हैं। हमारा कर्तव्य बनता है कि जहां भी अत्याचार हो हम इसके खिलाफ आवाज बुलंद करें। आज ट्रम्प और सउदी अरब के राजा के वाणिज्यिक मामले हमारे लिए इबरत का कारण होना चाहिए कि नियम और विवेक कैसे सांसारिक हित के लिए बेच दिए जाते हैं। आज केवल भारत में नहीं दुनिया में ताग़ूती ताकतें मुसलमानों को आपस में लड़ाने पर आमादा हैं। शिया को सुन्नी से लड़ाया जा रहा है और सूफी को सल्फ़ी से लेकिन जरा रुकिए और यह सोचिए कि जब हम एक दूसरे को मार काटकर ख़तम कर देंगे तो लाभ किसका होगा।तागुत से हाथ मिलाना और उससे सुलह करना इस्लामी सिद्धांत के खिलाफ है चाहे मध्य पूर्व में सउदी अरब करे और चाहे भारत में कुछ शिया और सुन्नी। दुनिया हमको तब मुनाफिक समझे गी जब तक हम अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखते और बुरे को बुरा कहें और अच्छे को अच्छा चाहे वह किसी भी विचारधारा या संप्रदाय का हो।
27 मई, 2017 स्रोत: इंक़लाब, नई दिल्ली
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