इस्लाम वेब डाट नेट का एक लेख
3 नवम्बर, 2009
(अंग्रेजी से अनुवाद: न्यु एज इस्लाम)
इस्लाम वातावरण के सम्बंध में बड़े सरोकार को व्यक्त करता है। इस समस्या के बारे में क़ुरान की बहुत सी आयतें और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के कथन हैं। पर्यावरणीय समस्याओं का इस्लामी हल इंसानों के द्वारा इसके मार्गदर्शन के अनुकूलन में निहित है। अल्लाह ने ये फरमाया है कि उसने सभी भौतिक पदार्थों को मानव उपयोग के लिए पैदा किया है न कि दुरुपयोग के लिए।
अल्लाह ने एक शानदार गुणवत्ता वाले जीवन का आनंद लेने से इसांनों को मना नहीं किया है लेकिन ये प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा कर और उनका दुरुपयोग करने की कीमत पर नहीं होना चाहिए। इसे स्पष्ट रूप से क़ुरान की बहुत सारी आयतों में वर्णित किया गया है। अल्लाह फरमाता है (जिसका मतलब ये है :) "और जो (माल) तुमको खुदा ने अता फरमाया है उससे आखिरत (परलोक) की भलाई तलब कीजिए और दुनिया से अपना हिस्सा न भुलाईए और जैसी खुदा ने तुमसे भलाई की है (वैसी) तुम भी (लोगों से) भलाई करो। और मुल्क में फसाद चाहने वाले न हो। क्योंकि खुदा फसाद करने वालों को दोस्त नहीं रखता"। [क़ुरान 28: 77]
क़ुरान और पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहू अलैहि वसल्लम की सुन्नत ने जो निर्देश दिये हैं उनमें पर्यावरण के संरक्षण के लिए मुसलमानों को दिये गये निर्देश भी शामिल हैं, जिसमें बेवजह पेड़ों को न काटना भी शामिल है। इस सम्बंध में पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने पौधे लगाने के फायदे को बयान किया है, जो क़यामत (अन्तिम निर्णय) के दिन तक जारी रहेंगें। नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की एक हदीस में ये स्पष्ट है कि, "अगर क़यामत होने वाली हो और तुम में से किसी के हाथ में खजूर की एक कोंपल हो (बोने के लिए) और क़यामत होने से पहले वो उसे बोने के क़ाबिल है, तो उसे बो देना चाहिए, और उसे इस अमल के लिए अजर व सवाब हासिल होगा"।
अल्लाह ने प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाने और उसका दुरुपयोग करने वालों के लिए कड़ी सजा का हुक्म दिया है। वो क़ुरान में फरमाता है, "खुदा की (अता की हुई) रोज़ी खाओ और पियो, मगर ज़मीन में फसाद न करते फिरना"। [क़ुरान 2: 60]
"खुश्की (सूखे) और तरी में लोगों के आमाल के कारण फसाद फैल गया है ताकि खुदा उनको कुछ आमाल का मज़ा चखाए अजब नहीं कि वो बाज़ आ जाएं"। [क़ुरान 30: 41]
इब्ने मसूद रवायत करते हैं कि जब हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के साथ एक सफ़र पर थे, तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) उस स्थान से थोड़ी दूरी पर चले गए जहाँ हमारा पड़ाव था। हमने वहाँ एक छोटी सी चिड़िया को उसके दो चूज़ों के साथ देखा और उन्हें पकड़ लिया। चिड़िया फड़फड़ा रही थी, जब नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम वापस आए, तो उन्होंने पूछा, इसके चूज़ों को पकड़ कर किसने उसे परेशान किया है? फिर उन्होंने हमें चूज़े वापस करने का हुक्म दिया। हमने वहाँ एक घोंसला भी देखा और उसे जला दिया। जब नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने ये देखा तो पूछा कि इसे किसने जला दिया? जब हमने उन्हें बताया कि हमने किया था, तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'सिर्फ आग के रब को आग से सज़ा देने का हक़ है।
अल्लाह क़ुरान में फरमाता है: "और ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या दो परों से उड़ने वाला जानवर है उनकी भी तुम लोगों की तरह जमातें (दल) हैं"। [क़ुरान 38: 6]
हम नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की हदीसों और इन कुरानी आयतों से ये निष्कर्ष निकालते हैं कि, सभी जीवित चीजें अस्तित्व में मनुष्य के साथ भागीदार हैं और वो हमारे सम्मान की हकदार हैं। हमें जानवरों के प्रति दयालु होना चाहिए, और विभिन्न जीवों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के प्रयास करने चाहिए।
इस्लाम पानी को बर्बाद करने और बिना किसी फायदे के इसके इस्तेमाल को प्रतिबंधित करता है। मानव जाति के लिए, पशुओं का जीवन, पक्षियों का जीवन और पौधों के पोषण के लिए पानी का संरक्षण, अल्लाह की रज़ा हासिल करने का एक अमल है।
अपने लेख 'इस्लाम और पर्यावरण', में मुस्लिम वर्ल्ड लीग, कनाडा के निदेशक [www.al-muslim.org] अराफात अलअशी लिखते हैं, "मानव जीवन इस्लाम की दृष्टि में पवित्र है। जीवन के बदले जीवन के अलावा किसी को भी किसी दूसरे व्यक्ति का जीवन लेने की इजाज़त नहीं है"।
अलअशी आगे लिखते हैं कि, इस्लाम में "हरियाली को बढ़ाने में भागीदारी हर मुसलमान पर फर्ज़ (अनिवार्य) है। मुसलमानों को सभी लोगों के फायदे के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने में सक्रिय होना चाहिए"। यहां तक कि युद्ध के दौरान भी मुसलमान को उन पेड़ों को काटने से बचना चाहिए जो लोगों के लिए उपयोगी हैं।
मनुष्यों के द्वारा धरती के प्रबंधन का नेतृत्व एक बड़ी ज़िम्मेदारी है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया है अन्य जीवित प्राणियों को भी अल्लाह की तरफ से "समुदाय" माना जाता है। स्वयं सृजन उसकी असीमित विविधता और जटिलता में अल्लाह की ताकत, ज्ञान, दया और महानता की "निशानियों" को व्यापक ब्रह्मांड के रूप में देखा जा सकता है। इसांनों की जिम्मेदारी अल्लाह की रचना को सुरक्षित रखना है। पर्यावरण मानव जाति के लिए अल्लाह के द्वारा पेश की गयी एक अमानत है और इनका दुरुपयोग अल्लाह के विश्वास का गलत इस्तेमाल है।
स्रोत: www.islamweb.net
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http://www.newageislam.com/islam-and-environment/islamic-solution-to-eco-problems/d/2051
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