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Hindi Section ( 15 Nov 2011, NewAgeIslam.Com)

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Who is a Progressive Muslim प्रगतिशील मुसलमान कौन हैं?


असग़र अली इंजीनियर (अंग्रेजी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

एशियन मुस्लिम नेटवर्क (अमन) के इस साल फरवरी में पट्टाया, थाईलैण्ड में हुए जलसे में इस विषय पर भी विचार विमर्श हुआ कि आखिर एक प्रगतिशील मुसलमान होने के लिए क्या शर्तें होनी चाहिए। मुझे इस विषय पर बोलने को कहा गया और जो कुछ इस सभा में मैंने कहा वो है-

एक प्रगतिशील मुसलमान वो है जिसका व्यवहार सत्य, न्याय, करुणा और ज्ञान के कुरानी मूल्यों पर आधारित हो, और जो दूसरों से अपनी सेवा कराने की जगह खुद दूसरों की सेवा करता हो। एक प्रगतिशील मुसलमान साम्प्रदायिक इस्लाम (सुन्नी, शिया, इस्माईली, देवबंदी या बरेलवी, अहले हदीस या सल्फी) में विश्वास नहीं रखता है बल्कि सभी पंथों से ऊपर उठकर सबसे ज़्यादा कुरान को अहमियत देता है।

एक प्रगतिशील मुसलमान साम्प्रदायिक दृष्टिकोण नहीं रखता है बल्कि कुरान के अनुसार पूरी मानवता और मानव गरिमा का आदर करता हैः और हमने बनी आदम को इज़्ज़त बख्शी और उनको जंगल और दरिया में सवारी दी और पाकीज़ा रोज़ी अता की और अपनी बहुत सी मख्लूक़ात पर फज़ीलत दी(17:70)

इस तरह किसी के भी साथ वैचारिक औऱ धार्मिक मतभेद को अल्लाह पर छोड़ देता है और किसी को काफिर मान कर निंदा नहीं करता है, जैसा कि साम्प्रदायिक मानसिकता के मुसलमान अक्सर करते हैं। इस तरह का दृष्टिकोण मतभेद और विवाद को बढ़ाता है। एक प्रगतिशील मुसलमान कुरान के अनुसार ज्ञान और अच्छे शब्दों का प्रयोग करता है वो न्यायाधीश बनने की कोशिश नहीं करता है।

एक प्रगतिशील मुसलमान व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से प्रभावित नहीं होता है और हमेशा अपनी राय के मुकाबले में ज्ञान को अहमियत देता है। कुरान पक्षपातपूर्ण राय की निंदा करता है और ज्ञान को बढ़ावा देता है। इसके अलावा मन का खुलापन एक गुणवत्ता है जो अभिमान से बचने में मदद करता है और अहंकार, ज्ञान के बजाये अज्ञानता के कारण ज़्यादा पैदा होता है। जो बहुत कम ज्ञान रखते हैं वो ज़्यादा अभिमानी होते हैं और जो ज्ञान के उच्च दर्जे पर होते हैं वो अपनी सीमाओं को जानते हैं इसलिए विनम्र होते हैं।

एक प्रगतिशील मुसलमान सबसे पहले अपने धर्म का गहराई से अध्ययन करता/ करती है और दूसरे धर्म के सम्मान  का पूरा ध्यान रखते हुए विभिन्न धर्मों के बीच मतभेदों के कारण को जहाँ तक सम्भव हो वास्तविक रूप में समझने का प्रयास करता है। ऐसे लोग जिन्हें अपने धर्म का पता नहीं होता है और दूसरों के धर्म के बारे में भी बहुत कम जानते हैं वही दूसरों के धर्मों की निंदा करते हैं। कुरान कहता हैः और जिन लोगों को ये मुशरिक खुदा के सिवा पुकारते हैं उनको बुरा न कहना ये भी कहीं खुदा को बेअदबी से बेसमझे बुरा (न) कह बैठें (6:108)

इस आयत में अल्लाह फरमाता हैः इस तरह हमने हर एक फिरके के आमाल (उन की नज़रों में) अच्छे कर दिखाये हैं। फिर उनको अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है जब वो उनको बतायेगा कि वो क्या किया करते थे। इस तरह वो अल्लाह ही है जो अंत में फैसला करेगा। हम इंसान जब फैसला करेंगे तो हम ज्ञान और निस्वार्थ न्याय की जगह अज्ञानता और अहंकार में फैसला करते हैं।

इस आयत के अहम शब्दों में, हर इंसान के लिए हमने उसके आमाल अच्छे कर दिखाये हैं। फिर दूसरों के विश्वास और व्यवहार की निंदा करने वाले हम कौन होते हैं? ये खुदा को तय करने दीजिए कि कौन अपने विश्वास में सही है और कौन गलत है।

एक प्रगतिशील मुसलमान बहुलतावाद का जश्न मनाता है, क्योंकि विविधता अल्लाह की रचना है अगर खुदा चाहता तो सबको एक ही समुदाय बनाता (5:48) कुरान ये भी कहता हैः जन्नत, दुनिया और भाषा व रंग की विविधता की रचना में खुदा की निशानियां हैं और निचित रूप से इनमें ज्ञान वालों के लिए निशानियां हैं। इस तरह एक प्रगतिशील मुसलमान किसी भाषा के बोलने वाले या किसी रंग व नस्ल के मानव के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखता है, क्योंकि उसके अनुसार सभी अल्लाह के बंदे हैं।

इसी तरह मर्द और औरतें दोनों अल्लाह की रचना है और दोनों के साथ सम्मान के बराबर दर्जे के साथ व्यवहार करने की आश्यकता है। अल्लाह ने सभी प्रजातियों को जोड़े में पैदा किया है और ये सभी प्रजातियों के अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है। कोई भी प्रजाति तब तक बाकी नहीं रहेगी जब तक कि वो जोड़े में न हो। इस तरह जोड़े में स्त्री और पुरुष दोनों के रूप अहम हैं और मानवों में भी मर्द और औरतों के साथ बराबरी का व्यवहार किय़ा जाये।  लैंगिक सम्बंध सामाजिक और सासंकृतिक आधारों को प्रतिबिम्बित करता है, जबकि समानता और निष्पक्षता इस्लामी मूल्य हैं।

एक प्रगतिशील मुसलमान इसे जानता है और और मर्द व औरतों के साथ समान व्यवहार करता है और दोनों के समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने में सहयोग करता है। आज के परिदृश्य में लिंग समानता एक प्रगतिशील मुसलमान के लिए कसौटी है। औरतों की गुलामी, सामंती संस्कृति की पैदावार है, इस्लाम इसका विरोध करता है और लैंगिक समानता के सिद्धांतो का स्पष्ट रूप से ऐलान करता है(2:228) एक प्रगतिशील मुसलमान जानता है कि शरीअत ने पितृसत्तात्मक समाज की सांस्कृतिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कुछ प्रावधानों में पुरुषों को सर्वोच्चता प्रदान की है और ये कुरान और सुन्नत पर आधारित नहीं है।

इस तरह एक प्रगतिशील मुसलमान लैंगिक मामलों में कुरान के ऐलान को अहमियत देता है और सामंती व्यवस्था के तहत औरतों की गुलामी को नज़रअंदाज़ नहीं करता है और शरीअत के इन प्रावधानों को अटल और शास्वत नहीं मानता है। इसलिए एक प्रगतिशील मुसलमान वर्तमान समय में शरई कानून के पुनर्निर्माण की कोशिश करेगा ताकि महिलाओं को उनके अधिकार मिल सकें जो उन्हें कुरान ने प्रदान किये हैं। एक मोमिन दूसरे से बरतर नहीं हो सकता है। पुरुषों की सर्वोच्चता इंसानों की बनायी हुई है और एक इंसान की बनायी हुई चीज़ कैसे खुदा के हुक्म की जगह ले सकती है। इसके अलावा कौन बेहतर है और कौन कमतर इसका फैसला करने के लिए शारीरिक अंतर जैसे बच्चों को जन्म देना इत्यादि को शामिल नहीं किया जा सकता है।

एक प्रगतिशील मुसलमान ज्ञान हासिल करने को प्राथमिकता देगा क्योंकि ज्ञान प्रकाश और अज्ञानता अंधकार के समतुल्य है। अल्लाह मोमिनों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ.व.) ने फरमाया कि एक पल का ध्यान पूरी रात की इबादत से बेहतर है। इस तरह ज्ञान को इबादत ये अधिक प्राथमिकता दी गयी है।

एक प्रगतिशील मुसलमान की ये कुछ विशेषताएं हैं। जो भी अपने अंदर इन विशेषताओं को पैदा करेगा उसे समय की चुनौतियों और बदलती वास्तविकताओं के साथ चलने में कोई समस्या नहीं आयेगी।

स्रोतः डॉन, पाकिस्तान

URL for English article: https://newageislam.com/ijtihad-rethinking-islam/progressive-muslim/d/4418

URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/progressive-muslim-/d/5900

URL: https://newageislam.com/hindi-section/progressive-muslim-/d/5912


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