अफज़ाल अहमद
23 मई, 2012
(उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)
बहुत दिनों से ये सवाल उठाता फिर रहा हूँ कि क्या कभी अंग्रेजों के खिलाफ भी साजिश होती है या सारी साज़िशें मुसलमानों के खिलाफ ही होती हैं। लेकिन मजाल है कि कोई ढंग का जवाब मिल पाए। कोई अंग्रेज बात ही नहीं करता कि साजिश हो रही है या इतिहास में कभी कोई साजिश हुई। सीधे सवाल पूछने पर कोई ऐसी बात मालूम न हो सकी तो यूँ ही बातों बातों में बात छेड़ भी देख लिया। लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। कोई अंग्रेज तारीखपरस्ती और माज़ी (अतीत) की पूजा करने को तैयार ही नहीं कि दुनिया पर हमने इतने हजार साल तक हुकूमत की या हमारी सल्तनत में सूरज कभी नहीं डूबता था। किसी बुद्धीजीवी, किसी पत्रकार, किसी छात्र और किसी आम आदमी के मुंह से ये शब्द निकलते ही नहीं कि दुनिया कभी हमारे कब्जे में थी या किसी देश ने हमारे खिलाफ साजिश करके दुनिया हमसे छीन ली या हम लाखों वर्ग मील पर शासक थे और आज पाकिस्तान के सूबा पंजाब का बहुत थोड़ा क्षेत्रफल हमारा है। जबकि दूसरी तरफ मुसलमान विशेष रूप से पाकिस्तानी मुसलमान इस हीन भीवना से ग्रसित नजर आते हैं कि अरब के रेगिस्तानों से लेकर अफ्रीका के जंगलों तक और भारतीय मैदानों से लेकर यूरोप के स्पेन तक हमारी हुकूमत थी और फिर इस्लाम विरोधी शक्तियों ने षड़यंत्र किया और हमसे हुकूमत छीन ली।
वंचित होने का ये हास्यास्पद एहसास सिर्फ हमारे यहाँ ही शिद्दत से पाया जाता है। जबकि वास्तविकता ये है कि दक्षिण एशिया के मुसलमानों ने हमेशा दूसरे देशों के शासकों को दावत दी कि वो भारत पर आकर कब्जा करें और उन्हें निजात दिलायें। ये मेमोगेट सिर्फ आज की कहानी नहीं हमारी सदियों पुरानी परम्परा और आदत है। हुसैन हक़्क़ानी सिर्फ आज का किरदार नहीं, सदियों से ऐसे किरदार हमारी कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं जो कभी अफ़ग़ानियों को और कभी ईरानियों को, तो कभी अरबों को मेमो लिखते रहे हैं। कभी आपने सोचा कि ये वहम हमें क्यों है कि दुनिया हमारे खिलाफ साजिश कर रही है। इसका विश्लेषण बहुत जरूरी है कि वास्तव में साजिश हो रही है या हम मनोवैज्ञानिक बीमारी शीज़ोफ़्रेनिया का शिकार सदियों से चले आ रहे हैं और इसको पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित कर रहे हैं। जिन लोगों को शीज़ोफ़्रेनिया के बारे में पता है वो जानते हैं कि इस रोग के शिकार व्यक्ति को यक़ीन होने लगता है कि जहां भी दो लोग किसी बात पर मिल कर हँस रहे हैं या बात कर रहे हैं और उसके खिलाफ साजिशें कर रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि हम एक क़ौम (राष्ट्र) के तौर पर शीज़ोफ़्रेनिया का शिकार हैं।
हमेशा यही बात याद रखने की है कि क़ौम हो या कोई व्यक्ति उसे सपने बहुत ऊंचे देखने चाहिए लेकिन सपनों की ताबीर के लिए जो मेहनत है वो भी उठाने का साहस होना चाहिए। सफलता ऐसे ही कदम नहीं चूमती कि जहाँ सांस फूले वहीं साजिश की क़्व्वाली शुरू कर दी जाए। लेकिन हमारी विडंबना हमेशा से ये रही है कि हम ख्वाब दुनिया पर विजय पाने का देखते हैं लेकिन इसके लिए जिस मेहनत, लगन और लगातार काम की जरूरत होती है, उससे हम कोसों दूर भागते हैं। न व्यवस्था, न संयम, न हिम्मत न उत्साह, न मेहनत और न लगन, बस सुबह उठें और दुनिया हमारे सामने झुकी हो। ऐसा कभी नहीं होता और न होगा। ये खुदा का कानून ही नहीं है। यहां खुद को योग्य साबित करना पड़ता है। तब जाके कहीं कोई मक़ाम (स्थान) मिलता है। लेकिन भला हो ऐसे कठ मुल्लाओं का जिन्होंने करोड़ों मुसलमानों को अतीत के इस तिलिस्म होशरुबा में ला के छोड़ दिया है और वो सिर्फ पिछले ज़माने के गाने गाते फिरते हैं जबकि दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है। शासन के अंदाज़ बदल गए हैं लेकिन हम अभी तक घोड़ों से नीचे नहीं उतर रहे हैं।
यही वजह है कि जब कुछ हासिल नहीं हो पाता तो दीवार से सर टकराने के बाद हर कोई साजिश की बात करता है। अपने करतूत बदलने को तैयार नहीं और दुनिया को बुरा भला कहते रहना है। अगर पाकिस्तान की मौजूदा सरकार का उदाहरण लें तो भला दुनिया ये साजिश कर रही है कि इस सरकार के चार साल के दौर में 8500 अरब का भ्रष्टाचार हुआ। किसी के भ्रष्टाचार पर बात करो तो वो "साजिश हो रही है" का राग अलापना शुरू हो जाता है। किसी को कहा जाए ये जिम्मेदारी आपको सौंपी गई है इसे ठीक ढंग से निभाएँ तो उसे लगता है कि साजिश हो रही है। जनता गरीब और शासक अमीर से और अमीर हो गयी, आम आदमी के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं और आज भी मुख्य सदन में घोड़ों के अस्तबल का खर्च लाखों रुपये महीने का है। लोगों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए दो वक्त की उचित खुराक उपलब्ध नहीं और सत्ता में बैठे लोगों ने लूट मचा रखी है, अगर कोई इस लूट मार पर आवाज उठाता है, तो वो लोकतंत्र के खिलाफ साजिश कर रहा है।
याद रखें कि प्रकृति का सादा फार्मूला है कि शरीर के कमजोर हिस्से पर जरासीम (जीवाणू) हमला करते हैं और जहां प्रतिरोधक शक्ति कम हो उस जगह पर बीमारियां अपना घर बनाती हैं। एक व्यक्ति अगर अपनी सेहत का खयाल न रखे और सिर्फ सुबह शाम शोर मचाता है कि बीमारियाँ मुझ पर हमला कर रही हैं, तो अकेला कुसूरवार तो खुद है जो अपनी प्रतिरोधक शक्ति को बेहतर नहीं करता, अपने प्रदर्शन पर ध्यान देने से मामले ठीक होते हैं। सिर्फ सभाओं में गला फाड़ के "साजिश हो रही है" का राग अलापने से कुछ नहीं होगा।
स्रोतः http://www.saach.tv/2012/05/23/afzal-23-5-12/
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/nobody-conspires-british-/d/8021
URL for this article: https://newageislam.com/hindi-section/nobody-conspires-british-/d/8032