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Hindi Section ( 16 Feb 2012, NewAgeIslam.Com)

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Understanding the Quran कुरान की तफहीम


असग़र अली इंजीनियर (अंग्रेजी से अनुवाद-. समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

10 फरवरी, 2012

कुरान कैसे समझा जाए एक अहम सवाल है। आमतौर पर हम अपनी बात साबित करने के लिए विचार कर एक आयत का इंतेखाब (चयन) करते हैं। इस तरह बहुत से मुसलमानों का कुरान को समझने का अंदाज़ अलग है।

मुख्तलिफ तफहीम में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन इससे बद-नज़्मी (अव्यवस्था) नहीं पैदा होनी चाहिए। एक प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि कुरान को समझने के विभिन्न तरीकों के बावजूद इस प्रक्रिया को कुछ हिदायात (निर्देश) के तहत किया जाना चाहिए। तफहीम के उसूलों (सिद्धांतों) में समानता होनी चाहिए।

मैं, इस पर रौशनी डालना चाहूंगा कि कैसे एक विशेष निर्धारित प्रक्रिया के तहत कोई कुरान को समझने की कोशिश कर सकता है जिससे कि आमेरियत से बचा जा सके। एक विषय पर एक आयत लेना जबकि इस पर कई अन्य आयात हों तो यह उचित नतीजा नहीं दे सकता है लेकिन यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि बहुत से फुकहा करते हैं।

उदाहरण के लिए हम एक से अधिक शादी के मामले को लें। हमारे उलमा आमतौर पर आयत 4:3 को बिना शर्त एक से अधिक शादी के मामले में जवाज़ (औचित्स) के रूप में हवाला देते है।

लेकिन इस विषय पर एक और आयत है यानी 4:129; अगर आप दोनों आयात को एक साथ पढ़ा जाए तो अलग नतीजा हासिल होगा। दूसरी आयत में इंसाफ का ज़िक्र इस कदर मजबूत है कि एक के मुकाबले एक से अधिक पत्नियाँ रखना कम महत्व वाला हो जाता है; इंसाफ अधिक अहम हो जाता है और इसके बावजूद हमारे माहिरे कानून और फुकहा बमुश्किल ही आयत 4:129 का हवाला देते हैं।

वो सिर्फ आयत 4:3 का हवाला देना जारी रखते हैं। हालांकि आयत 4:3 भी इंसाफ पर जोर देती है, यह आयत ये भी कहती है कि अगर तुम्हें डर हो कि तुम इंसाफ नहीं कर सको तो एक वक्त में सिर्फ एक शादी करो। अगर दोनों आयात एक साथ पढ़ी जाएं तो ये काजी का फर्ज़ बन जाता है कि वो यो  जांच करें कि क्यों एक शख्स दूसरी बीवी चाहता है या हकीकत में उस शख्स को दूसरी बीवी की जरूरत है।

इसके अलावा, इंसाफ पर इतनी मजबूती के साथ जोर देने को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट नियम तैयार करने की जरूरत है जो स्पष्ट करे कि पत्नी के साथ किस तरह का अमल इंसाफ करने के बराबर होगा। इस पर कभी भी हमारे रवायती फुकहा ने अमल नहीं किया।

बीवी की पिटाई भी एक और अहम सवाल है, आयत 4:34 का हवाला देते हुए इसे बीवी की पिटाई की कुरान की इजाज़त के तौर पर पेश किया जाता है।

लेकिन महिलाओं के अधिकार और महिलाओं के साथ व्यवहार के बारे में अन्य सभी आयात इस आयत का खंडन करती हैं। इस मामले में जरूरत इस बात कि है कि महिलाओं के साथ व्यवहार पर सभी आयात को पढ़ें, और लफ्ज़ ज़रब(पिटाई के लिए) का इस्तेमाल करते हुए कुरआन की सभी आयात को पढ़ें और इसके नताएज (परिणाम) बहुत अलग होंगे।

ये ज़ाहिर करेगा कि कुरान बीवी की शौहर के द्वारा पिटाई की कभी इजाज़ नहीं दे सकता है। सबसे पहले ये क़ाबिले ग़ौर होना चाहिए कि औरतों से संबंधित सभी आयात में कुरान शौहर की तुलना में हितों पर जोर देता है और मर्दों से संबंधित सभी आयात में बीवियों की तुलना में,  उनकी जिम्मेदारियों पर जोर दिया गया है। अगर ऐसा है तो कैसे कुरान किसी शौहर को बीवी की पिटाई करने की इजाज़त दे सकता है? बीवी के साथ व्यवहार के मामले में और यहां तक कि तलाक के बाद भी आयतें कहती हैं कि औरतों के साथ एहसान और मारूउ का रवैय्या होना चाहिए।

इसके बाद, कुरान ये भी कहता है कि अल्लाह ताला ने शौहर और बीवी के बीच मोवद्दत और रहमत पैदा की। अगर शौहर को बीवी की पिटाई की इजाज़त दी गई तो दोनों के बीच मोहब्बत और रहम का कोई मतलब नहीं रह जाता है।

कोई दलील दे सकता है कि नुशूज़ (बगावत, सरकशी) के मामले में पिटाई की इजाज़त है, फिर अगर ये  नुशूज़, सरकशी है तो यह कितना गंभीर है कि इसके लिए पिटाई की आवश्यकता है? हकीकत ये है कि इस मामले में संजीदगी का इज़हार करने के लिए कुरान नुशूज़ के साथ किसी भी लफ्ज़ का इस्तेमाल नहीं करता है। एक फ़क़ीह जिनके साथ मेरी बातचीत हुई उन्होंने कहा कि नुशूज़ का मतलब बीवी के नाजायेज़ संबंध हैं। लेकिन अगर ऐसा है, तो शायद इसके लिए उस से अधिक गंभीर सजा की जरूरत है और सज़ा भी पति द्वारा नहीं बल्कि कानून या काजी की अदालत ही दे सकती है।

कुरआन में अन्य आयात हैं जिनमें लफ्ज़ ज़रब का इस्तेमाल कई दूसरे अन्य अर्थो में किया गया है। 12वीं सदी के लुग़त (शब्दकोष) लेखक इमाम राग़िब ने इशारा किया है कि कुरान से पहले अरबी में ज़रब के अर्थ एक ऊँट के ऊँटनी के पास सोहबत के जाने के था।

अगर हम इस अर्थ को लें तो आयत हमें बताएगी कि अगर बीवी सरकशी से बाज़ आ जाए तो शौहर उसके पास जा सकता है, और ये ज़्यादा मौज़ूँ अर्थ मालूम पड़ता है, क्योंकि आयत की पिछली लाइन शौहर को सलाह देती है कि किसी भी इंतेहाई कार्रवाई से पहले मुनहरिफ बीवी को अलग थलग कर दे। इसका मतलब यह होगा कि शौहर और बीवी के बीच सहमति होने के बाद, बीवी को अलग थलग करने के बाद शौहर को उसके पास जाना चाहिए।

इस तरह, आयत से बहुत अलग अर्थ बरामद होंगे, अगर हम कुरान फ़हमी के मुनासिब तरीके-कार अपनाएंगे। इससे बहुत फर्क पड़ जाता है। अभी तक रवायती (पारंपरिक) फुकहा के विचार के बाद आयतों के इंतेखाब करने के कारण यह परिणाम निकाला गया कि कुरान बीवी की पिटाई की इजाज़त देता है। और ये कुरान में एक और आयत 33:35 के पूरी तरह विपरीत है।

ये आयत हर मामले में मर्द और औरत दोनों को बराबरी का दर्जा प्रदान करती है और कहती है कि दोनों को समान रूप से उनके अच्छे कार्यों के लिए अदर व सवाब हासिल होगा, इसलिए एक का दूसरे पर पूरे अधिकार का सवाल ही नहीं पैदा होता है। इसके अलावा एक और बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि कुरान लफ्ज शौहर और बीवी के इस्तेमाल से बचता है। कुरान दोनों के लिए ज़ौज का इस्तेमाल करता है जो ज़ाहिर करता है कि खुदा दोनों के साथ समान व्यवहार करता है।

यह व्याख्या के लिए उदाहरण हैं और न कि व्यापक उदाहरण हैं। अगर हम इस क़िस्म की प्रक्रिया का इस्तेमाल कुरान फ़हमी के लिए करते हैं तो हमारे कई मसाएल आसानी से हल किए जा सकते हैं; कुरानी आयात के और अधिक व्यापक अर्थ तक पहुंचना आसान हो सकता है, और गैर मुसलमानों द्वारा उठाई जाने वाली बहुत सी आपत्तियों को आसानी से खारिज किया जा सकता है।

लेखक इस्लामी विद्वान और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सेकुलरिज़्म एण्ड सोसाइटी, मुंबई के प्रमुख हैं।

स्रोतः दि डॉन, कराची

URL for English article: https://newageislam.com/islamic-sharia-laws/understanding-quran/d/6595

URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/understanding-quran-/d/6636

URL for this Article: https://newageislam.com/hindi-section/understanding-quran-/d/6664


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