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Hindi Section ( 8 Feb 2013, NewAgeIslam.Com)

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Mercy and Respect to Animals in Islam इस्लाम में जानवरों के प्रति दया और सम्मान

 

ऐमन रियाज़, न्यु एज इस्लाम

(अंग्रेज़ी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

जानवर न सिर्फ हमसे पिंजरे में रहते हुए यहाँ तक कि खुले में भी परेशान हैं। हम अपने मज़े के लिए उन पर हिंसा करते हैं। "बुल फाइट" नाम के खेल के बारे में लोग जानते हैं जिसमें एक आदमी अपनी तलवारों से बैल से लड़ता है, और धीरे धीरे और तकलीफदेह अंदाज़ में वो तलवारों को बैल शरीर में तब तक घोंपता है जब तक कि वो गिर नहीं जाता और मर नहीं जाता है। ये खेल आजकल यूरोप में बहुत लोकप्रिय है। "मुर्गे के लड़ाई ", के बारे में सोचें जहां कुत्तों की लड़ाई की तरह, दो मुर्गे मरते दम तक एक दूसरे से लड़ने के लिए लाए जाते हैं और लोग उन पर दांव लगाते हैं।

अल्लाह ने जानवरों को हमारी तरह समुदायों में रहने के लिए बनाया है। इसका मतलब ये है कि उसने उनके लिए संचार और समझ का माध्यम पैदा किया है। जानवर हमारी तरह समुदायों में रहते हैं, और हमारी तरह ख़ुदा की इबादत करते हैं लेकिन अपने तरीके से, जिसे खुदा ने उनके लिए निर्धारित किया है और यही उन्हें स्वतंत्र जीवन के लायक़ बनाता है।

जानवरों के अधिकारों के बारे में इस्लाम का क्या कहना है?

हमें जानवरों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वो भी सृष्टि में हमारे साथी हैं। अल्लाह फरमाता है कि जानवर भी इंसानों की तरह समुदायों में रहते हैं।

"ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों परों से उड़ने वाला परिन्दा है उनकी भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं और सब के सब लौह महफूज़ में मौजूद (हैं) हमने किताब (क़ुरान) में कोई बात नहीं छोड़ी है फिर सब के सब (चरिन्द हों या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लाए जायेंगे। (क़ुरान, 6:38)"

और वो भी अपने तरीके से अल्लाह की इबादत करते हैं।

"(ऐ शख्स) क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि जितनी मख़लूक़ात सारे आसमान और ज़मीन में हैं और परिन्दें पर फैलाए (ग़रज़ सब) उसी को तस्बीह किया करते हैं सब के सब अपनी नमाज़ और अपनी तस्बीह का तरीक़ा खूब जानते हैं और जो कुछ ये किया करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ है (क़ुरान, 24:41)"

"क्या तुमने इसको भी नहीं देखा कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं और आफताब और माहताब और सितारे और पहाड़ और दरख्त और चारपाए (ग़रज़ कुल मख़लूक़ात) और आदमियों में से बहुत से लोग सब खुदा ही को सजदा करते हैं और बहुतेरे ऐसे भी हैं जिन पर नाफ़रमानी की वजह से अज़ाब का (का आना) लाज़िम हो चुका है और जिसको खुदा ज़लील करे फिर उसका कोई इज्ज़त देने वाला नहीं कुछ शक नहीं कि खुदा जो चाहता है करता है, (क़ुरान, 22:18)"

पैग़म्बर मोहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साफ तौर पर जानवर के साथ बेरहमी और उसे क़ैद करने से मना फ़रमाया है।

इब्ने उमर से रवायत है "नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि एक औरत उस एक बिल्ली की वजह से (जहन्नम) की आग में दाखिल हुई जिसे उसने बांध दिया था और उसने न तो उसे खाना दिया और न ही आज़ाद छोड़ा कि वो ज़मीन के कीड़े मकोड़े खा सके। (अनुवाद सही बुखारी,  सृष्टि की शुरूआत, भाग 4, किताब 54, नंबर 535)

अबु हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू से रवायत है "नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया," एक आदमी ने एक कुत्ते को देखा कि वो प्यास (की तीव्रता) की वजह से कीचड़ खा रहा था, उस आदमी ने एक जूता लिया और उसमें पानी भर के कुत्ते केा तब तक पिलाता रहा जब तक कि उसकी प्यास न बुझ गयी। इसलिए अल्लाह ने उसके इस काम को कुबूल कर लिया और उसे जन्नत में दाखिल कर  दिया। (सही बुखारी का अनुवाद (बाब अलवज़ू), भाग 1, किताब 4, नंबर 174)

जानवरों की क़ुर्बानी के बारे में इस्लाम क्या कहता है?

इस्लाम में जानवरों की क़ुर्बानी सिर्फ गरीब और ज़रूरतमंदों के लिए है।

"और कुरबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खुदा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर ज़िबाह करो और उस वक्त उन पर खुदा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू काटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खुद भी खाओ और केनाअत पेशा फक़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो। खुदा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खून मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खुदा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो। और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (हमेशा की) ख़ुशख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि खुदा ईमानवालों से कुफ्फ़ार को दूर दफा करता रहता है खुदा किसी बददयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (क़ुरान, 22: 36-38)"

निष्कर्ष

इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो जानवरों के सम्मान और उनके लिए दया से भरा हुआ है। मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम सिर्फ मुसलमान या अरब या इंसानियत के लिए ही नहीं भेजे गए थे, उन्हें सभी जीवों की तरफ रहमत बनाकर भेजा गया था।

"इसमें शक नहीं कि इसमें इबादत करने वालों के लिए (एहकामें खुदा की) तबलीग़ है। और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा" (क़ुरान: 21: 106-107)

बग़ैर हमारे जाने ही एक सरल और कम महत्वपूर्ण लगने वाला काम हमारी किस्मत का फैसला कर सकता है। सिवाय खुदा के कोई नहीं जानता कि कौन जन्नत या जहन्नम में जायेगा। एक ऐसा व्यक्ति है जो दिन में पाँच बार नमाज़ अदा करता है, रमज़ान के महीने में रोज़े रखता है, ज़कात देता है और सभी अच्छे काम करता है लेकिन उसका इरादा नेक नहीं है, उसका बुनियादी मकसद ये है कि दुनिया उसे नेक इंसान के रूप में देखे और उसे ऐसे ही स्वीकार करे। उसके मन में इस प्रकार की छोटी और साधारण सोच बड़ी परेशनी पैदा कर सकती है और आख़िरकार वो जहन्नम में झोंका जा सकता है। इसी तरह वो आदमी जिसने अपनी सारी जिंदगी गुनाहों में गुज़ारी लेकिन मौत से पहले उसने तौबा कर लिया और सच्चे दिल के साथ अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर हुआ, तो हो सकता है कि अल्लाह उसे माफ कर दे और वो हमेशा के लिए जन्नत के फल का मज़ा ले। हमें हमेशा पूर्णता पाने के लिए संघर्ष करना चाहिए, केवल वूर्ण होना ही अच्छी बात नहीं, बल्कि इसे हासिल करने की दिशा में प्रयास करना अवश्य है।

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