असद मुफ्ती
12 दिसम्बर, 2013
मेरे इस क़ालम की प्रेरणा शाह अब्दुल्ला का ये बयान है। ''फिलिस्तीन अरबों की समस्या है इसलिए गैर अरब इससे अलग ही रहें तो अच्छा है।' तो आइए देखते हैं कि ये अरब कौन हैं और क्या हैं?
इसराइल के आस पास चार ''इस्लामी देश' आबाद हैं। मिस्र जिसके बिना मध्य पूर्व में जंग नहीं हो सकती। दूसरा सीरिया, जिसके बिना मध्य पूर्व में शांति नहीं हो सकती। तीसरा जॉर्डन, जिसकी मौजूदगी की वजह से इसराइल और फ़िलिस्तीनियों में कोई विवाद खत्म नहीं हो सकता और चौथा लेबनान, जिससे सेकुलरिज़्म की उम्मीद की जा सकती है। इन चारों देशों का कुल क्षेत्रफल 15 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो सिर्फ 20 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल रखने वाले छोटे मिनी इसराइल राज्य के सामने बेबस और लाचार हैं। इन चार देशों में बसने वाले दस करोड़ 25 लाख मुसलमान 35 लाख यहूदियों के सामने या मुक़ाबले में सिर्फ गोभी के फूलों की हैसियत रखते हैं यानी डेढ़ अरब मुसलमान और 35 लाख यहूदी, है कोई मुक़ाबला?
सवाल ये है कि यहूदियों की तादाद कम होने के बावजूद उन्हें आज दुनिया में कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना क्यों नहीं, जिनका मुसलमानों को बड़ी तादाद में होने के बावजूद है। 58 इस्लामी देशों का सकल जीडीपी 2 खरब डॉलर के लगभग बताया जाता है जबकि अमेरीका का जीडीपी 14 खरब डॉलर है।
आज सारी अरब दुनिया जिनमें 22 देश शामिल हैं, इनमें सालाना 330 किताबों का अरबी भाषा में अनुवाद किया जाता है जबकि यूरोप के एक छोटे से देश ग्रीस में इससे पांच गुना से भी अधिक किताबें यूनानी भाषा में अनुवाद की जाती हैं। बताया जाता है कि ख़लीफ़ा मामून रशीद के शासन काल में उतनी ही किताबों का अनुवाद हुआ था जितना कि आज साल भर में स्पेन में किताबों का अनुवाद होता है।
आज विशेषकर अरबों और आम तौर मिल्लते इस्लामिया का ये हाल है कि मामूली इम्तेहान और लालच भी हमारे कदम डगमगा देती है। 68 इस्लामी या मुस्लिम देशों में बेहतरीन प्राकृतिक संसाधन मुसलमानों के हाथों में हैं। रक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण ज़मीनी, हवाई और समुद्री रास्ते मुस्लिम देशों की संपत्ति हैं। धन व संसाधनों के मामले में विकसित देश भी उनकी बराबरी करने में असमर्थ हैं। इसके बावजूद डर का आलम ये है कि अमेरिका के ज़ुल्म पर ज़बान भी खोलने को तैयार नहीं हैं। इसराइल और यहूदी कंपनियों, संस्थाओं और मीडिया के बॉयकाट भी नहीं कर पाते लेकिन इस खबर के अनुसार अब तो खाड़ी देशों में मस्जिदों के इमामों, यहूदी और ईसाईयों के खिलाफ बद्दुआ करते हुए भी घबराते हैं। इतना भी करने में असमर्थ हैं।
मेरे हिसाब से आज इस्लाम को जितनी चुनौतियों का सामना है, उसमें सबसे प्रमुख मीडिया का हमला है जिस पर सौ फीसद यहूदियों का क़ब्ज़ा है। टेलीविज़न, रेडियो, समाचार पत्रों और इंटरनेट आदि जैसे मीडिया हैं। वैश्विक स्तर पर सब के सब यहूदियों की पहुंच में हैं, वो जिस तरह चाहते हैं उन्हें इस्तेमाल करते हैं। ये मीडिया के ''माफिया'' हैं जो ये फैसला करते हैं कि किस प्रकार के मीडिया पर कौन सी खबरें या दृश्य दिखाए जाने हैं और किन घटनाओं से दुनिया को अंधेरे में रखना है। अगर वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कारोबार का जायज़ा लिया जाए तो पता चलेगा कि रेडियो और टेलीविज़न का 99 प्रतिशत उद्योग यहूदियों के क़ब्ज़े में है, जबकि फिल्म इंडस्ट्री का 80 फीसदी हिस्सा यहूदियों के पास है। प्रिंट मीडिया का जायज़ा लें तो अंदाज़ा होगा कि इस वक्त अमेरिका से 2 हज़ार अखबार प्रकाशित हो रहे हैं। इनमें से 75 प्रतिशत अखबारों के मालिक यहूदी हैं। एक यहूदी फर्म 50, 50 अखबार और मैग्ज़ीन प्रकाशित कर रही है।
''न्यूज़ हाउस' एक प्रकाशन संस्था है जो एक साथ 26 दैनिक अखबार और 24 मैग्ज़ीन प्रकाशित कर रहा है। इसके अलावा न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, वाशिंगटन पोस्ट, दुनिया के तीन बड़े अखबार हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रोज़ाना 95 लाख प्रतिया प्रकाशित होती हैं। इसके अलावा तीन बड़ी समाचार एजेंसियों जिनमें रॉयटर जैसी बहुत बड़ी एजेंसी शामिल है, यहूदियों की संपत्ति हैं। इस समय दुनिया में पांच बड़ी मीडिया फ़र्में हैं- वॉल्ट डिज्नी, टाइम वार्नर, वाया काम या पैरामाउण्ट , न्यूज़ कार्पोरेशन और सोनी। वॉल्ट डिज्नी दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी है उसके पास दुनिया के तीन बड़े टेलीविज़न चैनल हैं। ऐबीसी नाम का दुनिया का सबसे अधिक देखा जाने वाला केबल नेटवर्क है, सिर्फ अमेरिका में इसके एक करोड़ 50 लाख कनेक्शन धारक हैं ( दर्शकों का अंदाज़ आप खुद लगा लें) दो रेडियो प्रोडक्शन कंपनी, 3 फिल्में बनाने वाली कंपनियां, दो आर्ट के टीवी चैनल, ग्यारह रेडियो स्टेशन और दस एफएम चैनल हैं। दुनिया की 225 टेलीविज़न कंपनियाँ 'वॉल्ट डिज्नी कंपनी' से जुड़ी हैं। इसके अलावा यूरोप के अनगिनत चैनल और स्टेशन इसके निंयत्रण में हैं। इस मीडिया फर्म का चीफ इक्ज़ीक्यूटिव आफिसर एक यहूदी है जबकि इसके 99 फीसद डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, लेखक, मैनेजर्स और जनरल मैनेजर्स सब के सब यहूदी हैं।
मेरी इस छोटी सी समीक्षा से ये तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि व्यवहारिक रूप से पूरी दुनिया में मीडिया पर यहूदियों का कब्ज़ा है और दुनिया भर के सभी सर्च इंजन इनके हाथों में है। दुनिया को चलाने वाले 'की-बोर्ड' पर यहूदी बैठे हुए हैं। इन हालात में मुसलमानों या मिल्लते इस्लामिया से मेरी मांग है कि हालात छिपाने से उनमें परिवर्तन नहीं आता। हालात सामने लाए बिना और अपनी कमियों और कमज़ोरियों से आंखें चार किये बिना हम कैसे जान सकते हैं कि हम कहाँ पीछे रह गए हैं? ये बात तय है कि मिल्लत या उम्मत के पिछड़ेपन और अशिक्षा में सिर्फ मर्सिया पढ़ने से बदलाव नहीं आएगा।
आसमानों से पुकारे जाएंगे
हम इस धोखे में मारे जाएंगे
12 दिसम्बर, 2013 स्रोत: रोज़नामा जदीद खबर, नई दिल्ली
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