अभिजीत
18 मार्च,2014
आज इस्लाम का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में चार शादियां, ज्यादा बच्चे, तलाक जैसे शब्द आ जातें हैं। अधिक बच्चों की बात में वास्तविकता है क्योंकि मुस्लिम समाज में बढ़ती आबादी आज एक समस्या बन चुकी है और इसका एकमात्र कारण है कि उनके समाज के रहबरों ने कुरान और हदीस की गलत और मनमाफिक व्याख्या करके मुसलमानों के जेहन में यह बात डाल दी है कि अधिक बच्चे पैदा करने वाला अल्लाह के करीब हो जाता है और गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल इस्लामी तालीमों के खिलाफ है। जबकि इस्लाम की तालीमों में बिलकुल ऐसी बात नहीं है जो मुल्ला-मौलवी बतातें हैं। इस्लाम की पूरी तालीम छोटा परिवार रखने, अपने औलाद को अच्छी तरबीयत देने, उन्हें पढ़ा-लिखा कर लायक बनाने की है। आज दुनिया में इंसानों की आबादी बेतहाशा बढ़ रही है, प्राकृतिक संसाधन और रहने के लिये जमीन कम होते जा रहें हैं, पानी की समस्या विकराल रुप ले रही है और महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है ऐसे में ये जरुरी है कि परिवार नियोजन के उपायों को अपनाकर खुशहाली हासिल की जाये क्योंकि अधिक जनसंख्या तरक्की की दुश्मन है जो औलाद को अच्छी तालीम, बेहतर परवरिश और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित कर देती है। यही कारण है कि हर दौर में दुनिया के तमाम धर्मो की तालीम और खुदा की तरफ से भेजे जाने वाले नबियों, अवतारों और वलियों का खुद का अमल परिवार नियोजन की ही सीख देता है। इस बात के प्रमाण धर्मग्रंथों, अंबियाओं की सीरतों और अवतारों की गाथाओं में दर्ज हैं। हिंदू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा है और इस्लाम में नबियों की। इन सबका खुद का अमल हर मां-बाप को कम बच्चे पैदा करने और अपने औलाद की बेहतर तर्बीयत की सीख देती है। हमारे धर्मग्रंथों से ये बात साबित हैं।
भगवान बिष्णु के अवतार श्रीराम के दो बेटे थे लव और कुश। श्रीराम के बाकी भाईयों में प्रत्येक की दो-दो संताने ही थी। श्रीकृष्ण के भी केवल एक बेटे प्रद्युम्न का वर्णन मिलता है, भगवान बुद्ध की भी राहुल नाम की एक ही संतान थी। हनुमान अपने माँ-बाप की अकेली संतान थे, भगवान शिव और पार्वती की भी एक कार्तिकेय नाम की अपनी एक ही संतान थी। इस्लाम धर्म की अगर हम बात करें तो उसमें भी हमें नबियों की सीरत का पता चलता है वो औलादें की सीमित संख्या रखने वाले थे। नूह तथा हजरत इब्राहीम के तीन और हज़रत लूत की दो औलादों का ही वर्णन आता है !
* औलादों की सीमित संख्या और नबी करीम (सल्ल0) की हदीसें
नबी ने अपनी उम्मतियों से कहा कि "कोई बाप अपनी औलाद को इससे बेहतर तोहफा नहीं दे सकता है कि वह उसकी बेहतर तरबीयत करे और कोई भी मां-बाप अपनी औलाद की बेहतर तरबीयत तभी कर सकतें है जब उनकी औलाद सीमित संख्या में हो।"
नबी-ए-करीम (सल्ल0) की मुबारक हदीसों से ये पता चलता है कि उन्होंनें जब भी लोगों को औलाद से जुड़े मसले समझाये तो हमेशा एक, दो या तीन बच्चों की ही मिसालें दी, जो इस बात को साबित करने के लिये पर्याप्त है कि वो चाहते थे कि लोग अधिक बच्चे न पैदा करें। इससे जुड़ी कुछ हदीसे है-
* जिसके तीन बेटे पैदा हों और वो उनमें से किसी का नाम मुहम्मद न रखे तो वह जरुर जाहिल है। (तबरानी शरीफ)
* हजरत इब्ने अब्बास रिवायत करतें हैं कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फरमाया, जिस मुसलमान की दो बेटियां हों, फिर जब तक वो उसके पास रहें या यह उनके पास रहे वह उनके साथ अच्छा बर्ताब करे तो वह दोनों बेटियां उसको जरुर जन्नत में दाखिल करा देंगी। (इब्ने हव्वान)
* हजरत अनस से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फरमाया, जिस शख्स ने दो लड़कियों की परवरिश और देखभाल की वह और मैं जन्नत में इस तरह इकट्ठे दाखिल होंगें जैसे दो अंगुलियां। (यह इर्शाद फरमा कर आप ने अपनी दोनों उंगलियों से इशारा फरमाया) (तिर्मिजी शरीफ)
* छोटा परिवार: बच्चों की बेहतर तरबीयत का आधार
हदीसों से ये मालूम होता है कि नबी करीम लोगों को हर वक्त ये ताकीद करते थे कि वो अपने औलाद की बेहतर परवरिश करें, उन्हें पढायें-लिखायें, अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल बनाये। एक हदीस में आता है, हजरत अय्यूब अपने वालिद से और वह अपने दादा से रिवायत करतें हैं कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फरमाया, किसी बाप ने अपनी औलाद को अच्छी तालीम व तर्बियत से बेहतर कोई तोहफा नहीं दिया। (तिर्मिजी शरीफ) कोई भी माँ-बाप अपनी औलाद को बेहतर तर्बीयत रुपी तोहफा तभी दे सकता है जब वह औलादों की संख्या के मामले में सब्र करे। क्योंकि औलाद की संख्या सीमित होगी तो माँ-बाप अपने बच्चे की देखभाल बेहतर तरीके से कर पायेंगें। आज की खोज भी इस बात को साबित करती हैं कि किसी बच्चे की बेहतर तर्बीयत केवल भोजन से ही नहीं हो सकती बल्कि उसके संपूर्ण विकास में उसके वालिदैन का प्यार, सहानुभूति, अपनापन और ममता का भी बराबर योगदान होता है। बच्चे कम हो तो माँ-बाप को उसके स्वभाव और मनोविज्ञान को समझने का मौका मिलता है और तद्नुरुप वो उसकी रुचि के अनुरुप क्षेत्र में उसे आगे बढ़ने के मौके मुहैया करातें हैं। औलाद कम होंगें तो आय के सीमित साधनों के बाबजूद माँ-बाप बच्चों के लिये बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा मुहैया करवा सकेंगें।
कम औलाद लोगों को गलत काम करने और हराम कमाने से भी रोकती है। नबी करीम(सल्ल) की एक हदीस है जिसमें उन्होंनें फरमाया था, औलादों के हुकूक में से सबसे अहम हक ये है कि उन्हें उनके वालिद हलाल कमाई में से खिलायें और हराम की कमाई से बचे।और ऐसा होना काफी हद तक तभी संभव है तब औलाद कमहो।
* पुत्र मोह: अधिक संतानों का कारण
औलादों की बहुसंख्या का एक कारण ये है कि सामान्यतया कई दंपत्ति पुत्र मोह में कई-कई बेटियों को जन्म देते चले जातें हैं। इसके पीछे की मूल अवधारणा इस सोच पर आधारित है कि लड़कियां लड़कों के मुकाबले कमतर होतीं हैं। इस अवधारणा के पीछे कोई हकीकत नहीं है क्योंकि अतीत से लेकर आज तक लड़कियों ने ये साबित किया है कि वो किसी भी रुप में लड़कों से कम नहीं है। दुनिया का कोई भी धर्मग्रंथ और किसी भी कौम की तारीख इस बात की इजाजत नहीं देती कि लड़कियों को कमतर समझकर उनके साथ बदसलूकी की जाये अथवा पुत्र को इतनी बड़ी नेअमत समझी जाये कि उसे लड़कियों के मुकाबले अधिक तरजीह दी जाये। हिंदू धर्म की बात करें तो वहां वैदिक मंत्रों के संकलनकर्ताओं में महिलायें भी थीं, रामायण के वर्णन आता है कि महाराज दशरथ जब असुरों के खिलाफ जंग में देवताओं की मदद करने गये थे तो वहां सारथी रुप में उनकी पत्नी केकैयी उनके साथ थी। वैदिक यज्ञ और धार्मिक कर्मकांडों को संपादित करने में वो भी अपने पति के साथ होतीं थी। यही नहीं राजनीति और राज्य संचालन के कामों में भी उनकी सहभागिता रहती थी, राम दरबार में श्रीराम अपने साथ माता सीता को भी स्थान देते थे तो धर्मराज युधिष्ठर अपनी माता कुंती से राज्य संचालन के बारे में परार्मश करते थे। इस्लाम ने भी महिलाओं बराबरी के हक दिया। औरत के हर किरदार की (चाहे वो माँ के रुप में हो, बेटी या बहन के रुप में हो या पत्नी के रुप मे) श्रेष्ठता रसूल (सल्ल0) ने बतलाई। मुहम्मद साहब के कथनों का संग्रह हदीस कहलाता है और सर्वाधिक हदीसे जिनसे रिवायत है वो मुहम्मद (सल्ल0) की बीबी आएशा रजि (0) हैं। नबी (सल्ल0) जिस दौर में आये थे उस वक्त अरब में औरतों को अभिशाप समझा जाता था, लोग अपनी बच्चियों को पैदा होते ही जिंदा दफन कर देते थे। मुहम्मद (सल्ल0) पर अवतरित ग्रंथ ने इस अमानवीय काम से उन्हें रोका और कहा, और उस वक्त को याद करो जबकि जिंदा गाड़ी गई लड़की से पूछा जायेगा कि उसे किस अपराध में मारा गया (कुरान, 81: 8-9)
वो मुहम्मद (सल्ल0) थे जिन्होंनें अपनी तालीमों के माध्यम से लोगों को समझाया कि लड़का हो या लड़की दोनो ही खुदा की अजीम नेअमत हैं इसलिये न तो बेटे का जन्मना खुशी की वजह है और न बेटी का जन्मना अपमान। कुरान मे आता है, अल्लाह ही के लिये है आसमान और जमीन की बादशाही, वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़किया देता है और जिसे चाहता है लड़के प्रदान करता है। (कुरान, 42: 49,50)
इस्लाम ने न सिर्फ लड़कियों को जिंदा दफन करने से रोका बल्कि ये कहा, जिस व्यक्ति की लड़की हो, वह न तो उसे जिंदा गाड़े, न ही उसके साथ उपेक्षा का व्यवहार करे और न ही उसपर अपने लड़के को प्रमुखता दे, तो अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल करेगा। (अबू दाऊद शरीफ, किताबुल अदब)
लड़कियों की फजीलत और उनके आला मुकाम को दर्शाने वाली कई हदीसें हैं , उदाहरणार्थ,
* हजरत इब्ने अब्बास रिवायत करतें हैं कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फरमाया, जिस मुसलमान की दो बेटियां हों, फिर जब तक वो उसके पास रहें या यह उनके पास रहे वह उनके साथ अच्छा बर्ताव करे तो वह दोनों बेटियां उसको जरुर जन्नत में दाखिल करा देंगी। (इब्ने हव्वान)
* हजरत अनस से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फरमाया, जिस शख्स ने दो लड़कियों की परवरिश और देखभाल की वह और मैं जन्नत में इस तरह इकट्ठे दाखिल होंगें जैसे दो अंगुलियां। (यह इर्शाद फरमा कर आप ने अपनी दोनों उंगलियों से इशारा फरमाया) (तिर्मिजी शरीफ)
* हजरत उक्बा बिन आमिर से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने फर्माया,लड़कियों से धृणा न करो, वे तो हमदर्द और बड़ी मूल्यवान हैं। (मस्नेद-अहमद,4:151)
* हजरत अबू सईद खुदरी से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ने फर्माया, जिसने तीन लड़कियों की परवरिश की, उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया, उनका विवाह किया और उनके साथ बाद में भी अच्छा सुलूक किया तो उसके लिये जन्नत है। इस बारे में नबी-करीम की तमाम तालीमातों को अगर हम सामने रखे तो यही निचोड़ सामने आता है कि किसी भी रुप में इंसान के लिये यह जायज नहीं है कि वो अपनी बेटियों को बेटों के मुकाबले कमतर समझे, बेटे की चाहत में बेटियां पैदा करता चला जाये और फिर उन सबको बेहतर परवरिश से महरुम कर दे।
* गर्भ निरोध के तरीकों का इस्तेमाल और इस्लाम बच्चों की तादाद बढ़ने से रोकने और दो बच्चों के दरम्यान फासला रखने के लिये लिये आज के जमाने में विज्ञान की तरक्की ने कई तरीके अख्तिायर कर लिये हैं मगर नबी करीम (सल्ल0) का जूहूर जिस जमाने में हुआ था उस दौर में गर्भनिरोधकों के आधुनिक तरीके इजाद न हुये थे इसलिये लोग गर्भनिरोध के लिये दूसरे तरीके (मसलन अजल) अपनाया करते थे और नबी करीम (सल्ल0) ने इससे उन्हें मना भी नहीं फरमाया था। अजल करने का मकसद यही था कि औरत को हमल न ठहरे और औलाद की पैदाइश को रोकी जाये। ये कई हदीसों से पता चलता है:-
* हजरत जाबिर फरमातें हैं, हम नबी करीम (सल्ल0) के मुबारक जमाने में अजल किया करते थे, हालांकि कुरआने-करीम नाजिल हो रहा था। (बुखारी, तिर्मिजी, इब्ने माजा, मिश्कात शरीफ)
* हजरत जाबिर फरमातें हैं, अजल के बारे में रसूल (सल्ल0) को खबर पहुंची पर आपने हमें मना नहीं फर्माया। (मुस्लिम शरीफ)
* हजरत अबू अय्यूब अंसारी से रिवायत है कि वो अजल किया करते थे। (इमाम मालिक की मोअत्ता)
* हजरत आमीर बिन सईद अबी वक्कास ने हजरत सआद बिन अबीवक्कास से रिवायत किया है कि वो अजल किया करते थे। (इमाम मालिक की मोअत्ता)
* हजरत हमीद कैस मक्की से रिवायत है कि हजरत इब्ने अब्बास से अजल के बारे में पूछा गया तो उन्होनें कहा, हां! मैं अजल करता हूं। (इमाम मालिक की मोअत्ता)
* एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ लंबे सफर पर जा रहा था। वह नहीं चाहता था कि इस दौरान उसकी पत्नी गर्भवती हो, उसने नबी करीम से अजल करने की इजाजत मांगी तो आपने उसे इजाजत दे दी।
* प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान इमाम गजाली ने भी अपनी किताब कीम्या-ए-सआदत में फरमाया था कि अजल हराम नहीं है। (इमाम मालिक की मोअत्ता) कई लोग जो अजल की मनाही यह कह कर करते है कि यह औलाद को कत्ल करने जैसा है, उन्हें अपने रसूल की यह हदीस भी याद रखनी चाहिये जो हजरत अबू हुरैरा से रिवायत है, वो कहतें हैं कि एक बार रसूल (सल्ल0) ने सहाबियों से पूछा, यहूदी तो अज्ल को छोटा कत्ल कहतें हैं, तो नबी करीम ने फर्माया, वो झूठ बोलतें हैं। (बैहकी) आज के दौर में जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है और गर्भनिरोध के कई तरीके खोज लियें हैं तो उन्हें अपनाना गलत नहीं हो सकता है क्योंकि अजल और गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल का मकसद एक ही है। उस दौर में अजल करने का मकसद भी वही था जो आज के दौर में निरोध और दूसरे गर्भनिरोधक तरीकों के इस्तेमाल का है, अगर अजल हराम नहीं था जो निरोधकों के इस्तेमाल को भी हराम नहीं कहा जाना चाहिये। आज मुसलमान विद्वान भी इस बात के साथ अपनी सहमति जता रहें हैं कि बेलगाम होती आबादी की रोकथाम के लिये मुसलमानों को गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल की इजाजत दी जाये।
स्वस्थ नारी:खुशहाल परिवार
इस्लाम ने औरतों को बेहद आला मुकाम दिया है मगर बाद के कालखंड में पुरुष केंद्रित व्यवस्था ने औरतों को केवल बच्चा पैदा करने की मशीन बना दिया। अल्जीरियाई राष्ट्रपति बोमेंटियन की इस धोषणा ने कि :हमारी औरतों के गर्भ हमें जीत दिलवायेंगें ने औरतों के कर्तव्यों की इतिश्री बच्चे पैदा करने तक ही सीमित कर दी। अधिक बच्चों की होड़ में लोग ये भी भूल गये कि अधिक बच्चे पैदा करना औरतों की सेहत पर भी असर डालता है। माँ अगर स्वस्थ न हो तो बच्चा भी कुपोषित, बीमार और मंदबुद्धि पैदा होता है जो बाद में समाज के ऊपर बोझ बन जाता है। हर मुसलमान की पहली प्राथमिकता नारी स्वास्थ्य व उसके सेहत के प्रति जागरुकता होनी चाहिये और इसके लिये जरुरी है कि उसे अधिक बच्चे पैदा करने पर मजबूर न किया जाये तभी उससे पैदा हुई औलादें स्वस्थ होगी। इमाम गजाली ने काफी पहले माँ की जान को खतरा होने की सूरत में गर्भमान की अनुमति देने की बात कही थी। सौभाग्यवश आज मुस्लिम विद्वानों की तरफ से ये फतवे आयें हैं कि माँ की जान खतरे में हो तो डॉक्टर के सलाह पर गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है।
इस्लामिक मुल्कों में परिवार नियोजन
कुरान और हदीस की गलत व्याख्याओं के कारण दुनिया के मुसलमान मुल्क बढ़ती आबादी से परेशान है और इस कारण कारण पैदा हुये समस्याओं को झेल रहें हैं। इन मुल्कों के हुक्मरान अपने देशवासियो को अच्छी तालीम और बुनियादी स्वास्थय सुविधायें देने में भी नाकाम रहें हैं और तो और दुनिया के विकसित मुल्कों के फेहरिस्त में एक भी इस्लामी मुल्क नहीं है। जिन इस्लामी मुल्कों ने इस सच को समझ लिया उनमें इसको लेकर जागृति आई है और गर्भनिरोधों तथा कई अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर उन्होंनें काफी हद तक बढ़ती आबादी की समस्याओं पर काबू पा लिया है। ईरान इस मामले में मुस्लिम मुल्कों का अग्रणी बना और वहां की सरकार ने 1989 में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुये परिवार नियोजन के काम को अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल किया। पूरे मुल्क में बड़े पैमाने पर जनजागरण अभियान चलाये गये, लोगों को बड़े परिवार की खराबियां और छोटे परिवार की खुशहालियां बताई गई। सारे देश में गर्भ निरोधकों का निःशुल्क वितरण किया गया। लोगों को ये काम मजहब विरुद्ध न लगे इसके लिये धर्मगुरुओं की भी मदद ली गई। गांव- गांव तक इस जागृति को पहुंचाने के लिये स्वास्थ्य सेवकों की बहालियां भी की गई। इन सबके परिणामस्वरुप ईरान में जहां 1980 में महिला जन्म दर 5 थी, केवल 20 बर्षों के प्रयास में ही धटकर 2 पर आ गई और ईरान आज शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी जरुरतें मुहैया कराने के मामले में ही नहीं वरन् रक्षा आदि के क्षेत्रों में भी सबसे बेहतरीन इस्लामिक मुल्क के पायदान पर पहले नंबर पर खड़ा है। परिवार नियोजन के उपायों को अपनाकर खुशहाल बना यह मुल्क आज अपनी समृद्धि से अमेरिका को भी ललचा रहा है। परिवार नियोजन को संरक्षण देने वाले इस्लामी मुल्कों की फेहरिस्त में एक नाम बांग्लादेश का भी है।
बांग्लादेश एक ऐसा मुल्क है जिसके पास जमीन कम है, आबादी ज्यादा और संसाधन उससे भी कम। बांग्लादेश ने भी ये सोचा कि अगर बेलगाम होती आबादी की रफ्तार को न थामा गया तो उसका मुल्क भी भूख और बदहाली मे धिर जायेगा, इसलिये बांग्लादेश ने भी परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाया। यह प्रयोग वहां के एक जिले से शुरु किया गया और फिर उसकी सफलता के बाद धीरे- धीरे पूरे मुल्क में इसे लागू कर दिया गया और आज इस कोशिश का अच्छा परिणाम सामने आ रहा है। इनसे सीख लेते हुये परिवार नियोजन अभियान पाकिस्तान में भी शुरु किया गया है। वहां के अखबारों में आये दिन इस तरह के विज्ञापन दिख जाते हैं। एक अलग विभाग बनाया गया है जो परिवार नियोजन की योजनायें बनाती है और फिर उसको क्रियान्वित करने के प्रयास करती है। भले ही पाकिस्तान में इस काम के करने वालों को अभी कट्टरवादियों का सामना करना पड़ रहा है पर पाकिस्तान सरकार इन विरोधों को दरकिनार कर अपने अभियान में जुटी हुई है। चीन के चिकित्सकों के सहयोग से वहां गर्भनिरोधक चीजों के इस्तेमाल के फायदे बताये जा रहें हैं और चीन से गर्भनिरोधक सामान आयात किये जा रहें हैं। मिश्र में भी परिवार नियोजन के उपायों को लेकर जागृति आई है, वहां के मस्जिदों में जुमे के नमाज के खुत्बे के बाद मौलवी अपने खुत्बे में परिवार नियोजन के फायदे और इस बारे में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं के बारे में बतातें हैं।
दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसी कोशिशों का विरोध किया जाता है जिसकी परिणति मुसलमानों में बढ़ती गरीबी और अशिक्षा के रुप में सामनेआ रही है।
* मुस्लिम धर्मगुरु और परिवार नियोजन
दुनिया के मुसलमानों में छोटे परिवार को लेकर जागृति पैदा करने में विभिन्न मौलानाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है। 980 हिजरी में पैदा हुये इस्लामी विद्धान इब्ने-सीना और 923 हिजरी में पैदा हुये अल राजी जैसे विद्धानों ने गर्भ निरोध के कई तरीके बताये थे। भारत के मौलानाओं में भी इस बात को लेकर चिंतन चल रहा है कि अपने समाज की बेलगाम होती आबादी पर कैसे नियंत्रण पाया जाये? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उलमेाओं में इस बात को लेकर सहमति बननी आरंभ हो गई कि मुसलमानों को गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल की अनुमति दे दी जाये। इस काम में बोर्ड के उपाध्यक्ष कल्बे सादिक सबसे अग्रणी हैं जो कहतें हैं, जब ईरान जैसा देश (जहां धर्मगुरु सत्ता में हैं) परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अपना सकता है तो फिर ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परिवार नियोजन अपनाना मुसलमानों की जनसंख्या रोकने का मामला नहीं है बल्कि गरीब और बीमार लोगों की तादाद बढ़ने से रोकने का मुद्दा है। क्या यह बेहतर नहीं है कि बच्चे पैदा ही न हो वनिस्पत इसके कि वो पैदा होकर मर जाये?
* क्या पवित्र कुरान में परिवार नियोजन की मनाही है?
मुसलमानों द्वारा परिवार नियोजन के उपायों को न अपनाने के पीछे की एक बड़ी वजह उनकी ये मान्यता है कि पवित्र कुरान में परिवार नियोजन की मनाही है और इस वजह को पुष्ट करने के लिये वो कुरान शरीफ की दो आयतों का हवाला देतें है। ये आयतें हैं,
* और गरीबी के कारण अपनी औलाद की हत्या न करो, हम ही तुम्हें भी रोजी देतें हैं और उन्हें भी। (कुरान, 6:151)
* और दरिद्रता के भय से अपनी औलाद की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोजी देतें हैं और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या एक बड़ी खता है। इन आयतों में औलाद के कत्ल की बात आई है और जाहिर है कि कत्ल उसका हो सकता है जिसका कोई अस्तित्व हो और जाहिर है कि कोई जीव तभी अस्तित्व में आ सकता है जब स्त्री और पुरुष में परस्पर संसर्ग में आये। गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल किये जाने की सूरत में किसी जीव की हत्या का सवाल ही पैदा नहीं होता फिर वो हराम कैसे हुआ? इमाम रजी ने इन आयतों की व्याख्या करते हुये कहा कि इस आयत से मुराद उनके शरीर की हत्या से नहीं बल्कि दिमाग की हत्या से है, जो शरीर की हत्या से ज्यादा बुरा है। ज्यादा औलाद हो तो इंसान उनकी परवरिश अच्छे तरीके से नहीं कर पाता परिणामस्वरुप औलाद जाहिल और अनपढ़ रह जाती है। इसके साथ ये भी एक तथ्य है कि पवित्र कुरान में एक भी आयत ऐसी नहीं है जो परिवार नियोजन की मनाही करता हो।
* दो बच्चों की पैदाईश में फासला रखना:-
आज परिवार नियोजन के लिये चलाये जाने वाले कार्यक्रमों में जो नारे दिये जाते है, (मसलन पहला बच्चा अभी नहीं , दूसरा तीन साल बाद), उसे कुराने-करीम ने आज से तकरीबन 1400 साल पहले बता दिया थी! इस बारे मेंकुरान की आयतें है-
* और हमने मनुष्य को अपने माता-पिता के बारे में ताकीद की है, उसकी माता उसे पेट में लिये-2 निढ़ाल होती रही और उसका दूध छूटता है दो बर्ष में। (सूरह लुकमान, 31:14)
* और हमने मनुष्य को अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने का हुक्म दिया है। उसकी माँ उसे पेट में लिये-2 कष्ट उठाती रही और कष्ट के साथ उसे जना और उसका गर्भ की अवस्था में रहना और उसका दूध छुटना कम से कम ढ़ाईबर्ष में होता है। (सूरह अल अहकाफ, 46:15)
आज मुस्लिम समाज के सामने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण का सवाल यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है, उन्हें निर्णय करना है कि वो रसूलुल्लाह के आदेशों पर अमल करते हुये अपनी संतति को बेहतर तरबीयत देंगें या मजहब के ठेकेदारों और कुरआन और हदीस की गलत व्याख्या करने वालों के बहकाबे में आकर अपनी और अपनी औलाद की जिंदगियां और भबिष्य को अंधकारमय करेंगें? मुसलमानों से अधिक बच्चा पैदा करने की अपील करने वाले कतई उनके शुभचिंतक नहीं है, अल्जीरियाई राष्ट्रपति बोमेंटियन की तरह उनकी आकांक्षा भी अपने राजनीतिक हिंतों को साधने की है। जाकिर नाईक जैसे पढे़-लिखे दकियानूसों की इन व्यर्थ की दलीलों में भी मुसलमानों को नहीं आना चाहिये कि अगर उनके माँ-बाप ने परिवार-नियोजन किया होता तो उनके जैसा विद्वान इस धरती पर नहीं आता। अगर इसी दलील को आधार माना जाये फिर तो रावण, वीरप्पन और लादेन के बारे में भी ये कहा जा सकता है कि अगर उनके माता-पिता ने परिवार-नियोजन करवाया होता तो दुनिया ऐसे अनचारियों से बच जाती क्योंकि ये सब अपने माता-पिता की पहली संतान नहीं थे।
औलाद कम हो मगर गुणी और संस्कारवान हो तो माता-पिता ही नहीं देश और समाज सबको उसपर गर्व होता है, पांडव केवल पांच थे और कौरव सौ, मगर दुनिया आज पांडवों को याद करती है क्यूंकि वो गुण और संस्कार में श्रेष्ठ थे। यही बात आज के परिपेक्ष्य में भी उतनी ही सत्य है। भारतबर्ष में मुसलमानों को गुमराह करने वाले नेतागण उन्हें ये समझाने में कामयाब हो गये है कि उनके बेरोजगारी, पिछड़ेपन, अशिक्षा, गरीबी आदि तमाम समस्याओं का समाधान सरकारी अनुदान और आरक्षण है जबकि वास्तविकता ये है कि मुसलमानों की इन तमाम समस्याओं का समाधान परिवार नियोजन के उपायों को अपना कर छोटा परिवार रखने में है। मंहगाई और बेरोजगारी में ठेला चलाने और पंक्चर बनाने वाले दस बच्चों वाले दंपत्ति के वनिस्पत अच्छी और खुशहाल स्थिति में वो माँ-बाप हैं जिनके दो ही बच्चे हैं जो अच्छी तालीम हासिल कर अच्छे पदों पर काम करते हैं। औलाद की संख्या अधिक हो तो माँ-बाप उनपर पूरा नियंत्रण नहीं रख पाते परिणामस्वरुप उनमें से अपराधी जन्म लेते हैं।
अधिक बच्चे और बड़े परिवार के खामियाजे को दर्शाती पाकिस्तान फिल्म बोल के आखिर में अधिक औलाद पैदा कर अपने बच्चों की जिंदगियां नरक करने वाले बाप का कत्ल करने वाली उस फिल्म की नायिका द्वारा अपने समाज और धर्मगुरुओं से पूछे गये सवाल आज भी मुस्लिम समाज के सामने अनुत्तरित खड़ा है जिसमें वो पूछती है- "मैनें अपने बाप से अपने पैदाईश का बदला लिया है मेरे बाप ने आठ बच्चे पैदा नहीं किये थे बल्कि आठ बच्चे मारे थे। मैं अपने पीछे एक सवाल छोड़ के जाना चाहती हूँ और मैं चाहती हूँ कि आप सब इस सवाल का जबाब इस मआशरे से मांगे, सवाल ये कि सिर्फ मारना ही क्यों जुर्म है, पैदा करना जुर्म क्यों नहीं? पूछिये, हराम का बच्चा पैदा करना ही जुर्म क्यों है, जायज बच्चे पैदा करके उनकी जिंदगियां हराम कर देना जुर्म क्यों नहीं है?
लोगों को समझायें कि और भीखमंगे पैदा नहीं करो, रोती सूरतें और बिसूरती जिंदगियां पहले ही बहुत हैं। जब खिला नहीं सकते तो पैदा क्यूँ करते हो?" मुसलमान सरकार और दूसरे गैर सरकारी संगठनों द्वारा परिवार नियोजन के पक्ष में चलाये जा रहे कार्यक्रमों में बढ़-चढ कर भाग ले, परिवार छोटा रखें, लड़के और लड़की के बीच कोई फर्क न करें इसी में उनकी और वो जिस समाज और मुल्क में रहते हैं उसकी खुशहाली !
अभिजीत मुज़फ्फरपुर (बिहार) में जन्मे और परवरिश पाये और स्थानीय लंगट सिंह महाविद्यालय से गणित विषय में स्नातक हैं। ज्योतिष-शास्त्र, ग़ज़ल, समाज-सेवा और विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों का अध्ययन, उनकी तुलना तथा उनके विशलेषण में रूचि रखते हैं! कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में ज्योतिष विषयों पर इनके आलेख प्रकाशित और कई ज्योतिष संस्थाओं के द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता की कोशिशों के लिए कटिबद्ध हैं तथा ऐसे विषयों पर आलेख 'कांति' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इस्लामी समाज के अंदर के तथा भारत में हिन्दू- मुस्लिम रिश्तों के ज्वलंत सवालों का समाधान क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाशने में रूचि रखते हैं।
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