बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
भाग-16 (आखरी)
وَمِنَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّا نَصَٰرَىٰٓ أَخَذْنَا مِيثَٰقَهُمْ فَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِۦ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ ٱلْعَدَاوَةَ وَٱلْبَغْضَآءَ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ ۚ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ ٱللَّهُ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ (المائدة، 14
और जिन्होंने दावा किया कि हम नसारा हैं हमने उनसे अहद लिया तो वह भुला बैठे बड़ा हिस्सा उन नसीहतों का जो उन्हें दी गईं तो हमने उनके आपस में कयामत के दिन तक बैर और बुग्ज़ डाल दिया और अनकरीब अल्लाह उन्हें बता देगा जो कुछ करते थे। (कुरआन, सुरह मायदह अनुवाद कंज़ुल ईमान से)
यहूदियों की अहद शिकनी और बुरे खसलत को बयान करने के बाद अल्लाह पाक ने इस आयत में नसारा के बुरे कामों और उनकी मज़मूम खसलतों को बयान फरमाया है। यहूदियों ने अल्लाह पाक से अहद व पैमान किया था कि हम अल्लाह और उसके नबियों और रसूलों पर ईमान लाएंगे और उनके जारी किये हुए अहकाम पर अमल करेंगे लेकिन उन्होंने इस अहद व पैमान को बालाए ताक़ रख दिया। हज़रत मूसा के बाद आने वाले नबियों की उन्होंने न केवल यह कि तकज़ीब (झुटलाया) की बल्कि बहुत से नबियों को उन्होंने क़त्ल भी कर दिया। तौरेत में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नअत और उनकी सिफात बयान किये गए थे। इसमें उन लोगों ने तहरीफ़ कर दी। तौरेत में उन्हें हुक्म दिया गया था कि जब आखरी नबी मबउस हों तो उस पर ईमान लाएं। लेकिन उन्होंने इस पर अमल नहीं किया और उन्हें झुटला दिया। और यही नहीं कि झुटला दिया बल्कि हुज़ूर अलैहिस्स्लातु वस्सलाम के खिलाफ उन्होंने उनके पीछे साज़िशों का एक जाल सा फैला दिया।
सुरह मायदा की आयत 14 में अल्लाह पाक फरमाता है कि हमने यहूदियों की तरह नसारा से भी अहद लिया था वह अल्लाह व रसूल पर ईमान लाएंगे और अच्छे काम के बजा लाने में कोई कोताही नहीं करेंगे। एक कौल यह है कि अल्लाह पाक ने इंजील में उनसे अहद लिया था कि यह आखरी नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाएंगे। लेकिन उन लोगों ने उस अहद को ताक़ पर रख दिया और नफ्स की ख्वाहिशात की पैरवी की जिसकी वजह से उनमें मतभेद हो गया और अल्लाह पाक ने उनमे कयामत तक के लिए दुश्मनी पैदा कर दी या यहूद व नसारा के बीच दुश्मनी पैदा कर दी। और आयत के अखीर में अल्लाह पाक ने उन पर वईदे शदीद कायम करते हुए फरमाया कि हम उन्हें जल्दी बता देंगे कि यह क्या करते थे अर्थात हम उन्हें इस अहद व पैमान की खिलाफ वर्जी करने और नसीहत के भुला देने पर सख्त सज़ा से दोचार करेंगे। और अल्लाह पाक ने सदरे आयत “وَمِنَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّا نَصَٰرَىٰٓ” से इस बात की तरफ इशारा किया है कि यह बज़ोअमे खवेश खुद को नसारा अर्थात “अंसारुल्ल्लाह” कहते हैं जिसका हकीकत से कोई संबंध नहीं है इसलिए कि अगर यह अपने दावे में सच्चे होते तो अल्लाह पाक की इताअत व फरमांबरदारी और उसके अहकाम की बजा आवरी पर साबित कदम रहते और उससे किये हुए अहद को नहीं भुलाते लेकिन उन्होंने सब कुछ ताक़ पर रख दिया।
अहद व पैमान की खिलाफवर्जी और देशों के बीच तय शुदा मीसाक की मंसूखी या अदमे बजा आवरी को आज की दुनिया भी बदतरीन जुर्म मानती है जिससे कभी कभी आर्थिक नाकाबंदी से ले कर जंग की नौबत आ जाती है उसी तरह रियासत और शहरियों के बीच तय पाए गए समझौते पर दोनों पक्षों के अमल न करने की स्थिति में अमन व अमान का मसला खड़ा हो जाता है और ग़ालिब पक्ष मग्लूब को मिटाने के दर पे हो जाता है जिसका नतीजा कभी कभी कैद व बंद और हलाकत तक पहुंच जाता है।
इसी संदर्भ में सुरह मायदा की आयत 14 और उससे पहले की आयत को भी समझना चाहिए और उस पर ईमान रखना चाहिए कि कुरआन अल्लाह की किताब और उसका कलाम है जिसमें किसी तरह का रद्द व बदल, तहरीफ़ या मिलावट नहीं हो सकती और यह रहती दुनिया तक बनी आदम के लिए हिदायत और खैर व फलाह का ज़ामिन है।
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अल्लाह के फज़ल से आखरी क़िस्त (16) के इजरा के साथ निर्धारित 26 जिहाद और गैर जिहाद की आयतों के तफसीर का काम पूरा हो गया।
[Concluded]
बेहतर है कि नज़रे सानी के बाद इन किस्तों को किताबी शकल दी जाए और देश में प्रचलित तीन भाषाओं उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में इसे प्रकाशित किया जाए ताकि अधिक से आशिक लोग इससे लाभ उठा सकें विशेषतः हम वतन भाईयों पर यह स्पष्ट हो जाए कि कुरआन नफरत और आतंक का दाई नहीं है बल्कि यह अमन व अमान का पैगाम्बर और नकीब है।
दुआ करें कि अल्लाह पाक इस काम के इत्माम की सबील पैदा फरमा दे!!!!!
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मौलाना बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमैन, 3) मुखज़िन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइज़, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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