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Hindi Section ( 21 May 2014, NewAgeIslam.Com)

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Ideological Roots of Terrorism आतंकवाद की वैचारिक जड़ें

 

 

 

 


बासिल हेजाज़ी, न्यु एज इस्लाम

20 मई, 2014

कहा जाता है कि इस्लाम सहिष्णुता और उदारता को पसंद करने वाला धर्म है और हिंसा और आतंकवाद को पूरी तरह खारिज करता है, इस सम्बंध में कुरान कहता है कि:

ادْعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَوْعِظَةِ الْحَسَنَةِ وَجَادِلْهُم بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ (النحل 125

उदओं एला सबीले रब्बोका बिलहिक्मते वलमौएजतिल हसनते वजादेलहुम बिल्लती हेया आहसनो (अल-नहलः 125)

अपने रब के मार्ग की ओर तत्वदर्शिता और सदुपदेश के साथ बुलाओ और उनसे ऐसे ढंग से वाद विवाद करो जो उत्तम हो।

इसलिए सशस्त्र इस्लामी संगठन जैसे अलकायदा और दाएश आदि इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करते आदि...

ये बात इस्लामी विद्वानों से अक्सर सुनने में आती रहती है, ऐसी बातों का उद्देश्य लोगों में खासकर आम मुसलमानों और गैर मुसलमानों पर इस्लाम की तस्वीर खूबसूरत बना कर पेश करना होता है जो अच्छी खासी बिगड़ चुकी है और लोग खासकर नौजवान और पढ़ा लिखा वर्ग इससे बड़ी संख्या में बाहर हो रहा है। वजह इसकी ये है कि ये बातें इस्लाम की ज्ञात इतिहास से टकराती हैं जो जंगो, अत्याचार, दमनकारी सरकारों, फ़ुक़्हा (न्याशास्त्रियों) के अमानवीय फतवों और ग्रंथों से भरा पड़ा है जैसे कुरान और सुन्नत और नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सीरत (जीवनी) जो सिलसिलेवार दर्जनों ऐतिहासिक स्रोतों में सूचीबद्ध है लेकिन फिलहाल ऐसी बातों का खण्डन हमारी चर्चा का विषय नहीं है बल्कि इस्लामी आतंकवाद की जड़ें और वैचारिक आधार हमारे विषय हैं जिनको जाने बिना हम कभी भी इस खतरनाक आफत का इलाज नहीं कर पाएंगे जिससे धरती के सभी लोगों को खतरा है और जिसकी आग में गैर मुस्लिम क्या मुसलमान भी जल रहे हैं। इस विचारधारा की कुछ बुनियादें ये हैं:

1- ये विश्वास कि सच केवल एक है, इससे ज़्यादा नहीं (नाजी समुदाय)

2- ये विश्वास कि हर इंसान सच्चाई तक आसानी से पहुँच सकता है क्योंकि सच्चा धर्म बुद्धि और प्रकृति के मुताबिक है (फितरतल्लाहिल लती फतरन्नासा अलाहा (अल-रोमः 30) अल्लाह की वो प्रकृति जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है) 3- ये विश्वास कि केवल हमारे पास ही पूर्ण सच्चाई है और हम सच्चे धर्म पर हैं।

4- ऊपर के तीन मुकदमों का नतीजा ये है कि विरोधी अवश्य ही झूठ पर हैं, वो सच्चाई जानते हैं लेकिन वो अपनी आत्मा और शैतान की पैरवी कर रहे हैं (उदखोलू फिस्सलमे काफ्फतन वला तत्तबेऊ खोतनातिस् शैताने (अल-बक़रा 108)- इस्लाम में पूरे दाखिल हो जाओ और शैतान के पीछे न चलो)

5- ये विश्वास है कि सच्चाई की कामयाबी के लिए झूठ से लड़ाई ज़रूरी है, यानी जो लोग झूठ पर हैं उन्हें क़त्ल करके  उनका हमेशा के लिए खत्मा कर दिया जाए (फकातेलू औलिया अश्शैताने (अल- निसाः 76)- सो तुम शैतान के मददगारों से लड़ो)

6- परलोक और जन्नत और जहन्नम पर विश्वास कि यही असल वास्तविक और अनन्त जीवन है और ये सांसारिक जीवन सिर्फ परीक्षा की जगह है ताकि मोमिन और गैर मोमिन में फर्क हो सके इसके अलावा इसकी कोई कदर व क़ीमत नहीं है।

7- आखरी आधार जो उपरोक्त सभी मुक़दमों पर आधारित है यानी उसका नतीजा है कि इस दुनिया में इंसान और उसके अधिकार  की कद्र न की जाए, इन्हीं आधारों पर आतंकवाद की इमारत खड़ी है और उन्हीं से अपनी सारी ताक़त हासिल करती है, अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ये सारी बुनियादें इस्लाम के अंदर मौजूद हैं इसीलिए हम कहते हैं बल्कि अब तो सारी दुनिया कहती है कि हर मुसलमान आतंकवादी है कि वो या तो अमल से आतंकवादी है या अपने विचार से यानी हर स्थिति में अपने सिर में आतंकवाद का बीज लिए घूमता है।

जहां तक बात इलाज की है तो या तो मुसलमान इस्लाम छोड़ दे और नास्तिक हो जाए जैसा कि अधिकांश पढ़े लिखे हज़रात कर रहे हैं जो कि ज्यादातर लोगों के लिए हालांकि एक मुश्किल काम होगा खासकर जबकि नास्तिकता उनके मनोवैज्ञानिक और वैचारिक समस्याओं को पूरी तरह हल नहीं करता या फिर आरिफ़ीन का मसलक (पंथ) अपनाएं जो आतंकवाद पर उकसाने वाले उपरोक्त सात बिंदुओं से बिल्कुल पाक है और निम्नलिखित पक्ष रखता है:

1- ये विश्वास कि वास्तविकता कई हैं और हर व्यक्ति या धर्म के पास सत्य का सिर्फ एक हिस्सा है पूरी सच्चाई नहीं।

2- ये विश्वास है कि सच तक पहुंचना मुश्किल है क्योंकि ये समस्या मानसिक और बौद्धिक नहीं है बल्कि हृदय से सम्बंधित है।

3- ऊपरोक्त दो बिंदुओं का अंतिम परिणाम ये है कि पूर्ण सत्य या वास्तविकता किसी के पास नहीं इसलिए ऐसा कोई धर्म नहीं है जिसके पास पूर्ण सच्चाई हो और परिणाम के रूप में बाकी सारे झूठ हो जाएं।

4- और ऊपरोक्त तीन बिंदुओं का नतीजा ये है कि विरोधी को मारना जायज़ नहीं क्योंकि न तो वह झूठ पर है और न ही वो शैतान की पैरवी कर रहा है।

5- सच्चाई की कामयाबी का मतलब है कि आदमी सही राह पाने के लिए अपना खुद हरकत करे जिसका सबसे आसान तरीका लोगों की सेवा करना और उनकी समस्याओं को हल करना है न कि उनसे लड़ना और दुश्मनी रखना।

6- ये विश्वास कि परलोक इसी जीवन में मौजूद है, बल्कि इसे उसी जीवन के आंतरिक का स्थान हासिल है और जन्नत व जहन्नम, संतुलन और गणना सब इसी जीवन का हिस्सा हैं मौत के बाद नहीं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि जिंदगी के बाद जीवन का कोई अस्तित्व नहीं लेकिन वो केवल धार्मिक लोगों के लिए है हालांकि इस पर कोई तर्कसंगत दलील नहीं है बल्कि ये सिर्फ एक ईमानी समस्या है और इस दुनिया में इंसान की ज़िदगी के लिए कतई खतरनाक नहीं है बल्कि  इसका विवरण काफी लंबी है जिसका वर्णन यहाँ निरर्थक है।

7- उपरोक्त सभी बिंदुओं का अंतिम परिणाम ये है कि हर इंसान चाहे उसका धर्म व पंथ कुछ भी हो सम्मान के लायक़ है, उसके अधिकार सम्मान के लायक़ हैं और उसके साथ हमेशा अच्छा व्यवहार किया जाना चाहिए, ये जीवन भी सम्मान के लायक़ है क्योंकि ये इंसान पर खुदा का महानतम आशीर्वाद है।

और ऊपरोक्त सातों बिंदुओं की निश्चित रूप से एक लंबी व्याख्या व विवरण है लेकिन मैं फिलहाल पाठकों की अक़ल पर निर्भर कर रहा हूँ।

न्यु एज इस्लाम के स्तम्भकार बासिल हेजाज़ी पाकिस्तान के रहने वाले हैं। स्वतंत्र पत्रकार हैं, धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन और इतिहास इनके खास विषय हैं। सऊदी अरब में इस्लामिक स्टडीज़ की पढ़ाई की, अरब राजनीति पर गहरी नज़र रखते हैं, उदार और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के ज़बरदस्त समर्थक हैं। इस्लाम में ठहराव का सख्ती से विरोध करते हैं, इनका कहना है कि इस्लाम में लचीलापन मौजूद है जो परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता रखता है। ठहराव को बढ़ावा देने वाले उलमाए इस्लाम के सख्त रुख के कारण वर्तमान समय में इस्लाम एक धर्म से ज़्यादा वैश्विक विवाद बन कर रह गया है। वो समझते हैं कि आधुनिक विचारधारा को इस्लामी सांचे में ढाले बिना मुसलमानों की स्थिति में परिवर्तन सम्भव नहीं।

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