अरशद आलम, न्यू एज इस्लाम
22, दिसम्बर 2017
उन दृश्यों को देख कर दिल दहल गयाl एक व्यक्ति कुल्हाड़ी से लैस, पीछे से दुसरे व्यक्ति पर हमला करता है और उसकी ह्त्या करके उसके शरीर को आग लगा देता हैl और सब से घातक बात यह है कि उसका वीडियो एक चौदा साल के बच्चे ने बनाया थाl यह वास्तविकता कि कैमरा उस युवक के हाथ में कोई हरकत नहीं किया शायद उस घातक स्थिति का भेद खोलने वाली है जिसमें हम प्रवेश कर रहे हैंl इस किशोर लड़के का कैमरे को मजबूती के साथ थामना इस बात का इशारा है कि मासूमियत वाली नस्ल अब मर चुकी हैl हत्या का यह काम कैमरे के लिए अंजाम दिया गया थाl यह एक कारकर्दगी थीl अफराजुल को इन चित्रों और इसके पीछे निहित एक संदेश के प्रकाशन के लिए कत्ल किया गया जिसके लिए अफराजुल इस हादसे का शिकार हुआl उसकी जगह किसी मुसलमान को भी आसानी के साथ कत्ल किया जा सकता थाl लेकिन बंगाल का एक मजदुर और गरीब मुस्लिम इसका आसान लक्ष्य था इस शहर या स्थानीय क्षेत्रों में उसकी गिरफ्त मजबूत नहीं थीl आखिर कार बहादुरी और वीरता की बयान बाज़ी के लिए कौम परस्ती सबसे आसान बहाना हैl
इस दुर्घटना को किसी पागल और मजनू के काम के तौर पर पेश करने की संगठित कोशिशें की गईंl हमसे यह पूछा गया कि कौन ऐसा काम कर सकता हैl तथापि, “मानसिक त्रुटी” का सिद्धांत एक मुग़ालता आमेज़ रणनीति है क्योंकि बाद में यह कहा जाने लगा कि अतीत में शंभू लाल ने कभी ऐसा कोई काम नहीं किया हैl इसके बाद यह भी प्रयास किया गया कि उसे मुस्लिम कत्ल की एक दूसरी घटना ना समझी जाएl विभिन्न अखबारों ने यह सुर्खी लगाईं कि मानवता मर गई, जिसमें यह बात फ़रामोश कर दी गई कि जिसका क़त्ल किया गया था उसका एक नाम और एक मज़हब भी थाl सहूलत इस हकीकत को छिपाने में भी एक किरदार अदा करती है कि एक क्रम के साथ क्रूर अंदाज़ में मुसलामानों को मौत की आगोश में सुलाया जा रहा है, ख़ास तौर पर ऐसी घटनाएं राजस्थान में आसानी के साथ अंजाम दिए जा रहे हैं जहां के मुख्यमंत्री की छवि लिबरल रह चुकी हैl
इस हंगामे में इस वास्तविकता पर भी पर्दा पड़ा रहा कि अपराध के आरोपी आज आजाद घूम रहे हैंl निडरता एक ऐसी संस्कृति है जिसे राज्य स्तर पर साज़ बाज़ के माध्यम से फरोग दिया जा रहा हैl इस मामले में यह बिलकुल स्पष्ट है कि सार्वजनिक स्तर पर कत्ल के इस अमल का उद्देश्य संदेश भेजना थाl इस हादसे के जरिए दो विभिन्न हलकों को संदेश पहुंचाया गया: पहले अतिवादी हिन्दू और सब्जी खाने के दावे के बावजूद मुसलामानों के खून के लिए उनकी प्यास और दुसरे मुसलमान जिनहें “अवकात” में रहने के लिए कहा जा रहा थाl
एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो नोट बंदी की वजह से अपने आजीविका के साधन खो चुका हैं, उस दिन अफराजुल पर उसका कहर व गजब अकारण नहीं थाl इस घटना के पहले और बाद का वीडियो बनाना और इसके बाद उसे बड़े पैमाने पर प्रकाशित करना एक शदीद खतरे की अलामत हैl और इसका मतलब यह है कि अफराजुल इस पूर्ण योजना का मामूली हिस्सा था; जिसका उद्देश्य एक पुरी कम्युनिटी को लव जिहाद का गुनाहगार करार देना और यह बावर कराना था कि प्रस्तावित सजा केवल अफराजुल ही नहीं बल्कि पूरी कम्युनिटी के लिए हैl एक एतेबार से पुरी कम्युनिटी को हिन्दुओं ने इस बात की तंबीह की है कि अगर वह हद से आगे बढ़ते हैं तो उनका भी अंजाम यही होगाl इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अफराजुल किसी किस्म के लव जिहाद में शामिल था या नहीं, बल्कि फर्क केवल इस मानसिकता से पड़ता है जो मुस्लिम कम्युनिटी के खिलाफ हिन्दुओं के एक वर्ग में पैदा कर दी गई हैl किसी भी मजबूत आधार से पुर्णतः खाली निरपेक्ष घृणा और हिंसक सिद्धांतो पर आधारित इस मामले की कई जहतें हैंl जबकि हमें इस मामले में केवल वही आवाजें सुनाई दे रही हैं जो आरोपी को बरी करने की हिमायत में उठ रही हैं जिससे हमें यह पता चलता है कि हमारे समाज के अंदर कोई चीज बहुत घटिया हो चुकी हैl
शम्भू लाल ने 6 दिसंबर को यह खौफनाक कार्य अंजाम दिया और यह प्रतीकात्मक दुर्घटना केवल एक इत्तेफाक नहीं हो सकताl हम सब जानते हैं कि बाबरी मस्जिद दिसंबर को ढाया गया था जिस दिन को हिन्दू कौम परस्त शौर्य दिवस अर्थात विजय के दिन के तौर पर मनाते हैंl मुसलामानों को क़त्ल करने से अधिक इस विजय की याद में श्रद्धांजलि और क्या हो सकता है? यकीनन, इसी तरह की समानता यहीं समाप्त नहीं होतीl बाबरी मस्जिद भी अकेली खड़ी थी और इसी तरह अफराजुल भी शहर में अकेला था कम्युनिटी और अपने जान पहचान के लोगों से दूर थाl उल्लेखनीय बात यह भी है कि 6 दिसंबर लाखों भारतीय अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने का भी दिन हैl कौम परस्त हिन्दुओं ने हमेशा अल्पसंख्यकों को व्यापक हिन्दू दायरे में लाने की कोशिश की हैl हमने इसका अवलोकन बाबरी मस्जिद ढाने के मामले में इसके बाद गुजरात में किया और अब राजस्थान में इसका सामना कर रहे हैंl एक अल्पसंख्यक के लिए इससे हिन्दू सामाजिक निज़ाम को स्वीकार करने का मौक़ा मिलता होता हैl
जो लोग अल्पसंख्यक मुस्लिम पहचान की बात करते हैं हमेशा इस हकीकत को फरामोश करते हैं कि विभिन्न अल्पसंख्यक बिरादरियों की खामोशी के साथ हिन्दुकारी की जा रही हैl दूसरी ओर मुसलामानों ने कम व बेश छोटे वर्ग सभी अल्पसंख्यकों से बचना क्या है, इसकी वजह हिंसक पूर्वाग्रह और ज़ात पसंदाना रवैय्या हैl मुसलामानों और अल्पसंख्यकों के बीच एक बातचीत वाले संबंध के अभाव की वजह से कौम परस्त हिन्दुओं ने अल्पसंख्यकों को अपने साथ शामिल करने और उनमें कौम परस्त विचार स्थानांतरित करने के लिए सख्त मेहनतें की हैंl आम तौर पर , किसी को कौम परस्ती से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिएl तथापि, हमारी कौम परस्ती का विशिष्ट सिद्धांत मुस्लिम विरोधी विचारों और व्यवहार के बराबर हैl आज मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ एक मध्यम अल्पसंख्यक इतना ही सख्त मुस्लिम विरोधी है जितना हिन्दू कौम परस्त के प्रभाव में किसी से उम्मीद की जाती हैl
सबसे अधिक परेशान करने वाला पहलु इस मामले में यह है कि मीडिया ने इस हादसे को किसी पागल और मजनू की कारस्तानी करार देने की कोशिश की थीl इस अम्र पर कोई बात नहीं की गई कि मुसलामानों के खिलाफ घृणा पैदा करने वाले विचारों को इसलिए जिम्मेदार कैसे बनाया जा सकता हैl इस पर कोई बहस नहीं हुई कि यह किस तरह एक मुसलमान का एक मंसूबा बंद कत्ल थाl और इस अम्र पर कोई बात चीत नहीं की गई कि किस तरह इस प्रकार की हलाकत उस समय तक जारी रहेगी जब तक कातिलों या संभावित कातिलों को कानून की गिरफ्त से अपनी आज़ादी का यकीन रहेगाl विभिन्न माध्यम से यह सूचना मिल रही हैं कि कुछ हिन्दू कौम परस्त शम्भू लाल के खानदान के लिए पैसा जमा कर रहे हैं और दुसरे इसकी कानूनी मदद के लिए तैयार हो रहे हैंl इससे हमें यही मालूम होता है कि नफरत का वायरस हिन्दुओं के एक वर्ग में अपनी जड़ बना चुका है और अक्सर लोग इसे बदले का एक सहीह काम मानते हैंl
सोशल मीडिया और दूसरी जगहों पर अफराजुल के लिए गम व अफ़सोस का अत्यधिक इज़हार किया जा रहा हैl तथापि, दुसरे मामलों में हम ने जो अवलोकन किया है वह इससे करीब नहीं हैl यह बहुत मायूस कुन है मगर सच है कि हम एक ऐसे समय में जीवन व्यतीत कर रहे हैं कि जब मुसलामानों की जिंदगी दूसरों की जिंदगी सस्ती हैl अफराजुल के कत्ल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वालों को भी इस बात पर यकीन नहीं है कि उसे मुसलिम शिनाख्त के खिलाफ एक विशेष घृणित अपराध के तौर पर देखा जाना चाहिएl जैसे कि वह राजनीतिक तौर पर सहीह होने के लिए अपनी मुहिम में यह नारे ऊँचे कर रहे हैं कि- हर जिंदगी कीमती हैl इसका मतलब है कि विरोध प्रदर्शन ख़ास तौर पर मुसलामानों के साथ जो सुलूक किया जा रहा है इसके लिए नहीं किया जा रहा है बल्कि यह उन दूसरों के लिए भी है जिनका यही हश्र हो रहा हैl
मैं यहाँ एक तंबीह पेश करना चाहता हूँl मेरा कहना यह नहीं है कि किसी को हर प्रकार के कत्ल और हर प्रकार के अत्याचार व हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहिएl बल्की इस संदर्भ में कि मुसलामानों की ज़िन्दगी केवल मुसलिम होने की वजह से मामूली हो चुकी है; अफराजुल के कत्ल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में पुरी बेबाकी के साथ यह बयान दिया जाना चाहिए थाl संतुलन पैदा करने की कोशिश में इन प्रदर्शनों ने केवल उस नियोजित क़त्ल के फासिद नज्रियाती की शिद्दत को कम किया हैl इसमें थोड़ी अच्छी बात यह थी कि उनमें से कुछ विरोध प्रदर्शन उन लोगों ने आयोजित किया था जिन्होंने नंदी ग्राम और संघ में मुसलामानों के कत्ल का बचाव किया थाl अगर हिन्दू कौम परस्ती का अहया मुसलमानों की लाशों पर किया जाना है तो फिर खुद मुसलामानों को ही बरबरियत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे होना चाहिए इसलिए कि आज भारत में मुसलमान होने का दर्द केवल एक मुसलमान ही महसूस कर सकता हैl
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