अभिजीत, न्यु एज इस्लाम
25 अप्रैल, 2014
हमारी पहचान हमारे वतन से जुड़ी होती है, इसका पता तब चलता है जब हम कहीं बाहर जातें हैं। वहां दुनिया हमें हिंदू, मुस्लिम, सिख इन नामों से नहीं पहचानती बल्कि हमारी पहचान का आधार हिंदुस्तानी होना होता है। हमारी पहचान अगर हमारे वतन से जुड़ी हुई है तो इसके प्रति श्रद्धा, भक्ति और सर्मपण भावना रखना भी हमारा कर्तव्य है। मुस्लिम जगत मुस्लिम उम्मा (Muslim Brotherhood) की अवधारणा से बंधा हुआ है। भारतीय मुसलमान भी इससे अछूते नहीं है। इस कारण पूरे मुस्लिम जगत में कोई भी समस्या आये या दुनिया में कहीं भी इस्लाम पर संकट आये तो भारतीय मुसलमान सड़कों पर निकल आतें हैं। मोहम्मद साहब (सल्ल0) का जन्म स्थान और उनसे जुड़े होने तथा खुदा का घर होने के कारण मक्का और मदीना मुसलमानों के लिये पवित्रतम स्थान हैं और सारा मुस्लिम विश्व मुसलमानों के लिये अपना है, ये सारी बातें भी ठीक है मगर इन सबके बाबजूद किसी मुसलमान के मन में अपने मुल्क के प्रति श्रद्धाभाव में कमी नहीं आनी चाहिये ये भी इस्लाम की ही तालीम है।
इस देश में मुसलमानों को वोट बैंक समझने की राजनीतिक मानसिकता और चंद नासमझ मुस्लिम आलिमों के बहकावे में आने और उसका अनुगमन करने के कारण भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रीय निष्ठा संदिग्ध समझी जाती है। इनके बहकाबे में आकर मुसलमानों को ये लगता है कि अगर वो इस मुल्क के प्रति वफादारी रखेंगें तो इस्लाम के प्रति उनकी वफादारी कम हो जायेगी और यही गलत सोच उन्हें इस मुल्क के साथ एकरस नहीं होने देती। राष्ट्र और मजहब के संबधों के बारे में इस संभ्रम के कारण ही वंदे मातरम् जैसे विवाद सामने आते रहतें हैं। जबकि हकीकत तो ये है कि अगर कोई सही तरीके से इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल करे तो हिंदुस्तान के प्रति स्वाभाविक मोहब्बत उसके मन में जगेगी और इस मुल्क के प्रति वफादारी और इसकी खिदमत करना उसे अपना मजहबी कर्तव्य लगने लगेगा। पैगंबर (सल्ल0) को अपने वतन से बेहद मुहब्बत थी। जब वो मक्का से हिजरत करके मदीना जा रहे थे तो बार-2 मुड़कर अपने वतन की तरफ देखते थे। उनकी वतनपरस्ती ही थी जिससे उनके मुबारक जुबान से ये शब्द निकल पड़े थे - 'हुब्बुल वतन मिनल ईमान ' यानि ‘वतनपरस्ती ईमान का हिस्सा है।‘ वतन के प्रति मोहब्बत रखना और उसके प्रति वफादार होना नबी (सल्ल0) की सुन्नत है जिसका पालन करना रसूल (सल्ल0) को खुशी देगा। अपने वतन हिन्दुस्तान के प्रति निष्ठा की अपेक्षा सिर्फ इस हदीस के कारण ही नहीं है वरन् इतिहास भी ये बतलाती है कि इस्लाम के अनेक बरगुजीदा पैगंबरों का जुड़ाव और मोहब्बत हिन्दुस्तान की इस पाक जमीन से रहा है और इस्लाम के बुनियादों अरकानों की शुरुआत भी यहीं की पाक जमीं से हुई थी। अरबी विद्वान Allama Ghulam Ali Azad Bilgrami ने अपनी किताब ‘Subhatul Marjan Fi Asare Hindustan’ के पहले अध्याय में कई हदीसों और ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुये बताया है कि क्यों भारत भूमि इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिये पवित्र और महत्वपूर्ण है?
हजरत आदम (अलैहे0), बीबी हव्वा और हिंदुस्तान
सामी मजहबों के मतानुसार समस्त मानवजाति हजरत आदम(अलैहे0) और बीबी हव्वा (अलैहे0) की संतान है। आदम और उनकी पत्नी हव्वा को खुदा के हुक्म की नाफरमानी की वजह से जन्नत से निकाल दिया गया था। इस्लामी तारीख की किताबों और हदीसों में ये दर्ज है कि जन्नत से निकाले जाने के बाद आदम हिंदुस्तान उतारे गये थे। कुछ रिवायतें कहतीं हैं कि वो सरांदीप (वर्तमान श्रीलंका जो उस समय भारत का हिस्सा था) में उतरे थे और वहां से समुद्र पार कर भारत आये थे) पर अधिकांश हदीसें उनके हिंद में उतरने का वर्णन करती है। इससे जुड़ी कई रिवायतें हैं, जिनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं:-
- इमाम अली बाकिर ने यह तथ्य स्वीकार किया है कि हजरत आदम (अलैहे0) जन्नत से आने के बाद भारत में उतरे थे। उन्होंनें यह भी लिखा है कि हजरत आदम ने भारत से मक्का तक का सफर पैदल तय किया था (यानि हज किया था) और इस दौरान उन्होंनें जहां-जहां अपने पाक कदम रखें वो भूभाग सब्ज होता चला गया था और जहां उनके कदम न पड़े वो रेगिस्तान में बदल गया था।
- शिया ग्रंथ हयातुल-कुलुब के पहले अध्याय में हजरत आदम (अलैहे0) और बीबी हव्वा के जन्नत से निकाले जाने का वर्णन आता है। इसमें आता है कि जब आदम (अलैहे0) ने खुदा की नाफरमानी की तो अल्लाह ने अपने फरिश्ते जिब्रील को हुक्म दिया कि वो आदम (अलैहे0) को लेकर धरती पर उतार दें। आदम (अलैहे0) जैसे ही धरती पर उतरे उनका रंग काला हो गया तब खुदा ने आदम (अलैहे0) से फरमाया कि तू मेरे लिये रोजे रख। और जब आदम (अलैहे0) ने तीन दिनों तक रोजा रखा तो उनका रंग फिर से पहले जैसा हो गया।
- काबा में प्रतिष्ठित काले पथ्थर 'संगे-अस्वद' से जुड़ी हुई एक रिवायत है। इमाम सादिक ने इस काले पथ्थर के बारे में बताया कि यह पथ्थर खुदा का एक बड़ा रुतबे वाला फरिश्ता था जिसे अल्लाह ने पथ्थर मे बदल दिया और इसके जिम्मे एक काम दे दिया कि यह कियामत के दिन हज करने आने वालों के बारे में गवाही दे कि फ्लां आदमी ने हज किया था। जब आदम (अलैहे0) हिंदुस्तान में उतारे गये तो उसके बाद खुदा ने यह पथ्थर उनके पास भेजा । उस समय यह सफेद मोती की तरह था। बाद में जब हजरत आदम(अलैहे0) को काबा तामीर करने का हुक्म हुआ तो उन्होनें यह पथ्थर काबे में स्थापित कर दिया और हाजियों द्वारा निरंतर चुमे जाने के कारण वक्त के साथ इसका रंग काला पड़ता चला गया। यानि काबे में स्थापित हजरे-अस्वद जन्नत से सर्वप्रथम हिंद की जमीं पर उतारा गया था।
- इब्ने-अब्बास की रिवायत के अनुसार आदम (अलैहे0) भारत में बुध या नुध नामक पर्वत पर उतारे गये थे। वो अपने साथ जन्नत की फूल और पत्तियां लाये थे और उसे हिंद की जमीन पर फैला दिया था जिस कारण हिंद में दुनिया के दुर्लभतम फूल पाये जातें हैं। (तबरी) हजरत अली और हजरत अब्दुल्ला इब्ने-अब्बास से भी ऐसी ही रिवायत है।
- इमाम सादिक की एक और रिवायत से यह पता चलता है कि पांच वक्त की नमाज आदम(अलैहे0) के द्वारा शुरु की गई थी। भारत में उतरने के बाद उनके शरीर का रंग काला हो गया था । जब फरिश्तों ने खुदा से फरियाद की कि आदम (अलैहे0) का रंग फिर से पहले जैसा कर दें तो खुदा ने हजरत जिब्रील को आदम (अलैहे0) के पास भेजा। जिब्रील (अलैहे0) ने उनसे कहा आप खुदा से प्रार्थना करें । आदम(अलैहे0) ने प्रार्थना की जिसके बाद उनके सर से लेकर छाती तक का रंग पहले जैसा हो गया। जिब्रील ने कहा आप फिर प्रार्थना करिये । दूसरे प्रार्थना के बाद उनके सर से नाभि तक का हिस्सा पहले जैसा हो गया। तीसरी बार प्रार्थना करने के बाद उनके जांध तक का हिस्सा पहले जैसा हो गया। चौथी बार की गई प्रार्थना के बाद उनके पैरों का रंग पहले जैसा हो गया और जब पांचवी बार उन्होनें प्रार्थना की तो उनका पूरा शरीर पहले जैसा हो गया। इसके बाद जिब्रील (अलैहे0) ने आदम(अलैहे0) को हुक्मे खुदाबंदी सुनाते हुये कहा कि 'ऐ आदम! तेरी औलादों में से जो भी इन पांच वक्तों में खुदा की इबादत करेगा खुदा उसके गुनाह इसी तरह मिटा देगा जैसा उसने तेरे स्याह रंग को दूर कर दिया है।
- बहाब से रिवायत है कि आदम (अलैहे0) जब जन्नत से निकाले गये थे तो भारत के पूर्वी भाग की एक पहाड़ी पर उतारे गये जिसका नाम बसीम था।
- मौलाना इब्ने-कसीर की लिखी किताब तफ्सीर इब्ने-कसीर में कुरान के सूरहतुल बकरह आयत सं0 236 की तफ्सीर में आता है कि रबीअ बिन अनस से रिवायत है कि जब आदम (अलैहे0) जन्नत से निकाले गये थे तो हिंद में उतरे और उनके साथ जन्नत की एक शाख थी तथा जन्नत के दरख्त का एक ताज उनके सर पर था। सुद्दी का भी कौल है कि आदम (अलैहे0) जब जन्नत से निकाले गये तो हिंद में उतरे और उनके साथ जन्नती दरख्त के पत्ते थे जिसे उन्होनें हिंद में फैला दिया जिससे यहां खुशबूदार दरख्त पैदा हो गये।
- तफ्सीर इब्ने-कसीर में ही कुरान के सूरहतुल बकरह आयत सं0 236 की तफ्सीर में आता है, हजरत इब्ने-अब्बास से रिवायत है कि आदम (अलैहे0) सबसे पहले हिंद के शहर बसना में उतारे गये थे। हजरत हसन बसरी का भी यही कौल है।
- Subhatul Marjan में आता है आदम की औलादें सबसे पहले हिंदुस्तान में फैली और आबाद हुई।
- दारुल-उलूम देबबंद ने भी अपने एक फतवे में हजरत आदम (अलैहे0) के जन्नत से निकाले जाने के बाद भारत में उतरने की पुष्टि की है। ये फतवा दारुल उलूम देबबंद के बेबसाइट पर फतवा विभाग में मौजूद है। फतवे में पूछा गया-
Assalamo Alikum mufti sahib ! My question is whether there is any tradition that Holy Prophet (PBUH) felt breeze from India. Allama Iqbal has said something like that in his poetry; "MEERE ARAB TO AYE THANDI HAWA JAHAN SE MERE WATAN WOHI HAI." Any tradition saying this ?
Ans:- We could not find this Hadith, may be it is somewhere. But, it is surely known that the virtue of India has been mentioned in the traditions of the Prophet ( صلی لله علیہوسلم ). There is one Hadith saying that Hazrat Adam ( علیہ السلام ) was sent down to India, he was accompanied with the breeze of paradise, it is the same breeze which blows in the valleys and trees. The referred words are in poetic form which contains indications and figuration. In order to understand it you must refer to the poetry of Allama Iqbal with its commentary. Allah (Subhana Wa Ta'ala) knows Best.
Darul Ifta, (Fatwa: 1257/1176-D/1429), Darul Uloom Deoband
- बीबी आएशा (रजि0) से रिवायत एक हदीस है जिसमें उन्होंनें फरमाया कि आदम (अलैहे0) काबा तामीर करने के बाद अपनी बीबी के साथ हिंद वापस लौट गये थे।
- इब्ने साद (Vol-1, pt. 1:4:1) से रिवायत एक हदीस में आता है कि आदम (अलैहे0) जब जन्नत से निकाले गये थे तो भारत में उतारे गये थे।
- मुस्तदरक-अल-हकीम की हदीस सं0 3954 में हजरत अली से रिवायत एक हदीस है जिसमें आता है कि हिंद से मुझे ठंढ़ी हवायें आतीं हैं। इसी हदीस में है कि आदम (अलैहे0) जन्नत से सरजमीं-ए-हिंद पर उतारे गये थे, इसलिये यहां के कई वृक्षों से जन्नत की तरह की खुश्बू आती है। अब्दुल्ला इब्ने अब्बास से भी ऐसी ही रिवायत है।
हाबील, काबील, हजरत शीश और हिंदुस्तान
आदम(अलैहे0) के पहले दो बेटों का नाम हाबील (केन) और काबील (एबल) था । जब जेद्दा में आदम(अलैहे0) और हव्वा की मुलाकात हुई तो उसके बाद आदम (अलैहे0) हव्वा को लेकर भारत आ गये और भारत में ही आदम (अलैहे0) के इन दोनों बेटों का जन्म हुआ। रामेश्वर में मौजूद दो लम्बी कब्रों के बारे में ये कहा जाता है की ये हाबील और काबील की हैं ! हजरत शीश (अलैहे0) आदम (अलैहे0) के तीसरे बेटे थे। ये दूसरे पैगंबर थे। हजरत शीश (अलैहे0) के बारे में कहा जाता है कि इनकी कब्र अयोध्या में हैं।
हजरत नूह (अलैहे0) और भारत
हजरत नूह (अलैहे0) के बारे में भी कहा जाता है कि उनका इलाका भारत का था और जलप्लावन के बाद वो हिमालय के बदरी क्षेत्र में जाकर अपनी नाव में सुरक्षित बच गये थे। अल्लामा इकबाल ने अपने तराने में इसका जिक्र किया है-
'नूहे-नबी (सल्ल0) का आकर ठहरा जहां सफीना
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।'
कुछ रिवायतें ये भी बतातीं हैं की हजरत नूह ने अपनी नौका जिस लकड़ी से बनाई थी वो भारतीय आक वृक्षों से ली गयी थी !
ईसा मसीह (अलैहे0) और भारत
इस्लाम धर्म में पैगंबर (सल्ल0) परंपरा का बहुत महत्व है। पवित्र कुरान में हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के अलावा 24 और पैगंबर (सल्ल0) का जिक्र है। इन पैगंबर (सल्ल0) की सूची में हजरत ईसा मसीह (अलैहे0) का नाम सबसे प्रमुखता से आता है। कुरान में कम से कम 25 बार ईसा (अलैहे0) का उनके नाम से वर्णन आता है। एक मुसलमान के लिये यह अनिवार्य है कि वो हजरत ईसा मसीह (अलैहे0) के प्रति पूर्ण श्रद्धाभाव रखे। इसलिये हर मुसलमान हजरत ईसा (अलैहे0) का नाम सम्मानसूचक शब्द 'अलैहिस्सलाम' के बिना लेना पसंद नहीं करता। ईसा मुसलमानों के लिये इसलिये भी श्रद्धा के पात्र है क्योंकि उन्होंने अपने ऊपर अवतरित किताब में हजरत मोहम्मद (सल्ल0) के आगमन की शुभसूचनायें दी है। इस्लाम के इस बरगुजीदा पैगंबर (सल्ल0) का संबंध भी भारतभूमि से रहा है। सैकड़ों अनुसंधानकर्ताओं ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि हजरत ईसा (अलैहे0) के जिंदगी के कई साल भारत में गुजरे थे। इनमें से कुछ उदाहरण है-
जीसस (अलैहे0) के भारत में रहने का प्रथम वर्णन 1894 में रुसी निकोलस लातोविच ने किया है। वो 40 बर्षों तक भारत और तिब्बत में भटकते रहे, इस दौरान उन्होनें पाली भाषा सीखी और अपने शोध के आधार पर एक किताब लिखी जिसका नाम है ‘दी अननोन लाइफ ऑफ़ जीसस क्राइस्ट' जिसमें उन्होंने ये प्रमाणित किया कि ईसा (अलैहे0) ने अपने गुमनाम दिन लद्दाख और कश्मीर में बिताये थे। इतना ही नहीं अपने शोध में उन्होंने यह भी लिखा कि उन्होंनें उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में जाकर भारतीय भाषायें सीखी और मनुस्मृति, वेद और उपनिषदों का अपनी भाषा में अनुवाद भी किया। लातोविच के बाद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और उन साक्ष्यों का अवलोकन किया जिससें हजरत ईसा (अलैहे0) के भारत आने का वर्णन मिलता है और इन शास्त्रों के अवलोकन के पश्चात् उन्होंने ईसा (अलैहे0) के भारत आगमन की पुष्टि की और बाद में अपने इस खोज को बांग्ला भाषा में "तिब्बत ओ काश्मीर भ्रमण" नाम से प्रकाशित करवाया। एक ईसाई विद्वान लुईस जेकोलियत भी ईसा (अलैहे0) के भारत आने की पुष्टि करते थे, 1869 में उन्होनें जीसस (अलैहे0) को श्रीकृष्ण का अवतार बताते हुये एक किताब भी लिखी। यही नहीं 1908 में लेवी एच0 डाव्लिंग ने भी अपने खोज में यही पाया कि जीजस (अलैहे0) के जीवन के वो भाग जिसका विवरण बाईबिल में नहीं है निःसंदेह भारत में बिताए गये थे। ईसा(अलैहे0) के गुमनाम जीवन पर अध्ययन करने वाले जर्मन धर्मशास्त्री राबर्ट क्लाईट के मुताबिक बाईबिल के न्यू टेस्टामेंट में ईसा के 13 वें बर्ष से 30 वें बर्ष के जीवन का कोई वर्णन नहीं मिलता इसका कारण ये है कि अपने जीवन की ये अवधि उन्होनें भारत में बिताए और इस दौरान यहां उन्होनें वेद, उपनिषदों और बौद्धधर्मशास्त्रों का अध्ययन किया तथा फिर 30वें बर्ष में भारत लौट आये। वहां लौटकर उन्होनें उन्हीं शिक्षाओं का प्रचार किया जिसका उन्होंने भारत में अध्ययन किया था। 10 वीं सदी के प्रसिद्ध इतिहासकार शैक अल सईद अल सादिक ने अपनी किताब इमकालुद्दीन में उल्लेख किया है कि ईसा (अलैहे0) ने दो बार भारत की यात्रा की । बाद में मैक्समूलर ने इस ग्रंथ का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर फिदा हुसैन ने 'फिफ्थ गोस्पेल' (पंचम सुसमाचार) नामक अपनी किताब में यही प्रमाणित किया है कि ईसा (अलैहे0) भारत आये थे और तिब्बत तथा कश्मीर में बौद्ध रीति से कठोर साधनायें की थी।
अमेरिकी ईसाई विद्वाव लेवी ने अपनी पुस्तक 'द एक्वेरियन गास्पेल' में ये वर्णित किया है कि ईसा (अलैहे0) भारत आये थे और बनारस में भारतीय विद्वानों के साथ समय बिताया था। 1925 में निकोलस रोरिर ने भी निकोलस लातोविच के दावों की पुष्टि करने के लिये लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और पाया कि लातोविच के दावे सत्य थे। अपने अनुभवों को उन्होनें 'द हार्ट ऑफ एशिया' नामक किताब में कलमबद्ध किया। एक अन्य अमेरिकी विद्वान स्पेंसर ने भी ईसा (अलैहे0) के गुमनाम जीवन के बारे में यही माना है कि इस अवधि में वो भारत में रहे और साधनायें की।
अहमदिया मत के संस्थापक मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी ने भी इस बिषय पर विस्तृत शोध किया था और “मसीह हिन्दुस्तान में” नाम से लिखी अपनी किताब में ये प्रमाणित किया था कि सूलीकरण के बाद हजरत ईसा(अलैहे0) अपनी माँ के साथ भारत आ गये थे और बाद की जिंदगी यही बिताई थी। आज भी कश्मीर के श्रीनगर में रौजाबल नाम से एक मजार है जिसके बारे में ये मान्यता है कि यह हजरत ईसा(अलैहे0) का कब्र है। लोनली प्लैनेट नामक पत्रिका में इस मजार के बारे में छपने पर यह चर्चा में आया। कश्मीरी विद्वानों ने तो यह भी दावा किया है कि 80 ईसा में कश्मीर में हुये बौद्ध संगीति में ईसा ने भी हिस्सा लिया था।
आधुनिक काल के कई विद्वानों ने भी अपने शोधों में इसकी पुष्टि की है। फिदा हसनैन और देहन लैबी ने अपने किताब में यही लिखा है। हिंदुओं के नाथ संप्रदाय के संन्यासी ईसा(अलैहे0) को अपना गुरुभाई मानते है क्योंकि उनकी ये मान्यता है ईसा(अलैहे0) जब भारत आये थे तो उन्होंनें महाचेतना नाथ से नाथ संप्रदाय में दीक्षा ली थी और जब उन्हें सूली पर से उतारा गया था तो उन्होंनें समाधिबल से खुद को इस तरह कर लिया था कि रोमन सैनिकों ने उन्हें मृत समझ लिया था। नाथ संप्रदाय वाले यह भी मानतें हैं कि कश्मीर के पहलगाम में ईसा (अलैहे0) ने समाधि ली।
जर्मन विद्वान होल्गर कर्सटन ने जीसस लीव्ड इन इंडिया नामक किताब में यही बातें लिखी। यह किताब ईसाई जगत की बेस्ट सेलर किताबों में शुमार है और इसने ईसाई जगत में तहलका मचा दी। 18 हिन्दू पुराणों में से एक भविष्य पुराण में भी हजरत ईसा के हिन्दुस्तान भ्रमण का वर्णन मिलता है !
ये बात सच है कि पवित्र कुरान या हदीस में इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है पर ये भी सत्य है कि इन ग्रंथों में ईसा (अलैहे0) के भारत आगमन के विपक्ष में भी कुछ नही है। अलबत्ता कुरान के सूरह मोमिनून की 50 वीं आयत इसका हल्का सा इशारा करती है कि ईसा (अलैहे0) के जीवन के दिन भारत में गुजरे थे। आयत के शब्द हैं- "और मरयम के बेटे तथा उसके माता को हमने एक निशानी बनाया तथा उन दोनों को एक ऊँची जगह पर रखा जहाँ ठहराव था और बहता हुआ जलस्तोत्र।" ईसा मसीह का जहाँ जन्म हुआ था वह इलाका धरती के सबसे निचले स्थानों में शुमार होता है तो निःसंदेह यह इशारा कश्मीर या लद्दाख के बारे में था जो धरती के सबसे ऊंची जगहों में शुमार किये जातें हैं।
इमाम हुसैन(रजि0) और हिंद
आज से सैकड़ों बर्ष पहले भारत से मीलों दूर इराक के कर्बला में मानवजाति के इतिहास का सबसे ज्यादती भरा काला अध्याय धटिट हुआ था जिसमें जालिमों ने नबी (सल्ल0) के नवासे इमाम हुसैन (रजि0) को शहीद कर दिया था। मैदाने-जंग में उन्होंने युद्ध और हिंसा न हो इसकी मंशा रखते हुये जालिम यजीद के सिपहसालार इब्ने-साद से गुजारिश की थी कि वो उन्हें उनके परिवारजनों को लेकर हिंदुस्तान जाने की अनुमति दे। पर उस जालिम ने उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया था और उन्हें शहीद कर दिया था। उस वक्त के बारे में सोचिये जब आधुनिक तेज रफ्तार सवारियां भी ईजाद नहीं हुई थी तब भी हजरत इमाम हुसैन(अलैहे0) की चाहत हिन्दुस्तान आने की थी। हजरत इमाम हुसैन(अलैहे0) को हिंदुस्तान से कितनी मुहब्बत थी और यहां के लोगों पर कितना एतमाद था इसका पता इन बातों से चलता है जिसे जानते हुये नबी (सल्ल0) के नवासे हिन्दुस्तान आना चाहते थे।
- हिंद और इराक के दरम्यान हजारों मील का फासला है और उनके साथ बच्चे और औरतें भी थीं उन्हें पता था कि ये सफर बहुत दुश्वार हो सकता हैं।
- उस वक्त तक इस्लाम हिंद में नहीं पहुँचा था।
- यहां पर एक भी मस्जिद नहीं थी और कोई मुसलमान नहीं था।
- यहां गैर मुसलमानों का शासन था यानि काफिरों का। यानि हिंदुस्तान इस्लामी परिभाषा के लिहाज से दारुल-हर्ब था।
ये बात गौर करने लायक है कि हजरत इमाम हुसैन(अलैहे0) के वक्त तक अरब के आसपास के कई मुल्कों में इस्लाम आ चुका था मगर उस स्थिति में भी उन्होंनें अन्यत्र कहीं जाने की तमन्ना नहीं की। उनके लब पर सिर्फ हिंद का नाम आया। मतलब उन्हें ये यकीन था कि हिंदुस्तान के काफिर हिंदू मुसलमान यजीद से कहीं बेहतर होंगें जहां जाकर उनके मालो-दौलत और परिवार की हिफाजत हो सकेगी। शायद उन्हें ये भी पता था कि ये सरजमीं उनके कई बुजुर्गों और पैगम्बरों की जन्म और आश्रय स्थली रही है।
शक्कुल-क़मर का वाकिया और हिन्दुस्तान की गवाही
नबी करीम (सल्ल0) के जीवन की अहम घटनाओं में एक ‘शक्कुल-क़मर’ यानि चाँद के तो टुकड़े होने का मोजिज़ा भी है ! ये मोजिज़ा हुज़ूर (सल्ल) के हिजरत के तकरीबन दो साल पहले यानि ईस्वी सन 617 में रजब के महीने की चौदहवीं रात को मक्का के मीना नमक स्थान पर घटित हुई थी ! इस घटना की तस्दीक कई हदीसों में हुई है और इसके राबियों में हजरत अब्दुल्ला बिन अब्बास, हजरत अनस बिन मालिक, हजरत जुबैर बिन मुतअम, हजरत अली बिन अबू तालिब, हजरत अब्दुल्ला बिन अमर और हजरत हुजैफा बिन यमान हैं !
हदीसों में आया है कि अबू-जहल समेत दूसरे अन्य कुफ्फारे-मक्का ने आपसे ये कहा कि अगर आप खुदा के भेजे हुए रसूल हैं, तो अपनी सदाकत की निशानी के तौर पर कोई मोज़िजा दिखाइये ! उसी वक़्त आपने उनलोगों को ‘शक्कुल-क़मर’ यानि चाँद के दो टुकड़े करने का मोजिज़ा दिखलाया ! कुरान के सूरह अल-क़मर की शुरूआती आयतों में इससे संबंधित आयत नाजिल हुई !
इक-त-र-बतिस सा-अतु वन-शक्कल क़मर ! व् इयं-यरौ आ- यतय्युअ -रिजु व यकूलु सिहरुम मुस-तमिर्र !
‘क़यामत की घड़ी करीब आ गई और चाँद फट गया ! मगर इन लोगों का हाल यह है कि चाहे कोई निशानी देख लें , मुँह मोड़ जाते हैं और कहतें हैं, यह तो चलता हुआ जादू है ! इन्होनें (इसको भी) झुठला दिया और अपने मन की कामनाओं ही का अनुपालन किया !’ (सूरह अल-क़मर)
इस रिवायत के प्रमाणिकता का सबसे बड़ा सबूत हजरत अब्दुल्ला बिन मसऊद की रिवायत है जो बुखारी, मुस्लिम और तिरमिज़ी शरीफ सब में आई है ! इसकी वजह ये है की इस मोज़िज़े के घटित होने के वक़्त वो खुद वहां मौजूद थे और इसे अपनी आँखों से देखा था ! उनकी रिवायत है, “हुज़ूर (सल्ल0) के जमाने में चाँद दो टुकड़े हो गया ! एक टुकड़ा पहाड़ के ऊपर और एक टुकड़ा पहाड़ के नीचे नज़र आ रहा था ! आपने कुफ्फार को यह मंज़र दिखा कर उनसे इरशाद फ़रमाया की गवाह हो जाओ, गवाह हो जाओ ! (बुखारी शरीफ, जिल्द-2, सफा-721)
इस मोज़िज़े हो देख कर भी अबू-ज़ह्ल और दुसरे लोग उनपर ईमान नहीं लाये बल्कि ये कहकर उनकी रिसालत का इनकार कर दिया कि तो एक जादू है जो हमेशा से होता चला आ रहा है !
मोज़िज़े पर ऐतराज़ करने वालों ने ये कहा कि ये तो खुला जादू है जिसे मुहम्मद ने सम्मोहित कर मक्के वाले को दिखा दिया है ! अगर ये वाकई कोई मोजिज़ा है तो दुनिया के और दूसरे लोगों को ये मोजिज़ा क्यूँ नहीं नज़र आया ? वो ये सबूत मांगने लगे की अगर ये जादू नहीं है तो यक़ीनन बाहर के मुल्कों में भी लोगों को दिखा होगा तो क्यूँ न इस बारे में बाहर वालों से पूछा जाये ! हिन्दुस्तान की शान इस वाकिये से भी साबित होती है कि जब काफिरों द्वारा इस तरह की बात शुरू की गयी तब अरब से बाहर केवल एक मुल्क हिन्दुस्तान था जहाँ से इस संबंध में गवाही सामने आई ! चेर वंश के अंतिम नरेश चेरमान पेरुमाल के बारे में आता है कि एक रात वो अपने घर के छत पर टहल रहे थे तभी उन्होंने आसमान में दो टुकड़ों में बंटे चाँद को देखा ! (एक रिवायत में आता है कि अपने सपने में उन्होंने चाँद के दो टुकड़े होते देखा) इस हैरतनाक घटना को देखने के बाद अगले दिन सुबह उन्होंने अपने ज्योतिषियों और पंडितों को बुलाया और इस घटना का अर्थ जानना चाहा ! जब उन्हें इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो उसने कुछ अरब व्यापारियों को बुलवा भेजा ! उन व्यापारियों ने कहा कि हाँ ! हमारे शहर मक्के में एक व्यक्ति मुहम्मद ने जो रिवायत का दावा करता है, ऐसे मोज़िज़े का दावा किया है और ये वाकया उसी रात घटित हुआ जिस रात आपने इसे देखा है !
कहा जाता है कि इसके बाद उस राजा ने अपने राज्य को अपने सामंतों में वितरित कर दिया और खुद हजरत मुहम्मद (सल्ल0) से मिलने के लिए खूब सारे तोहफे लेकर मक्के चले गए और वहां जाकर हजरत मुहम्मद (सल्ल0) से मुलाकात की ! वहां उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया और जेद्दा के किसी सरदार की लड़की से उनका निकाह भी हुआ ! जब वापस हिन्दुस्तान आने लगे तो बीमार पड़ गये तब उन्होंने नबी के एक सहाबी मलिक बिन दीनार को एक ख़त के साथ हिन्दुस्तान भेजा ! उनके द्वारा इस ख़त में जाहिर मंशे के अनुरूप ही 629 ईस्वी में एक मस्जिद तामीर करवाई गई जिसे चेरमान मस्जिद के नाम से जाना जाता है (यह मस्जिद भारत की पहली मस्जिद मानी जाती है ) और मालिक बिन दीनार इसके पहले क़ाज़ी बनाये गए थे !
इन सारी बातों का सार- संक्षेपण यदि हम करें तो पातें हैं कि -
1. इस्लाम के पहले पैगंबर हजरत आदम (अलैहे0) और उनके बेटों का संबंध हिंद से है। यानि नुबुबत और रिसालत परंपरा यहीं से शुरु हुई।
2. हजरत आदम (अलैहे0) ने अपने शरीर का पुराना रंग वापस करने के लिये रोजा रखा था यानि रोजा रखने की परंपरा की शुरुआत भारतभूमि से ही हुई।
3. आदम (अलैहे0) जब जन्नत से निकाले गये तो खुदा ने उनसे भारत भूमि पर कलाम किया।
4. मानव इतिहास की पहली नमाज भारतभूमि पर अदा की गई थी । आदम (अलैहे0) ने भारत भूमि पर खुदा की बारगाह में सजदा किया और उनसे हुस्नो-जमाल की चाहत तलब की जिसके बाद खुदा ने उनकी दुआ कबूल की।
5. इस्लाम में पैगंबर परंपरा का बड़ा स्थान है और कम से कम तीन पैगंबर (आदम, शीश और नूह) का तो सीधा संबंध भारत भूमि से है।
6. हजरत नूह (अलैहे0) का दर्जा रसूल का है यानि भारत ही वो जमीन हैं जहाँ खुदा ने अपनी पहली किताब नाजिल की।
7. हजरत शीश (अलैहे0) और (कई अन्य रिवायतों के मुताबिक) हजरत अय्यूब (अलैहे0) की कब्रशरीफ अयोध्या में है।
8. संगे-अस्वद् सर्वप्रथम हिंद में उतारा गया जहां से आदम (अलैहे0) उसे मक्का ले गये।
9. हज की शुरुआत भी हिंदुस्तान से हुई। रिवायतों में आता है हजरत आदम (अलैहे0) ने हिंद से 40 बार पैदल हज किया था।
10. हिंद ही वो भूमि है जहां फरिश्ते जिब्रील (अलैहे0) और खुदा आदम (अलैहे0) से हमकलाम हुये। यानि ईश्वरीय वाणी का प्रथम संप्रेषण जिब्रील के द्वारा भारत भूमि पर हुआ था।
11. हिंदुस्तान ही वो पाक सरजमीं है जिसकी फिजा जन्नती खुश्बू से लबरेज है और यह आला मुकाम दुनिया के किसी और जमीन को हासिल नहीं है।
12. रिवायतों कें अनुसार अल्लाह ने आदम (अलैहे0) को 'मिट्टी' से बनाया। मिल्ली गजट में India our land & its virtues शीर्षक से एक आलेख प्रकाशित हुआ था जिसमें आता है कि आदम को जिस मिट्टी से बनाया गया था वो हिंद की थी।
13. अबू हुरैरा से रिवायत एक हदीस है जिससे पता चलता है कि 'अजान' की शुरुआत भी भारत भूमि से ही हुई। इस रिवायत में है कि अल्लाह ने हजरत आदम के पास हजरत जिब्रील को भेजा। हजरत ज्रिबील ने आकर उनके सामने ये लब्ज पढ़े-'अश्हदु अल्लाइलाह इल्लाह व अश्हदु अन्न मुहम्मदउर्रसुल्लाह' (जो अजान और कलमा के बोल है) । हजरत आदम ने जब इस कलिमे में मोहम्मद (सल्ल0) का नाम सुना तो पूछा कि ये किसका नाम है? जबाब मिला- ये तुम्हारे औलाद में से होगें और अल्लाह के सबसे आखिरी नबी होगें। (तबरानी, अबू नसीम, इब्ने-अस्करी ) । इस रिवायत का उल्लेख करते हुये मिल्ली गजट के उक्त आलेख में कहा गया है-
From this tradition, it becomes clear that the descent of Gabriel on earth, the declaration of unity of Allah and His Greatness and the proclamation of Mohammad’s prophethood for the first time was made on the Indian soil, which fortunately today is our motherland.
14. नबी (सल्ल0) के नवासे की चाहत हिंद आने की थी।
15. अपने दुश्मनों से बचने और इल्म सीखने के लिये हजरत ईसा ने भारतभूमि को चुना।
16. इस्लाम के कई सूफी संत और बुर्जुग औलिया अपनी जन्मभूमि को छोड़कर हिंदुस्तान आये और इस भूमि को अपनी चिल्लागाह और साधनास्थली बनाई।
17. इसी मुल्क की तरफ इशारा करके नबी (सल्ल0) ने फरमाया था कि हिंदुस्तान से मुझे ठंढ़ी हवायें आती हैं। [ I feel a cool breeze from Al-Hind ] इकबाल ने भी अपने तराने में इसका जिक्र किया है-
'मीरे-अरब को आई ठंढ़ी हवा जहां से, मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।'
उर्दू के एक और शायर ने लिखा है-
यही वो मुल्क है भारत जो एक जमाने में , रसूल-पाक को ठंढ़ी हवायें भेजता था।
18. हिन्दुस्तान अरब से बाहर का अकेला मुल्क है जहाँ से शक्कुल-क़मर की घटना की गवाही मिली !
अमीर खुसरो और हिंदुस्तान
अमीर खुसरो के बारे में कहा जाता है कि वो पहले राष्ट्रवादी मुसलमान थे जिनके मन में भारतभूमि के प्रति अपार श्रद्धा थी। 'नूहे-सिफर' नाम से उन्होनें एक महाकाव्य लिखा था जिसमें उन्होनें भारतबर्ष के प्रति अपनी भक्तिभावना दर्शाई है। उनकी रचनायें बताती हैं कि कम से कम उनके समय तक भारत दुनिया के देशों का सिरमौर था। अमीर खुसरो भी इस तथ्य की पुष्टि करतें हैं कि हजरत आदम और हव्वा जब जन्नत से निकाले गये थे तो वो इसी भारत भूमि पर उतारे गये थे। खुसरो ने खुरासान, तुर्की, बसरा, चीन, समरकंद, मिश्र, कंधार इन सबको भारत भूमि की तुलना में तुच्छ बताया है। फिर अपने काव्य में खुसरो में यह भी लिखा है कि कोई मुझसे ये पूछ सकता है कि तू मुसलमान होकर हिंदुस्तान की बड़ाई क्यों करता है ? तो मेरा जबाब होगा इसलिये क्योंकि हिंद मेरी जन्मभूमि है और मेरे रसूल (सल्ल0) की ये हुक्म है कि 'वतनपरस्ती ईमान का हिस्सा है।'
यहाँ हजरत अमीर खुसरो से जुड़ी एक रिवायत उद्धृत करने योग्य है जो ये पक्का साबित कर देगी कि इस्लाम में वतनपरस्त का मकाम कितना ऊँचा है ! हजरत अमीर खुसरो बाबा गरीब नवाज़ अजमेरी निजामुद्दीन औलिया (रह0) के शागिर्द थे ! अगर वतनपरस्ती की बात करें तो फिर आज तक हिंदुस्तान से बेइंतहा मुहब्बत करने वाले मुसलमानों में अमीर खुसरो से बढ़ कर इस मुल्क से मुहब्बत करने वाला कोई नहीं हुआ ! इसलिए अगर वतनपरस्ती कुफ्र है तो फिर हजरत अमीर खुसरो से बड़ा काफ़िर कोई नहीं ! अब इस काफ़िर का क्या मक़ाम है, अगली बात इसे साबित कर देगा ! हजरत बाबा गरीब नवाज़ (रह0) ने एक बार कहा था कि ‘क़यामत के रोज़ खुदा ताला अगर मुझसे ये पूछेगा कि निजामुद्दीन तू तोहफे में मेरे लिए क्या लेकर आया है तो मैं अमीर खुसरो को पेश कर दूंगा !’
अगर वतनपरस्ती कुफ्र है तो क्या बाबा गरीब नवाज़ अल्लाह को बतौर तोहफा एक काफ़िर पेश करेंगे?? ये हो नहीं सकता , इसलिए ये दलील साबित कर देती है कि वतनपरस्ती ईमान को मुकम्मल बनाती है न कि कम करती है !
हिंदुस्तान मुसलमानों की मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि
हमारे बिष्णुपुराण में इस पवित्र भारतभूमि की महिमा का बखान करते हुये कहा गया है-
गायन्ति देवाः किलगीतकानि धन्यास्तुते भारतभममिभागे
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।।
अर्थात् 'देवता लोग कहतें हैं कि वो लोग बड़े धन्य हैं जिन्हें मानव योनि मिली है और उसमें भी भारतबर्ष में जन्म मिला है। वो मनुष्य हम देवताओं से भी अधिक भाग्यशाली है जो इस कर्मभूमि में जन्म लेतें हैं।'
उपरोक्त तमाम उदाहरण और तथ्य यह स्पष्ट करतें हैं कि भारत भूमि मुसलमानों के लिये पितृभूमि भी है, मातृभूमि भी है और पुण्यभूमि भी है। बहुत से लोग ऐसे हुये हैं जिनका जन्म भारत में नहीं हुआ पर उनकी ये कामना जरुर रही कि वो पवित्र भारत भूमि पर आये और इसके रजःकणों का आश्रय लें । हजरत ईसा और हजरत इमाम हुसैन के हिंद के साथ जुड़ाव की शायद यही वजह थी।
एक ही रास्ता
भारतीय मुसलमानो की समस्या ये है कि उन्हें लगता है कि वतन के प्रति मोहब्बत रखना हमारे मजहब के खिलाफ है और चूंकि हिंद में बहुमत काफिरों की है इसलिये ये भूमि हमारे लिये दारुल-हर्ब है। इन्हीं कारणों से भारतभूमि को लेकर मुसलमानों का मन शंकित रहता है। अगर खुसरो को ही मुसलमान अपना आदर्श माने और इस्लाम की तालीमों पर अमल करें तो यह शंका रहेगी ही नहीं। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के पेशावर अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण देते हुये मौलाना अनवर शाह कश्मीरी ने कहा था- 'मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हिंदुस्तान हिंदुओं और मुसलमानों दोनों ही का होमलैंड है। मुसलमानों के पूर्वज सदियों पहले यहां आये थे और लंबे समय तक यहां शासन किया था। उन्होंनें भी इस मुल्क से उतनी ही मोहब्बत की जितना यहां रहने वाले और लोग करते थे क्योंकि अपने वतन से मोहब्बत करना हमारे प्यारे नबी (सल्ल0) की परंपरा है।' जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव और सांसद मौलाना महमूद मदनी ने भी चैथी दुनिया अखबार को दिये इंटरव्यू में यह बात स्वीकार की कि मुसलमानों को अपनी लड़ाई भारतीय नागरिक बनकर लड़नी चाहिये। मुसलमानों का संबंध तो कयामत तक इस भूमि से रहने वाला है। मरने की बाद वो इसी भूमि में दफन किये जातें हैं और फिर कयामत के रोज इसी भूमि से उठाये जायेंगें। इस लिहाज से तो इस भूमि के साथ मुसलमानों का संबंध उनके जन्म से लेकर कियामत तक बना रहने वाला है। कयामत के दिन इसी मुल्क की मिट्टी उसके सज्दों की गवाही देगी।
राष्ट्र और मजहब के बीच मजहब को सर्वोपरि और राष्ट्र को गौण मानने की मानसिकता का ही परिणाम है कि यहां के मुसलमान इस पवित्र भूमि को रौंदने और कलंकित करने वाले गौरी, गजनवी और बाबर से अपना संबंध जोड़तें हैं जबकि इस भूमि का जर्रा-2 इस्लामी प्रतीकों और पूर्वजों की यादों को अपने में बसाये हुये है। इस बात को अगर मुसलमान समझने लगे तो अब न ये भूमि खंडित होगी न ही कोई अलगाववादी मानसिकता पनपेगी, न ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फसाद होगा और न ही कोई पाकिस्तान बनेगा। इस मुल्क में अमन और खुशहाली कायम करने और हिन्दुस्तान को फिर से सारी दुनिया का सिरमौर बनाने का एक ही रास्ता है और वो यही है।
मिल्ली गजट में प्रकाशित एक आलेख में इस मुल्क के प्रति मुसलमानों के कर्तव्य को बताते हुये उनसे यही अपेक्षा की गई थी कि वो इस मुल्क को अपना समझे, इसके प्रति वफादार रहें और संकट के समय इसके लिये मिटने को तैयार हों। आलेख की पंक्तियां थी-
"In other words, what is the demand of India from its citizens like us (Muslims) ? The answer is the same that Palestinian Muslims have given to the Jews. The country demands that people should work hard to make it prosperous and defend it at the time of aggression from the foreign forces. "
अभिजीत मुज़फ्फरपुर (बिहार) में जन्मे और परवरिश पाये और स्थानीय लंगट सिंह महाविद्यालय से गणित विषय में स्नातक हैं। ज्योतिष-शास्त्र, ग़ज़ल, समाज-सेवा और विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों का अध्ययन, उनकी तुलना तथा उनके विशलेषण में रूचि रखते हैं! कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में ज्योतिष विषयों पर इनके आलेख प्रकाशित और कई ज्योतिष संस्थाओं के द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता की कोशिशों के लिए कटिबद्ध हैं तथा ऐसे विषयों पर आलेख 'कांति' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इस्लामी समाज के अंदर के तथा भारत में हिन्दू- मुस्लिम रिश्तों के ज्वलंत सवालों का समाधान क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाशने में रूचि रखते हैं।
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