अरमान नियाज़ी , न्यु एज इस्लाम
25 दिसंबर, 2012
पूरी दुनिया बड़े पैमाने पर विशेष रूप से इस्लामी दुनिया बहुत कठिन दौर से गुज़र रही है। विवाद समाप्त होना तो दूर कम होने को भी तैयार नहीं हैं। आत्मघाती हमलों, बम विस्फोट, खून खराबे ,हत्या और अन्य गंभीर अपराधों के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। हमारा समाज विफलता, हताशा (मायूसी ) और ऐसी सामाजिक बुराइयों की चपेट में है कि ऐसा नज़ारा इससे पहले दुनिया में नहीं देखा गया। जो हम अपने चारों ओर देखते हैं वो मानवता नहीं बल्कि कभी जीवित रही मानव जाति की एक छाया मात्र है।
कोई खुश नहीं है। कोई भी संतुष्ट नहीं है। कोई अच्छे कामोँ को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, हर इंसान खामियां खोजने में व्यस्त है। पाखण्डियों को सम्मानित किया जा रहा है। और शरिफों को बदनाम किया जा रहा है। इस आध्यात्मिक (रुहानी) और भौतिक अराजकता और अव्यवस्था के कई कारण हैं।
बहुत पहले की बात नहीं है लगभग पचास साल पहले विश्व युद्ध के बावजूद दुनिया में शांति थी। हालांकि इसके बाद कोई महायुद्ध नहीं हुआ ,लेकिन विवादों से भरी इस दुनिया में हर रोज एक नई ' जंग लड़ी जा रही है, जिसमें पूरी दुनिया व्यस्त है। मानवता विभिन्न स्तरों पर विभिन्न कारणों जैसे' शांति' पैदा करने के लिए पृथ्वी पर' विश्व युद्धों' को लड़ा जा रहा है । मैं दूसरों की बात ज़्यादा नहीं करूंगा क्योंकि मुझे दूसरों का लिहाज़ है। मैं अपने इस्लामी भाइयों से आध्यात्मिक शांति के बारे में बात करना चाहता हूँ जो कि अल्लाह को याद करके प्राप्त की जा सकती है। और जब एक मनुष्य को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्राप्त होगी तो पूरी दुनिया में शांति हो जाएगी, अराजकता और अशांति का मुख्य कारण यह है कि इंसान ने अल्लाह को भुला दिया है। वह अपने आध्यात्मिक स्वामी से खुद को अलग करते हुए सांसारिक मामलों में जुट गया है। मैं नीचे कुरान की कुछ आयात नकल करना चाहता हूँ जो खुदा को याद करने पर जोर डालती हैं:
•और सुन रखो कि खुदा की याद से दिल आराम पाते हैं। (कुरान13: 28)
•"अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना"-2:152
मेरे विचार में, अगर हमें अपनी पुरानी संस्कृति को फिर से जीवित करना हैं तो हमें अल्लाह को हर मौक़े पर याद करना होगा। अल्लाह के निन्यानवे पवित्र नाम है हर नाम के विभिन्न प्रभाव है और हर एक किसी न किसी बीमारी का इलाज है। ये सभी पवित्र नाम एक साथ दया (रहमत)और निकटता प्राप्त करने के लिए ध्यान को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है और उसकी दया(रहमत) और निकटता सभी बुराइयों, परेशानियों, मायूसियों और ना उम्मीदियों को समाप्त कर सकती है। इसकी पुष्टि निम्नलिखित हदीस से होती है:
• और हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है कि ' अल्लाह इरशाद फ़रमाता है कि मैं बंदों के साथ हूँ जब वह मेरे बारे में सोचता है, मैं अपने बंदों के साथ हूँ जब वह मुझे याद करता है। इसलिए जब वह एकांत में मुझे याद करता है तो मैं भी एकांत में उस को याद करता हूँ, अगर वह मुझे भीड़ में याद करता है तो मैं भी एक पवित्र भीड़ मैं याद करता हूँ (आकाश में स्वर्गदूतों की सभा में), अगर वह मेरी ओर एक बाल के बराबर बढ़ता है तो उसकी तरफ एक हाथ आगे बढ़ता हूँ, अगर वह मेरी ओर एक हाथ बढ़ता है तो मैं उससे दो हाथ पास होता हूँ और अगर वह चलता हुआ मेरे तरफ आता है तो मैं जल्दी से उस कि तरफ बढ़ता हूँ "- ( अलबुखारी8 / 171 , मुस्लिम4 / 2061, . यह शब्द बुखारी में हैं।)
इसलिए , हमें भीड़ में और एकांत में अल्लाह को याद करना चाहिए और हर अवसर पर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।, वे बहुत दयावान, और दयालु होने के कारण हम पर अपनी रहमतों, मेहरबानियों की बारिश करेंगे। क्या हमें एक शांतिपूर्ण और सफल जीवन के लिए अब किसी और चीज की आवश्यकता है?
खुदा कहाँ रहता है? उसे खोजने के लिए हमें कहां जाना होगा?
ऊपरोक्त हदीस यह बताती है कि "यदि वह चल कर मेरे पास आता है" इसका मतलब यह है कि वह जहाँ कहीं भी पाया जाता है, उसके पास आपको जाना होगा। वह एक विधवा की झोपड़ी में एक अनाथ, एक रोगी, एक लाचार इंसान और एक रोते हुए बच्चे के साथ होता है। और आप क्या करते हैं आप इसे एक मस्जिद में एक धार्मिक जमात में धर्म के नाम पर हत्या में, आत्मघाती हमलों में सांप्रदायिकता में, लोगों के घर जलाने में, बच्चों को अनाथ बनाने में और महिला को विधवा बनाने में खोजते हैं। इस बात को सुनिश्चित करें कि अल्लाह को आप वहाँ नहीं पाएंगे। खुदा जरूरतमंदों के दिलों में और खेलने वाले बच्चों के खुश चेहरे पर होता है। इसलिए अगर हम उसकी दया (रहमत) और कृपा (करम) मांगते हैं, तो हमें ऐसे स्थानों और ऐसे लोगों के पास जाना होगा जहां वह पाया जाता है।
अल्लाह की याद
•ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे माल तुम्हें अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल न कर दें और न तुम्हारी सन्तान ही। जो कोई ऐसा करे तो ऐसे ही लोग घाटे में रहनेवाले है। (कुरान 63:9 )
ऊपरोक्त आयत को आपके सामने पेश करना खुशी की बात है। अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है उसे इस बात का पता था कि एक ऐसा दिन आने वाला है जो पूरी तरह से भौतिकवादी होगा और सभी रिश्तों को सोने से तौला जाएगा प्यार और स्नेह से नहीं, और लोग अपनी धन, संपत्ति और बच्चों के प्यार की वजह लापरवाही और ना शुकरी का शिकार हो जाएंगें। आज हम सभी प्रकार की बुराइयों से घिर चुके हैं इसलिए उसकी ओर कदम बढ़ाने के लिए' और यहाँ तक कि एकांत में उसे याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं है क्योंकि हमारा ध्यान इस चिंता से भरा हुआ है कि कैसे भौतिक सुख प्राप्त किया जाए।
अल्लाह को याद करने के लिए किसी विशेष स्थान या किसी विशेष शारीरिक स्थिति की आवश्यकता नहीं है जैसा कि हदीस के विद्वान इमाम नदवी ने कहा :
• इमाम नदवी ने कहा कि विद्वान इस बात से सहमत हैं कि दिल और ज़बान (दोनों) से अल्लाह को याद करना उसके लिए वैध (जाएज़) है जिसका वज़ू टूट गया हो और औपचारिक तौर पर शुद्ध न हो और यहां तक कि मासिक धर्म व प्रसव वाली महिलाएं भी अल्लाह को याद कर सकती हैं। और यह उल्लेख तसबीह (सुबहान अल्लाह) तारीफ (अलहमदुलिल्लाह) अल्लाह हुअकबर और लाइलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई भगवान नहीं है) कहने और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलहि वसल्लम पर दरुदो सलाम भेजने को शामिल है। यह कुरान की तिलावत की तरह नहीं है।
उलेमा इस्लाम इस बात पर सहमत है कि हम भीड़ और एकांत में शारीरिक सफाई या गंदगी के बावजूद अल्लाह को याद कर सकते हैं। इससे हमें हर समय और हर जगह उसकी दया (रहमत) प्राप्त करने के अवसर मिलते रहेंगे इसलिए रहीम वह ब्रह्मांड का मालिक है और हमें वह सभी भलाईयाँ प्रदान करने के लिए तैयार है जिसकी हमें आवश्यकता है।
अपने ख़ालिक़ (खुदा) को याद करने का मतलब यह की तस्बीह पढ़ना और दिल और दिमाग को आराम महसूस कराना है। ऐसा हम यह कहते हुए कर सकते हैं, सुबहान अल्लाह व अलहमदुलिल्लाह अल्लाह, अल्लाह हुअकबर, ला इलाहा इल्लाह।
सभी महानता अल्लाह के लिए है। कुरान कहता है,
•ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारा किसी गिरोह से मुक़ाबला हो जाए तो जमे रहो और अल्लाह को ज़्यादा याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो" (कुरान 8:45 )।
निम्नलिखित हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बुजुर्ग व्यक्ति से कहा कि अगर वह इस्लाम के आदेश का पालन करने में असमर्थ है तो उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है।
• " एक व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, इस्लाम के आदेश मेरे लिए बहुत कठिन हो गए हैं, और मैं बूढ़ा हो चुका हूँ इसलिए मुझे कुछ उपाय बताइए जिस पर मैं काम कर सकूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि तुम्हारी ज़ुबान लगातार अल्लाह की याद से तर रहे।"
इसलिए यह स्पष्ट है " अल्लाह कि याद " सांसारिक जीवन में इंसानों को आने वाली सभी समस्याओं का समाधान है।
ज़िक्र का लाभ
याद करने के कई लाभ हैं आप के अध्ययन के लिए नीचे बयाँ कर रहा हूँ।
1.इससे प्रेम बढ़ता है जो कि इस्लाम की आत्मा है।
2. यह ज्ञान और समझ के लिए दरवाजे खोलता है।
3. यह पापों को समाप्त कर देता है।
4. ज़िक्र इंसान को अल्लाह के प्रकोप से बचाता है।
5. ज़िक्र पूजा करने का सबसे आसान तरीक़ा है, लेकिन इनाम बहुत महान है।
6. जो एकांत में अल्लाह को याद करता है, और जिस की आँखें आँसुओं से भर गईं हों क़यामत (प्रलय) के दिन अल्लाह के कृपा के साए में होगा।
7. यह दिल को बेचैनी और परेशानी को दूर करता है और खुशी पैदा करता है।
8. यह चेहरा और दिल को मुनव्वर (रौशन) करता है।
9. यह धन और रोजी में वृद्धि करता है।
प्रलय (क़यामत ) का दिन उस समय आएगा जब मनुष्य अल्लाह की याद से अनजान हो जायेगा।
हदीस से प्रमाणित होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया के:
•" जो इंसान अपने प्रभु को याद करता है उस की तुलना में अपने प्रभु को याद नहीं करता का उदाहरण ज़िंदा और मुर्दों की है।"
अल्लाह करे कि हम सभी को पृथ्वी पर ' ज़िंदा लोगों' में शुमार किया जाए
दिल में खुदा का नाम जीवित रहे,
और उस आवारा आत्मा की तरह न बनें जिस का कोई उद्देश्य और कोई लक्ष्य नहीं है।
वल्लाहो आलमो बिस्सवाब (जो सच है खुदा उसे बेहतर जानता है)
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