अरशद आलम, न्यू एज इस्लाम
23 सितंबर 2017
शायद अंतिम समाधान को व्यावहारिक रूप दे दिया गया हैl उस भूमि पर नहीं जहां यह नाज़ी विचार पैदा हुआ था बल्कि मयान्मार के दूर दराज इलाके मेंl एक बड़ी मुस्लिम आबादी पर आधारित सबसे गरीब राज्य को फ़ौजी दस्ते वीरान कर रहे हैं और पुरी दुनिया खामोशी के साथ बैठ कर तमाशा देख रही है जैसे कि दुनिया में कुछ हो ही नहीं रहा हैl
और यह तबाही निशाना बना कर कत्लेआम करके, पुरे गाँव को जला कर और राखाइन राज्य से मुसलामानों को जबरदस्ती शहर बदर करके अंजाम दी जा रही हैl जबर्दस्त विकल्पों वाले फ़ौजी दस्तों को एक नोबल पुरस्कार विजेता नेता की हिमायत प्राप्त हैl
पड़ोसी देशों के पास उन फ़ौजी ताकतों को अल्पसंख्यक मुसलामानों के साथ व्यवहार के बीच उदारवाद का प्रदर्शन करने पर मजबूर करने की ताकत है लेकिन वह विभिन्न कारणों के आधार पर ऐसा नहीं करेंगेl चीनीं अपने अपने पाईपलाइन के बारे में चिंतित हैं जो राखाइन राज्य से हो कर गुजरेगीl भारत उत्तर पूर्व राज्यों में रणनीतिक कारकों के बारे में चिंतित हैl इसलिए दोंनों म्यांमार को नाराज नहीं करना चाहते हैं और उन्हें अपनी हिमायत में रखना चाहते हैंl केवल बांग्लादेश को ही शरणार्थियों के खर्च का सामना है और अब तक उसने अपने देश में लाखों रोहंगिया मुसलामानों के रहने सहने के इंतेज़ामात कर दिए हैंl
यह शर्मनाक बात है कि सीमित संसाधनों के साथ बांग्लादेश सरकार भारत के मुकाबले में बहुत कुछ करने के लिए तैयार है, जो कि असल में सुप्रीम कोर्ट को यह बता रही है कि यह सरकार भारत की सीमाओं के अन्दर रहने वाले 40 हज़ार रोहंगिया मुसलामानों को देश से निकालना चाहती हैl ऐसा नहीं है बांग्लादेश में रोहंगिया मुसलामानों के साथ सब कुछ अच्छा हो रहा हैl उन्हें बहुत ही सीमित अधिकार प्राप्त हैं और ख़ास तौर पर उनकी ज़िंदगी उन अमानवीय कैम्पों में सीमित है जो उनके लिए तैयार किए गए हैं जिनमें शरणार्थियों को स्वतन्त्रता के साथ आवाजाही की भी स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं है और उन कैम्पों में एक सभ्य जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव हैl
यह बात उल्लेखनीय है कि रोहंगिया शरणार्थियों के मुसलमान होने के बावजूद मुस्लिम दुनिया में उन्हें कोई भी अपनाने के लिए तैयार नहीं हैl हाल ही में तुर्की ने यह एलान किया है कि वह उन हज़ारों रोहंगिया मुसलामानों के लिए बांग्लादेश को मुआवजा देगा जिन्हें यह देश पनाह देने के लिए तैयार नहीं हैl लेकिन तुर्की ने इस विचार पर बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया कि यह भी रोहंगिया मुसलामानों के लिए अपनी सीमाओं को खोल सकता हैl (Organization of Islamic Countries) इस्लामिक देशों की संगठन इन शरणार्थियों को पनाह देने के लिए बहुत कुछ कर सकती थी, लेकिन इस बार भी ओहंगिया मुसलमान उनके लिए ख़ुश आइंद नहीं हैंl जब बात रोहंगिया मुसलामानों की आई तो पुरी मुस्लिम उम्मत ने उनके उपर अपना दरवाज़ा बंद कर दिया हैl रोहंगिया मुसलामानों के समस्या पर मुस्लिम दुनिया के उन तथाकथित अलमबरदारों का ध्यान उनकी असफलता पर दिलाने की आवश्यकता हैl केवल प्रस्ताव स्वीकार करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा; जमीनी स्तर पर ऐसी कोई बात मौजूद नहीं है जिससे यह पता चल सके कि महानतम इस्लामी दुनिया भी रोहंगीय मुसलामानों की दुर्दशा से अवगत हैl
रोहंगिया संकट पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया अत्यंत शर्मनाक हैl भारत सरकार ना केवल यह कि म्यांमार पर दबाव डालने में असफल रही है, बल्कि उसने असल में अपनी खामोशी से म्यांमार की सेना को रोहंगिया मुसलामानों पर अपने क्रूर व्यवहार को जारी रखने की प्रोत्साहना की हैl यह सच है कि भारत सरकार को क्षेत्र में अपने भौगोलिक हितों का ख़याल रखना पड़ता है जिसका निर्माण वह रखाइन में कर रही हैl इसके अतिरिक्त भारत सरकार को म्यांमार के साथ चीन का करीबी होने पर भी नज़र रखनी होती है इसलिए कि चीन म्यांमार की फ़ौज के साथ अपनी हिमायत जारी रखे हुए है, ख़ास तौर पर इसकी एनर्जी पाईपलाइन रखाईन से गुज़रती हैl इसके अलावा भारत सरकार को इस बात की भी चिंता है कि अगर उसने म्यांमार को परेशान किया तो वह फिर दोबारा उत्तर पूर्व में बागियों को पनाह देना शुरू कर सकता हैl इन सब तथ्यों के बावजूद यह बात भारत सरकार के लिए आशंकाओं का कारण है कि रोहंगिया मुसलमानों के कुछ आतंकवादी लिंक भी सामने आए हैंl
लेकिन भारत सरकार ने रोहंगिया संकट पर जिस अंदाज़ में अपने प्रतिक्रिया को व्यक्त किया है इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अन्दर गंभीर बेचैनी का पता चलता हैl शायद वास्तविकता यह है कि रोहंगिया शरणार्थियों में मुसलमान एक बड़ी संख्या में हैं इसीलिए भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए दुनिया को केवल यह बता देना ही काफी है कि भारत में उनके लिए कोई जगह नहीं हैक्योंकि उनकी वजह से भारत को आतंकवाद के खतरे हैंl केवल यही नहीं कि भारत में रोहंगिया मुसलामानों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, बल्कि भारत सरकार इस देश में उपस्थित लगभग 40 हज़ार मुसलामानों को देश निकाला करने की योजना कर रही हैl यह सच है कि रोहंगिया शरणार्थियों के बीच कुछ ऐसे तत्व हैं जो विभिन्न आतंकवादी संगठनों के सदस्य हैंl लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस सबूत नहीं मिल सका है कि भारत में रहने वाले रोहंगिया शरणार्थीयों का आतंकवादियों से कोई संबंध हैl इसकी पुष्टि इस वास्तविकता से होती है कि अब तक उनके खिलाफ किसी भी देश विरोधी गतिविधि में लिप्त होने की एक भी एफ आई आर रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई हैl हमारे पास उनके विरुद्ध चोरी और भीतरी रस्साकशी जैसे मामलों की रिपोर्ट हैl
इसलिए केवल शक के आधार पर इस पुरी बिरादरी को आतंकवादी करार देना एक बेहूदा मज़ाक ही हैl ना केवल अंतर्राष्ट्रीय समुदाय बल्कि स्वयं इस देश के क्षेत्रीय लोग भी उससे सहमत नहीं हैं जो सरकार का रोहंगिया शरणार्थियों के बारे में कहना हैl लेकिन शायद उनकी राजनीति इस देश के उस वर्ग के स्वागत के लिए है जिसपर वर्तमान सरकार की अपील आधारित हैl भारत सरकार का यह कदम हिन्दू आबादी के एक ऐसे वर्ग के तुच्छ भावनाओं को अपील करता है जो मुसलामानों को एक विशेष संदर्भ में हमेशा आतंकवादी के तौर पर देखना चाहता हैl भारत सरकार का हलफनामा हिंदुओं के उसी वर्ग को खुश करने के लिए तैयार किया गया है और उसे 2019 के चुनाव के पृष्ठभूमि के विरुद्ध देखा जाना चाहिएl शायद इससे पहले कभी भी इस देश की विदेश नीति और मानवीय कदम को चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं प्रयोग किया गया हैl
रोहंगिया शरणार्थियों के बारे में बहस उस सामान्य दृष्टिकोण की ओर भी इशारा करता है कि जो आज इस देश की बहुमत रखती हैl टेलीविज़न पर बहस के दौरान बजा तौर पर यह दलील पेश की जा रही है कि भारत ने हमेशा पीड़ित व शोषित वर्ग की मेजबानी की है: चाहे वह मालाबार के यहूदी हों, शामी ईसाई हों या पारसी होंl लेकिन अब लोगों की सहमति इस बात पर बढ़ती जा रही है कि अब बहुत हुआl भारत कोई धर्मशाला नहीं है, और इसी पर लोगों की सहमति है, इसलिए रोहंगिया शरणार्थियों को अब भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकतीl इसलिए, इस वार्तालाप के बीच यह है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और इसके बावजूद इस देश ने लगभग सभी धार्मिक वर्गों को यहाँ आने और आबाद होने की अनुमति दी हैl
हिंदुओं की यह दरियादिली मुस्लिम गद्दारों के खिलाफ है जिन्होंने देश को विभाजित किया है और इसी कारण हिंदुओं को यहसहन नहीं करना चाहिएl चूँकि रोहंगिया शरणार्थी मुसलमान हैं उन्हें इस देश में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिएl दुसरे ही दिन एक वरिष्ठ नेता गोविन्द आचार्या ने कहा कि भारत में हिन्दू रोहंगिया शरणार्थियों का स्वागत किया जाना चाहिए जबकि मुस्लिम रोहंगिया शरणार्थियों को देश से बाहर कर देना चाहिएl अगर इससे हमें भारतीय समाज की बेचैनी और बेकरारी का अंदाज़ा नहीं होता तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि भारत को दुनिया के सभी पीड़ित हिंदुओं के एक देश के तौर पर उभरना होगाl अब उसी पार्टी की सरकार है और हमें यह याद रखना आवश्यक है कि इस पार्टी ने संसद में एक बिल पेश किया है जिसका उद्देश्य यह है कि इस देश में मुस्लिम शरणार्थियों के लिए कोई जगह नहीं हैl भारत को एक हिन्दू राष्ट्र की हैसियत से देखने का रवय्या अब एक सामान्य रूप धारण करता जा रहा हैl यहाँ तक कि अब नेक नियत रखने वाले हिन्दू भी यह पूछते हैं कि ‘मुस्लिम देश’ इन रोहंगिया शरणार्थियों को क्यों स्वीकार नहीं करतेl
इसलिए, अब यह भावना बढ़ावा पा रही है कि भारत एक हिन्दू देश हैl अगर यह सच हो तो भी दुर्भाग्य की बात यह सोच है कि इस देश को मुसलमानों के खिलाफ प्रतिद्वंद्वी व्यवहार रखना आवश्यक हैl
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