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Hindi Section ( 4 Oct 2014, NewAgeIslam.Com)

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When They Were Told ‘You are not Muslims’ जब उन्हें कहा गया, तुम मुसलमान नहीं हो

 

बीबीसी विटनेस

 पाकिस्तान ने सितंबर, 1974 में संविधान में संशोधन कर अहमदिया संप्रदाय को ग़ैर मुस्लिम घोषित किया था.

हज़ारों अहमदिया परिवारों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर किया गया और सांप्रदायिक हिंसा में कई लोग मारे गए.

उस दौरान इन घटनाओं के गवाह रहे अब्दुल बारी मलिक और मोहम्मद अशरफ़ से बीबीसी विटनेस ने बात की.

मलिक और अशरफ़ बताते हैं, "1974 का साल था और पाकिस्तानी संसद ने अहमदिया संप्रदाय को ग़ैर मुस्लिम घोषित कर दिया."

तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को इस बदलाव के लिए भारी समर्थन मिला था. उन्नीस वर्ष पुराने इस विवाद पर राष्ट्रीय असेम्बली ने फ़ैसला सुना दिया था.

अब्दुल बारी मलिक बताते हैं, "मैं उस समय रबवा में अपने घर पर था और हमने यह ख़बर रेडियो पाकिस्तान पर सुनी. हमें विश्वास नहीं हुआ. इसके बाद मैं घर से बाहर निकला और कुछ दोस्तों से मिला. सभी इस ख़बर से हैरान और निराश थे."

क़ानून

 मलिक उस समय 20 वर्ष के थे. रबवा पाकिस्तान के पंजाब में रहने वाले 50 लाख अहमदियों का धार्मिक केंद्र है.

वो बताते हैं, "हमारे भविष्य का फ़ैसला असेम्बली कैसे कर सकती थी, क्योंकि उस दिन तक हम मुस्लिम थे, हम सभी बराबर थे. इसे लेकर हमारे मन में शंका थी कि इसके बाद प्रशासन, सरकार और बाकी लोग किस तरह का बर्ताव करेंगे."

अहमदी संप्रदाय 19वीं सदी में पंजाब के क़ादियान क़स्बे से शुरू हुआ था. इस संप्रदाय का संस्थापक मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को माना जाता है.

शुरू से ही बाक़ी मुसलमानों और ग़ुलाम अहमद के अनुयायियों में गंभीर मतभेद थे. जिसके चलते तनाव बढ़ता गया. मई 1974 में यह तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.

अब्दुल पड़ोस के कस्बे लालिया से ट्रेन से अपने घर लौट रहे थे.

हिंसा की शुरुआत

वो बताते हैं, "बोगी में सवार गुस्से भरे लोग बैठे थे. ललिया से रबवा तक मैं अहमदियों के बारे में उनका गुस्सा देखता रहा. वो अहमदिया संप्रदाय के संस्थापक के बारे में भद्दी बातें कर रहे थे और कह रहे थे कि अहमदी ग़ैर मुस्लिम हैं और उन्हें सबक सिखाया जाएगा."

"मैं चिंतित हो गया. रबवा स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन पहुंची वहां कुछ छात्र अहमदी युवाओं को पीटने लगे. इसमें दोनों तरफ लोग घायल हुए."

वो बताते हैं, "एक घंटे बाद जब ट्रेन फैसलाबाद पहुंची, वहां अहमदी लोगों को पीटा जाने लगा और उनकी दुकानों को लूट लिया गया और आग लगा दी गई."

अब्दुल बताते हैं, "उसी शाम हमने सुना कि बहावलपुर मेडिकल कॉलेज में अहमदी छात्रों को उनके हॉस्टल से निकाल दिया गया. उनकी किताबें जला दी गईं, उन्हें पीटा गया. इसके बाद यह हिंसा पूरे देश में फैलती गई."

अहमदियों की दुकानें लूटी गईं और सुन्नी मुस्लिमों ने पूरे देश में उनके घरों में लूटपाट की और जला दिया. माना जाता है कि इस हिंसा में सैकड़ों अहमदी मारे गए या घायल हुए.

डर और ख़ौफ़

 रबवा से क़रीब 140 किलोमीटर दूर गुर्जनवाला के मोहम्मद अशरफ़ बताते हैं कि एक व्यक्ति ने उनके चाचा और उनके पैर में गोली मार दी और फ़रार हो गया.

अशरफ़ बताते हैं, "खून बहुत बह चुका था और जब होश आया तो खुद को मैंने एक पिकअप ट्रक में पाया. अस्पताल में जब मेरी दोबारा आंख खुली तो चिकित्सकों ने बताया कि मेरे पैर काटना करना पड़ेगा."

वो कहते हैं, "उस समय मैं युवा था और टांग न रहने का मुझे काफ़ी दुख हुआ कि अब इस स्थिति में मुझसे कौन शादी करेगा."

अब्दुल कहते हैं, "जब संसद से क़ानून पास हुआ तो मुझे अपना घर छोड़ना पड़ा. कुछ अहमदी दोस्तों ने मेरी बहुत मदद की. जब सामाजिक बहिष्कार की वजह से खाने-पीने की चीजों की दिक्कत थी तो उन्होंने हर चीज़ उपलब्ध कराई जबकि दूसरी तरफ कुछ ऐसे अमहदी दोस्त थे जो डर गए थे या जानबूझकर पहचनाना भी छोड़ दिया और हमें क़ाफ़िर, क़ादियानी, ग़ैर मुस्लिम कहने लगे."

फ़ौज़ी हुक़ूमत

वर्ष 1984 में जब फ़ौज़ी हुक़ूमत ने अहमदी कहना भी अपराध बना दिया तो अहमदियों का भारी पैमाने पर पलायन हुआ.

अब्दुल कहते हैं, "एक युवा के रूप में मैं इस देश के लिए कुछ करना चाहता था लेकिन, इसके बाद तो मेरा सपना टूट गया. इसके बाद हमने किसी और देश में नए सिरे ज़िदगी शुरू करने का फ़ैसला लिया."

अब्दुल और अशरफ़ दोनों ही उत्तरी इंग्लैड में बस गए, जहां अहमदी लोगों की संख्या अधिक है.

स्रोतः http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2014/10/141003_ahmadiyya_muslim_pakistan_surviver_sr

URL: https://newageislam.com/hindi-section/when-they-were-told-‘/d/99372

 

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