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Hindi Section ( 6 Jul 2014, NewAgeIslam.Com)

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21st Century is Waiting For Its Mujaddid इक्कीसवीं सदी अपने मुजद्दिद की राह देख रही है

 

आफताब अहमद, न्यु एज इस्लाम

तौहीद (एकेश्वरवाद) अल्लाह का धर्म है और अल्लाह अपने धर्म के नवीकरण के लिए हर दौर में नबी और रसूल भेजे।  जिन नबियों को अल्लाह ने किताब और शरीयत अता की वो तो रसूल हुए और जिन नबियों को कोई किताब और शरीयत अता नहीं हुई वो मुजद्दिद थे, जो अपने पूर्ववर्ती रसूल के धर्म का नवीकरण कर रहे थे। इस तरह धर्म का नवीकरण दो तरह से होता रहा। धर्म के नवीकरण का मतलब मेरे विचार में धर्म के मूल रूप और आत्मा को जीवित करना ही नहीं है बल्कि इसे विकसित कर आधुनिक दौर की आवश्यकताओं से सुसंगत करना है। इसलिए हर रसूल का धर्म अपने पूर्ववर्ती रसूल के धर्म का विकसित रूप था और अपनी समकालीन आवश्यकताओं से सुसंगत भी था।  

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम आखरी नबी थे और उन्हें आखरी नबी कुरान में कह दिया गया है।  उनके बाद पिछले समयों की तरह दो रसूलों के बीच के अंतराल में आने वाले नबियों की तरह कोई नबी नहीं आएगा।  पिछले समयों में एक ही समय में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में नबी और रसूल भेजे गए थे और एक रसूल के बाद दूसरा नबी या रसूल पांच सौ, हज़ार या बारह सौ बरसों में भेजे गये। रसूले इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के वेसाल के चौदह सौ साल पूरे हो चुके हैं और रहती दुनिया तक अब कोई नबी नहीं आएगा। इतने लंबे समय में धर्म में विभिन्न तरह के फ़ितने और नवाचारों और मिथकों का शामिल हो जाना स्वाभाविक है इसलिए अल्लाह ने इन फ़ितनों, मिथकों और नवाचारों से धर्म को पाक रखने के लिए धर्म के नवीकरण का इंतेज़ाम किया है। एक हदीस के अनुसार हर दौर में अल्लाह धर्म के नवीकरण के लिए एक मुजद्दिदे पैदा करेगा जो अपने दौर में धर्म में शामिल हो जाने वाली खराबियों को दूर कर के धर्म को उसकी असली हालत में लौटाएगा।

''अल्लाह हर सौ साल में एक मुजद्दिद को भेजेगा जो लोगों के ईमान (विश्वास) को पुनर्जीवित करेगा।'' (अबु दाऊद)

एक और हदीस है,  

'अबु हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू फरमाते हैं कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह हर सदी की शुरुआत में उम्मत के लिए एक व्यक्ति को भेजेगा जो उनके धर्म का नवीकरण और पुनर्जीवित करेगा।'' (अबु दाऊद, मसनद, बेहकी)

बहरहाल इन हदीसों से ये स्पष्ट नहीं है कि हर सदी में अल्लाह पूरी दुनिया के लिए एक मुजद्दिदे पैदा करेगा या फिर एक ही समय में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई मुजद्दिदों को पैदा करेगा। क्योंकि पूरी दुनिया में हालात हर जगह समान नहीं रहते। कहीं बुराईयां अधिक होती हैं कहीं कम। कहीं सुधार की आवश्यकता अधिक होती है कहीं कम। कुरान में कहा गया है कि कुरान को मक्का और उसके आसपास के लोगों के लिए उतारा गया। इसका मतलब ये नहीं कि कुरान केवल मक्का और इसके आसपास की क़ौमों और क़बीलों के लिए उतारा गया, लेकिन इसका मतलब ये है कि मक्का में हालात दूसरी जगहों की तुलना में अधिक खराब थे इसलिए कुरान वहां उतारने ज़रूरत अधिक थी।

इस्लामी इतिहास का जब हम अध्ययन करते हैं तो हमें अलग अलग अवधि में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे इस्लामी विचारकों और विद्वानों की उपस्थिति का पता चलता है जिनकी चिंता ने अपने क्षेत्र के मुसलमानों को विशेष तौर से और पूरी इस्लामी दुनिया को सामान्य रूप से प्रभावित किया और मुसलमानों के विचारों में क्रांति पैदा की।

जिन उलेमाए इस्लाम के बारे में ये माना जाता है कि वो मुजद्दिद हैं उनके नाम हैं:

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, इमाम अहमद बिन हम्बल, अबुल हसन अशअरी, अबु बकर बक़लानी, इमाम अलग़ज़ाली, अब्दुल क़ादिर जिलानी, इब्ने तैमिया, इब्ने हजर असक़लानी, जलालुद्दीन सियूती, हजरत शेख़ अहमद सरहिन्दी, शाह वलीउल्लाह। इन उलमा के अलावा भी कई नाम हैं जिनके बारे ये माना जाता है कि वो मोजद्दिद थे।

हदीसों में मोजद्दिद के लिए किसी विशेष पहचान या विशेषताओं का उल्लेख नहीं किया गया है जिससे उन्हें पहचान लिया जाए। ये लोग अपने काम और अपने विचारों से इस्लामी दुनिया में प्रमुख स्थान हासिल कर लेते हैं। ऐसा मुसलमानों की संतुष्टि के लिए कहा गया ताकि वो इस बात का यक़ीन रखे कि इस्लाम क़यामत तक अपनी वास्तविक स्थिति में जीवित रहेगा भले ही एक क्षेत्र या समय के लोग बाहरी प्रभाव से नवाचारों और गैर इस्लामी बातों का पालन करने लगें और उन्हें इस्लाम का हिस्सा समझने लगें मगर हर सदी में ऐसे उलेमा मौजूद रहेंगे जो इस्लाम में शामिल हो जाने वाले इन नवाचारों के मुक़ाबले में उठ खड़े होंगे और इस्लाम की मूल भावना की रक्षा करेंगे।

एक स्पष्ट उदाहरण हज़रत शेख सरहिन्दी का है जो कि अकबर के समकालीन थे। अकबर ने दीने इलाही नाम के एक धर्म की खोज की थी और उसे सरकारी धर्म करार दिया था। ये एक तरह से इस्लाम को नुकसान पहुंचाने वाला अमल था क्योंकि अकबर उस ज़माने के बड़े भारतीय भूभाग का शासक था जिसका साम्राज्य आज के अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। इतने शक्तिशाली राजा का इस्लाम विरोधी एक धर्म की खोज करना और उसे रिवाज बना देना भारत में इस्लाम के लिए खतरा पैदा कर सकता था। शेख अहमद सरहिन्दी ने अकबर के इस दीने इलाही का खुलकर विरोध किया। उनका जन्म 14 शव्वाल 971 हिजरी को सरहिंद में हुआ। इस तरह 1000 हिजरी यानि नई सदी में वो प्रौढ़ता को प्राप्त किये और धर्म के पुनर्जीवन का काम शुरू किया। इसलिए ये विश्वास किया जा सकता है कि वो मुजद्दिद अलिफ सानी थे।

एक समय में जब लोग अकबर के धर्म का विरोध करने से डरते थे और कुछ खुशामद करने वाले दरबारियों ने इस धर्म को  स्वीकार भी कर लिया था। मोजद्दिद अलिफ सानी ने इस झूठ धर्म के खिलाफ जिहाद का बाकायदा ऐलान किया और दरबारियों और अमीरों को पत्र के द्वारा इस झूठे धर्म से दूर रहने और इस्लाम की सेवा करने की सलाह देते रहे। इन पत्रों को मकतूबात इमामे रब्बानी के नाम से संकलित किया गया। उन्होंने इस धर्म के जवाब में एक पत्रिका असबाते नबूवत भी लिखा। इसका नतीजा ये हुआ कि अकबर का धर्म अपनी मौत आप मर गया और इस्लाम को कोई नुकसान न पहुंचा। इस ज़माने में लोग कुरानी शिक्षाओं को भूल चुके थे और मज़ारों और पीरों से सारी उम्मीदों को जोड़ते थे। इस दौर के उलेमा भी धर्म के मामलों में कुरान और हदीस में हल तलाश करने के बजाए न्यायशास्त्र में हल देखा करते थे। मुजद्दिद अलिफ सानी ने इन उलमा का भी सुधार किया और कुरान और हदीस को धर्म का पहला स्रोत बताया। इस तरह देखा जाए तो शेख अहमद सरहिन्दी सही तौर पर मोजद्दिद कहलाने के हकदार हैं।

इसी तरह कई उलमा और मोजद्दिद दुनिया के विभिन्न भागों में समय समय पर पैदा हुए। बहरहाल हदीस में ये इशारा नहीं मिलता कि ये मोजद्दिद सिर्फ उलमा ही होंगे। कहा गया है कि हर सदी में एक ऐसा व्यक्ति होगा जो धर्म के नवीकरण और मुसलमानों के विश्वास को पुनर्जीवित करेगा। इसलिए एक मोजद्दिदे आलिम भी हो सकता है और शक्तिशाली शासक भी हो सकता है। इस्लामी इतिहास में ऐसे शक्तिशाली सुधारवादी शासक भी हुए हैं जिन्होंने मुसलमानों में फैली हुई गैर इस्लामी रस्मों को खत्म करने के लिए क़दम उठाए। इनमें ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ एक हैं। उन्होंने अपनी खिलाफ़त के दौरान शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काफी काम किया और गैर इस्लामी तौर तरीकों को खत्म किया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को मुजद्दिद की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि उन्होंने यज़ीद की गैर इस्लामी सरकार को मान्यता देने से इंकार कर दिया और वास्तविक धर्म को बचा लिया।

मौजूदा दौर में जो कलह, गैर इस्लामी विचारधारा, हर्ज (बिना किसी औचित्य के हत्या व खून खराबा) पूरी इस्लामी दुनिया में फैला हुआ है और अधार्मिकता ने इस्लामी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, ऐसे में धर्म के मोजद्दिद का महत्व और ज़रूरत भी अधिक हो गई है। इस्लामी दुनिया अपने मोजद्दिद की राह देख रही है कि जो इस्लाम में नई रूह  फूँक दे और इस्लामी पुनर्जागरण को शुरू करे। अल्लामा अहमद सरहिन्दी ने वाह्य इबादतों के साथ साथ आंतरिक सफ़ाई को भी उतना ही महत्व दिया था जबकि आज के इस्लाम के अलमबरदार बाहरी बातों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रखा है। उन्हें इस्लामी खिलाफत की स्थापना करने की जल्दी तो है मगर इस्लाम की सही समझ हासिल करने के लिए चिंतित नहीं हैं।  

इस्लामी शिक्षाओं को तोड़ मरोड़ कर पेश करने और इस्लाम की हिंसक छवि को पेश करने की कोशिशें लंबे समय से चल रही थी जिसका धीरे धीरे समापन हिंसक विचारधारा पर हो चुका है और हर ओर तकफीरी (अपने से अलग दूसरों को काफिर कहने की विचारधारा) विचार का प्रभुत्व दिखाई देता जो इस्लाम के बुनियादी शांतिपूर्ण और बहुलवादी शिक्षाओं का विरोधी है लेकिन एक हिंसक और शक्तिशाली वर्ग ने इसे ही मूल इस्लाम के रूप में पेश करने की कोशिश छेड़ रखी है। आत्महत्या को इस्लाम ने हराम करार दिया है पर आतंकवादियों ने आत्महत्या को वैध करार दे दिया है। निर्दोष लोगों सहित महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की पंथ और धर्म के नाम पर हत्या को इस्लामी जिहाद कहा जा रहा है। पंथीय मतभेदों ने इस्लाम की छवि को और अधिक बिगाड़ दिया है। जिहाद के नाम पर महिलाओं के दूसरे पुरुषों के द्वारा बलात्कार के लिए 'जिहाद अलनिकाह'' की शब्दावली गढ़ ली गई है और इसको सवाब का काम बनाकर पेश किया जा रहा है। इस प्रकार पूरे दीने मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की छवि बिगाड़ दी गई है।

इस्लाम को पुनर्जीवित करने की जितनी ज़रूरत आज है उतनी पहले कभी नहीं थी मगर इसके लिए जिस पैमाने पर काम होना चाहिए था वो शायद नहीं हो रहा। हदीसों में मोजद्दिद के आने का उल्लेख है तो मोजद्दिद का आना सत्य है लेकिन इस्लामी दुनिया अभी तक अपने समय के मोजद्दिद को या तो पहचान नहीं पायी हे या फिर इस शोर शराबे में उसकी आवाज़ सुनने के क़ाबिल नहीं है। ये दुनिया बेसब्री से अपने उस मोजद्दिद की राह देख रही है।

आफ़ताब अहमद न्यु एज इस्लाम के लिए कॉलम लिखते हैं। और वो कुछ समय से क़ुरान का अध्ययन कर रहे हैं।

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