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Hindi Section ( 28 Apr 2015, NewAgeIslam.Com)

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They Killed As They Had To Kill 'उन्हें गोली मारनी थी, मार दिया'

 

वुसतुल्लाह ख़ान

27 अप्रैल 2015

सच्ची बात तो ये है कि तीन दिन से मेरा कुछ भी कहने-सुनने को दिल नहीं चाह रहा. फिर सोचता हूँ कि दुख-सुख तो जीवन भर का मसला है, इनसे आपके काम में बाधा तो नहीं पड़नी चाहिए. घोड़ा घास से यारी लगाएगा तो खाएगा क्या, शो मस्ट गो ऑन.

वैसे भी आदमी पैदा ही मरने के लिए होता है. मगर मेरे लिए दो लोगों का मरना बहुत ही नाटकीय था.

एक तो मेरे पिता जी जिन्होंने जीवन में पहली और आख़िरी बार अस्पताल का मुँह देखा. एक दिन मुझसे बेड पर लेटे-लेटे कहा, अच्छा भाई कहा सुना माफ़ अब मुझे इजाज़त दो... और फिर वो मर गए.

तीन दिन पहले हाइड पार्क की आत्मा से उठाए गए T2F कराची के खचाखच भरे हॉल में जैसे ही 'बलूचिस्तान की ख़ामोशी तोड़ दो' नामक सेमीनार ख़त्म हुआ मैंने T2F की मालकिन और मेरी दोस्त सबीन महमूद से कहा क्या तुम्हारे यहाँ मेहमानों को पानी भी नहीं पूछते... उसने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल मुझे दे दी और फिर अपनी माताजी के साथ गाड़ी में बैठ के चल पड़ी. और फिर सात सौ गज दूर ही ट्रैफ़िक लाइट पर पहुंच कर मर गई. बस इतनी सी कहानी है.

काउंटर नरेटिव नहीं चलेगा

अब आप लाख टामकटुइंया (हो हल्ला) मारते रहे हैं, कारण ढूंढते रहे, सायों के पीछे भागते फिरें, जाँच कमीशन बनाते रहें, मोमबत्तियाँ जलाते रहें... सबीन को क्या फ़र्क पड़ता है.

हालांकि मेरे पास कोई सबूत नहीं मगर मुझे लगता है हत्यारे सेमीनार सुनने वाले 150-200 लोगों के दरम्यान ही कहीं मौजूद थे. बस उन्हें ये करना था कि जैसे ही सबीन बाहर निकलें गोली मार दें और उन्होंने गोली मार दी. यानी अब काउंटर नरेटिव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, भले वो कमरे में बैठकर ही क्यों न दिया जाए.

जिस तरह हम देखते हैं उसी तरह देखो, जैसे हम सोचते हैं उसी तरह सोचो. अगर कोई दिक्कत हो तो हमारे पास आओ, हम तुम्हें सोचने और देखने की ट्रेनिंग देंगे.

लेकिन अगर तुमने कौमी मसलों के हल के लिए अलग से अपना दिमाग़ लड़ाने या बकबक करने की कोशिश की तो फिर तुम भी एक बंदूक़धारी दुश्मन के बराबर हो. क्योंकि तुम लोगों के दिमाग़ों को हथियारबंद करते हो, उनके मन में सवाल पैदा करते हो, उन्हें शक़ करना सिखाते हो...ऐसे नहीं चलेगा भइया.

परेशानी काहे की?

पिछले दो दिनों में मैंने कई बार ख़ुद को गिल्टी फ़ील किया. क्या पहाड़ टूट पड़ता अगर ये सेमीनार ही नहीं होता, क्या फ़र्क पड़ता अगर इस सेमीनार में बोलने वाले सबीन को टका सा जवाब दे देते. और आ भी गए तो वो बातें भी न करते जिनमें कोई बात नई बात नहीं थी.

टनों के हिसाब से ये सब बातें पहले ही छप चुकी हैं और लोगों के कानों में उडेली जा चुकी हैं.

फिर शायद ये कथा मुझे आपको सुनानी ही न पड़ती. फिर सोचता हूँ कि जो डर गया वो मर गया, जो नहीं डरा वो भी मर जाएगा...तो फिर परेशानी काहे की!

सोचना ये है कि इस दुनिया में सबीन जैसे पागल कम संख्या में सही मगर पैदा होते रहेंगे. फ़र्क तो तब पड़ता जब ऐसे पागल भी गोली मारने वालों की इजाज़त से पैदा होते.

वुसतुल्लाह ख़ान, बीबीसी संवाददाता, पाकिस्तान

Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2015/04/150426_wusatullah_khan_blog_sabeen_mehmud_murder_rns

URL: https://newageislam.com/hindi-section/they-killed-they-had-kill/d/102697

 

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