ज़फ़र आग़ा (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
खुदा का लाख लाख शुक्र है कि हमारे और आपके माँ-बाप ने 1947 में बँटवारे के बाद पाकिस्तान जाना गवारा नहीं किया। ज़रा सोचिए अगर हमारे माँ-बाप गलती से पाकिस्तान चले गये होते तो आज हमारा और हमारे बच्चों का क्या हाल होता? शायद हम भी दीवाने पाकिस्तानी जिहादियों की तरह हाथ में AK-47 लटकाए इस्लामी हुकूमत की तलाश में मासूमों का खून बहा रहे होते। अगर हम इस दीवानगी से खुद भी बच जाते तो बहुत सम्भव था कि हमारे बच्चे तालिबानियों के बहकावे में आकर आत्मघाती हमलावर बन कर खुदा न ख्वास्ता खुद भी जान से गये होते और न जाने कितने मासूमों का खून बहाया होता।
अल्लाह हमारे इस ममलिकते खुदादाद पाकिस्तान से जहाँ इस्लाम नऊज़ोबिल्लाह एक तमाशा बन गया है। आज एक इस्लामी हुकूमत के नाम पर पाकिस्तान में जो दीवानगी हो रही है, क्या कोई होश वाला इंसान किसी भी मज़हब औऱ अक़ीदे से इसको ताबीर कर सकता है? दुनिया का कोई भी मज़हब क्या खून खराबे की इजाज़त दे सकता है? और वो भी इस्लाम जिसका रब अल्लाह रब्बुल आलमीन हो, उस इस्लाम के नाम पर मुसलमान खुद मुसलमान का खून बहाये और फिर ये कहे कि ये तो जिहाद है और हम इस्लाम की खिदमत कर रहे हैं। क्या कोई होश वाला इसको इस्लाम कहेगा? अगर यही इस्लाम नऊज़ोबिल्लाह होता तो रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की ज़िंदगी में सौ डेढ़ सौ सरफिरों के हाथों में तलवार थमा देते और कहते कि जाओ सोते हुए काफिरों के घर में घुस कर उनका कत्ल कर दो। बस फिर मक्का में इतनी दहशत फैल जायेगी कि लोग खुद बखुद इस्लाम कुबूल कर लेंगे, लेकिन रसूलुल्लाह (स.अ.व.) पैग़ामे रहमत फैला रहे थे, पैगाम ज़हमत लेकर नहीं आये थे, लेकिन आज के पाकिस्तान में जिहादी जिस इस्लाम पर चल रहे हैं, वो पैगामे ज़हमत है, अल्लाह का पैगामे रहमत तो बिल्कुल भी नहीं है।
आखिर ये ममलिकते खुदादाद पाकिस्तान को हुआ क्या है? सवाल अब ये है कि पाकिस्तान पर किस की हुकूमत है? क्या आज पाकिस्तान में अभी भी फौज का सिक्का चल रहा है? अगर फौज अपने बैरकों में पहुँच चुकी है तो पाकिस्तान में मौजूदा जम्हूरी नेज़ाम सही मानों में मुल्क के नेजाम पर कादिर है? इसमें कोई शक नहीं कि अभी चंद बरसों तक सारी दुनिया ये समझती थी कि हाकिम कहने को कोई भी हो, सिक्का पाकिस्तान में फौज का ही चलता है, सच्चाई भी यही है। पाकिस्तान की 60-62 बरस की उम्र में 40-45 बरस तो फौज ने ही शासन पर कब्ज़ा बनाये रखा, लेकिन अभी दो हफ्ते पहले इसी पाकिस्तानी फौज के हेडक्वार्टर पर रावलपिण्डी में जिहादियों का कब्ज़ा हो गया था और कोई 24 घण्टे ये तथाकथित जिहादी पाकिस्तान के हेडक्वार्टर पर न सिर्फ कब्जा किये रहे बल्कि पाकिस्तानी फौज से लड़ते भी रहे। आखिरकार तथाकथित जिहादी मारे गये लेकिन एक बार इन तथाकथित जिहादियों ने दुनिया को बता दिया कि अब वो पाकिस्तानी फौज को खुद उसकी मांद में भी घुस कर चैलेंज दे सकते हैं, वास्तव में अब पाकिस्तानी नेज़ाम पर फौज की पकड़ भी ढ़ीली हो चुकी है।
तो फिर क्या आसिफ अली ज़रदारी की पीपुल्स पार्टी का इस वक्त पाकिस्तान में डंका बज रहा है और पाकिस्तान में जम्हूरी फौजें हावी हो चुकी हैं। ये आलम है पाकिस्तानी जम्हूरिया नेज़ाम का कि इन हंगामी हालात में भी आसिफ अली ज़रदारी और मियां नवाज़ शरीफ आपस में लड़ रहे हैं। पाकिस्तान की दो सबसे बड़ी जम्हूरी पार्टियों को अपनी सत्ता की ज़्यादा फिक्र है और पाकिस्तान की फिक्र ढेले बराबर भी नहीं है। तभी तो भले ही आसिफ अली ज़रदारी पाकिस्तान के सदर (राष्ट्रपति) हों, लेकिन हाफिज़ सईद को चाहते हुए भी वो कैद नहीं कर पा रहे हैं। हाफिज़ सईद का ये आलम है कि इधर उनको हुकूमत ने गिरफ्तार किया और उधर अदालत ने उनको रिहा किया। सच पूछिये तो मौजूदा पाकिस्तान न फौज के बस का बचा है और न ही जम्हूरी नेज़ाम का। इस वक्त सही मानों में अगर किसी का पाकिस्तान पर क़ब्ज़ा है तो वो हाफिज़ सईद और ए.क्यु.खान जैसे लोगों का है। भले ही इन जेहादी नज़रियों में यकीन रखने वालों का सरकार पर कब्ज़ा न हो, लेकिन हाफिज़ सईद जैसे पाकिस्तानी जनता के दिलों पर छाये हुए हैं। तब ही तो अगर हाफिज़ सईद अगर गिरफ्तार भी होते हैं, तो पुलिस उनके खिलाफ इतना मामूली केस दायर करती है कि वो मिनटों में रिहा हो जाते हैं और अगर सईद के खिलाफ हुकूमत कोई सख्त कदम उठाती है तो अदालत को हाफिज़ सईद से इतनी हमदर्दी होती है कि जज साहब इस पाकिस्तानी जिहादी अलम बरदार को किसी न किसी बहाने रिहा कर देते हैं।
इधर ए.क्यु.खान साहब का ये आलम है कि दुनिया में कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता है। ये कौन ए.क्यु.खान हैं? ये वही ए.क्यु.खान हैं जिन्होंने अपने इल्म और सलाहियत से नहीं बल्कि सारी दुनिया से न्युकिलियर टेक्नोलोज़ी स्मगल कर के पाकिस्तान को एक न्युकिलियर शक्ति वाला देश बना दिया। जिसको पाकिस्तानी ‘इस्लामी बम’ कहते फिरते हैं। इसी न्युकिलियर टेक्नोलोज़ी स्मगलर का पाकिस्तान में ऐसा रुत्बा है कि खान साहब को पाकिस्तान नेज़ाम तो क्या अमेरिका भी उनको हाथ नहीं लगा सकता है। यानि पाकिस्तानी दिलो दिमाग़ पर फिलहाल किसी का दबदबा है तो हाफिज़ सईद और ए.क्यु.खान जैसे जिहादियों का है। पाकिस्तान में जनता के स्तर पर अब न तो फौज का असर बचा है और न ही जम्हूरी ताकतों को कोई पूछ रहा है। बस अब जिहादियों के हाथों में हथियार है और उनके लिए साहबे इज़्ज़त अगर कोई बचा है तो हाफिज़ सईद और ए.क्यु.खान जैसे जिहादी मानसिकता वाले लोग बचे हैं।
आखिर पाकिस्तान में ये जुनून क्यों है और पाकिस्तान में ये जिहादी इतने ताकतवर क्यों हैं? यही पाकिस्तान अभी 1947 तक हिंदुस्तान का ही हिस्सा तो था। इसी हिंदुस्तान का ये आलम है कि 60-62 बरसों में ये दुनिया की एक ताकत बनता जा रहा है। यहाँ 1952 से आज तक सुकून से जम्हूरी नेज़ाम चल रहा है। भले ही कुछ अर्से के लिए मुल्क में विश्व हिंदु परिषद और बजरंग दल जैसे हिंदू जिहादी संगठनों का ज़ोर हो गया हो, लेकिन चुनाव और जम्हूरी तरीकों से हिंदुस्तान ने इन जिहादी ताकतों की चहेती पार्टी बीजेपी पर काबू पा लिया। आज बीजेपी का हिंदुस्तानी राजनीति में ये आलम है कि आडवाणी जैसों को कोई पूछने वाला नहीं है। इधर पाकिस्तान की हालत ये है कि पाकिस्तानियों ने पहले जिन्ना को महज़ इसलिए छोड़ा कि वो पाकिस्तान को एक आधुनिक और सेकुलर देश बनाना चाहते थे, फिर पाकिस्तान ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो जैसों को फांसी चढ़ा कर लोकतंत्र का गला घोंट दिया और पाकिस्तान को फौज के हवाले कर दिया। जब इसी फौज ने परवेज़ मुशर्रफ के वक्त से हिंदुस्तान से शांति की बात करनी शुरु की तो जिहादी इसी फौज के खिलाफ खड़े हो गये। और पाकिस्तान का अब ये आलम है कि पाकिस्तान सिविल वार (गृह युद्ध) के कगार पर खड़ा है। हिंदुस्तान और पाकिस्तान में ये फर्क क्यों? बात बहुत कड़वी है, लेकिन हकीकत है और हकीकत ये है कि 1947 में हिंदुस्तान ने ये तय किया कि वो एक ऐसे देश को बनायेगा, जिसका आधार कोई विश्वास नहीं बल्कि जनता की इच्छा यानि लोकतांत्रिक सिद्धांत होगा। इधर पाकिस्तान ने तय किया कि वो ‘हिंदू भारत’ के मुकाबले एक ऐसा देश बनायेगा जिसका आधार विश्वास होगा और जनता की आवाज़ को कोई जगह नहीं दी जायेगी। कहने को तो जनरल ज़ियाउल हक़ ने पाकिस्तान पर इस्लाम का लेबल लगाया, लेकिन 1947 से आज तक पाकिस्तानी नेज़ाम के मन पर हिंदुस्तान सवार रहा और बस पाकिस्तानी नेज़ाम को अपनी स्थापना से आज तक ‘हिंदू भारत’ से बदला लेने की तलाश थी और पाकिस्तानी नेज़ाम इस्लाम को अपने बदले के लिए इस्तेमाल करता रहा। वो किसी भी तरह ‘हिंदू भारत’ से ‘मुस्लिम कश्मीर’ हासिल करना चाहता था। इसलिए इस तलाश में पाकिस्तानी उच्च वर्ग ने सबसे पहले लोकतंत्र को दफन करके देश को फौज के हवाले कर दिया और इस तरह पाकिस्तान में जनता की आवाज़ दब कर रह गयी, लेकिन जनता के ध्यान को गरीबी और भुखमरी जैसी समस्याओं से हटाने के लिए पाकिस्तानी प्रशसन ने इस्लाम की आड़ में हिंदुस्तान के खिलाफ नफरत का सैलाब पैदा कर दिया, लेकिन ‘हिंदू भारत’ से नफरत की आग में सुलगते पाकिस्तान के हाथ आया क्या? वो फौज जिस पर पाकिस्तान को गर्व था, वही फौज 1970-71 में पश्चिमी पाकिस्तान खो बैठी, जो आज पूरी दुनिया में बंग्लादेश के नाम से मशहूर है, लेकिन पाकिस्तानी प्रशासन के सिर से ‘हिंदू भारत’ का भूत नहीं उतरा है। अब जनरल ज़िया ने पाकिस्तान की फौज को ये सबक सिखाया कि वो हिंदुस्तान को कश्मीर में ‘अन्दरूनी तौर पर लहु लुहान’ करेगा, यानि मुस्लिम कश्मीर में वो ऐसा हंगामा खड़ा करेगा कि हिंदुस्तानी फौज वहाँ फंस कर रह जायेगी। इस हंगामे के लिए पाकिस्तान ने एक जिहादी रणनीति तैय्यार की। देश में जिहाद का जिन्न तैय्यार किया और इस जिहादी जिन्न को जिहाद की ट्रेनिंग देने के लिए हाफिज़ सईद जैसों को ठेका दिया गया, जिन्होंने सारे पाकिस्तान में ऐसे मदरसे खोले जहाँ जिहाद के नाम पर आत्मघाती जिहाद की ट्रेनिंग दी गयी। और इन मदरसों से निकलने वाले लोग आखिर पाकिस्तानी तालिबान में बदल गये। अब ये आलम है कि वो जिहादी जिन्न न तो पाकिस्तानी प्रशासन के हाथों में रहा और न ही पाकिस्तानी फौज अब उसको कैद कर पा रही है। अब हालात ये है कि इस जिहादी जिन्न को खून मुंह लग गया है। हिंदुस्तान ने अमेरिका से हाथ मिलाकर कश्मीर घाटी और हिंदुस्तान के दूसरे क्षेत्रों में इस जिहादी बमबारों के आने जाने पर अच्छी खासी रोक लगा ली है, लेकिन जिहादी जिनको तो रोज़ खून की प्यास लगती है, इसलिए अब इसी जिहादी जिन्न पर ये भूत सवार हो गया कि पाकिस्तानी सत्ता फौज या आसिफ अली ज़रदारी के पास क्यों है? ये तो अब खुद उसके हाथों में क्यों नहीं?
फिलहाल क़बायली क्षेत्रों में पाकिस्तानी फौज और जिहादियों के बीच जो जंग चल रही है, वो पाकिस्तानी सत्ता पर कब्ज़े की जंग है और हाफिज़ सईद और ए.क्यु.खान जैसी मानसिकता रखने वाली शक्तियाँ अब इस बात पर अमादा हैं कि किसी तरह सत्ता उनके कब्ज़े में आ जाए। ज़ाहिर है जिहादियों और फौजियों की रस्साकशी में न सिर्फ मासूम पाकिस्तानी मौत के घाट उतरेंगे बल्कि खुद पाकिस्तान और उसका अस्तित्व भी लहु लुहान हो जायेगा। औऱ देखा आपने, अंधे अकीदे पर हँसने वाले पाकिस्तान का अब क्या हश्र हो रहा है? मेरी राय में इस ‘हिंदू भारत’ में रहने वाले 15 करोड़ मुसलमान कम से कम फिलहाल तो पाकिस्तानी मुसलमानों से कहीं ज़्यादा सुरक्षित हैं। इसीलिए तो कहता हूँ कि हमारे माँ-बाप का हम पर बड़ा एहसान है कि उन्होंने अकीदे के जुनून में पाकिस्तान जाने की गलती नहीं की और लोकतांत्रिक हिंदुस्तान को अपना वतन कुबूल किया, जहाँ आज नहीं तो कल हम तरक्की करेंगें।
स्तम्भकार राजनीतिक मामलों के समीक्षक हैं
स्रोतः डीएनए इण्डिया डाट काम
URL for English and Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/this-madness-pakistan-/d/2012
URL: https://newageislam.com/hindi-section/this-madness-pakistan-/d/5708