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Hindi Section ( 24 March 2014, NewAgeIslam.Com)

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Toward An Islamic Enlightenment इस्लामी आत्मज्ञान की ओर

 

 

 

 

सहीन अल्फ़े

9 फरवरी, 2014

“Toward an Islamic Enlightenment: The Gülen Movement”

By M. Hakan Yavuz (एम हकन यावूज़)

Oxford University Press, 2013 (ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस)

तुर्की के इस्लामी विद्वान फतहुल्ला गोलन ने इस्लाम की ऐसी व्याख्या प्रस्तुत की है जो (धार्मिक स्वतंत्रता और सभी धर्मों से सम्बंध रखने वाले लोगों के लिए सम्मान पर आधारित) शांति, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, विज्ञान, शिक्षा और बाज़ार पर आधारित अर्थव्यवस्था की वकालत करती है और जिन्होंने अंतरधार्मिक संवाद और विभिन्न जातीय, धार्मिक पहचान और जीवन शैली वाले लोगों की आपसी समझ और सम्मान का समर्थन किया है और ये तुर्की के स्थानीय और विदेशी पर्यवेक्षकों के लिए बेहद जिज्ञासा का विषय हैं।

जिस सामाजिक आंदोलन को उन्होंने प्रेरित किया वो शिक्षा, मीडिया और व्यापारिक उद्यम को प्रायोजित करता है और जिसने तुर्की में स्कूलों और युनिवर्सिटियों की स्थापना की और 120 से अधिक देशों में भी वो समान रूप से जिज्ञासा का विषय हैं।

कट्टरपंथियों के बाद जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी के प्रधानमंत्री रजब तैयब अर्दोगान 2002 से सत्ता में है और जो कुछ समय पहले तक गोलन और उनके आंदोलन का नाम सम्मान से लिया करते थे और उनकी प्रशंसा भी करते थे, उन्होंने अब गोलन को ''झूठा नबी'', ''झूठा संत'' और ''फ़र्ज़ी विद्वान'' कहना शुरू कर दिया है और गोलन मूवमेंट को ''समानांतर राज्य'', ''गिरोह'', ''अवैध संगठन'' और ''पागलपन का शिकार'' कहना शुरु कर दिया है। तैयब अर्दोगान ने नौकरशाहों, उनकी सरकार के सदस्यों और उनके नज़दीकी कारोबारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू करने वाले अभियोजन पक्ष और पुलिस पर गोलन से आदेश लेने का आरोप लगया है। कहा जा सकता है कि इससे गोलन और उनके आंदोलन के बारे में लोगों की दिलचस्पी कई गुना बढ़ गयी है।

गोलन और उनके मूवमेंट के बारे में विदेशों में मेरे दोस्त और सहकर्मी मुझसे अक्सर पूछते हैं कि मेरे द्वारा अब तक लिखे गये लेखों के अलावा वो और क्या पढ़ें। इस विषय पर किये गये अध्ययन में जो सबसे उल्लेखनीय काम है वो अमेरिका के ऊटा युनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के तुर्की प्रोफेसर एम हकान यावुज़ (M. Hakan Yavuz) का है। निश्चित रूप से वो अकेले ऐसे अकादमिक व्यक्ति हैं जिन्होंने इस विषय पर शोध करने में सबसे ज़्यादा ऊर्जा और समय दिया है और इस विषय पर सामग्री को बड़े पैमाने पर प्रकाशित किया है। कभी कभी गोलन मूवमेंट की सीधे तौर पर आलोचना कर उन्होंने शायद अपने दृष्टिकोण में विश्वसनीयता हासिल की है।

यावुज़ की हालिया किताब ''Toward an Islamic Enlightenment: The Gülen Movement'' (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) को मैं पढ़ने के लिए असाधारण किताब मानता हूँ, क्योंकि ये गोलन के विचारों और उस आंदोलन की संरचना जिसे गोलन ने प्रेरित किया, उसके विकास की पृष्ठभूमि पर सूक्ष्म और व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करती है। निश्चित रूप से ये इस विषय पर अंतिम शब्द नहीं है और बहुत सारे पहलुओं से इसकी आलोचना हो सकती है, लेकिन मेरी समझ के अनुसार इस विषय पर अब तक की ये सबसे अच्छी किताब है।

इसका मूल तर्क जैसा कि इसके शीर्षक में इशारा किया गया है और परिचयात्मक भाग में भी व्याख्या की गई है, वो निम्नलिखित है: इस्लाम एक है, ऐसा नहीं है। दूसरे धर्मों की तरह ही इस्लाम का इतिहास भी विभिन्न व्याख्याओं का एक इतिहास है। आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण (Modernisation and globalisation) की प्रक्रियाओं ने दो परस्पर विरोधी व्याख्याओं को जन्म दिया है। कट्टरपंथी आधुनिकीकरण (Modernisation) को अस्वीकार करते हैं और कुरान और पैग़म्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर आधारित ''शुद्ध'' इस्लाम के लिए आग्रह करते हैं। जबकि दूसरी तरफ आधुनिकतावादी समकालीन दुनिया में मुसलमानों के आध्यात्मिक और लौकिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कठोर और विशुद्धिवादी व्याख्या से मुक्त इस्लामी विचारधारा और व्यवहार को चाहते हैं। गोलन के साथ ही फ़ज़लुर्रहमान, अलीजा इज़तबिगोविच, अब्दुर्रहमान वाहिद, अब्दुल करीम सोरुश और राशिद अलगनौची आदि भी आधुनिकतावादी विचारधारा से सम्बंधित हैं। आत्मज्ञान का मतलब धर्म की अस्वीकृति नहीं है, अनिवार्य रूप से इसका मतलब समाज और ब्रह्मांड को समझने के लिए आलोचनात्मक तर्क का प्रयोग है। सैयद नूरसी (1878- 1960) और गोलन ''इस्लामी आत्मज्ञान' का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्होंने अधिक मानवीय समाज के निर्माण में सुधार पैदा करने के लिए इस्लाम की व्याख्या तर्क और विज्ञान के प्रकाश में की है।

गोलन मूवमेंट के अंतिम लक्ष्य के बारे में देश और विदेशों में अक्सर सवाल किया जाता है। इसके बारे में यावूज़ का जवाब ये है: ''इस मूवमेंट से ये संकेत मिलता है कि ये न तो सामाजिक वर्चस्व स्थापित करने और न ही तुर्की के शासन पर क़ब्ज़ा करने की इच्छा से प्रेरित है। बल्कि इसका उद्देश्य मोमिनों और समाजों- राज्य और मानवता के बीच सामूहिक रूप से नैतिकता और सदाचार की भावना को बढ़ावा देना और उसे मज़बूत कर के समाज और राजनीति को एक नया रूप देना है। (पेज 221)

इस किताब का वो अध्याय जिसमें प्रखर धर्मनिरपेक्षतावादियों, इस्लामी कट्टरपंथियों, कुर्द राष्ट्रवादियों और अल्वी धार्मिक अल्पसंख्यक के एक हिससे के द्वारा गोलन मूवमेंट के खिलाफ की गई आलोचनाओं पर चर्चा की गयी है वो इस किताब और भी सार्थक बनाती है।

स्रोत: http://www.todayszaman.com/columnist/sahin-alpay_338942_toward-an-islamic-enlightenment.html

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URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/toward-islamic-enlightenment-/d/35811

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