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Critical Tussle in Pakistan over Insult to Islam: Way Ahead आहत करने वाली असहिष्णुता

 

सी उदय भास्कर

23 सितम्बर, 2012

भड़काऊ इस्लाम विरोधी वीडियो के विरोध में गत शुक्रवार को पाकिस्तान में हिंसा और भड़क गई। पूरे मुस्लिम जगत और पाकिस्तान में भड़की ताजा हिंसा में 19 लोग मारे गए और दो सौ से अधिक घायल हो गए। अधिकांश लोगों की मौत पुलिस फायरिंग में हुई। 11 सितंबर को लीबिया में अमेरिकी राजदूत की हत्या के बाद से अब तक 49 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हैं।

शुक्रवार को कराची, पेशावर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी में सबसे अधिक हिंसा हुई। बांग्लादेश समेत मुस्लिम जगत के अन्य हिस्सों में भी इसी प्रकार के हिंसक प्रदर्शन हुए, जिनमें कहीं-कहीं तो दस हजार तक लोग शामिल हुए। पाक सरकार ने उम्मीद की थी कि शुक्रवार को छुट्टी का दिन होने के कारण वह लोगों का गुस्सा शांत करने में कामयाब हो जाएगी, किंतु ऐसा नहीं हुआ। इस बीच यूरोप की कुछ पत्रिकाओं में छपने वाले कार्टून ने फिल्म से भड़की आग में घी डालने का काम किया। पाकिस्तान की सरकार ने अपने फैसले को इस आधार पर सही ठहराने का प्रयास किया कि अगर वह इस दिन छुट्टी की घोषणा न करती तो पुलिस को लोगों को संभालने में और भी अधिक दिक्कत होती, क्योंकि सड़कों पर भारी भीड़ होने की स्थिति में पुलिस को कार्रवाई में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता। हालांकि छुट्टी के इस दिन पाकिस्तान सरकार और राजनीतिक नेतृत्व ने सुरक्षित रास्ता अपनाया और लोगों को समझा-बुझाकर शांत करने के बजाय उनके आक्रोश को सड़कों पर निकलने दिया। परिणामस्वरूप अवसरवादी समूहों ने मौके का भरपूर लाभ उठाया और जमकर हिंसा और तोड़फोड़ की।

पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी जनभावनाएं बहुत उग्र हैं। इस साल हुए एक सर्वेक्षण में चार में से तीन पाकिस्तानियों ने अमेरिका को शत्रु बताया था। इसके बाद एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के ऑपरेशन को लेकर अमेरिका-पाक सेना के रिश्तों में खटास आ गई। पाकिस्तान का अपेक्षाकृत बौद्धिक वर्ग इस बात को लेकर सजग है कि अमेरिका या पश्चिम विरोध समस्याओं से घिरे इस देश में कोई समाधान नहीं है। पाकिस्तान में यह धारणा है कि इस्लाम के सिद्धांतों और व्यवहार की वर्तमान व्याख्या बेहद घातक सिद्ध हो रही है। अगस्त 1947 से पाकिस्तान को इस यक्ष प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है कि एक अच्छा मुसलमान कौन और कैसे है? हिंसा को ही आस्था की रक्षा का प्रकटीकरण बताने वाले दौर में 19 सितंबर को इस्लामिक धर्मशास्ति्रयों और विचारकों के बीच हुआ प्रासंगिक वाद-विवाद उम्मीद की किरण नजर आता है।

पाकिस्तान में इस्लामिक विचारधारा की परिषद के अध्यक्ष सीनेटर मोहम्मद खान शिरानी ने जोर देकर कहा कि मुसलमानों के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वे अपनी विफलताओं के लिए औरों को दोष देना बंद करें और ज्वलंत मुद्दों का समाधान निकालने के लिए आत्मनिरीक्षण करें। उन्होंने आगे कहा कि मानव जाति में अंतरभेद के बजाय समान पहलुओं को रेखांकित किया जाना चाहिए। उन्होंने खंडित समाज में शांति और सहिष्णुता के प्रोत्साहन के लिए मजहबी विद्वानों की जमात को आगे आने को कहा। पाकिस्तान का पुराना रोग है इस्लाम की मनगढं़त व्याख्या के आलोक में बड़ी सावधानी से अन्य विरोधी सामाजिक-पंथिक वातावरण का निर्माण और असहिष्णुता के राजनीतिक प्रतिष्ठान द्वारा इसे जानबूझकर बढ़ावा देना। इस अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता का प्रस्तुतिकरण जुल्फिकार अली भुट्टो तथा उन्हें फांसी पर लटकाने वाले जनरल जिया उल हक ने किया। धीरे-धीरे इस अल्पसंख्यक विरोधी हमलावर समूह का विस्तार न केवल हिंदुओं, ईसाइयों, अहमदियों, बल्कि खासे बड़े समुदाय शिया अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी हो गया। हालिया वर्षो में पाकिस्तान में शिया नागरिकों की हत्याओं की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है और बहुत से मामलों में सरकार भी सीधे-सीधे दोषी है।

हाल ही में कराची में एक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्या से खतरे की घंटी बज चुकी है। हिंसक विरोधों के हालिया चक्र और मौत व विनाश को सही ठहराने के उन देशों व समाजों के लिए घातक परिणाम होंगे जो भड़काऊ इस्लाम विरोधी फिल्म के रिलीज होने के बाद की घटनाओं पर तटस्थ दृष्टिकोण रखने से इन्कार करते हैं। दुनिया भर में इस्लाम विरोधी ताकतों को मुसलमानों को सताने और अपने घरेलू कानूनों को इस तरह संशोधित करने में कोई हिचक नहीं होगी कि नागरिकों की बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा हो। वाशिंगटन में, मिडल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने सूफियों, शियाओं, यहूदियों और ईसाइयों के खिलाफ अरब व मुस्लिम मीडिया में अकसर जारी होने वाले घृणा से भरे वीडियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। यह रिपोर्ट हताश करने वाली है। पाकिस्तान में भी कुछ साहसी लोग इस्लाम के मूल तत्वों और खुद मोहम्मद साहब (स.अ.व.) ने जिस सहिष्णुता का प्रदर्शन किया था उससे लोगों को परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं। मोहम्मद साहब ने अपने जीवनकाल में उनका अपमान करने वालों और उन्हें भड़काने वालों के साथ भी सहिष्णुता दिखाई थी।

पैगंबर मोहम्मद के आखिरी धर्मोपदेश का संक्षिप्त अंश, जिसकी ओर सुल्तान शाहीन (एडिटर, न्यु एज इस्लाम) ने मेरा ध्यान खींचा है, और जो सही रास्ते पर प्रकाश डालता हैः

पूरी मानवजाति आदम और हव्वा से जन्मी है, एक अरब गैरअरबी से श्रेष्ठ नहीं है, न ही गैरअरब किसी अरबी से श्रेष्ठ है, किसी श्वेत की अश्वेत पर श्रेष्ठता नहीं है, न ही अश्वेत श्वेत से श्रेष्ठ है। इसलिए स्वयं के प्रति अन्याय न करो। याद रखो, एक दिन आपको अल्लाह से मिलना और अपने कर्मो का जवाब देना है। इसलिए सावधान रहो। मेरे जाने के बाद नेकी का रास्ता न छोड़ना।

सी. उदय भास्कर सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।

स्रोतः दैनिक जागरण

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